गायत्री देवी खुशी से झूम रही थी।अपने पोते के जन्म लेने का समाचार सुनकर,उसकी दिली ख्वाहिश दशकों बाद पूरी हुई थी।उसकी छोटी बहू रचना ने बेटे को जन्म देकर दुनिया की सारी खुशियां उसकी झोली में डाल दिया था।उसकी बड़ी बहू आरती जिसने उसे सिर्फ निराश किया था।दो बेटियों को जन्म देकर,वह बेटा न पैदा कर पाने के कारण हमेशा आरती को कोसती रहती थी। गायत्री देवी का बड़ा बेटा रवि आरती का पति बेहद शांत और सुशील स्वभाव का था। अपनी मां गायत्री देवी की बातों पर वह ध्यान नहीं देता था।
छोटा बेटा संदीप और उसकी पत्नी रचना दोनों ही खुलें मिजाज के थे, संदीप अक्सर शराब पीता था। रचना को संदीप के शराब पीने से कोई परेशानी नहीं थी। गायत्री देवी के पति रवि और संदीप के पिता का कुछ वर्ष पहले देहांत हो चुका था। गायत्री देवी ही घर की मुखिया थी। जमीन जायदाद घर बाहर के सभी कार्य गायत्री देवी की सहमति से होते थे।
एक वर्ष बीत चुका था। गायत्री देवी अपने एक साल के पोते उदय को बहुत प्यार करती थी।मगर अपनी दोनों पोतियों प्रीति, रश्मि,को हमेशा झिड़कती रहती थी। दोनों बच्चियां अपनी दादी के व्यवहार से दुखी रहती थी।”मम्मी!दादी हमेशा हमें डांटती रहती है?”दस साल की प्रीति अपनी मां आरती से बोली।”कोई बात नहीं बेटी!वह तुम्हें प्यार से डांटती है?”आरती प्रीति को समझाते हुए बोली।”नहीं मम्मी! दीदी सही कहती है,दादी हमें हमेशा डांटती है,हमें छोटे बाबू (उदय) के साथ खेलने भी नहीं देती,चाची!भी दादी की तरह डांटती है?”
आठ साल की रश्मि आरती से शिकायत करती हुई बोली।”इतना ही नहीं मम्मी! दादी कहती हैं कि हम लोग बोझ है?”मासूम प्रीति आरती से सवाल करती हुई बोली।”कौन कहता कि मेरी प्यारी बेटी बोझ है,तुम्हारे पापा!और मम्मी!अपनी नन्ही परियों की जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए हमेशा तैयार रहते है,दादी के कहने से क्या होता है?”आरती दोनों बच्चियों को दुलारते हुए बोली। “क्या हुआ हमारी बच्चियों को, किसी ने कुछ कहा है क्या?”रवि कमरे के अंदर आते हुए बोला।”कुछ नहीं कोई बात नहीं है?”आरती प्रीति और रश्मि को चुप कराते हुए बोली।
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रात के बारह बज रहे थे। आरती की आंखों से नींद गायब थी।”क्या बात है आरती तुम परेशान लग रही हो?”रवि आरती को चिन्तित देखकर बोला। आरती ने बच्चियों के साथ उसकी दादी, चाची, के व्यवहार में आए बदलाव को रवि को बताया जिसे सुनकर रवि भी परेशान हो गया और बोला”अम्मा!तो कहती रहती है,मगर रचना को मेरी बेटियों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए आखिर वह भी उनकी चाची है,मेरी बेटियों की जिम्मेदारी मेरी फिर वह क्यूं ऐसा कर रही है?”रवि गंभीर होते हुए बोला।”आप परेशान मत होइए सो जाइए?”आरती रवि को समझाते हुए बोली। रवि खामोश होकर चुपचाप लेट गया, उसके मन-मस्तिष्क अनगिनत सवाल अपनी बेटियों के भविष्य को लेकर उठने लगे थे,उसने अपने मन में अपनी बेटियों को समाज में उच्च दर्जा दिलाने का दृढ़ संकल्प कर लिया था।
