भगवान की लाठी में आवाज़ नहीं होती । – करुणा मालिक : Moral Stories in Hindi

अंकलजी , मकान की कोई टेंशन मत लो । कोई शिकायत नहीं होगी । अजी ! अपने मकान से भी बढ़िया रखेंगे । काग़ज़ी कार्यवाही की ज़रूरत ही नहीं, शीला बहन के ज़रिए ले रहा हूँ जी , अपना बेटा ही समझ लो बस । 

ये सारी चिकनी- चुपड़ी बातें देवांश जगमोहनसिंह से कह रहा था । देवांश कुछ महीनों पहले ही लखनऊ से एल०एल० एम० की डिग्री लेकर अपने गाँव लौटा था । शुरू में एक कमरा किराए पर लेकर रोज़ गाँव से ही आना-जाना करता था पर सही तरीक़े से प्रैक्टिस करने के लिए उसे गाँव से सटे क़स्बे बुढ़ाना में एक मकान की आवश्यकता थी । जब किसी जानकार ने जगमोहन सिंह के बारे में बताया तो वह बिना समय गँवाए तुरंत पहुँच गया । मकान क्या , एक बड़ी ख़ूबसूरती से बनाई हवेली टाइप कोठी थी । 

तो आज्ञा दीजिए अंकलजी कि मैं कल सामान ले आऊँ?

आप अपना फ़ोन नंबर दे दीजिए । मैं अपनी बेटी और बहन से सलाह मशविरा करके बता दूँगा । दरअसल मेरी बहन यहीं मेरे पास ही रहती है । 

अच्छा… तो बुआ जी यहीं रहती हैं पर क्यों अंकलजी ? 

“एक बेटा है जो आस्ट्रेलिया में रहता है ।  जीजा जी की मृत्यु के पश्चात मैं  बहन को ले आया  था । कभी-कभी उसके पास चली जाती हैं और कभी वे लोग यहाँ कुछ दिनों के लिए आ जाते हैं । ” , न चाहते हुए भी जगमोहन सिंह बोले । 

तो कोई बात नहीं अंकलजी, बुआ जी हमारे साथ रहेंगी । ये तो बहुत ही बढ़िया बात है कि हमारे ऊपर उनका हाथ रहेगा । वैसे आप पूरा मकान ही तो किराए पर दोगे ना ? 

जगमोहन सिंह कम ही बोलते थे और पत्नी की मौत के बाद तो नपी- तुली बात करने लगे थे । अब देवांश का बोलना उन्हें अखरने लगा था ।इसलिए केवल “फ़ोन करूँगा “कहकर उससे पीछा छुड़वाया ।

कौन था मोहन ! 

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अरे दीदी, बड़ा ही चिपकू लडका था । ज़बरदस्ती के रिश्ते बना रहा था । वो प्रेमा मौसी को बताया था ना कि मैं गोल्डी के पास जर्मनी शिफ़्ट हो रहा हूँ और ऊपर का हिस्सा किराए पर देना चाहता हूँ । शायद मौसी ने शीला के सामने ज़िक्र किया होगा, वह उसी का नाम लेकर मकान देखने आया था । 

अच्छा…. तो कैसा लगा ? 

दो पति- पत्नी हैं । वकील है और शायद प्रैक्टिस  शुरू की है इसलिए अब पत्नी को भी गाँव से लाना चाहता है । आपकी क्या राय है? लड़का बोलता बहुत है । 

क्या बताऊँ ? बरत के ही किसी का पता चलता है । देख, दोनों ही बात हैं ; कभी-कभी ज़्यादा बोलने वाले दिल के साफ़ होते हैं और कभी-कभी अच्छा होने का ढोंग करते हैं । पर विश्वास तो करना ही पड़ता है । वैसे एक बार शीला से बात कर ले । और किराए पर देने से पहले काग़ज़ी कार्यवाही पूरी कर ले। 

दीदी! शीला भी केवल इतना जानती है कि उसके मोहल्ले में केवल दो महीने पहले ही आया है और पड़ोसी होने के नाते दो कमरों का मकान ढूँढ रहा था । इसलिए शीला ने हमारे ऊपर वाले टू रुम सेट के बारे में बता दिया । हाँ, शीला के पति से ही कहता हूँ काग़ज़ी प्रक्रिया के लिए । 

ख़ैर देवांश अपने सामान और पत्नी के साथ जगमोहन सिंह के घर में आ गया । एक हफ़्ता बाद ही जगमोहन सिंह देवांश को ज़रूरी हिदायत देकर जर्मनी चले गए क्योंकि बेटी पिछले साल से  पिता के गिरते स्वास्थ्य के कारण अपने  पास आकर रहने का दबाव बना रही थी । 

देवांश और उसकी पत्नी राधिका एक ही हफ़्ते में जगमोहन सिंह की बहन मनोरमा जी से ऐसे हिलमिल गए जैसे वे उनके ही बच्चे हो । कोई दस- पंद्रह दिन बाद ही देवांश बोला—-

