” ईशा..डाॅन्ट टच…।” निशा ने अपनी जेठानी की बेटी से कहा तो पास खड़ी उसकी ननद की बेटी अराध्या बोली,” मामी..हम तो बस देखेंगे..तोड़ेंगे थोड़े ही..।” सुनते ही निशा गरम हो गई, उसका हाथ झटककर तीखे स्वर में बोली,” तुम्हारी मम्मी ने सिखाया नहीं कि दूसरों की चीजों को हाथ नहीं लगाना चाहिए।” दोनों बच्चियाँ सहम कर उसके कमरे से बाहर चली गईं।वहीं खड़ी निशा की सास सुशीला बहू के मुँह से दूसरों की..सुनकर दंग रह गई।
सुशीला के पति श्यामकिशोर की शहर के मेन मार्केट में कपड़े की दुकान थी।ईश्वर की कृपा से उनकी तीन संतानें हुईं।बड़े बेटे अजीत का विवाह वो कर चुके थे।छोटा मुदित इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था।
इसी बीच श्यामकिशोर की बहू के एक रिश्तेदार महेन्द्रनाथ अपने बेटे मानव के लिये उनकी बेटी मिनी का हाथ माँगने उनके घर जा पहुँचे।लड़का हैंडसम था और एक प्राइवेट बैंक में नौकरी कर रहा था।वे रिश्ता हाथ से जाने नहीं देना चाहते थें और बेटी की पढ़ाई पूरी भी करना चाहते थे।उन्होंने अपनी दुविधा महेन्द्रनाथ के सामने रखी तो वो बोले,” इतनी-सी बात है..आप निश्चिंत रहिये.. मिनी अपना ग्रेजुएशन हमारे घर से पूरा करेगी।”
श्यामकिशोर आश्वस्त हो गये और एक शुभ-मुहूर्त में मिनी का विवाह मानव के साथ कर दिये।विदाई के समय दीपा ने अपनी ननद के दोनों हाथों को अपने हाथ में लेकर इतना ही कहा था कि मिनी..मायके में आपके रिश्ते बने होते हैं पर ससुराल में बनाने पड़ते हैं और मिनी ने उसे गाँठ बाँध लिया था।
मिलनसार स्वभाव के श्यामकिशोर का कुछ ग्राहकों के साथ दोस्ताना संबंध बन गया था।उन्हीं में से एक थे लाला अमरनाथ जो ड्राई फ्रूट्स और अन्य फूड उत्पादों के होलसेलर थे।
लालाजी अपने बेटे और बड़ी बेटी का ब्याह कर चुके थे।छोटी बेटी निशा एमए के फ़ाइनल ईयर में थी।जब उन्हें पता चला कि मुदित ने इंजीनियरिंग पास कर ली है और अब नौकरी कर रहा है तो एक दिन पत्नी के साथ उनके घर पहुँच गये और बिना कोई भूमिका बाँधे अपनी इच्छा उनके आगे रख दी।सुशीला तो हैरान रह गईं, उन्हें सूझ नहीं रहा था कि क्या जवाब दे।तब लालाजी की पत्नी हाथ जोड़कर विनम्र स्वर में उनसे बोलीं,”
बहन जी, आप पर कोई दबाव नहीं है..।अगले इतवार को लंच पर हमारे यहाँ आइये… निशा से मिलकर तसल्ली कर लीजिये और बच्चे भी एक-दूसरे को समझ लेंगे।फिर आप लोग जो भी फ़ैसला करेंगे.. हमें स्वीकार होगा।”
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लालाजी की सम्पन्नता देखकर सुशीला एक बार को तो हिचकिचाईं लेकिन मुदित को निशा के साथ खुश देखा…घर आकर उसने मौन स्वीकृति भी दे दी तो उन्होंने सहर्ष लालाजी को जवाब दे दिया,” भाई साहब..बेटी को विदा करने की तैयारी शुरु कर दीजिये।”
ससुराल में निशा बहुत खुश थी।उसे पति के साथ-साथ सास-जेठानी का भी भरपूर प्यार मिल रहा था।जेठानी के बच्चे ईशा-अंशुल भी उसे चाची-चाची कहकर घेरे रहते थें।जब मायके गई तो अपनी भाभी से उसने सभी की खूब प्रशंसा की।
एक दिन ईशा अपनी चाची के पर्स से लिपिस्टिक निकालकर लगाने लगी तो लिपिस्टिक छीनते हुए निशा बोली,” किसी का सामान छूना बुरी बात है।” ईशा ने अपनी चाची की बात पर कान नहीं दिया।अगले दिन वह अपने भाई के साथ उसके पलंग पर कूदने लगी।यह देखकर निशा ने दोनों को डाँटकर कमरे से बाहर कर दिया।बच्चों को रोते देखकर दीपा सब समझ गई।उसने बच्चों को समझाया कि चाची को अब मत परेशान करना..।लेकिन बच्चे तो बच्चे हैं।वो भला अपने चाचा के कमरे में क्यों नहीं जाये…
