“ क्या हुआ नीति तुम मम्मी जी के कमरे में अकेले बैठ कर क्यों रो रही हो…. चलो बाहर आओ… हमारे साथ बैठो।” राशि ने नीति के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा
“ हाँ भाभी अभी आई ….।” कहकर नीति आँखों में बहते आँसुओं को पोंछ कर बाहर हॉल में आकर बैठ गई
तभी राशि एक प्लेट में उसके मनपसंद समोसे और कचौड़ी लेकर आ गई…. पीछे पीछे उसके बच्चे भी अपनी अपनी प्लेटें पकड़े चले आ रहे थे ।
“ लो नीति खाओ अपनी पसंद के समोसे कचौड़ी….तुम्हारे भैया अभी-अभी देकर बाहर गए हैं तुम्हारी पसंद की रबड़ी लाने।” राशि कहते हुए नीति के पास ही बैठ कर कचौड़ी खाने लगी
“ भाभी आपने मुझे माफ कर दिया है ना….।” अचानक से नीति ने राशि से पूछा
“ किस बात के लिए नीति…. तुम अब भी उन बातों में उलझी हुई हो… पगली अब तुम माँ बनने वाली हो…. खुश रहो जो मन करे खाओ पियो…. फ़िज़ूल की बातों में ध्यान मत दो…. मैंने तो कभी तुमसे कोई शिकायत नहीं की है ना…. फिर किस बात की माफी।” राशि नीति की ओर देखते हुए बोली
“ सब समझ रही हूँ भाभी आपको….. साल भर पहले वाली मेरी भाभी इतनी ज़िम्मेदार बन जाएगी कोई सोच ही नहीं सकता है…. फिर मैंने भी आपको कितना परेशान किया है….बिलकुल साँप सीढ़ी के खेल की तरह…..सच में भाभी ज़िन्दगी साँप सीढ़ी का खेल ही तो है….. एक पल में ख़ुशियाँ दे कर टॉप पर पहुँचा देती दूजे पल गम देकर नीचे ….जब तक माँ हमारे साथ रही मैं तो आपको कुछ समझती ही नहीं थी…. उनसे आपकी शिकायत करती रहती और जब आपको डाँट पड़ती वो पल मेरे जीवन में सीढ़ी पर चढ़कर उपर पहुँचने जैसा होता था पर माँ भी बहुत होशियार थी….
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कभी बेटी बहू में फ़र्क़ नहीं करती थी…. तभी तो मेरे सामने आपको डाँटने का कितना अच्छा नाटक करती थी…. मैं खुश हो जाती थी और फिर वो अकेले में आपसे कहा करती थी बहू नीति में बचपना ज़्यादा है उसके सामने डाँटा करूँ तो तुम दिल पर मत लेना बेटा…. कल को वो ससुराल चली जाएगी तो अपने आप सब समझने लगेगी….ये सुनते मेरी ख़ुशी फुस्स हो जाती थी मानो जैसे साँप सीढ़ी के खेल में मेरे नम्बर ऐसे आए कि साँप ने काट कर मुझे नीचे पहुँचा दिया …. अब जब से माँ गई है आप मेरी माँ ही बन गई हो…..
ये कुश और कुहू जब मुझे परेशान करते हैं तो आप भी उन्हें झूठमूठ का डाँट लगाती हो …. सच्ची भाभी मुझे तो अब समझ में आ रहा है कि ससुराल में जाकर नए रिश्तों के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए बहुत कुछ सहना और समझना पड़ता है…. आपकी सहनशीलता ने मुझे भी बहुत हद तक ससुराल में सामंजस्य बिठाने में मदद की है ।” नीति राशि का हाथ पकड़कर बोली
“ नीति…..माँ के जाने के बाद तुम्हें समझना मेरे लिए बहुत आसान था…. तुम्हें पता है ना मेरी माँ तो बहुत पहले चल बसी थी संयुक्त परिवार में रहने की वजह से ताईजी और चाची जी के मिलेजुले स्वभाव में पली बढ़ी….. यहाँ आकर सास में माँ को खोज रही थी…. और सच में मुझे माँ ही मिली थी…. तुम्हें बुरा लगना स्वभाविक था क्योंकि माँ मुझे भी प्यार करती थी और तुम छोटी होने की वजह से माँ का प्यार बंटता हुआ देख बर्दाश्त नहीं कर पाती थी इसलिए तो मुझे नीचा दिखाने की हर तरह से कोशिश करती रहती थी ताकि माँ नाराज़ हो जाए पर माँ बिलकुल अलग थी…..