बुआ जी! देख लो इसे अपनी बहू को, कह रही है कि क्लाइंट को नीचे आपके ड्राइंगरूम में बैठाने की परमिशन आपसे ले लूँ । अब भला  आप क्यों मना करेंगी, वैसे भी कमरा खुलेगा तो उसमें हवा आदि भी लगेगी । 

देवांश ने इस कुशलता से यह बात कही कि मनोरमाजी के मुँह से केवल इतना ही निकला—

हाँ, इस बहाने कमरे में  धूप-हवा भी लगती रहेगी । 

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हालाँकि एक दिन जब वीडियो कॉल पर जगमोहन सिंह ने लॉन में बैठी बहन के पीछे से गुजरते किसी अपरिचित को देखने पर उसके बारे में पूछा तब मनोरमाजी ने ड्राइंगरूम में क्लाइंट अटेंड  करने की बात बताई । पर उन्होंने बड़ी बहन को कुछ नहीं कहा।

दो महीने बाद ही मनोरमाजी  को बेटे के पास आस्ट्रेलिया जाना पड़ा क्योंकि बहू  माँ बनने वाली थी और पहले ही महीने से डॉक्टर ने बेडरेस्ट बता दिया था । जगमोहन  सिंह से सलाह- मशवरा करके मनोरमाजी नीचे के घर की चाबियाँ शीला को दे गई ताकि अगर उन्हें ज़्यादा दिन रुकना पड़ा तो कम से कम एक आध बार वह सफ़ाई करवा दे । 

एक महीना ही गुजरा था कि मनोरमाजी के पास देवांश का फ़ोन आया—-

बुआ जी! आपके आशीर्वाद से आपकी बहू माँ बनने वाली है और आप तो जानती है कि राधिका को आपसे कितना लगाव है, डिलीवरी के समय आपको आना ही पड़ेगा । 

मनोरमाजी देवांश की बात सुनकर गदगद हो उठी , कितना मान  देता है ।

ख़ैर बात आई गई हो गई । पाँच/ छह दिन बाद फिर फ़ोन आ गया—-

बुआ जी! राधिका को डॉक्टर ने बेडरेस्ट बताया है तो गाँव से कोई बुलाना पड़ेगा उसकी देखभाल के लिए, आप शीला बहन से कहिए कि वे आपके कमरे की चाबी कुछ दिनों के लिए दे दें।

पर देवांश, तुम जानते हो । घर मेरे भाई का है । तुम एकबार उनसे बात कर लो । मेरे कमरे की चाबी देने का अर्थ है कि पूरा घर खुल जाएगा ….फिर ऊपर दो कमरे तो है, किसी के आने पर क्या परेशानी होगी ? क्लाइंट से तुम नीचे हमारे ड्राइंगरूम में मिलते  ही हो ? 

ना बुआ जी, मैं तो आपका बेटा हूँ । मैंने अपनी परेशानी आपको बता दी । गाँव से माताजी आएगी तो उन्हें सीढ़ियाँ चढ़ने में परेशानी होती है ।  अब बेटे की समस्या को माँ ही हल करेगी , रखता हूँ आज तो राधिका सुबह से पड़ी है बिस्तर पर ।

मनोरमाजी बड़े धर्म संकट में पड़ गई । किसे कहें , पता नहीं राधिका कितनी पीड़ा में होगी ? चलो कुछ महीनों की तो बात है, ना तो अभी भाई जा रहा और ना मैं । कौन सा मकान ले भागेगा ? डिलीवरी के बाद देवांश की माताजी चली जाएगी फिर ताला लगाकर चाबी हमारे पास ।

बस उन्होंने भाई को इतना कहा कि कुछ दिनों के लिए वे शीला को चाबी देवांश को देने के लिए कह रही है । 

दीदी, आपने तसल्ली कर ली ना ? 

हाँ- हाँ… दिल का साफ़ है लड़का, बस बोलता ज़्यादा है । 

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इस बीच देवांश से सामान्य बातचीत होती रही पर जब एक दिन शीला ने घबराहट में जगमोहन सिंह को फ़ोन करते हुए कहा—-

मामाजी! यह देवांश तो बड़ा धोखेबाज़ निकला । मकान के बाहर अपनी नेमप्लेट लगवा दी और हर जगह यह बात फैला दी कि आपने मकान बेच दिया है । आप जल्दी से यहाँ आइए । 

ऐसे कैसे ? बिना सबूत के कैसे साबित करेगा ? हँसी- मज़ाक़ है क्या ? उसके कहने से क्या होता है? तुम फ़िक्र मत करो , मैं जल्दी पहुँचने की कोशिश करता हूँ । मेरे पास रेंट एग्रीमेंट के काग़ज़ हैं । 

मनोरमाजी ने फ़ोन किया तो देवांश बोला—-

बुआ जी! नेमप्लेट तो क्लाइंट के लिए लगवाई है । आप लोगों की बातों पर ध्यान मत दो और अंकल जी को भी कह दो कि अपनी सेहत का ख़्याल रखें । यहाँ की फ़िक्र छोड़ दें । 

आज मनोरमाजी को उसकी बातों में कुटिलता नज़र आई इसलिए उन्होंने भतीजी को फ़ोन करके कहा—-

गोल्डी ! मुझे तो दाल में कुछ काला नज़र आ रहा है बेटा ! ले- देकर रिश्तेदारी में एक शीला और उसका पति ही है जो हमारे लिए समय निकाल लेते हैं वरना किसी के पास वक़्त नहीं । अनुज को भी जाकर देखने के लिए कैसे कहूँ, बहू की डिलीवरी का समय नज़दीक आ रहा है । मोहन से कहने की हिम्मत नहीं हो रही । 

पर बुआ, आप क्यों टेंशन में हो ? रेंट एग्रीमेंट के पेपर हमारे पास है ?

