सोहन और सिया ने चैन की सांस ली | बहुत अच्छा हुआ , बड़ी मां चली गई, हम लोगों की जिन्दगी से | सारा दिन बड़बड़ करती रहती थी | जीना हराम कर रखा था |पूरे टाइम हम लोगों को बस उपदेश देती रहती थी | ,शराब नहीं पियो , पढ़ो लिखो ,अच्छे इंसान बनो,पूरे दिन सबको भाषण देती रहती थी | मानो सबसे बड़ी ज्ञानि वहीं हो |
चलो सिया देखते है,बड़ी मां के कमरे में क्या रखा है ,जरूरी सामान निकाल लेते है | फिर तुम मेड को
बुला के अच्छे से साफ सफाई करा लेना | हा ठीक है चलो
सोहन और सिया कमरे में गए | सिया ने देखा ,बड़ा सा एक बक्सा था | वो खोला तो देखा ,उसमें बहुत फटे पुराने कपड़े थे | उन्ही के बीच पुराने जमाने के एक, दो गहने थे | सिया तो बहुत खुश हो गई गहनों को देख के | उसमे एक डायरी भी थी | सोहन डायरी ले के कमरे से बाहर आ गया | उसमे लिखा था |
” भाग्यहीन कमलावती देवी” सोहन ने सोचा बड़ी मां का नाम तो कमलादेवी था ,लेकिन बड़ी मां ने अपने नाम के आगे भाग्यहीन क्यों लिखा है? फिर पढ़ने लगा ,उसमे लिखा था |
मेरी चार बहने थी, मैं सबसे छोटी थी |मै जब पैदा हुई तो मेरे घर मै मातम छाया था ,क्यों की सबने सोचा था की इस बार बेटा ही होगा ,लेकिन मै भी लड़की हो गई | जैसे तैसे बड़ी होती गई | घर का सारा काम हम चार बहने ही करती , मां तो इसी सदमे मै बीमार रहती की उनकी चार बेटी थी |
घर मै पैसे की कमी के कारण हम स्कूल भी नहीं जाते | पूरा दिन बस जानवर के तरह घर के काम करते | किसी तरह शादी हो गई मेरी | वो भी अपने से १३ साल बड़े लड़के से | कुछ समझ ही नहीं आया | पति शराबी था | दिन रात पिता था | जिस कारण वो भी भगवान को प्यारा हो गया |
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मै तो बस अपने भाग्य को कोसा करती थी | और सोचती “मै तो भाग्यहीन पैदा ही हुई हु ,मेरे जीवन मे सुख लिखा ही नहीं है |”तभी एक छोटा बच्चा मेरे पास आ के रोने लगा | लगभग ३ साल का होगा , उसको बोलने भी नहीं आता था | मैने बहुत खोजा की किसका बच्चा है ? लेकिन कोई मिला ही नहीं |
पुलिस के पास भी ले के गई तो पुलिस वालो ने बोला कि इसे अपने पास ही रखो | जब इसके मां बाप मिल जायेगे ,तब बच्चे को ले के आना | मै ठहरी औरत जात | मेरे अंदर के ममता जाग उठी | मैं उसको खिलाती पिलाती , उसका ध्यान रखती |सब पूछते आप कौन है इस बच्चे की ?मै बोलती मै इसकी बड़ी मां हूं
और बच्चे का नाम सोहन रख दिया | बस सोहन बेटा ही मेरे जीने का सहारा बन गया | मै पढ़ी लिखी नहीं थी , इस लिए कोई अच्छा काम भी नहीं कर सकती थी | बस घर घर बर्तन माज कर सोहन को पाल रही थी | जैसे जैसे सोहन बड़ा होता गया | वो भी ताने मारता , आप मेरे लिए कुछ नहीं करती है , हमको अच्छे कपड़े नहीं दिलाती ,
अच्छा खाना नहीं खिलाती | उसका कहना सही भी था | मै उसकी जरूरतें पूरी नहीं कर पा रही थी | रोज अपने गरीबी और अनपढ़ होने के कारण अपनी जिन्दगी से हार रही थी | मेरी जिंदगी का बस यही मकसद है की सोहन को पढ़ा लिखा दूं | ताकि वह एक अच्छी जिंदगी जी सके | उसको सही गलत समझ आ जाए |
किसी गलत रस्ते पे ना जाए | इसलिए दिन रात उसको बोलती रहती , | किसी तरह बेटा बड़ा हो गया | ओर बात बात पे गुस्सा करता | मै क्या बोलूं उसको ,बस यही कहती
” बेटा तेरी बड़ी मा भाग्यहीन है जिसकी जिंदगी में सुख तो लिखा ही नहीं है ”
लेकिन मै चाहती हूं,तुम पढ़ लिख के बड़े आदमी बनो,गलत रस्ते पे नहीं जाओ | मेरा बोलना तुमको बुरा लगता है ,लेकिन तुम्हारे भले के लिए ही बोलती हूं | मै नहीं चाहती हु की मेरे जैसा भाग्यहीन कोई हो |
तुम खुश रहो | बड़े आदमी बनो,यही मेरी प्रार्थना है | मै ये डायरी तुम्हारे लिए ही लिख रही हूँ | शायद ये सब बाते मै तुमको कह नहीं पाती बेटा इस लिए लिखा है | तुम्हारी बड़ी मां
सोहन सुन्न रह गया | उसको यकीन ही नहीं हो रहा था की मुझ जैसे अनाथ को मां बन के पाला | और मै उनको कितना बुरा भला बोलता था | हे भगवान मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई | मै बड़ी मा को तो नहीं पा सकता | लेकिन उनकी इच्छा जरूर पूरी करूंगा | अब मैं बहुत बड़ा आदमी बनूंगा और शराब को हाथ तक नहीं लगाऊंगा | बड़ी मां हमको माफ कर देना |
रंजीता पाण्डेय