जानती हो आख़िरी वक़्त में मुझसे यही कह रही थी बहू नीति दिल की बहुत साफ है…… मुझसे बहुत प्यार करती है इसलिए बच्चों के साँप सीढ़ी के खेल की तरह उपर जाने पर खुश और नीचे जाने पर मुँह फुला लेती हैं ….नीति हमारा रिश्ता ही कुछ ऐसा है ….ननद भाभी में तकरार मनमुटाव आम बात है….. पर तुमसे वादा करती हूँ….. जब भी तुम्हें मेरी ज़रूरत हो मुझे अपनी माँ समझ कर कह देना….. तुम्हें इस हालत में बुलाने के लिए बहुत बार सोच रही थी पर लगता था माँ होती तो तुम्हें ज़रूर बुलाती और भरपूर लाड़ प्यार देती जो शायद मैं उन सा तो तुम्हें नहीं दे सकूँगी…।”राशि ने कहा
“ नहीं भाभी ऐसा कुछ नहीं है….. चार दिन हो गए हैं आए हुए….. आप और भैया मेरा पूरा ध्यान रख रहे है….गर्भावस्था में ऐसे भी मन कुछ ना कुछ खाने का करता रहता है और आप तो सब कुछ बिना कहे ही मुझे दे देती है….. सच में भाभी माँ के लाख समझाने पर भी कि बेटा भाभी से बनाकर रख ये क्या हर वक़्त उसमें कमियाँ खोजती रहती है….. जब तू ससुराल जाएगी और तेरी ननद ऐसा करेंगी तो तुझे कैसा लगेगा…. ये सोच….वो पराए घर से आई है उसे अपना बनाने के लिए प्यार दे बेटा तभी तो वो इस घर को अपना समझेंगी…
और देखो ना आप सच में कब माँ जैसी बनती चली गई पता ही नहीं चला..शायद ये दिल का ही रिश्ता होगा ना भाभी तभी तो आप मेरी हर नादानी को माँ समझ कर माफ करती चली गई और आज भी माँ के नहीं रहने पर मुझे उतना ही प्यार दे रही है ।”नीति माँ को याद कर थोड़ी भावुक हो गई थी
तभी निकुंज रबड़ी लेकर आ गया…. बहन को प्यार से देते हुए बोला,“ तेरा जो खाने पीने का मन करे बोल देना नीति …ये राशि तो मुझे अपनी प्रेगनेंसी में पागल कर दी थी जब तब कहती रहती ये खाने का मन कर रहा है वो खाने का मन कर रहा है और एक तू है कुछ बोलती ही नहीं…. वो तो हम तेरी पसंद जानते हैं तो जो समझ आता ले आते हैं ।”
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“ भैया सच में मेरा कुछ खाने का मन नहीं करता…..और हाँ ये पक्की बात है जब मन करेगा तो आधी रात को भी आपको कह दूँगी फिर मना मत करना..।” चेहरे पर हल्की मुस्कान के साथ नीति ने कहा
“ बिलकुल नहीं बहना…. तेरे साथ तो दिल का रिश्ता है और यहाँ तो आप राजकुमारी है और आपकी आज्ञा का पालन करना हमारा धर्म ।” फ़िल्मी अंदाज़ में जैसे ही निकुंज ने कहा सब हँस दिए
नीति लगभग एक महीने मायके में रही पर अब ना वो पहले वाली नीति रही थी ना अब माँ यहाँ थी ….. जिससे वो कोई शिकायत करती…. पर अब वो भी समझ गई थी ज़िन्दगी में जो बदलाव आते वो भी तो साँप सीढ़ी का खेल है कब ज़िन्दगी किस करवट जाएगी कहाँ कोई जान पाता है…. खिलाड़ी अगर अपना हो तो जीत हार सुख दुख आसानी से कट जाता है ये को बस वही समझ सकता जिससे दिल का रिश्ता जुड़ा होता ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
# दिल का रिश्ता
Rashmi G fantastic story.. Keep it up.. Im waiting ur next lovely story…. Thanks🙏🙏
Absolutely