“हम सिर्फ तीन नहीं… चार भाई बहन हैं… दो बहनों को तो तुम जानती ही हो… दोनों दीदियों की शादी हो चुकी है… पर मैं अकेला भाई नहीं हूं… मेरे एक भैया भी थे…
सात साल पहले उनका निधन हो गया…!”
” मगर यह सब तुम अब क्यों बता रहे हो…!”
” सुन लो वसुधा… अब यह बताना बहुत जरूरी हो गया है…
पापा की दो शादियां हुई थीं… पहली शादी बहुत नई उम्र में ही हुई थी… उसी से उनके बेटे थे शशिकांत भैया…
पांच साल बाद उनकी मां गुजर गई… पापा ने पंद्रह सालों तक दूसरा ब्याह नहीं किया… लेकिन फिर मां के साथ उनका ब्याह हुआ…
जिससे आए हम तीनों भाई-बहन… दोनों दीदी बड़ी थीं… उन्होंने मां को देखा समझा… मगर मैं बहुत छोटा सा था… शायद दो या तीन साल का… जब एक के बाद एक… पापा और कुछ दिनों बाद मां भी चल बसी…
तब तक शशिकांत भैया का ब्याह हो गया था… भाभी घर आ चुकी थीं… भैया के दोनों बेटे और मैं एक साथ ही बड़े हुए…
मेरा पालन पोषण… देखभाल… भला बुरा… सब कुछ भाभी ने अपने दोनों बेटों की तरह ही किया…
यहां तक कि उनके दोनों बेटों की तरह मैं भी उन्हें मां ही बुलाता था…
बहुत बाद में जाकर मुझे एहसास हुआ कि वह मेरी मां नहीं हैं… और मैंने उन्हें भाभी मां बुलाना शुरू किया…
दीदियों की शादी भैया ने ही यथासंभव संपन्न करवाया…
मैं और भैया के दोनों बेटे अतुल और कौशल… तीनों पढ़ाई के सिलसिले में यहां वहां हो गए…
कौशल आगे की पढ़ाई विदेश में जाकर करना चाहता था… भैया को इसके लिए जमीन बेचना पड़ा…
उस समय पहली बार मुझे सही मायने में पता चला… मैं भाभी का बेटा नहीं हिस्सेदार हूं…
गांव के बड़े बूढ़ों ने भैया भाभी को सलाह दी कि… पहले मेरा हिस्सा अलग कर दे… फिर अपने हिस्से से जमीन बेचे…
भैया भाभी भी नहीं चाहते थे कि मेरे साथ कोई पक्षपात हो… इसलिए मेरे मना करने के बावजूद उन्होंने सब कुछ का बंटवारा कर दिया…
बंटवारा हो जाने का दुख मुझे अंदर से अकेलेपन का एहसास करा गया…
पहली बार मुझे लगा मैं अनाथ हूं… मेरा कोई नहीं…
भाभी ने मुझे बहुत समझाने की कोशिश की… मगर मेरा मन भीतर से दुखी हो गया था…
मैं शहर आ गया… सब कुछ वैसे ही छोड़ कर… उसके बाद भैया भी अधिक दिनों तक नहीं जिए… उन्हें भी शायद मेरी तरह सदमा लग गया था…
भैया के अंतिम कार्य में जो मैं गांव गया… उसके बाद से मैंने उनकी कोई सुध नहीं ली…
इस बीच कौशल विदेश में ही रहा… उसने वहीं अपना घर भी बसा लिया…
अतुल ने नौकरी की… ब्याह किया… ना मुझे उतनी शिद्दत से बुलाया… और ना ही मैं भाग कर गया…
भाभी गांव में ही हैं… मेरे और अपने दोनों हिस्सों की देखभाल करती… मगर अब वह बूढी हो गई हैं…
कुछ दिनों पहले गांव से चाचा जी का फोन आया था… भाभी मां बीमार हैं…
कौशल को तो उनसे कोई मतलब ही नहीं… और अतुल ने भी साथ ले जाने से मना कर दिया है…
ऐसे में मैं उनका साथ देना चाहता हूं… जिस भाभी ने कभी मुझे मां की कमी महसूस नहीं होने दी… हमेशा अपने बेटों की तरह मारा… डांटा… लाड़ किया… खिलाया पिलाया… उनको आज उम्र के इस पड़ाव पर… मैं अकेला नहीं छोड़ सकता…
तुम अब तक यही जानती थी ना कि मैं एक अनाथ हूं… जिसकी दो बहनें अपनी दुनिया में खुश हैं…
वसुधा हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं… कुछ दिनों में शादी के बंधन में बंधने वाले हैं… इसलिए मैंने तुम्हें बता दिया कि मैं अकेला नहीं हूं… और ना ही अनाथ हूं…
मेरी भाभी मां मेरी जिम्मेदारी हैं… मैं उनका साथ नहीं छोडूंगा… मैं उन्हें लेने कल गांव जा रहा हूं… उससे पहले तुम्हें यह बताना जरूरी समझा…
फैसला तुम्हारा है… तुम मेरी भाभी मां को मेरी मां मानकर उनकी सेवा करना चाहती हो… या तुम्हें मुझसे रिश्ता तोड़ना है… तुम इसके लिए स्वतंत्र हो…!”
थोड़ी देर के लिए कमरा स्तब्ध खामोश रहा… फिर वसुधा ने रवि के हाथों में अपना हाथ रख दिया…
” रवि मैं तुम्हारे फैसले का सम्मान करती हूं… और सच पूछो तो बहुत खुश हूं… यह जानकर कि मेरी भी सास है… तुम खुशी-खुशी जाओ… अगर तुम चाहो तो मैं भी तुम्हारे साथ चलकर भाभी मां को लेकर आती हूं…!”
रवि चहकते हुए बोला…” नहीं वसुधा यह मैं कर लूंगा… तुम बस शादी की तैयारियां करो… भाभी मां के आते ही हम ब्याह करेंगे…!”
रश्मि झा मिश्रा