भड़ास – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : शाम की चाय का ही असली मजा आता है.. जब सारा परिवार एक साथ बैठकर हम लोग चाय पीते हैं , सुनीता ने चाय का कप उठाते हुए कहा । बहु प्रणवी ने भी समर्थन में सिर हिलाते हुए कहा , सच में मम्मी जी सब दिन भर की आपस की बातें सुनते हैं , सुनाते हैं ..ये समय मुझे भी बहुत अच्छा लगता है ।

आज दफ्तर से लौटने के बाद प्रखर (बेटा ) थोड़ा शांत शांत सा था शायद काम की अधिकता से थक गया होगा , सुनीता ने सोचा ..राजेश जी की नजर तो पेपर से हटती ही नहीं थी जबकि सुनीता हमेशा बोलती चाय पीते समय तो पेपर को दूर रखा कीजिए , आपस में सब बातें कर रहे होते हैं और आप पेपर पर पूरा ध्यान लगाए रहते हैं सफाई में राजेश जी का हमेशा जवाब होता अरे मैं सब की बातें सुन तो रहा हूं भाई ..आप नहीं जानती सुनीता जी चाय और पेपर का साथ कितना मजा देता है मजाक में एक ये भी जवाब होता था राजेश जी के पास…

चाय पीने के बाद सब अपने-अपने कामों में व्यस्त हो जाते तब सुनीता राजेश से शिकायत भी करती जब बच्चे पास में बैठे होते हैं तो आप पेपर पढ़ने में व्यस्त रहते हैं जब बच्चे बैठना छोड़ देंगे ना तो फिर शिकायत करेंगे कि बच्चे हमारे पास बैठते ही नहीं है देखिए जी यदि ..

“बच्चे हमें सम्मान देते हैं तो हमें भी उनके द्वारा दिए सम्मान का भी सम्मान करना चाहिए “

चाय का कप ट्रे में रखते ही बातचीत के विषय में से किसी एक को पड़कर प्रखर ने तूल देते हुए कहा.. तेरे को पता है मां तू क्या बोल रही है ? कुछ भी बोलती है , प्रखर की बेरुखी उसके शब्दों से साफ झलक रही थी ।

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ऐसा मैंने क्या बोल दिया ? कभी-कभी तो इतनी बातें होती थी पर प्रखर को बुरा नहीं लगता था पर आज …सुनीता के कुछ समझ में आता वो प्रखर की तरफ देखकर कुछ बोलना चाह रही थी , पूछना चाह रही थी कि उसके ऐसे बर्ताव का कारण क्या है ? सब ठीक तो है ना ..इसी बीच सुनीता ने देखा , बहु प्रणवी प्रखर का हाथ धीरे से दबाकर सिर हिला कर ऐसा बर्ताव न करने के लिए इशारा कर रही थी , सुनीता ने बहु को इशारा करते देखा ..वो भी बहू को इशारा की ..कि वो उसे बोलने दे मना ना करें ।

सुनीता ने बात खत्म करते हुए कहा , सॉरी बेटा यदि मेरे किसी बात से बुरा लगा हो और उठकर रसोई की ओर चल दी । प्रखर के व्यवहार से सुनीता को बुरा तो जरूर लगा था उसने किस तरह से बात की थी और वो भी बहू के सामने , बल्कि बहू को भी खराब लग रहा था इसीलिए वो इशारे से प्रखर को मना कर रही थी ।

मम्मी जी प्रखर की तरफ से मैं सॉरी बोल रही हूं , न जाने क्यों आज कुछ उखड़े उखड़े से लग रहे हैं प्रखर । पर आपने मुझे इशारा कर उन्हें रोकने से मना क्यों किया मम्मी जी ?मैं तो उनके बेरुखे व्यवहार पर विराम लगाना चाहती थी ।

देखो बहू , मैं माँ हूं ना.. मुझे बच्चों के सभी चीजों का ध्यान रखना होता है क्या है ना बेटा , वह किस परिस्थिति में है ऑफिस का कुछ तनाव तो नहीं है हमेशा तो ऐसा व्यवहार नहीं करता है ना , फिर उसके कारण , माध्यम पर गौर करना भी तो बनता है ना बेटा । वो अपने मन की भड़ास निकाल ले जिससे उसका मन हल्का हो जाएगा क्या है ना प्रणवी…

