शुभी अपने कमरे में चारपाई पर बैठी मोबाइल चला रही थी। सामने लगे पंखे की हवा उसके बालों को उड़ाती, पर उसका ध्यान मोबाइल पर आए मैसेजों की ओर था। उसकी सहेलियां दिव्या और नीलम आजकल खूब मज़ाक किया करती थीं। ऐसे ही दिव्या का नोटिफिकेशन चमका—
“और शुभी… कैसा लग रहा है नई-नई नंद बनकर? सुना है तेरी भाभी तो हर काम में एक्सपर्ट है!”
नीलम का मैसेज भी तुरंत आ गया—
“हाँ, कभी मिलवाना अपनी भाभी से! शादी में तो बस हल्का-सा देखा था, उसके बाद तो मुलाकात ही नहीं हो पाई. सुना है घर के काम के साथ-साथ पढ़ाई में भी बहुत इंटेलिजेंट हैं।”
दोनो संदेश पढ़कर शुभी का चेहरा खट्टा हो गया।
उसने एक तुनकती हुई साँस ली और टाइप किया—
“यार, ऐसा कुछ नहीं है! इतनी भी कोई खास नहीं है मेरी भाभी। दो महीने हुए आए हुए, पर किसी का आदर-सत्कार करना ठीक से नहीं आता। काम और पढ़ाई में भी बस ठीक-ठाक ही है।”
दिव्या ने हंसता हुआ इमोजी भेजा—
“सच में? सब तो उल्टा ही बताते हैं!”
शुभी तुरंत लिखने लगी—
“और समझना हो तो मैं हूं ना! तुम्हें पता है न, मैं कॉलेज में हर साल टॉप करती हूं।”
मैसेज भेजते ही शुभी ने खुद को आईने में देखा।
उसके चेहरे पर हल्की-सी जलन झलक रही थी, जिसे वह खुद भी समझ नहीं पा रही थी।
दरअसल, बात यह थी कि जब से भाभी मालती घर में आई थीं, हर कोई उनकी तारीफ करता नहीं थकता था।
मां कहतीं—
“मालती कितनी सलीकेदार है।”
पिताजी कहते—
“बहू बहुत समझदार है।”
दादी तो हर रोज़ घर में दो बार कहतीं—
“अरे, मेरी बहू तो रूप और गुन में किसी से कम नहीं। घर में तो लक्ष्मी आ गई।”
और यही बातें शुभी को अच्छी नहीं लगतीं।
उसे लगता कि सब उसकी भाभी से ज्यादा प्रभावित हैं, और उसकी खुद की उपलब्धियों की कोई कद्र नहीं।
उस दिन शाम को घर के लिए सब्ज़ियाँ लेने शुभी और मालती बाजार गईं।
धूप थोड़ी कम हो चुकी थी, फिर भी हल्का पसीना सिर पर चमक रहा था।
तभी सामने से दिव्या और नीलम आती दिखाई दीं।
“अरे शुभी!”
दिव्या ने हाथ हिलाकर कहा।
शुभी खुश हो गई, लेकिन उसके अंदर एक हल्का डर भी था—
कहीं आज ये लोग मेरी भाभी को ज्यादा तारीफ न कर दें।
मालती ने आगे बढ़कर नम्रता से कहा—
“अरे दीदी, आप तो शुभी दीदी की दोस्त हैं ना? मैंने शादी में आपको हल्का-सा देखा था… उसके बाद आप लोग कभी घर क्यों नहीं आए?”
फिर हंसते हुए बोलीं—
“मैं कई बार शुभी दीदी से कहती हूं, अपने दोस्तों को घर लाओ… पर शायद आजकल एग्ज़ाम की वजह से बिज़ी होंगी। चलिए न, अभी घर चलिए! हमारा घर पास में ही है।”
दिव्या ने हाथ जोड़ लिए—
“न-न भाभी, आज नहीं। फिर कभी।”
मालती जिद पर थीं—
“अरे ऐसा कैसे? कब मिलेंगे फिर? चलिए, आज गर्मी भी बहुत है। मैं ठंडा जूस बना देती हूं।”
और मालती की मीठी जिद के आगे दिव्या और नीलम को झुकना पड़ा।
शुभी मन ही मन झुंझला रही थी—
अब ये दोनों घर चलेंगी… फिर तो मुझे सुनना ही पड़ेगा।
घर पहुंचते ही मालती बिना देर किए रसोई में चली गईं।
दिव्या और नीलम आश्चर्य से इधर-उधर देखने लगीं—
घर कितना साफ-सुथरा था, हर चीज़ अपनी जगह पर।
पांच मिनट भी नहीं हुए थे कि मालती बाहर आईं—
उनके ट्रे में रखे थे –
• ताजे संतरे का जूस
• घर का बना नमकीन
• कटे हुए फल
• और दादी के हाथ की बेसन की लड्डू की प्लेट
दिव्या ने आश्चर्य से पूछा—
“भाभी, ये जूस आपने अभी बनाया?”