अरे बेटा ! क्या बताऊँ? वहीं अलमारी में हैं और राधिका जानती है कि अलमारी की चाबी मेरे सिरहाने गद्दे के नीचे ही रहती है ।

ओ मॉय गॉड! इट मीन्स …. बुआ उसने पेपर उठा लिए होंगे? मैं पापा से बात करती हूँ । 

उसी दिन जगमोहन सिंह ने देवांश को फ़ोन करके कहा—-

देवांश! मैं और मेरी बेटी पंद्रह दिन बाद भारत आ रहे हैं तो प्लीज़ अपनी माताजी के रहने का बंदोबस्त ऊपर ही कर लेना और हाँ, ड्राइंगरूम की भी हमें आवश्यकता पड़ेगी तो क्लाइंट को भी ऊपर ही बुलाना पड़ेगा….

एक मिनट…एक मिनट, कहाँ आने की बात कर रहे हो अंकलजी! दो/ चार दिन मेहमान बनकर आना है तो आकर रह सकते हो पर घर बेचने के बाद इस तरह मनमानी…..

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क्या बकवास करते हो ? तुम क्या समझते हो कि तुम मेरा मकान दबा लोगे ? हफ़्ते के अंदर ही तुम्हारी अक़्ल ठिकाने आ जाएगी । मैंने कब अपना मकान तुम्हें बेचा ? 

ये शौक़ भी पूरा कर लो अंकल जी!  मेरे पास मकान बेचने के पूरे काग़ज़ात हैं । और हमारी बहनजी कैसी है? बुआ जी को भी ले आना , उनसे भी मुलाक़ात…..

वाक्य पूरा सुनने से पहले ही जगमोहन सिंह ने फ़ोन काट दिया । बेटी , भांजे और बहन से सलाह मशविरा करके अगले ही

हफ़्ते बेटी के साथ भारत  पहुँच गए । मकान के बाहर ही देवांश के नाम की प्लेट देखकर उनके तन बदन में आग लग गई और उन्होंने अपनी बेटी से कहा—

जब तक इस आदमी को धक्के देकर बाहर नहीं निकाल देता अपने घर में कदम नहीं रखूँगा । 

दोनों बाप- बेटी  होटल में जाकर ठहर गए क्योंकि पता नहीं कितने दिन का मामला था , शीला के घर भी कितने दिन रुकते ? अगले दिन शीला के घर पर जगमोहन सिंह और देवांश की खूब बहस हुई । थक-हारकर शीला के पति ने पुलिस में शिकायत दर्ज करने और मुक़दमा दायर करने की सलाह दी । 

मुक़दमा दायर हो गया । गोल्डी एक महीने की छुट्टियाँ लेकर आई थी, सोचा था कि एक महीने में समस्या हल हो जाएगी फिर कुछ दिन अपने घर में रहकर पिता को साथ लेकर लौट जाएगी पर यह समस्या तो लगता उम्र भर का साथ लेकर आई थी । वकील के भरोसे ही छोड़कर उन्हें वापस लौटना पड़ा क्योंकि होटल का अतिरिक्त खर्च भी बढ़ता जा रहा था । 

कुल मिलाकर बात यह हुई कि मुक़दमे की तारीख़ बढ़ती रही और जगमोहन सिंह ने आख़िरी फ़ैसला ईश्वर के ऊपर छोड़ दिया । 

फ़ैसले का इंतज़ार करते- करते एक दिन जगमोहन सिंह भी इस दुनिया से चले गए और उनकी बहन मनोरमाजी भी , अब तो गोल्डी को भी उम्मीद कम ही थी कि कभी फ़ैसला होगा भी पर कहते हैं ना भगवान के घर देर है अंधेर नहीं…… एक दिन गोल्डी को शीला का फ़ोन आया——

गोल्डी,  तीन महीने पहले देवांश  ने एक सड़क दुर्घटना में अपनी दोनों टाँगें  और अपना बेटा गँवा दिया  । आज सुबह ही राधिका आई थी चाबी देने के लिए, बड़ी बुरी हालत में थी । हाथ जोड़कर बोली—

शीला बहन , मैंने इनको समझाने की बहुत कोशिश की थी पर अब ईश्वर का कोप देखकर ही इन्हें खुद समझ आया कि भगवान की लाठी बेआवाज होती है । हमारी तरफ़ से गोल्डी बहन को कहना कि माफ़ कर दें । 

करुणा मालिक 

# आख़िरी फ़ैसला

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