मन का गुस्सा , तनाव अंदर चल रहे विचारों की प्रतिद्वंदिता निकल जाए, तो तनाव डिप्रेशन नहीं होता । फिर मैं तो माँ हूं ना ..अपने बच्चों को अच्छी तरह से जानती हूं , हमेशा सम्मान करने वाला प्रखर के ऐसा व्यवहार के पीछे कुछ तो कारण होगा । सुनीता ने इशारा वाली बात से प्रणवी के मन में उठे सवाल का जवाब दिया ।

सुनीता का जवाब सुनते ही प्रणवी ने तुरंत ही सवाल कर डाला मम्मी जी ये बताइए यदि प्रखर की जगह मैं होती तो क्या मेरे ऐसे व्यवहार पर भी आप मुझे बोलने देती ? मुझे भड़ास निकालने का मौका मिलता , मुझे भी डिप्रेशन ना हो इसलिए बेरुखी से व्यवहार करने देतीं ?

प्रणवी के ताबड़तोड़ सवालों की बौछार से सुनीता ने बड़े ही सहजता से मुस्कुरा कर जवाब दिया.. हालांकि प्रणवी सोच रही थी ,आज मम्मी जी खुद ही अपनी बातों में फंस गई है ।

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प्रणवी तुझे तेरे सवालों का जवाब अभी चाहिए या समय आने पर दूँ ? सुनीता ने भी प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ही कर डाला पर प्रणवी भी इतना अच्छा मौका और इतना अच्छा प्रश्न का जवाब तुरंत ही जानना चाहती थी उसे ये भी तो देखना था सासू माँ बेटा और बहू में कितना अंतर करती हैं , बेटे के लिए जो सोच है , विचार है क्या वही विचार और सोच बहू के लिए भी है ??

हाँ मम्मी जी बोलिए ना.. प्रणवी ने देर किए बिना उत्सुकता वश पूछा ..क्या है ना बेटा , माँ के दिल में बच्चों के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर होता है जहां , प्यार , परवाह, बच्चों के बात की अहमियत , आदर जितना माँ के साथ सहजता और सरलता से बच्चे कर सकते हैं ना शायद किसी और के साथ नहीं और जब सहनशक्ति की अति हो जाती है तो ..कहीं ना कहीं तो निकालना जरूरी होता है ना ..तो जहां आसानी से अपने अंदर के उफनते हुए विकारों को निकाला जा सकता है वही निकलते हैं ।

प्रणवी अब तू ही बता क्या जिस अंदाज से मुझसे बात किया वो अपने पापा से इस अंदाज में बात कर सकता है क्या ? अच्छा पापा की बात तो छोड़ , क्या तुझसे भी वो ऐसे ढंग से बात करेगा तो तू चुप रहेगी क्या ? नहीं ना ..देख बेटा क्या है ना , तू अपने मन की भड़ास प्रखर के सामने निकाल लेती है और प्रखर जानता है कि उसकी बातें या झुंझलाहट सिर्फ माँ ही सुन सकती है बस इसीलिए ..

चारों तरफ का या दिन भर का उसके साथ हुए व्यवहार भी उसके व्यवहार को निर्धारित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं । और स्पष्ट रूप से समझाऊं क्या ?

हो गया मम्मी , मैं समझ गई शायद प्रणवी को समझ में आ गया था कि मम्मी का संकेत उन बातों की तरफ है जिसमें कल उसने प्रखर को इस घर के लिए और मम्मी जी के टोंकाटाकी करने के लिए काफी कुछ कहा था और लगता है मम्मी जी ने वो सारी बातें सुन ली थी कहीं ना कहीं मम्मी जी के प्रति प्रखर के इस व्यवहार के पीछे की जिम्मेदार प्रणवी खुद को मान रही थी ।

कभी-कभी बिना कुछ बोले ही हमें अपने प्रश्नों के जवाब मिल जाते हैं मम्मी जी , सच में आप बहुत अच्छी हैं.. प्रणवी ने बस इतना ही कहकर अप्रत्यक्ष रूप से अपनी गलती का इजहार कर और सुनीता का विवेकपूर्ण निर्णय लेकर समझाना व माफ करना ..प्रणवी की नजर में सुनीता की इज्जत तथा प्यार और ज्यादा बढ़ गई ।

(स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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