” भाभी माँ…मैं पास हो गया।आपका बेटे ने पूरे जिले में टाॅप किया है।आप मुझे आशीर्वाद दीजिये कि…।” कहते हुए दीपक अपनी भाभी माँ सुमित्रा के चरण-स्पर्श करने लगा तो सुमित्रा उसे अपने दोनों हाथों से उठाकर अपने सीने-से लगाते हुए बोली,” बहुत-बहुत बधाई मेरे लाल…खूब पढ़ो…खूब तरक्की करो..मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है मेरे बच्चे..।” कहकर उन्होंने दीपक का माथा चूमा।
दीपक ने हँसते हुए सुमित्रा के आँचल की गाँठ खोलकर रुपये निकाले और ‘ मैं चला भाभी माँ ‘ कहकर वह बाहर निकल गया।
” ये लड़का भी ना ” कहते हुए सुमित्रा ने दीवार पर टँगी अपने सास-ससुर की तस्वीर को प्रणाम किया और कहा,” माँ…दीपक ने पूरे जिले में टाॅप करके हमारे खानदान का नाम रोशन किया है।आप खुश है ना..।कुछ साल पहले तक तो यही दीपक मेरा आँचल पकड़कर आगे-पीछे घूमता था…।”
शादी करके सुमित्रा जब अपने ससुराल आई तब दीपक दस बरस का था।नंदकिशोर शहर में नौकरी करते थे।महीने-दो महीने में आते-जाते रहते थे।उस समय दीपक ही उसका मन बहलाता था।कभी स्कूल की बातें बताकर तो कभी चुटकुले सुनाकर।सुमित्रा को भी अपने छोटे देवर से एक लगाव-सा हो गया था।तभी तो छह माह बाद नंदकिशोर ने जब रहने के लिये एक डेरा ले दिया और अपनी पत्नी को ले जाने लगे तो दीपक उससे लिपट कर बहुत रोया था,तब वह भी अपने आँसू नहीं रोक पाई थी।
साल भर बाद सुमित्रा ने एक चाँद-से बेटे को जनम दिया।तब उसकी सास पोते को गोद में लेकर खूब नाची थी।उसके ससुर ने तो मज़ाक में कहा भी कि देखो बहू.. तुम्हारी सास फिर से बच्ची बन गई है।दीपक तो स्कूल से आकर उसके मुन्ने को छूता और पूछता,” भाभी..ये मेरे जैसा ही होगा ना..।”
सुनकर सब खूब हँसते थें।तब उसने भी अपने मुन्ने को लेकर असंख्य सपने बुन डाले थे लेकिन ईश्वर का लीला भी अजीब होती है।वह एक हाथ से देता है तो दूसरे हाथ से ले भी लेता है।
सुमित्रा मुश्किल से सात महीने ही अपने मुन्ने को गोद में खेला पाई थी कि काल के निर्मम हाथों ने उसकी गोद सूनी कर दी।वह तो पछाड़ खाकर गिर ही पड़ी तब दीपक अपने हाथों से उसके आँसू पोंछते हुए बोला था,” भाभी..मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।”
बेटे-बहू के दुख में दुखी सुमित्रा के सास-ससुर एक दिन उनके सुख की कामना करने नदी के पार वाले मंदिर गये थे।वहाँ से लौटने में उनकी नैया डूब गई और वो दोनों गंगा मईया की गोद में समा गए।घर में मातम छा गया था।दीपक अपनी भाभी से लिपट-लिपटकर रोये जा रहा था।नियति का ऐसा क्रूर खेल…..एक की गोद सूनी हो
गई तो दूसरे के सिर से माता-पिता का साया छिन गया।तभी सुमित्रा ने अपने पति से कहा कि आज से मैं दीपक की भाभी भी और माँ भी।अब हमारी कोई संतान नहीं होगी।उस दिन नंदकिशोर अपनी पत्नी के आगे नतमस्तक हो गये थे।
बस उसी दिन से दीपक सुमित्रा को भाभी माँ कहने लगा था।नंदकिशोर ने खेती का काम दो लोगों के हाथ सौंपकर घर में ताला लगा दिया और दीपक को अपने संग ले आये।
शहर आकर नंदकिशोर ने दीपक का नाम स्कूल में लिखवाया और सुमित्रा उसी को पढ़ाने-लिखाने में व्यस्त हो गई।उन दोनों के वात्सल्य-स्नेह को देखकर आसपास वाले कहते थे,” भाभी-देवर के रिश्तों की डोरी टूटे ना कभी…।” समय बीतता गया और आज उसका दीपक दसवीं पास…।”
” अरे भई…कहाँ हो…।” दफ़्तर से लौटे पति की आवाज़ कानों में पड़ी तो सुमित्रा वर्तमान में लौटी।
” आई…क्यों शोर मचा रहें हैं?”
