गौरांग वर्क फ्रॉम होम कर रहा हैआजकल। विनीता बहुत कुशल गृहिणी है।वो शाम को चाय और पकोड़े बना कर ले आई..”अरे! आजकल तुम्हारी तबियत ठीक नही है, तुम इतना काम अकेले मत किया करो प्लीज़! मेरा ऑफ़िस का काम भी बस खत्म ही हो रहा था ! अच्छा खैर, बैठो ,चाय साथ में पीते हैं।”
और फिर दोनों में होने वाले बच्चे को लेकर चर्चा छिड़ गई,”अच्छा एक बात बताओ,तुम बेटा चाहते हो या बेटी?”
“ये भी कोई सवाल है मैडम! अपना बच्चा है… जो भी हो उसका स्वागत है।”
विनीता खुश होकर बोली,” वाह वाह! ये तो बहुत अच्छी बात है पर नाम के लिए कुछ सोचा है?”
“अरे नही यार, ये अधिकार तो हमारे बड़ों को मिलना चाहिए…. मतलब बच्चे के दादा दादी और नाना नानी मिल कर नाम तय करेंगे। है ना..।”
विनीता बच्चों की तरह ताली बजा कर हँसने लगी।
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“सच्ची, तुम्हारा ये गौरांग नाम दादा जी ने रखा था ! मम्मी जी बता रही थी कि तुम्हारा गोरा रंग देख कर दादा जी ने ये नाम सुझाया था और यही नाम फ़ाइनल होने पर वो कितने गौरवान्वित हुए थे।”
“अब ये बताओ …अगर बेटा हुआ तो क्या करना होगा।”
फिर कुछ सोच कर खुद ही बोला,”करना क्या है… उसे
बढ़िया से लिखाना पढ़ाना है। रोज़ पार्क में ले जाकर दौड़ लगवानी है….. क्रिकेट और बैडमिंटन भी सिखाना है।”
“अरे बाप रे! बहुत लंबी लिस्ट है बेटे के लिए तुम्हारे पास, अगर बिटिया हुई तो क्या क्या करोगे?”
गौरांग कुछ देर सोच कर बोला,”कुछ नही, आई मीन कुछ भी तो नही।”
आहत विनीता हक्की बक्की थी कि वो हँसा,” उसको क्या सिखाना है, वोही हमको सिखाऐगी…नही समझी ना….बेटियां तो पेट से ही होशियारी सीख कर पैदा होती हैं…. हमारी बिटिया हमें ही सब सिखा देगी! बेटियों की रग रग में मातृत्व के गुण होते हैं।”
स्वरचित मौलिक
नीरजा कृष्णा