मालती ने मुस्कुराकर कहा—
“जी दीदी! आप लोगों के लिए मेहनत कैसी?”
खातिरदारी ऐसी कि दोनों सहेलियाँ बस देखते रह गईं।
बातों ही बातों में मालती ने सहजता से कहा—
“दीदी, अगर आपको पढ़ाई में कभी भी कोई परेशानी आए तो बता दीजिए। मैं इंग्लिश में एम.ए. हूं और गोल्ड मेडलिस्ट भी। आपकी मदद करना मुझे अच्छा लगेगा।”
शुभी का चेहरा देखने लायक था।
वह जमीन में गड़ जाना चाहती थी।
जैसे ही मालती अपने कामों में लग गईं, दिव्या ने शुभी को घूरते हुए कहा—
“ये क्या था शुभी? तू तो कह रही थी कि तेरी भाभी को ना संस्कार हैं, न काम आता है, न पढ़ाई!”
नीलम ने भी कहा—
“सच में, तेरी जैसी भाभी तो हमने किसी की नहीं देखी। तू क्यों झूठ बोल रही थी?”
दिव्या ने सीधा प्रहार किया—
“तुझे अपनी भाभी से जलन होती है क्या? अपनी तुलना उससे कर रही है?”
शुभी का गला सूख गया।
“तुलना करना बहुत बुरी सोच होती है शुभी… और अगर खुद की भाभी से जलन हो जाए, तो यह तो बहुत गलत बात है।”
नीलम बोली—
“याद है न, तुम लोग ही तो उनकी खूबियों को देखकर रिश्ता पसंद करके आए थे!”
और यही सुनकर शुभी के ऊपर जैसे घड़ा पानी पड़ गया।
वह अवाक् बैठी रह गई।
मन में अपराध का भाव उमड़ आया।
आँखें खुद-ब-खुद भर आईं।
उस रात शुभी सो नहीं पाई।
वह छत पर जाकर बैठ गई। आसमान में तारे चमक रहे थे, और हल्की हवा भी चल रही थी। लेकिन उसके मन में तूफान था।
उसने सोचा—
“भाभी ने तो कभी मेरे साथ बुरा व्यवहार नहीं किया…
कभी उन्होंने मुझे नीचा नहीं दिखाया…
फिर मैं इतनी जलन क्यों रखती रही?”
उसे अपनी हर बात याद आने लगी।
भाभी की हर मुस्कान, हर मदद, हर प्यारी बात सामने घूमने लगी।
आज उसे समझ आ गया था—
कि वह बिना वजह ही भाभी के गुणों से परेशान थी।
अगली सुबह मालती रसोई में आटा गूँथ रही थीं।
शुभी धीरे से उनके पास आई।
“भाभी… एक बात कहूँ?”
मालती मुस्कुरा दीं—
“हाँ दीदी, बोलिए।”
शुभी की आँखें भर आईं—
“भाभी… मैं आपसे माफ़ी चाहती हूँ। मैं… मैं आपके बारे में गलत सोचती रही। मुझे आपकी तारीफें सुनकर जलन होती थी… मुझे लगता था आप मुझसे बेहतर हैं… और मैं इसे सह नहीं पाती थी।”
मालती ने आटा छोड़कर उसके कंधे पर हाथ रखा—
“दीदी, रिश्ते तुलना से नहीं, अपनापन से बनते हैं। मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है। आप मेरी दीदी जैसी हैं।”
शुभी इससे पहले कभी इतनी हल्की नहीं महसूस हुई थी।
उसने मालती को गले लगा लिया।
रिश्ते में नई शुरुआत
उस दिन के बाद शुभी और मालती के बीच का रिश्ता बदल गया।
अब शुभी सुबह उठकर खुद कहती—
“भाभी, चाय मैं बना देती हूँ।”
कभी दोनों मिलकर बाजार जातीं, कभी मिलकर खाना बनातीं।
मालती शुभी की पढ़ाई में मदद करतीं, और शुभी उन्हें घर के तौर-तरीके बताती।
घर वालों को भी दोनों की बढ़ती नज़दीकी देखकर खुशी होती थी।
दिव्या और नीलम ने भी बाद में कहा—
“अब तो तू और तेरी भाभी सगी बहनों जैसी लगती हो।”
और शुभी मुस्कुराकर कहती—
“हाँ, अब मुझे भी ऐसा ही लगता है।”
कहानी की सीख
रिश्तों में जलन, ईर्ष्या और तुलना करने से प्यार खत्म हो जाता है।
दूसरों के गुण देखकर जलने की बजाय, उनसे सीखना चाहिए।
सच्चे रिश्ते वही होते हैं, जिनमें अहंकार नहीं—स्वीकार होता है।