Moral Stories in Hindi :
” अरी कुसुम कहाँ है?” कुसुम जी की पड़ोसन शांति जी ने घर में घुसते हुए आवाज़ लगाई।
“अरे दीदी आई ।” रसोई से बाहर आते हुए कुसुम जी बोली।
“बहु आ गई घर में पर तुझे अभी भी रसोई से छुटकारा नहीं मिला, बहु को सिर पर चढ़ा रही है अभी से”| शांति जी हाथ मटका कर बोली।
“अरे दीदी रोज़ तो जल्दी उठ के ऑफिस जाती ही है आज छुट्टी है तो थोड़ा ज्यादा सो लेगी वैसे भी बस चार लोग का खाना ही तो बनाना होता है बाकी काम तो नीलू ( घरेलू सहायिका ) कर देती है । ” कुसुम जी ने कहा।
“पछतायेगी कुसुम ऐसे तो सारी जिंदगी तू ही चूल्हे चौके में लगी रहेगी मुझे देख तीन बहुएं है पर मजाल है कोई सी भी मेरे विरुध जाए, खैर मैं तो एक कटोरी शक्कर लेने आई थी !” शांति जी बोली और शक्कर ले चली गई। कुसुम जी शांति जी की बात सुन सोच मे डूब गई।
इतने में कुसुम का बेटा अरुण आया “माँ दो कप चाय बना दो”
“बेटा शिखा (अरुण की पत्नी) नहीं आई उठ के?” बेटे के आवाज़ देने पर सोच से बाहर आई कुसुम जी ने पूछा।
“माँ वो बाथरूम गई है चाय बनाकर आप तैयार हो जाओ बाहर घूमने चलेंगे पापा को भी बोल दो नाश्ता , खाना बाहर ही खायेंगे “| अरुण बोला।
“पर बेटा मैने तो आज सब के लिए पोहा और सैंडविच बनाये थे”| कुसुम जी बोली।
“माँ छुट्टी वाले दिन क्या जरूरत थी सुबह सुबह लगने की खैर वो रात को खा लेंगे अभी जल्दी से तैयार हो जाओ”| अरुण माँ से प्यार से बोला।
कुसुम कुछ बोलती उससे पहले ही अरुण चाय ले चला गया। खैर उस दिन सबने बाहर ही खाया पिया घूमें फिरे , फिल्म देखी और रात को देर से घर आये और सब दूध पी सो गए, नाश्ता बेकार ही गया । कुसुम जी को बुरा भी लगा पर वो बोली कुछ नही ।
“बेटा आज मुझे पड़ोस वाली शांति ऑन्टी के यहाँ कीर्तन में जाना है ” कुछ दिन बाद कुसुम जी ने अरुण और शिखा से कहा।
” कोई नही माँ हम तो लेट ही आयेंगे आप चाभी साथ में ले जाना ” शिखा ने कहा।
शिखा और अरुण ऑफिस चले गए कुसुम के पति भी दुकान चले गए काम खत्म कर कुसुम जी शांति जी के घर चली गई।
” माँ कहाँ है आप ? ” कुसुम जी शांति जी के घर थी तभी शिखा का फोन आया।
” बेटा मै शांति ऑन्टी के घर हूँ क्यो क्या हुआ ” कुसुम जी ने कहा।
” ओह हाँ …वो माँ मैं घर आ गई हूँ आप चाभी भेज दीजिये प्लीज ” शिखा ने कहा।
” शिखा इतनी जल्दी घर कैसे ?” कुसुम जी ने सोचा और ख़ुद ही कीर्तन छोड़ घर आई ! आ कर देखा शिखा की तबियत ठीक नहीं लग रही थी दरवाज़ा खोल अंदर आई तो देखा शिखा को तेज बुखार था।
” अरे बेटा तुम कमरे में आराम करो मैं दवाई ले कर आती हूँ ” उन्होंने शिखा से कहा।
दवाई देकर उसके माथे पर ठंडे पानी की पट्टियाँ भी रखी क्योंकि बुखार तेज था। थोड़ी देर में शांति जी प्रसाद ले कर आई कीर्तन का और बोली….