संदीप और रचना ने मिलकर गायत्री देवी को रवि और आरती के विरूद्ध भड़काने का काम जारी रखा जिसमें वह कामयाब हो गए, संदीप और रचना की नजर अपने पिता के रूपयों और जायदाद पर लगी थी।जो गायत्री देवी के बगैर मिलना संभव नहीं थी, बड़े भाई रवि के हिस्से पर भी रचना और संदीप की नीयत साफ नहीं थी। रवि प्रतिष्ठित जगह पर सम्मानित पद पर कार्यरत था।वह अपनी मां से खुद कुछ नहीं मांगता था। वहीं संदीप सरकारी कर्मचारी होकर भी आधी कमाई शराब पीने में उड़ा देता था। इसलिए उसे अक्सर गायत्री देवी से पैसे मांगने की जरूरत पड़ती थी।बेटा पैदा होते ही गायत्री देवी के मनोभावों का फायदा उठाते हुए अपने भाई भाभी के विरूद्ध षड्यंत्र करने लगा। कुछ ही दिनों में दोनों परिवार अलग हों गए गायत्री देवी संदीप, रचना,उदय,के साथ रहने लगी रवि,आरती,प्रीति,रश्मि,अलग रहने लगे।
समय बीतता गया, संदीप और रचना ने धीरे-धीरे गायत्री देवी की संपत्ति रुपयों सब पर अपना राज्य स्थापित कर लिया और अपनी मौज-मस्ती के लिए इस्तेमाल करने लगे। रश्मि और प्रीति अपने मम्मी पापा के सपनों को पूर्ण करने के लिए जी जान से पढ़ाई में जुट गई और हर इम्तिहान में प्रथम श्रेणी से पास किया। वहीं पर उदय हाई स्कूल की परीक्षा में भी फेल हो गया वह अपनी दादी के लाड प्यार और शराबी पिता की छत्रछाया में बिगड़ रहा था रचना भी उस पर ख्याल ध्यान नहीं देती थी उसका स्वभाव भी संदीप के जैसा ही हो गया वह भी
किसी ना किसी बहाने अपनी दादी गायत्री देवी से पैसा ऐंठने में लगा रहता था। जल्द ही गायत्री देवी को अपनी गलतियों का एहसास होने लगा जब उन्हें बिना बताए संदीप ने लाखों रुपए की जायदाद को गिरवी रखकर पैसा ले लिया था यह बात पता चलते ही गायत्री देवी का गुस्सा फूट पड़ा।”संदीप! तुमने मुझसे और रवि से बिना पूछे किस आधार पर लाखों रुपया उठा ले लिया?”गायत्री देवी संदीप से चीखती हुई बोली।”मुझे किसी से पूछने की जरूरत नहीं है?”संदीप नशे में झूमते हुए बोला।”क्यों नहीं है जरूरत यह संपत्ति जायदाद सिर्फ
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तुम्हारी नहीं है इसमें तुम्हारे बड़े भाई रवि का भी आधा हिस्सा है?”गायत्री देवी गुस्से में लाल होते हुए बोली। “तो अब तक उन्हीं के पास क्यों नहीं रहती थी सब कुछ करेंगे हम और आधा हिस्सा बटाएगा कोई और?”रचना संदीप का पक्ष लेते हुए मुंह बनाते हुए बोली। गायत्री देवी संदीप और रचना के व्यवहार को देखकर समझ चुकी थी की उसके साथ धोखा हुआ है वह खामोश हो गई उसने रवि, आरती, और अपनी दोनों पोतियों के साथ न्याय नहीं किया, जिस पोते की चाहत ममता मैं वह सब कुछ भूल चुकी थी वह भी उसे कुछ नहीं समझता था.उसे अपनी गलतियों का एहसास हो रहा था,गम और चिंता में डूबी गायत्री देवी गंभीर बीमारियों का शिकार हो चुकी थी।
प्रीति ने अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने की जिम्मेदारी को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया,आज वह दिन आ गया था जब प्रीति सिविल सर्विसेज (यूपीएससी) में उच्च रैंक प्राप्त करने में सफल हुई थी, और आईएएस अधिकारी बनकर अपने घर वापस आ रही थी। रवि,आरती,अपनी आईएएस बेटी और रश्मि अपनी दीदी के आने की राह देख रहे थे। इंतजार की घड़ियां खत्म हो चुकी थी, प्रीति घर आते ही रवि,आरती, रश्मि से लिपट गई वह बहुत खुश थी,”मुझे तुम पर गर्व है बेटी!” कहते हुए रवि की आंखों में खुशी के आंसू छलक रहें थे। “यह आपके और मम्मी के बिना संभव नहीं था पापा!”कहते हुए प्रीति भावुक हो गईं। अपनी मम्मी पापा बहन से गले मिलने खुशियां बांटते हुए प्रीति को अपनी दादी की याद आई,”दादी!कहा है पापा!