” शोर…! पूरे दफ़्तर में शोर मचा है कि नंदकिशोर बाबू का भाई जिले में प्रथम आया है और यहाँ हमें कोई एक कप चाय भी नहीं पूछ रहा है।” नंदकिशोर शरारती अंदाज़ में पत्नी से बोले।
” लाती हूँ..।” कहते हुए सुमित्रा किचन में चली गईं।
रात को खाने की टेबल पर दीपक ने नंदकिशोर से कहा,” भईया…मैं मैथ्स लेकर बारहवीं कक्षा पास करके यहीं के काॅलेज़ से इंजीनियरिंग करना चाहता हूँ।आप क्या कहते हैं?”
” गुड..वेरी गुड..।” कहते हुए नंदकिशोर ने अपने अनुज के सिर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद दिया।
समय अपनी रफ़्तार से चलता रहा।दीपक ने अच्छे अंकों से बारहवीं पास कर ली और एक इंजीनियरिंग कॉलेज़ से डिग्री लेकर एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा।
एक दिन दीपक अपना मोबाइल किचन में ही भूल गया।सुमित्रा उसे देने जा रही थी कि फ़ोन बज उठा।स्क्रीन पर नीतू नाम देखकर उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।उसने फ़ोन दीपक को देते हुए इशारे-से पूछा कि कौन है? तो वह शरमा गया।
नीतू गारमेंट फ़ैक्ट्री के मालिक मनोहर दास की इकलौती बेटी थी।जब नंदकिशोर और सुमित्रा नीतू के घर गये तो सुमित्रा दंग रह गई।सोचने लगी कि इतने बड़े घर की बेटी हमारे घर कैसे रहेगी।
मनोहर दास ने खुले दिल से उन दोनों का स्वागत किया।सुमित्रा ने जब अपना शक ज़ाहिर किया तब वो बोले,” बहन जी…हमारे घर में दो बहुएँ हैं।बेटी नीतू थोड़े आधुनिक ख्याल की है लेकिन आप विश्वास रखिये…वह रिश्तों की डोर टूटने नहीं देगी।” बस एक शुभ मुहूर्त में दीपक का विवाह नीतू के साथ हो गया।
नीतू जल्दी ही अपने ससुराल के माहोल में ढ़ल गई थी।कुछ दिनों बाद नीतू अपने पिता के ऑफ़िस जाने लगी।ससुर के कहने पर दीपक ने भी अपनी ज़ाॅब से इस्तीफ़ा देकर ससुर की फ़ैक्ट्री को संभालने लगा।सुमित्रा दोनों को एक साथ ऑफ़िस जाते देख बहुत खुश होती थी।नंदकिशोर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति(Voluntary Retirement) लेकर अपनी लाइफ़ का आनंद ले रहें थें।
तीन महीने अच्छे से बीत गये।फिर न जाने क्यूँ…दीपक को अपनी भाभी माँ के साथ बातें करते देख नीतू को चिढ़-सी होने लगी…इस बात को लेकर कभी-कभी दोनों में बहस भी हो जाती।एक दिन सुमित्रा ने सुना कि दीपक नीतू से कह रहा था,” वो सिर्फ़ भाभी नहीं..मेरी माँ भी हैं।उन्हीं के आँचल तले मैं बड़ा हुआ हूँ।मुझे यहाँ तक पहुँचाने के लिये उन्होंने अपने दिन-रात एक कर दिये थे।मैं उन्हें छोड़कर तुम्हारे साथ हर्गिज़ नहीं जा सकता।”
सुनकर सुमित्रा की आँखें भर आईं।पति से कहा तो उन्होंने समझाया,” जहाँ इतना किया है..थोड़ा और सही।”तब उन्होंने अपने कलेजे पर पत्थर रख लिया और अगले दिन दीपक को बोली,” नीतू सही तो कह रही है…ससुराल से तेरा ऑफ़िस पास पड़ेगा..फिर हम भी तो मिलने आते रहेंगे।”
” लेकिन भाभी..।”
” बस…तुझे मेरी सौगंध! मेरी बहू को नाराज़ मत कर..।” कहकर सुमित्रा ने अपने कलेजे के टुकड़े को विदा कर दिया।अब वह दीपक के खाली कमरे को देखती तो उसके आँसू नहीं रुकते…टेबल पर पति को खाना परोसती तो सोचती, मेरे बच्चे ने खाना खाया होगा या नहीं…।नंदकिशोर का भी मन भाई बिना उचाट-सा हो गया था।दीपक मिलने आता तो दोनों चहक उठते और फिर सन्नाटा पसर जाता।
