बेटी की शादी में तमाशा नहीं – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ सुनते हो आज बड़ी भाभी का फ़ोन आया था कह रही थी हमारी पीहू के लिए उनके एक रिश्तेदार ने पूछा है… वो कह रही थी जो भी निर्णय लो जल्दी बता देना।” दफ़्तर से पति के आते ही कामिनी ने अपनी दबी भावनाओं को उड़ेल दिया 

“ अरे पर उन्होंने हमारी पीहू को देखा कहाँ है जो वो शादी की बात करने लगे?” हरीश जी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा 

“ अरे वो जब हम भाभी के घर उनके बेटे मेहुल की शादी में गए थे तभी उनके रिश्तेदार ने पीहू को देखा था….उस वक़्त हम पीहू की शादी की बात करते नहीं थे अब जब हम पीहू की शादी की बातचीत करने लगे तो मैंने बातों बातों में बड़ी भाभी से कह दिया था आज उनके फ़ोन ने मेरे दिल में हलचल मचा दी है अब हम पीहू की भी शादी करने वाले।” कामिनी ऐसे बोल रही थी मानो यहाँ शादी बस तय ही हो गई हो

“ कामिनी थोड़ा शांत हो कर सोचो… तुम्हारी बड़ी भाभी बहुत पैसे वाले ख़ानदान से है और उनके रिश्तेदार भी वैसे ही होगें हम ठहरे साधारण रहन सहन में खुश रहने वाले हमारी पीहू के लिए वो परिवार…. मुझे सही नहीं लग रहा तुम मना कर देना … हम अपनी हैसियत अनुरूप ही पीहू के लिए लड़का खोजेंगे नहीं

तो ज़्यादा ऊँचे ख़ानदान में ब्याहने का नतीजा हम देख ही चुके हैं वो तो कहो की भगवान की कृपा रही जो वरुण जैसा दामाद मिला जिसने हमारी परिस्थितियों को समझते हुए शादी के मंडप पर हमारी बेटी का दिलेरी से हाथ थाम लिया था …. कहीं पीहू की शादी के समय… नहीं नहीं हम फिर से उस स्थिति का सामना नहीं कर सकते तुम तो मना ही कर देना।” हरीश जी एकदम से नकारते हुए बोले

कामिनी भी क्या करती भगवान ने झोली में दो बेटियाँ दी और जिनकी परवरिश में दोनों ने कोई कमी नहीं की थी सब कुछ जान समझ कर देख सुन कर बड़ी बेटी कुहू के लिए वरूण को चुना था …. पर शादी के समय ही वरुण के माता-पिता ने कहना शुरू कर दिया अपनी बेटी के लिए आप कुछ भी नहीं दे रहे ..अरे हमने तो कहाँ था हमें कुछ नहीं चाहिए इसका मतलब क्या आप अपनी बेटी को बस एक जोड़ी कपड़े में ही विदा करने वाले हैं…. अब आप ही बताइए बेटी को विदा करने के लिए गाड़ी तक नहीं रखा आपने… वरुण जो ये सब सुन रहा था

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और जब उसने कुहू के चेहरे को देखा जो रो रोकर कर बेहाल हुई जा रही थी…. चेहरे के भाव बयान कर रहे थे कि वो माता-पिता की इज़्ज़त की ख़ातिर मौन है नहीं तो वो अभी शादी के मंडप से उठ जाती…. उसकी नज़र जब वरुण पर पड़ी तो वो उसे सवालिया नज़रों से देखने लगी तब वरुण ने उसका हाथ कसकर पकड़ते हुए अपने माता-पिता की ओर मुख़ातिब होकर बोला,” ये शादी होगी और मेरी पत्नी और आपके घर की बहू अपनी कार से ही जाएँगी जो उसके पति ने ख़रीद कर रखा हुआ है…. ससुराल से कुछ भी नहीं लेना है ये

फ़ैसला हमने पहले ही किया था फिर यहाँ ये तमाशा क्यों….प्लीज़ आप लोग मेरी शादी में कोई बाधा उत्पन्न ना करे ये एक बेटी और उसके माता-पिता की इज़्ज़त की बात है ।” ये कहकर उसने पंडित जी से शादी का रस्में पूरी करने के लिए बोला 

वरुण ने हमेशा कुहू का साथ दिया और उसके माता-पिता भी बेटे की सोच और उसके फ़ैसले को स्वीकार कर कुहू के साथ फिर कभी कोई दुर्व्यवहार नहीं किए…. 