सो अपनी मम्मी की हिदायत को किनारे करके वो फिर से निशा के कमरे में जाकर उसकी चीज़ों को उलटने-पलटने लगे।इस बार तो निशा हाथ उठाते-उठाते रह गई, फिर बच्चों ने जाना छोड़ दिया।मुदित को पता चला तो उसने निशा से कहा कि ये क्या मेरा-मेरा लगा रखा है..सब तो अपने हैं। बच्चों के साथ ज़रा प्यार-से पेश आओ।एक दिन मिनी आई हुई थी।उसकी बेटी अपनी मामी के कमरे में जाने लगी तो ईशा ने मना कर दिया।तब वो बोली,” चलो ना..मामी नहीं गुस्सा करेंगी लेकिन जब निशा ने कहा
कि तुम्हारी मम्मी…तब वो दोनों सहम कर बाहर आ गईं।सुशीला के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं, उन्होंने लपककर बच्चों को अपनी बाँहों में समेट लिया और बोलीं,” निशा की तबीयत ठीक नहीं है तो..वो अच्छी हो जायेगी तो हम सब उनके पास जायेंगे लेकिन अभी अपनी मम्मी से कुछ नहीं कहना…।
रात को सुशीला ने अपने पति से कहा तो वो बोले,” परेशान मत हो…धीरे-धीरे वह सब समझ जायेगी।मुदित को कुछ मत कहना..बेवजह बच्चों के दिलों दरार पड़ जायेगी।”
मुदित को चार दिनों के लिये मुंबई जाना पड़ा।उसके जाने के अगले दिन ही अपनी सास से पूछकर निशा अपने मायके चली गई।
” भाभी..क्या-क्या खरीदा है..ज़रा मुझे भी दिखाइये।” भाभी का हाथ पकड़कर निशा चहकते हुए बोली तो उन्होंने कहा,” ज़रूर..पहले बैठकर दो बातें तो कर लूँ आपसे..।” कहते हुए उन्होंने काॅफ़ी का कप निशा को थमाया और उसे अपने कमरे में ले गईं।पलंग पर बिठाते हुए बोलीं,” निशा..आपने जिठानी के बच्चों को क्यों डाँट दिया था।”
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” अरे भाभी..वो बड़े ज़ाहिल हैं..और फिर कोई मेरे सामान को हाथ लगाये तो..।” कहते हुए निशा थोड़ी उग्र हो गई।
” कोई..! निशा…वो सब तो आपके अपने है ना।जैसे आप मेरी ननद हैं, वैसे ही तो मिनी आपकी ननद हैं।जब आप मेरी अपनी हैं तो वो भी आपकी अपनी हुई ना..फिर तेरे-मेरे वाली बात कहाँ से आ गई।” भाभी की बात सुनकर निशा सोच में पड़ गई।तब भाभी बोलीं,” निशा..मायके में आपके रिश्ते बने होते हैं पर ससुराल में बनाने पड़ते हैं…कभी झुककर तो कभी चुप रहकर ,कभी माफ़ करके तो कभी माफ़ी माँगकर…।”
निशा एकाएक उठ खड़ी हुई तो भाभी ने मुस्कुराते हुए पूछ लिया,” अब कहाँ चलीं…।”
” रिश्ते बनाने..।” हँसती हुई निशा बोली और वापस अपने ससुराल जाने के लिये वह कैब बुक करने लगी।कमरे से बाहर खड़ी निशा की माँ ने सब सुन लिया था।वो बहुत खुश थीं कि आज एक भाभी ने अपनी ननद को रिश्ते बनाना सिखा दिया।ईश्वर ऐसी भाभी सभी ननद को दे।
मुंबई से वापस आकर मुदित ने देखा कि निशा पलंग पर बैठी ईशा की चोटी बना रही है और अराध्या उसके मेकअप किट से स्वयं को सजा रही है तो वह चकित रह गया। उसने अपनी माँ से पूछा,” ये परिवर्तन कैसे?”
” भाभी की सीख का कमाल है..।” कहते हुए सुशीला ने बेटे को सारी बात बताईं तो उसके मुँह से भी निकल पड़ा,” ईश्वर..ऐसी भाभी सभी को दे।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
# मायके में आपके रिश्ते बने होते हैं पर ससुराल में बनाने पड़ते हैं।