एक दिन नंदकिशोर अपनी छाती पकड़कर कराह उठे।सुमित्रा ने तुरंत दीपक को फ़ोन किया और उन्हें लेकर अस्पताल गई।डाॅक्टर ने बताया कि माइनर अटैक था।दीपक रात भर उनके साथ रहा…सुबह घर गया तो नीतू उस पर बरस पड़ी।अनाप-शनाप बोलने लगी तब दीपक बोला,” तुम्हारे कहने पर मैं अपने भाई-भाभी माँ को छोड़कर यहाँ रहने चला आया लेकिन ये मतलब नहीं है कि हमारे रिश्तों की डोर कमज़ोर पड़ गई है।भईया ने मेरे लिये अपना खून-पसीना एक कर दिया था।अब उनकी सेवा करना मेरा फ़र्ज़ है..इसलिये मैं यहाँ से जा रहा हूँ।”
अस्पताल से डिस्चार्ज होकर नंदकिशोर घर आ गये।उनसे मिलने मनोहर दास और उनकी पत्नी आये लेकिन नीतू नहीं आई।सुमित्रा ने दीपक से कहा कि अब तेरे भईया ठीक हैं, तू अब वहाँ चला जा लेकिन उसने मना कर दिया।
दिन- महीने बीतते चले गये..दीपक फिर अपने ससुराल नहीं गया।दिन तो नीतू का ऑफ़िस में लोगों के बीच कट जाता लेकिन घर आकर जब मम्मी- पापा और भाई-भाभी को एक साथ देखती तब उसे दीपक की कमी बहुत खलती थी।उसे फ़ोन करना चाहती लेकिन फिर कुछ सोचकर अपने हाथ रोक लेती।वह अनमनी-सी रहने लगी थी।
नीतू की मम्मी ने अपनी बेटी के मनोभावों को पढ़ लिया।डिनर के बाद वो बेटी के कमरे में गईं और बोली,” देखो बेटी..परिवार में जब कोई नया सदस्य जुड़ता है तो रिश्तों की डोर और भी मजबूत हो जाती है।उस नये सदस्य का कर्तव्य होता है कि ऐसा कुछ भी न करे कि परिवार की श्रृंखला टूट जाये।दीपक अपने भाई-भाभी से जुड़ा है…तुम दीपक से जुड़ी हो और हमलोग तुम सबसे जुड़े हैं।तुम किसी को भी अलग करने का प्रयास करोगी..सारे रिश्ते बिखर जायेंगे।बेटी…रिश्तों की डोर को अपने प्यार और विश्वास से थामे रहना वरना…।”
” मम्मी…।” नीतू अपनी माँ से लिपटकर रो पड़ी।अगले दिन मनोहर दास को मेज पर एक हस्तलिखित नोट मिला,” मम्मी, मैं अपने घर जा रही हूँ।”
इधर सुमित्रा और नंदकिशोर सोच रहे थे कि दीपक और नीतू का मेल कैसे कराया जाये कि तभी दरवाज़े की डोर बेल बजी।सुमित्रा ने दरवाज़ा खोला तो सामने नीतू को देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा।
” भाभी माँ..मुझे माफ़ कर दीजिये।मैंने अनजाने में आपको बहुत दुख…।” नीतू फूट-फूटकर रोने लगी। सुमित्रा ने अपनी बहू को गले-से लगा लिया।
छह महीने बाद नीतू ने अपनी भाभी माँ के कान में कुछ कहा जिसे सुनकर सुमित्रा खुशी-से उछल पड़ी और नीतू को लेकर अपने सास-ससुर की तस्वीर को प्रणाम करते हुए बोलीं,” माँ-बाबूजी…आप दोनों दादा-दादी बनने जा रहें हैं।हमारे रिश्तों की माला में अब एक नया मोती जुड़ने वाला है।आशीर्वाद दीजिये कि इन बच्चों का प्यार ऐसे ही बना रहे.. इनके रिश्तों की डोरी टूटे ना कभी।”
विभा गुप्ता
स्वरचित
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# रिश्तों की डोरी टूटे ना
रिश्ता सास-बहू का हो,ननद-भाभी या फिर देवर-भाभी का…परिवार में इन सभी रिश्तों की एक अहमियत होती है।बच्चे जब इन रिश्तों के महत्त्व को नहीं समझ पाते हैं तब बड़े उन्हें समझाते हैं जैसे कि मनोहर दास की पत्नी ने अपनी बेटी नीतू को समझाया।
Outstanding story
Absolutely