“अम्मा— देखो ना हमारी भाभी कितनी सुन्दर है– भगवान ने हमें भाभी के रूप में सुन्दर उपहार दिया है– अम्मा– हम सब भाई बहन भाभी को बहुत प्यार करेंगें,” सुनंदा कहे जा रही थी अपनी अम्मा से।आठ साल की छोटी सी बच्ची– लेकिन उसे अपनी नवब्याहता भाभी बहुत अच्छी लगीं।और भी भाई बहन थे लेकिन सुनंदा सबसे छोटी थी–
सब बहुत लाड़ करते थे उसे– थी ही वो इतनी नटखट और प्यारी।उसने अपनी नई नवेली भाभी का मन भी मोह लिया अपनी मनमोहक बातों से— और भाभी भी तो अपना पूरा परिवार छोड़कर नये घर में आयी थीं– सभी बहुत अच्छे थे लेकिन सुनंदा तो बस –” मेरी भाभी– मेरी भाभी ” कहकर दिन भर भाभी के आगे पीछे दौड़ती रहती।और धीरे धीरे सबसे ज्यादा चहेती बनगई अपनी भाभी की।
दस दिन बाद भाभी अपने पीहर घर गई ।अब तो मोहन इतना उदास नही हुआ जितनी सुनंदा होगई। अब तो रोज एक ही बात, ” अम्मा! भाभी– कब आयेंगी– अम्मा बुलाओ ना भाभी को”– अम्मा ने कहा कि,” बिटिया– भाभी को भी तो अपने घर की याद आरही थी- दुई चार दिन मे तेरे भैया लिवा लायेंगे,” अब तो सुनंदा कहे कि वो भी जायेगी भाभी को लिवाने।उसकी जिद्द पर अम्मा ने उसे भेज दिया मोहन के साथ कार में।
जैसे ही मोहन कार से उतरा सुनंदा को लेकर– सुनंदा तो भाभी! भाभी!– कहकर अपनी भाभी से लिपट गई। भाभी ने भी खूब प्यार किया आपनी सबसे छोटी ननद को।दो-तीन दिन बाद विदा करा कर मोहन बहू को घर ले आया।सब घर खुश होगया।
अब दो दिन बाद नयी बहू से खाने की रस्म करवाई गई। हलवा बनवाया। सबने बड़े प्यार से खाया और बहू की बहुत प्रशंसा करी।सास ससुर ने तो हीरे का सैट दिया।सुनंदा ने कहा कि, ” अम्मा– सबने भाभी को कुछ ना कुछ दिया है– मैं भी दूंगी,” अम्मा ने हँसते हुए कहा कि,” ठीक है दे देना, ” उस दिन सुनंदा सोई नही–
इस कहानी को भी पढ़ें:
ननद को भी भाभी की जरूरत होती है। – चाँदनी झा : Moral Stories in Hindi
उसने पूरी रात जागकर भाभी के लिए बहुत सुन्दर कार्ड बनाया और उसपर भाभी की तस्वीर बनाकर लिखा–” मेरी सबसे अच्छी भाभी” तस्वीर जैसी बनी वैसी बनादी– छोटी थी– भाभी को दी।भाभी ने खोलकर देखा तो खुशी के मारे उनकी आँखों में आँसू आगये।सोचने लगी कि इतना प्यार तो कभी अपनों ने भी नही दिया और भाभी के तन-मन में सुनंदा ने घर कर लिया।
अब भाभी की शादी को एक साल होने आया था।अब तो सुनंदा का पूरा काम भाभी ने संभाल लिया।चोटी बनाये तो भाभी–कपड़े पहनाये तो भाभी– खाना खिलायें तो भाभी।भाभी कब भाभी से— भाभी माँ बनगई पता ही नही चला और सुनंदा कब भाभी की बेटी बनगई–।
भाभी के भी दो बच्चे होगए। दोनों बेटे थे।अम्मा भगवान को प्यारी होगई लेकिन भाभी ने सुनंदा को कभी ये महसूस होने ही नही दिया— वो तो भाभी माँ जो बनी बैठी थी सुनंदा की।
अब सुनंदा बड़ी होगई और उसके लिए लड़के की तलाश शुरु होगई और लड़का भी भाभी ने हीरा देखा।परिवार का इकलौता बेटा और एक बहन।शादी की तैयारियाँ शुरु होगई। भाभी सब तैयारियाँ से कर रहीं थीं लेकिन भाभी का दिल रो रहा था क्योंकि भाभी ने सुनंदा को बेटी मान रखा था
और कोई भी माँ अपने कलेजे के टुकड़े को जब किसी दूसरे को सौंपती है तो कलेजा तो फटता ही है– ऐसा ही भाभी के साथ भी होरहा था।भाभी माँ ने कन्यादान किया और अपनी लाड़ो रानी ननद– बेटी को अपने दामाद के हाथों में सौंपकर दिया और सुनंदा का हाथ दामाद के हाथों में देती हुई बोली,” मैं सुनंदा की माँ नही हूँ
लेकिन ये मेरी बेटी से भी बढ़कर है– इसको विदा करते हुए आज मैं खुश भी हूँ कि अपना फर्ज निभा पायी लेकिन मुझ माँ का दिल गवाही नही देरहा,” और भाभी बिलखकर रोने लगी।सब लोगों की आंखें नम थी और सुनंदा का तो रोते रोते बुरा हाल था– उसके आँसू थे कि रुकने का नाम नही लेरहे थे– भाभी माँ ने आगे बढ़कर बड़ी मुश्किल से सुनंदा को संभाला और अपनी बेटी सुनंदा को विदा किया।
सच में–
” भाभी तो जहान होती है,माँ का प्रतिरूप मायके की जान होती है।
माँ तो नही रहती हमेशा,बस पीहर मैं भाभी माँ से ही हमारी पहचान होती है।।”
सभी भाभियों को समर्पित “भाभी”
स्वरचित मौलिक
डॉ आभा माहेश्वरी अलीगढ