भाग्यहीन – एकता बिश्नोई : Moral Stories in Hindi

नीलू अपनी बीमारी से अब स्वयं ही परेशान हो चुकी थी। क्योंकि बीमारी में दवा और आराम की जरूरत होती है जो उसके नसीब में नहीं था।घर में उसकी सेवा करने वाला था ही कौन? बीमारी में भी घर का सारा काम उसे ही करना होता था…बेटियाँ दोनों छोटी थीं अभी, लगभग तीन और पाँच साल की।

          पति को अपने काम से फुर्सत नहीं थी। वैसे भी पति का घर के कामों में कोई सहयोग नहीं मिलता था। सुबह को घर से निकलने के बाद घर कब लौटेगा उसका कुछ पता नहीं होता था ।अगर फुर्सत मिल भी जाती थी तो उसका खाली समय अपने मांँ-बाप के साथ ज्यादा गुजरता था,जो अपने छोटे बेटे और बहू के साथ रहते थे। नीलू की तो जैसे उसको चिंता ही नहीं थी। गरीब घर की बेटी थी शायद ,इसलिए बहू के रूप में भी गरीब ही बनकर रह गई।

           शादी के बाद कुछ समय तो ठीक गुजरा मगर फिर दहेज के ताने दे देकर ससुराल वालों ने नीलू का जीना मुहाल कर दिया। उसके हर काम में कमी निकाली जाने लगी,पति बात बात पर हाथ भी उठाने लगा। 

          कुछ समय बाद देवर की शादी हो गई ।देवरानी अमीर घर की थी। सभी लोग उसकी आवभगत में ऐसे लगे कि नीलू का तो जैसे वजूद ही खत्म हो गया हो। देवरानी के सामने उसे नीचा दिखाने की सबमें होड़ सी लग गई थी। ससुराल वालों की तानाशाही और अधिक बढ़ गई….. तलाक की चर्चा भी अब घर वालों में धीरे-धीरे स्वरों में होने लगी।

           पति की कमाई  उसके और उसके बच्चों के अलावा सभी की थी। वह क्या  कमाता है कहाँ खर्च करता है उसे यह जानने का कोई अधिकार नहीं था। अधिकतर कमाई का हिस्सा उसके माँ बाप तथा अन्य सभी सदस्यों पर खर्च होता।घर में राशन पानी है या नहीं,बच्चों की पढ़ाई ठीक चल रही है या नहीं किसी चीज की आवश्यकता है या नहीं उसे इस बात से कोई मतलब नहीं था।

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           नीलू के पिता की मृत्यु जब वह छः वर्ष की थी तभी हो चुकी थी। मांँ ने छोटी-मोटी नौकरी करके उसे और उसके भाई बहनों की परवरिश की। बड़ी  हुई तो शादी के लिए रिश्ते आने लगे। अच्छा भला लड़का देख कर नीलू की माँ ने शादी पक्की कर दी।पहले तो लड़के वालों ने दहेज के लिए मना कर दिया मगर शादी के बाद बातों ही बातों में दहेज के लिए नीलू को बहुत कुछ सुनाने लगे। नीलू यही सोच कर सब सहती रही कि कहे भी तो किससे……..वो जानती थी कि उसकी गरीब माँ उसके ससुराल वालों की इच्छाओं की पूर्ति कभी नहीं कर पाएगी।

       शादी से पहले कभी- कभी नीलू  सोचती थी कि शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा। मगर उसे नहीं पता था कि भगवान ने उसका भाग्य अलग ही कलम से लिखा है। सुख से उसका दामन पहले भी खाली था और आज भी खाली ही है।उसे भाग्यहीन बना कर ऊपर वाले को न जाने कौन सा सुख मिल गया।

         गरीबी की मार ने उसकी माँ को भी जल्दी ही भगवान के पास भेज दिया।अब नीलू अपने आप को बिल्कुल अनाथ महसूस करने लगी।अपनी दुर्दशा देखकर नीलू अपनी बच्चियों के लिए भगवान से हमेशा यही प्रार्थना करती थी उनके भाग्य में वह सब सुख लिखना जो उसे नहीं मिल पाया। 

नामएकता बिश्नोई

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