इस घटना के बाद से ही हरीश जी पीहू की शादी को लेकर चिंतित रहने लगे थे….ऐसा नहीं था कि उनके हालात बुरे थे पर वो अपनी हैसियत मुताबिक़ ही अब पीहू की शादी करना चाहते थे ।

कामिनी ने हरीश जी की बात मानते हुए अपनी बड़ी भाभी चंचला को जब शादी ना करने की बात कही तो वो कारण पूछने लगी तब कामिनी ने उन्हें कुहू की शादी की बात याद कराते हुए कहा,” बड़ी भाभी हरीश जी नहीं चाहते कि हम अपने से ज़्यादा अमीर घर में बेटी ब्याहने की सोचे कल को कही फिर कुहू के जैसा हाल हुआ और उसका पति नहीं समझा तो हम कहाँ से कैसे उनकी माँग पूरी करेंगे ।” 

कामिनी की भाभी ने ठीक है कहकर फ़ोन रख दिया ।

दो दिन बाद कामिनी  दोपहर को खा कर आराम कर रही थी पति और बेटी पीहू दोनों ऑफिस गए हुए थे कि घर की डोरबेल बजी।

“ इस समय कौन होगा?” सोचते हुए जैसे ही दरवाज़ा खोली सामने बड़ी भाभी के साथ एक पति पत्नी और थे जिन्हें कामिनी नहीं पहचानती थी

“ अरे भाभी आप… आइए ना।” कहते हुए कामिनी ने आदर सहित सबको अंदर आने बोला और सोफे पर बैठने कहा 

वो जल्दी से रसोई से पानी और मिठाई लेकर आई सोच रही थी अच्छा हुआ घर में मिठाई पड़ी थी नहीं तो अचानक आए मेहमानों को क्या खिलाती ।

“ कामिनी तुम आराम से इधर बैठो… ये मेरे फुफेरे भाई कँवल और भाभी गरिमा है ….ये ही हमारी पीहू को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं मैंने तो तुम्हारे कहे अनुसार इन्हें मना कर दिया था पर ये मुझसे कहने लगे कि ये लोग तुम लोगों से मिलना चाहते हैं… और ये खास तौर पर आज सुबह ही मेरे यहाँ आएँ और मुझे तुम्हारे यहाँ चलने को बोले मैं तुम्हें खबर भी नहीं कर पाई इन लोगों ने मना कर रखा था ये कह कर कि तुम नाहक परेशान हो जाओगी।”बड़ी भाभी ने कहा 

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 कामिनी कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी फिर भी हिम्मत करके बोली,” देखिए आप मेरी भाभी के भाई है इस नाते मैं आपका लिहाज़ करती हूँ पर आपके साथ रिश्ता रखने की हमारी हैसियत नहीं है ।” 

“ आपकी ये सब बातें मुझे पता है… आपकी भाभी के मुँह से आपकी बेटियों की बहुत तारीफ़ सुनी है और जब आप मेहुल( बड़ी भाभी के बेटे) की शादी में सपरिवार आई थी तब ही हमने पीहू बिटिया को देखा था हमने तब भी आपकी भाभी से ये बात कही थी तब इन्होंने कहाँ कि अभी आप लोग शादी नहीं करना

