हे प्रभु सुना है कि तूने नारी की रचना बड़ी फुर्सत से की है और इसकी रचना करने में आपको बहुत समय लगा सहनशीलता साहस ममता करुणा दया सृजनशील वह सारे गुण आपने उसे दिए जो प्रभु आप में है प्रभु तूने तो एक नारी रूपी रत्न गढा था रत्न बहुत बहुमूल्य होता है उसे सहेज के रखा जाता है। प्रभु अब इस नारी रूपी रत्न की बेकद्री हो रही है। जिस भारतवर्ष की धरती पर प्रभु आप ने जन्म लिया उसी भारत की धरती पर उसका तिरस्कार, हत्या, बलात्कार मारपीट,,,, कुछ नर पिशाच रोज कर रहे हैं।
जिसका सृजन नारी ने अपनी कोख में किया है। एसे नर पिशाचों, हैवानों की वासना से वृद्ध, जवान, नारियां भोली भाली छोटी सुकोमल बच्चियां भी नहीं बच पा रही है। प्रभु यह वाली भोली भाली नारी इनको भी नहीं पहचान पाती है यह कैसे होते हैं उसको यह भी नहीं पता यह कब उस पर हमला बोलेंगे और उसकी अस्मिता को तार-तार कर देंगे और हमें मार देंगे और हमारे पिता मां भाई सभी मेरे न्याय के लिए सालों भटकते रहेंगे,,,, हे प्रभु यह वही भारतवर्ष है जिसमें पुरुष और नारी का गठबंधन माता पिता की तीन से पांच पीढ़ियों के गोत्र बचाकर किया जाता था और अभी भी किया जाता है। सिर्फ एक स्त्री धर्मपत्नी और समस्त नारी बहन मां बेटी के रूप में होती थी
कहां गए वह भारतवर्ष के संस्कार,,,, सब पैसे की अंधी दौड़ में दौड़ रहे हैं स्कूलों से नैतिक शिक्षा की पुस्तक ही गायब हो गई है। कोई इस भटकी हुई पुरुष पीढ़ी को बताने वाला नहीं है क्या सही है,,,? । क्या गलत है,,,? अब घरों में संस्कार की पाठशाला बंद हो रही है। अब बिगड़ती हुई युवा पीढ़ी को कौन संभालेगा युवा नशे की ओर अग्रसर हो रहा है। धिक्कार है ऐसी मां बाप की पर परवरिश पर जिसके बेटे की गलत नजरों से कोई बेटी असहजता का अनुभव करें अपने आंचल को संभाले प्रभु अब कोई लक्ष्मण रेखा नहीं है।
जिसके भीतर हम सुरक्षित हो जाएं प्रभु हमारे माता-पिता तो हमें फूल की तरह पालते हैं। और उन्हें पता नहीं कि उनके फूल को कब कौन मसल देगा इसलिए हे प्रभु अब किसी भी माता पिता को बेटी मत देना। क्योंकि अब भारतवर्ष का समाज बेटी रूपी रत्न के योग्य नहीं रहा। बेटी का माता पिता होना अब बहुत ही पीड़ादायक हो गया है। बेटी के साथ कुछ भी गलत क्यों ना हो जाए समाज हमेशा बेटी को ही कटघरे में खड़ा कर देता है। साहस और सहनशीलता अब जवाब दे रही है शक्ति का रूप होते हुए भी अपने आप को असहाय महसूस कर रही हैं। हे प्रभु हे मेरे परमपिता तू मुझे अपनी शरण में ले क्योंकि यह भारतवर्ष बदल गया है। यहां मेरी अस्मिता की रक्षा करने वाला कोई नहीं,,,,,,,
मंजू तिवारी गुड़गांव