बेटी मुझे अपने घर जाना है – सविता गोयल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : भाभी आप मां का बिलकुल भी ध्यान नहीं रखतीं। मां के दांत में दर्द है फिर भी उन्हें खाने में सिर्फ सब्जी रोटी दे दी। दलिया या फिर खिचड़ी हीं पका देती।,, रितु ने अपनी भाभी माधवी से कहा। 

“लेकिन दीदी, मां ने हीं खिचड़ी के लिए मना कर दिया था।बोली रोज रोज मुझे खिचड़ी नहीं भाती।,, 

” ये सब तो बहाने हैं काम से बचने के। जब मैं यहां थी तो मां को कोई तकलीफ नहीं होने देती थी।,, माधवी की ननद रितु बिना कुछ सुने अपना हीं राग अलापे जा रही थी। 

माधवी को बहुत आश्चर्य हो रहा था क्योंकि अपनी बेटी की इन बेतुकी बातों पर सासु मां बिलकुल चुप थीं। चुप ही नहीं बल्कि ऐसा मुंह बनाकर बैठी थी जैसे सच में उनकी बहु माधवी उनका बिलकुल भी खयाल नहीं रखती। 

माधवी उन दोनों का मुंह हीं देख रही थी कि रितु फिर बोल पड़ी, ” अगर आपसे मां की सेवा नहीं होती तो साफ साफ कह दिजिए। मैं मां को अपने साथ ले जाऊंगी।,, 

ये सुनकर तो माधवी से रहा नहीं गया। वो भर्राए गले से बोली ” लेकिन दीदी , ये घर तो मां का हीं है ना। मां कुछ बोलती हैं तो मैं कभी मना करती हूं क्या? जो खाना हो वो बता भी तो सकती हैं।,, 

“अब मां क्या बोलेगी। आपको खुद हीं सोंचना चाहिए।,, 

फिर रितु ने अपनी मां जानकी जी की तरफ इशारा करते हुए कहा,” चलो मां कुछ दिनों के लिए तुम मेरे साथ मेरे घर चलो। लगता है तुम्हारी बहु अब थक गई है।,, 

माधवी इंतजार कर रही थी कि उसकी सासु मां शायद अपनी चुप्पी तोड़कर उसके पक्ष में कुछ बोलेगी लेकिन जानकी जी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा,” रहने दे ना बेटा, तूं क्यूं परेशान होती है। अब उम्र हो चली है मेरी , बेटा बहु जैसे रखेंगे रह लूंगी।,, 

ये बात सुनकर माधवी को बहुत आश्चर्य हुआ। क्योंकि घर में अभी तक भी जानकी जी की हीं चलती थी।उनका बेटा उन्हें बहुत सम्मान देता था और माधवी… वो भी उनसे बिना पूछे कोई काम नहीं करती थी। लेकिन बेटी के सामने उनका ये दोहरा रूप माधवी की समझ से परे था। वो चाहकर भी कुछ नहीं बोल पा रही थी। 

रितु बिना कुछ कहे हीं अपनी मां का सामान पैक करने लगी और आॅटो लेकर दोनों मां बेटी चल पड़ीं। उधर माधवी परेशान थी।उसके पति मुकेश का फोन भी नहीं लग रहा था। अचानक से मां के इस तरह जाने पर पता नहीं मुकेश कैसी प्रतिक्रिया करेगा। कहीं वो भी उसी को इसके लिए जिम्मेदार समझने लगा तो???? ये सोंच सोचकर माधवी और परेशान हो रही थी। 

जब रात को मुकेश घर आया तो मां को ना पाकर माधवी से पूछा। माधवी ने डरते हुए सिर्फ इतना ही कहा,” वो दीदी का मन था कि कुछ दिन मां उनके साथ रहे इसलिए वो मां को कुछ दिनों के लिए अपने साथ ले गईं।,, 

” ओह!! चलो कोई बात नहीं।,, मुकेश ने ऐसा कहा तो माधवी की जान में जान आई। 

उधर रितु और मां को अपने घर लेजाकर खुद को बड़ा समझ रही थी। वो अपने पति और बच्चों के साथ अपने सास ससुर से अलग रहती थी। मां के जाने से उसे कुछ फायदा हीं हुआ क्योंकि जानकी जी घर पर रहती थीं तो रितु अपने बाहर के काम बेफिक्री से निपटा लेती थी।साथ ही वो अपने सात साल के बेटे को भी उनके भरोसे घर पर छोड़कर चली जाती थी।

रितु के घर पर सभी देर से खाना खाते थे लेकिन जानकी जी को तो जल्दी खाने की आदत थी। दामाद जी को चटपटा खाने की आदत थी हम जिसके कारण अधिकतर मसालेदार खाना हीं बनता था सो उनको खाना हजम नहीं होता था। ढंग से नींद भी नहीं आती थी क्योंकि वो अपने नाती के साथ उसी के कमरे में सोती थीं। अड़ोस-पड़ोस के लोग भी बातें बनाते थे कि आजकल की बहुएं सास ससुर के बजाय मां बाप को साथ रखना चाहती हैं। 

धीरे धीरे उनकी समझ में आने लगा कि अपने घर में हीं जिंदगी सुचारू ढंग से चल रही थी। माधवी की कोई गलती नहीं थी। वहां तो समय पर काम ना होने पर वो बहु को दो बातें भी सुना देती थी लेकिन यहां बेटी को तो कुछ बोल भी नहीं पाती। 

एक हफ्ते बाद जानकी जी रितु से बोलीं,” बेटी, मुझे अपने घर जाना है।,, 

” क्यों मां ?? फिर से अपनी बहु की बातें सुनने का मन कर रहा है क्या? ,, 

” नहीं बेटा ऐसा नहीं है। वो कहां मुझे कुछ सुनाती है वो तो मैं ही उसे नहीं समझती। बेटी के घर यूं इतने दिन रहना अच्छा नहीं लगता। ,, कहकर वो अपना बैग पैक करने लगी। रितु को भी समझ में आ रहा था कि मां अब नहीं रूकने वाली क्योंकि अपना घर तो अपना घर हीं होता है। 

अपने घर आते हीं जानकी जी ने आवाज लगाई,” माधवी बहु जरा एक कप चाय बनाना।,, 

माधवी खुशी से भागती हुई आई और जानकी जी का बैग उनके कमरे में रख आई।                                                  # घर                                              सविता गोयल

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