अरे रत्ना जरा जल्दी कर। देख बारात दरवाजे तक आने ही वाली है। निर्मला चाची परेशान सी रत्ना से बोली। निर्मला चाची रत्ना की चचेरी सास थी। आज रत्ना की छोटी नंद विभा की शादी थी। वही रत्ना को सब कामों और रीति-रिवाजों के बारे में बता रही थी। क्योंकि रत्ना की सास का उसकी शादी से पहले ही स्वर्गवास हो चुका था।
ससुर, पति और नंद यही था उसका छोटा सा परिवार। वह भी सब लड़कियों की तरह अपने घर-परिवार को सजाने-संवारने के सपने लेकर इस घर में आई थी। पर उसकी छोटी नंद विभा के हाथ में अपनी मम्मी के बाद से घर की सारी जिम्मेदारी आ गई थी। वह ही अब घर संभालती थी। अपनी भाभी रत्ना का घर में जिम्मेदारी उठाना उसे बर्दाश्त नहीं होता था। शादी से पहले नाते-रिश्तेदारों ने कहा भी था की कुंवारी नंद से निभाना बहुत मुश्किल होता है। और यह तो पूरे घर की कर्ता-धर्ता है।
इन सब बातों को अनसुनी करके रत्ना ने अपने मन में सोच लिया था कि वह अपनी नंद को इतना प्यार करेगी कि उसे मां की कमी महसूस नहीं होगी। लेकिन उसका यह भ्रम ससुराल में दो-चार दिन रहकर ही टूट गया।क्योंकि विभा को रत्ना का घर में अपनी मर्जी से कोई काम करना या फिर पापा या भैया का किसी काम के लिए रत्ना की तारीफ करना बिल्कुल सहन नहीं होता था। वह बस यही सोचती कि रत्ना को कैसे नीचा दिखाया जाए।
एक दिन रत्ना ने खाना बना कर रखा तो अपने द्वेष भाव के कारण विभा ने उसमें ज्यादा नमक मिला दिया। उस दिन रत्ना के पति वैभव ने भी उसे कहा कि रत्ना देखकर काम किया करो। विभा भी तो सारे काम सही से करती है। हां भैया मैं तो भाभी की हर काम में मदद भी कर देती हूंँ।
रत्ना ने मन ही मन सोचा कि हां करती तो हो लेकिन सब्जी में ज्यादा नमक डालकर। क्योंकि रत्ना ने जब सब्जी चख कर देखी थी, तब सब्जी में नमक बिल्कुल ठीक था। लेकिन रत्ना यह सोचकर चुप रही, क्यों बात को बढ़ाना। अब तो यह वैसे ही इस घर में कुछ दिनों की मेहमान है। मैं भाई-बहन के रिश्ते में कोई कड़वाहट नहीं आने दूंगी।
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विदाई के समय रत्ना ने विभा को गले लगाकर कहा कि उस घर के किसी भी सदस्य के लिए अपने मन में गलत भाव मत आने देना। भगवान करे तुम्हें जीवन की हर खुशी मिले।
विभा की ससुराल में सास-ससुर और एक नंद थी। मां-बेटी दोनों एक रहती विभा जब ससुराल से पहली बार मायके आयी तो कुछ उदास सी थी। रत्ना को विभा की उदासी कुछ चुभ सी रही थी। उसने पूछा भी लेकिन विभा ने कुछ नहीं बताया।
विभा की पहली होली थी और वह अपने मायके आई हुई थी। रत्ना रसोई में काम कर रही थी। और सब लोग होली की मस्ती में मस्त थेे। थोड़ी देर बाद विभाअपनी भाभी के पास आई और बोली, भाभी चलो आप भी बाहर होली खेलो। बाद में हम मिलकर रसोई का काम कर लेंगे। रत्ना को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
यह वही विभा है जिसने पहली बार होली खेलने पर उसको बेशर्म का खिताब देने में जरा भी देर नहीं लगाई थी रत्ना के मन में कुछ खटक रहा था। रात में सारा काम खत्म करके वह विभा के पास आई। विभा तुम्हारी ससुराल में सब ठीक तो है ना? तुम्हारा व्यवहार और तुम मुझे बहुत बदली सी लग रही हो।
हां भाभी किसी ने सच ही कहा है कि आदमी के कर्म उसके पास वापस लौट कर आते हैं। भाभी मुझे माफ कर दो। मैंने आपके साथ बहुत गलत किया। वही सब अब मेरे साथ हो रहा है। आप कैसे चुपचाप मेरे गलत किए हुए को सहन कर जाती थी। भाभी मैं नहीं कर पाती हूं। और ना ही किसी को कुछ कहना चाहती हूं। लेकिन ऐसा करने से मैं खुद घटती हूंँ।
रत्ना ने विभा को गले लगा लिया। विभा तुम उनको और अपने आप को थोड़ा समय दो। तुम सबके साथ अपना व्यवहार अच्छा रखो। धीरे-धीरे उनकी समझ में भी आ जाएगा। जैसे तुम्हें आज अपनी गलती का एहसास है। उन्हें भी होगा। अच्छे व्यवहार से किसी को भी अपना बनाया जा सकता है। वेे सब तो तुम्हारे अपने हैं। और रही अंदर ही अंदर घुटने की बात, तो मुझे अपनी भाभी नहीं सहेली समझ कर अपने मन की हर बात बेझिझक कह डालो। इससे तुम्हारा मन भी हल्का हो जाएगा।
विभा मुस्कुरा दी। और रत्ना का हाथ पकड़ कर बोली, आपके रूप में मुझे एक भाभी का रिश्ता नहीं बल्कि सहेली, मां और बहन जैसे रिश्ते भी मिले हैं। मैं बहुत भाग्यशाली हूंँ। मुझे आप जैसी भाभी मिली। बस, बस अब ज्यादा इमोशनल मत हो। वरना मैं भी रो दूंँगी कहकर दोनों एक- दूसरे की गले लग गई।
नीलम शर्मा