चाहते और हमें भी तब कोई जल्दी नहीं थी हमारा बेटा बस पढ़ाई ख़त्म कर जॉब ज्वाइन करने वाला था तो हमने भी सोचा चलो जब आप बिटिया की शादी करना चाहेंगे तब हम अपना प्रस्ताव रखेंगे…. और जब दीदी ( बड़ी भाभी) से पीहू के बारे में पता चला तो हमने खुद उनसे कहा हमें पीहू को बहू बनाना है आप बात करें पर जब आप ने इंकार किया और जो वजह बताई बस हम इसी सिलसिले में आपके घर तक आ गए….ये बताइए भाई साहब कब तक आते है और पीहू बिटिया? “ गरिमा ने पूछा 

“ जी वो दोनों आठ बजे तक आते हैं ।” कामिनी ने कहा 

“ ओहहह क्या वो पहले आ सकते हैं अगर आ जाते तो हमें जो कहना है हम सबके सामने कह पाते।” कँवल ने कहा 

“ जी मैं फ़ोन करके पता करती हूँ ।” कहकर कामिनी दूसरे कमरे में जाकर पति को सारी बात बता दी

“ लो ये घर तक आ गए तुम देखो मना कर दो हमारे बस का नहीं ।” हरीश जी बोले

“ देखिए आप किसी तरह घर आ जाइए और पीहू से बात करके उसे भी ले आइएगा।” कामिनी अपनी धीमी आवाज़ में बोली

इसके बाद कामिनी नाश्ते का प्रबंध करने रसोई में गई तो उसकी बड़ी भाभी भी आ गई

“ देखो कामिनी नाराज़ मत होना…. ये लोग मुझे बहुत मानते हैं और कब से पीहू को बहू बनाने के लिए तैयार बैठे थे पर जबतक बात नहीं चल रही थी मैं कुछ ना बोली … और ये सब अचानक आकर मुझे बोले तुम्हारे घर जाना… वो तुम सब को परेशान नहीं करना चाहते थे ।” बड़ी भाभी ने कहा 

तभी गरिमा भी रसोई में आ गई और बोली,” देखिए आप परेशान मत होइए बस चाय बिस्कुट खिला दीजिए किसी तरह की मेहमाननवाज़ी की ज़रूरत नहीं है हम कोई बाहर के लोग नहीं है समझिए तो घर के ही है ।” 

कामिनी उनकी बात सुन मन ही मन सोचने लगी ऐसे विचार वालों के घर ही तो पीहू को देना चाहती है पर इनका ऊँचा ख़ानदान हमारा कोई मेल नहीं हो सकता।

कामिनी जब तक कुछ नाश्ता बना कर रख ही रही थी कि हरीश जी आ गए वो साथ में थोड़े फल मिठाई भी लेकर आ गए थे जिन्हें कामिनी ने परोस दिया ।

“ हरीश जी  हम आपकी पीहू का हाथ माँगने आपको बिना बताएँ आ गए हैं इसके लिए पहले तो माफ़ कर दीजिए और अब बताइए क्या आप अपनी बिटिया को हमारे घर की बिटिया बनाने की इजाज़त देंगे ।” कँवल जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा 

“ भाई साहब आपके और हमारे बीच के फ़ासले ….हम आपके साथ कैसे कोई लेनदेन कर पाएँगे …. हमें माफ कर दीजिए ।” कहते हुए हरीश जी ने हाथ जोड़ दिए 

“चंचला दी ने हमें सब कुछ बता दिया है पर हमारे ख़ानदान में लेने देने की जगह रिश्तों में प्यार हो और अपनापन हो इस बात पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है…और यही बात बताने के लिए हम खुद आपके दरवाज़े पर आ गए वो भी बिना इत्तिला किए…. आप हम पर भरोसा रखिए… ऐसा कुछ भी नहीं होगा…