” तेरी बहु से दो घर छोड़ चाभी लेने ना आया गया उसके इशारे पर नाचती फिरेगी ऐसे तो जिंदगी भर ”
” दीदी उसे बुखार है ” कुसुम जी बोली।
” सब बहाने है, तू बड़ी भोली है लगाम खीच कर रख फिर से बोलती हूँ, अरुण ने अपनी मर्ज़ी से अपनी पसंद की लड़की से शादी की है ऐसा ना हो तेरा बेटा छीन ले वो। मत भूल तू सास है वो नही । ” शांति जी ने कहा। शांति जी चली गई पर कुसुम जी के मन मे अशांति पैदा कर गई।
वो सोच में पड़ गई , ” मैं क्यो करू अकेले सब काम सही तो कहा दीदी ने मैं सास हूँ । बुखार उतर जाए तो बोल दूँगी सुबह उठ कर मेरे साथ नाश्ता बनवाया करे बाकी काम में भी मदद करे नौकरी कौन सा मेरे लिए करती है बहुत दे दिये मैने लाड अब घर संभाले । वो कहीं की महारानी नही जो काम नही करेगी । खैर अभी तो खाना बनाऊँ देर हो रही है।” ये सोच वो खाना बनाने लगी।
इतने में अरुण भी आ गया और थोड़ी देर माँ के पास खड़ा रह अपने कमरे में चला गया। थोड़ी देर बाद कुसुम जी खिचड़ी बना कर शिखा को देने पहुँची तो दरवाजे के बाहर शिखा की आवाज़ सुनाई दी।
” अरुण माँ बहुत अच्छी है इतना प्यार तो मेरी मम्मा ने भी नहीं दिया जितना माँ देती है, मैं कितनी खुशकिस्मत हूँ जो मुझे माँ मिली मैने सोच लिया है कल से माँ की जितनी हो सके मदद करूँगी बेचारी अकेले सब करती हैं पर एक बार शिकायत नही करती । गलती मेरी है उन्होंने मुझे अभी काम करने को मना किया और मैं भी मान गई जबकि मुझे तो खुद से उनकी मदद करनी चाहिए ! सच मे मैं बहुत ख़ुशक़िस्मत हूँ जो मुझे ऐसी सास मिली है !” शिखा अरुण से कह रही थी।
” क्या बात है बुखार ने सास की एहमियत समझा दी !” अरुण हँसते हुए बोला।
” क्या है अरुण आपको मजाक सूझ रहा है और मैने कब नही माँ की एहमियत समझी बताइये जरा मैं तो अपनी मम्मा तक से यही कहती हूँ मुझे आपसे भी अच्छी माँ मिल गई है !” शिखा बोली।
” अच्छा अच्छा अभी तुम आराम करो बुखार सही हो जाए तब जो मर्जी करना तुम सास बहू के बीच वैसे भी मुझे नही पड़ना !” ” अरुण बोला।
कुसुम जी ये सब सुन अपनी थोड़ी देर पहले की सोच पर मन ही मन शर्मिंदा हो रही थी। साथ ही साथ अपने बेटे की पसंद पर गर्व हो रहा था ।
” लो बेटा शिखा खिचड़ी खा लो फिर दवाई ले आराम करो बेटा ” कुसुम जी ने अंदर आकर कहा और अपने हाथो से खिचड़ी खिलाने लगी।
” वाह! शिखा तुम्हारे ठाठ हैं सास से सेवा करवा रही हो ” अरुण बोला।
” बहु नहीं है ये मेरी बेटी है जो मुझे बहुत प्यारी है। ” कुसुम ने शिखा के गालों पर हाथ लगाते हुए कहा।
” माँ ” शिखा एक दम कुसुम के गले लग गई।
” और मैं ” अरुण रोनी सूरत बनाता बोला।
” आ तू भी आजा ” कुसुम ने दोनों को गले लगा लिया और मन ही मन निश्चय किया कि अब किसी बाहर वाले की बात सुन अपनी बेटी जैसी बहू के बारे मे गलत नही सोचेंगी।
कैसी लगी दोस्तों आपको ये सास बहु की कहानी ? जानती हूँ कुछ लोगो को लगेगा ये सिर्फ कहानी है पर नही ये हकीकत है। कुछ सास बहू की जोड़ी ऐसी ही होती है । और जिनकी नही है क्यो ना आने वाली पीढ़ी के लिए हम ऐसी सास बन जाये।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल