बेटी का सम्मान – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

  ” नहीं भईया…अब आप मीनू को वहाँ नहीं भेजेंगे।हाँ..उसके ससुराल वाले आकर ससम्मान ले जायें तब तो ठीक है वरना..हमारी बेटी कोई बोझ नहीं है।” सुमेश ने अपनी भतीजी के सिर पर स्नेह-से अपना हाथ रखा तो मीनू सुबक पड़ी।

     ” लेकिन सुमेश…मीनू को यहाँ रहते देख रिश्तेदार क्या कहेंगे..।” महेश जी ने भाई की बात पर अपना विरोध जताया।

      तब सुमेश बोला,” वाह भाई साहब, आपको समाज की पड़ी है और बेटी के सम्मान की नहीं…भईया..#अपनी पगड़ी अपने हाथ होती है।

      अढ़ाई साल पहले ही महेश जी ने अपनी मीनू का ब्याह शहर के एक बिजनेस के बेटे सुशांत के साथ किया था।मीनू अपने ससुराल में बहुत खुश थी।देखते-देखते दो साल बीत गये।

       फिर एक दिन मीनू को नाश्ते के टेबल पर उबकाई आने लगी।उसकी सास की आँखें चमक उठी।उन्होंने पति को कहा कि आज सुशांत आपके साथ ऑफ़िस नहीं जायेगा और बेटे को बोली,” अभी के अभी तू बहू को लेकर डाॅक्टर भारती के क्लिनिक चला जा।”

      डाॅक्टर भारती ने जब मीनू की प्रेग्नेंसी को कन्फ़र्म किया तो सुशांत खुशी-से उछल पड़ा।मीनू की सास ने तो क्षण भर में ही सैकड़ों ख्वाब देख डाले।गोद- भराई में किस-किस को न्योता देंगी, पोता होगा या पोती…उनके क्या नाम रखेंगी…वगैरह-वगैरह।उधर मीनू के मायके में भी खुशी की लहर दौड़ गई थी।

        एक शाम सुशांत घर लौट रहा था कि उल्टी दिशा से आ रही एक ट्रक से उसकी कार का एक्सीडेंट हो गया और सुशांत की वहीं मृत्यु हो गई।

     खबर मिलते ही सुशांत के घर में तो हाहाकार मच गया।मीनू की तो जैसे पूरी दुनिया ही उजड़ गई हो।वह रोते-रोते बेहोश हुई जा रही थी।बड़ी मुश्किल से तो उसे पानी पिलाया जा रहा था।उसके सास-ससुर का भी बुरा हाल था।रिश्तेदार की बातों में आकर उन्होंने अपनी बहू को ही सुशांत की मृत्यु का कारण मान लिया।एक दिन महेश जी अपनी बेटी से मिलने गये तो उनकी समधिन मीनू को सामने करके तीखे स्वर में बोलीं,” ले जाइये अपनी बेटी को…।” उसके बाद महेश जी ने दो बार मीनू को ससुराल भेजने का प्रयास किया लेकिन उनके समधी ने साफ़ इंकार कर दिया।तब सुमेश ने कहा,” मीनू को जब उसके ससुराल वाले स्वयं लेने आयेंगे..तभी आप उसे भेजियेगा।”

        मीनू की डिलीवरी में तीन महीने बाकी थे कि एक दिन अचानक ही मीनू के सास-ससुर फल-मिठाई लेकर आ पहुँचे और अपने समधी-समधिन  से हाथ जोड़कर क्षमा माँगते हुए बोले,” हम अपने व्यवहार पर बहुत शर्मिंदा है।हमें माफ़ कर दीजिये।बेटे के दुख में हम भूल गये थें कि मीनू बिटिया का दुख तो हमसे भी बड़ा है।लोगों की बातों में आकर…।अब हम अपनी बहू को उसके मान-सम्मान के साथ लेने आये हैं।”

      मीनू के माता-पिता ने अपनी बेटी को आशीर्वाद देकर विदा किया।नाती के जन्म पर महेश जी अपनी पत्नी के साथ बेटी के ससुराल गये।मीनू को वहाँ सबके साथ खुश देखकर मीनू की माँ महेश जी से बोलीं,” सच है, #अपनी पगड़ी अपने हाथ ही होती है।आप मीनू को जबरदस्ती भेजते तो उसे वो आदर नहीं मिलता जो अब मिल रहा है।”

   ” तुम ठीक कहती हो मीनू की माँ..।” कहते हुए उन्होंने अपने नाती को गोद में उठा लिया।

                                   विभा गुप्ता

                              स्वरचित, बैंगलुरु

# अपनी पगड़ी अपने हाथ

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