बेटी की विदाई नहीं कर पाने का पछतावा – सुषमा यादव

,, मैं अपने पिता जी और श्वसुर जी के साथ अपने कार्य स्थल मध्य प्रदेश के एक शहर में रहती थी। मेरी बड़ी बेटी की शादी होने वाली थी।

वो विदेश में नौकरी कर रही थी इसलिए ये निश्चित हुआ कि दिल्ली में ही शादी हो।देश विदेश से सभी लोग फ्लाइट से आयेंगे और इंडिया घूम कर शादी में भी शामिल हो जाएंगे।

मेरी छोटी बेटी दिल्ली में डाक्टर थी, उसके पापा नहीं है तो सारी जिम्मेदारी हम सबके कंधे पर आ गई थी। मैं बहुत घबरा रही थी,पर छोटी बेटी ने दिलासा दिया, मम्मी, मैं हूं ना,।आप बिल्कुल भी चिंता ना करें।सच में उसने सारा प्रबंध बहुत ही बेहतरीन तरीके से किया था। मैं बहुत खुश थी, गर्व महसूस हो रहा था। अपने पिता की सारी जिम्मेदारियां बखूबी निभा रही थी। मैं बीच-बीच में कुछ दिनों के लिए छुट्टी लेकर चली जाती,सब तैयारियां देख कर संतुष्ट हो कर वापस आ जाती। मेरे पास दो दो बुजुर्ग थे, उन्हें भी देखना पड़ता।

समय आने पर मेरी बेटी इंडिया आई और हमने एक कार्यक्रम संगीत का अपने घर में रखा। नाना,दादा अपनी नातिन को देख कर बहुत खुश हो रहे थे। ढेर सारा आशीर्वाद दिया।हम सबने ये तय किया कि मैं और मेरी बेटी वापस दिल्ली चले जाएं और बाबू जी, श्वसुर जी शादी के एक दिन पहले हमारे एक रिश्तेदार और उनके परिवार के साथ आ जाएं।

सबने हंसी खुशी हमें विदा किया।

जिस दिन उन सबको दिल्ली आना था,  उसी दिन मेड का फ़ोन आया। दीदी,दादा जी को खाना खिला कर मैं घर चली गई और अब चाय पिलाने आईं हूं तो वो उठ नहीं रहें हैं,ना बोल ही रहें हैं। बेहोश हैं शायद और बुखार भी है।

हम सब बहुत घबरा गये। मैंने फ़ौरन रिश्तेदार को फोन पर बताया तो बोले हम पहुंच गए हैं। डाक्टर को दिखा दिया है। वो कोमा में चले गए हैं।

दोनों बेटे इनके पास हैं, शादी तो रुक नहीं सकती, मैं आ रहा हूं, शादी निबटाते ही हम चले आयेंगे।

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ये सुनकर हम सब उदास हो गए।मेरा शादी में मन ही नहीं लग रहा था। किसी तरह सुबह शादी होते ही मैंने बेटियों से कहा, मैं तो जा रही हूं , बेटी बोली,,और मम्मी, दीदी की विदाई। उनकी रात की फ्लाइट है। बेटा अब तुम विदाई करवा देना, मुझे जाने दो

बड़ी बेटी लिपट कर रोने लगी, मम्मी, ऐसे ही मेरी विदाई होगी, बिना मां, पापा के। मैंने रोते हुए कहा,बेटा,अभी तो मेरी सबसे बड़ी जिम्मेदारी तुम्हारे दादा जी हैं। तुम्हारे लिए तो यहां तुम्हारा पूरा परिवार और बहन है,उनका मेरे सिवाय कोई नहीं है।

अपने दिल पर कड़ा पत्थर रख कर रोते हुए बिटिया को छोड़ कर चली आई। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया,चार दिन बाद उनके प्राण पखेरू उड़ गए।

शायद वो अपनी पोती की शादी तक ही अपनी सांसें बचा कर रखे हुए थे।

मुझे आज तक बहुत पछतावा है कि मैं अपनी बेटी की विदाई नहीं कर सकी। शादी तो एक बार ही होती है। मेरी बेटी पर उस वक्त क्या बीती होगी,जब वो रोते हुए बिना मां पापा के विदा हो कर पराए देश जा रही थी।

मैं भी इधर रो रही थी,कितना दुखद रहा होगा, पर मैं भी मजबूर थी।

विदाई की कोई रस्म अदायगी नहीं कर पाई और बेटी चली गई और एक साल के बाद मैं उससे मिल सकी।

ये पछतावा तो ताजिंदगी रहेगी, पर आप सब बताइए कि मैंने गलत किया क्या ? मुझे बेटी की विदाई करना चाहिए था कि श्वसुर जी के पास आना चाहिए था।

#पछतावा।

सुषमा यादव प्रतापगढ़ उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

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