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आप लोगों की सादगी भरे व्यवहार ने ही मुझे मेहुल की शादी के समय आकर्षित किया था और पीहू हमारे मन को भा गई थी…. वैसे यहाँ पर ये भी बता दूँ कि हमारा बेटा हर्षित भी पीहू को शादी के दौरान देख चुका है और उसकी हामी के बाद ही हम यहाँ आए हैं बस एक बार आप पीहू बिटिया से पूछ लीजिए उसकी भी रज़ामंदी हो तो हम अपनेपन के इस रिश्ते में बँध सकते हैं ।” गरिमा ने विनम्रतापूर्वक कहा

वो लोग बात कर ही रहे थे कि पीहू भी घर आ गई…उसकी सादगी और अपनेपन से सबका अभिवादन करना कँवल और गरिमा के दिल को छू गया 

पीहू के प्रश्नवाचक नज़रों को समझते हुए कामिनी उसके पीछे पीछे जाने लगी तो चंचला भी साथ हो गई 

कामिनी कुछ कहती उससे पहले ही चंचला ने कहा,” पीहू बेटा मामी पर भरोसा करती है?” 

“ हाँ मामी ये भी कोई पूछने की बात है ।” पीहू ने कहा 

चंचला ने अपने फ़ोन पर एक फ़ोटो दिखाते हुए कहा,” ये हर्षित है… और जो लोग बाहर बैठे है वो इसके माता-पिता है… ये लोग तुम्हें अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं क्या तुम इसके लिए तैयार हो?” चंचला ने बिना किसी भूमिका के बात रख दी

“ पर मामी … हमारा और उनका कोई मेल नहीं है मैं कैसे कुछ…।” पीहू हिचकिचाते हुए बोली 

“ तुम्हें हर्षित कैसा लग रहा है हो सकता है मेहुल की शादी में एक दूसरे को मिले हो बात भी हुई हो पर इस तरह शादी की बात को लेकर मन में कुछ भी हो तो बोल सकती हो… तुम्हारी हाँ के बाद तो मैं तुम्हारी मम्मी और पापा को मना लूँगी ।” चंचला ने कहा 

“ भाभी आपको सही लग रहा है … याद है ना कुहू की शादी के समय… हम उस परिस्थिति का सामना फिर नहीं करना चाहते ।” कामिनी संकुचाते हुए बोली 

“ कामिनी भरोसा रखो….. अगर मुझे जरा भी उन्नीस बीस लगता मैं कभी इन्हें लेकर यहाँ ना आती …. अपने भाई भाभी को अच्छी तरह जानती हूँ कुहू जैसा हाल नहीं होगा… बस तुम लोग हाँ कर दो।” चंचला ने कहा 

 पीहू की झुकी नज़रों ने हामी भर दी थी उसके बाद कामिनी ने हरीश जी को बुला बड़ी भाभी के सामने हर बात साफ कर दी …. उसके बाद कँवल जी और गरिमा जी को भी हामी भर दी गई

एक महीने के भीतर शुभ मुहूर्त देख कर पीहू की शादी हर्षित के साथ हो गई…. गरिमा और कँवल जी ने जैसा कहा था उन्होंने वैसा ही किया कोई लेन देन की बात नहीं की हरीश जी ने पीहू को जो भी देना चाहा गरिमा ने हाथ जोड़ते हुए कहा,” इन सब की ज़रूरत नहीं है बस आप हमारे बेटे को भी वही प्यार दे जो बेटी को देते रहे हैं और हम भी अपनी बहू को अपना बेटा मान प्यार और अपनापन देते रहेंगे… आपको बहुत मन है तो पीहू चाहे तो ले सकती है ये उसकी अमानत है ।”

कामिनी और हरीश जी ऐसा परिवार पाकर गदगद हो रहे थे और कुहू अपनी बहन की किस्मत पर गर्व कर रही थी चलो उसकी शादी में कोई अड़चन नहीं आईं ।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#वाक्यकहानीप्रतियोगिता 

#हमारे ख़ानदान में लेने देने की जगह रिश्तों में प्यार हो और अपनापन हो इस बात पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है…

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