सामने चाचा के यहां वह दिख नहीं रही है?”प्रीति चिंतित होते हुए बोली।”प्रीति बेटी!वह अंदर होगी,वह हमारे पास तो बिल्कुल नहीं आती है,कभी-कभी हम लोग ही उनका हाल-चाल ले लेते हैं?”आरती गंभीर होते हुए प्रीति से बोली।”अरे देखो आरती दो महीने हो गए हैं मैंने भी अम्मा को बाहर नहीं देखा है?”रवि आरती को गायत्री देवी को देखने का इशारा करते हुए बोला।”आप रहने दे मम्मी!मैं खुद ही जाऊंगी दादी से मिलने?”कहकर प्रीति बगल में अपने चाचा संदीप के घर की ओर बढ़ गई।
सामने संदीप और उसकी चाची खड़ी थी। जिसे देखते ही प्रीति ने आदरपूर्वक अपने चाचा और चाची को प्रणाम किया,”चाचा! दादी!और उदय कहां है?”प्रीति संदीप की ओर देखते हुए बोली।”प्रीति!तेरी दादी बीमार है, और उदय घूम रहा होगा अपने निठल्ले दोस्तों के साथ?”संदीप कमरे की ओर इशारा करते हुए बोला। प्रीति बिना कुछ बोले कमरे की ओर बढ़ गई। सामने बिस्तर पर पड़ी गायत्री देवी जो सत्तर वर्ष की आयु में कुछ दिन पहले हष्ट-पुष्ट थी वह सूख कर कांटा हो चुकी थी,हाथ पैर कांप रहे थे,वह एकटक अपनी दादी की ओर देखती
रही फिर बोली। दादी! दादी!वह गायत्री देवी को चरण स्पर्श करते हुए बोली। “कौन?”गायत्री देवी कराहते हुए बोली।”मैं हूं दादी! प्रीति?”प्रीति गायत्री देवी के करीब आकर बोली।”प्रीति!मेरी बच्ची?”गायत्री देवी की आंखों से आंसू की धारा बहने लगी।”दादी! तुम्हारी पोती प्रीति आईएस अधिकारी बन गई है, मुझे आशिर्वाद नहीं दोगी?”प्रीति भावुक होकर बोली।”अरे मेरी बच्ची मुझे माफ कर दे मुझे बेटी बोझ नहीं होती,बेटी तो गर्व से अपने माता-पिता और दादी का मस्तिष्क ऊंचा करने वाली होती है?” कहते हुए गायत्री देवी के होंठ कंपकंपाने लगे।
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“ऐसा मत कहो दादी! अगर आप ऐसा न कहती तो मुझे हिम्मत कहां से मिलती अपनी दादी का सिर गर्व से ऊंचा करने की?”कहकर प्रीति गायत्री देवी से लिपट गई।”नहीं मेरी बेटी!मेरी आंखों में पर्दा पड़ गया था जो मैं अपनी बच्चियों को दुत्कारती रही,और जिसे दुलारती रही वहीं मुझे धोखा देते रहे?”कहकर गायत्री देवी शांत हो गई।”अप तुम चिंता मत करो दादी! मैं सब ठीक कर दूंगी, चलों उठो?”प्रीति गायत्री देवी को उठाते हुए बोली। गायत्री देवी प्रीति को लगाकर दुलारने लगीं।”चल बेटी मुझे ले चल यहां से मेरा बेटा रवि बड़ी बहू रश्मि सभी की मैं गुनहगार हूं,मैं उनके पास जाने का साहस नहीं कर पा रही हूं,लेकिन अब मैं अपनी आईएएस पोती के साथ हूं किसकी हिम्मत है जो मेरी तरफ आंख उठाकर देखें?”गायत्री देवी के चेहरे पर मुस्कान लिए प्रीति का सहारा लेकर रवि के घर की ओर बढ़ रही थी। संदीप और रचना एक मुजरिम की तरह चुपचाप सिर झुकाए हुए खड़े थे।
#जिम्मेदारी
माता प्रसाद दुबे
मौलिक स्वरचित
अप्रकाशित कहानी
लखनऊ