बेटी होने की खुशी, बेटा न होने का दुःख नहीं – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

दो पोतियों के बाद बबिता जी की इच्छा थी कि अब फिर से बहू नीलू पोते के बारे में सोचे । उन्होंने अगली सुबह चाय पीते हुए नीलू के सामने बात छेड़ते हुए कहा…”नीलू ! तुम्हें एक बार बेटे के लिए चांस लेकर देखना चाहिए । मेरी सहेलियाँ भी बोलती हैं एक बेटा तो होना ही चाहिए और सच पूछो तो मेरी भी राय है । और तो और बच्चियों को राखी बांधने वाला घर में मिल जाए तो बस ! और क्या चाहिए ?

नीलू ने सारी बातें गम्भीरता से सुनते हुए आखिरी में कहा..”अभी तो सोचा नहीं है मम्मी जी लेकिन निशि तो समझदार हो गयी हैं बस रिद्धि थोड़ी बड़ी हो जाए तो सोचूँगी ।

मुस्कुराते हुए बबिता जी ने कहा…”अभी तो मेरी उम्र ज्यादा नहीं हुई, बच्चों को पाल – पोसकर सेवा करके बड़ा कर दूँगी ।

बबिता जी को अपनी बात बनते हुए दिख रही थी और वो बहुत खुश थीं । नीलू सोफे पर लेट गई । अब सबकी कही हुई बातें उसके मन में घूम रही थीं …बगल वाली मेघना के पास भी बेटा है, संध्या कीssss…”नहीं ..नहीं ! उसका क्यों सोचूँ , उसकी  बेटी है ।  धरा, सृष्टि, मेघना, पूजा सबके पास एक बेटा है, सिर्फ मैं ही एक ऐसी हूँ जिसके बेटा नहीं । बेटा के बिना परिवार अधूरा है , मैं भी तो कब से

चाह रही थी लेकिन एक बार मेरे पति अनीस बस इस बात पर मुहर लगा दें । पर अगले महीने तो मैं अड़तीस की हो जाऊँगी , डर भी लगता है इस उम्र में सोचने में पर सोचना भी जरूरी है । लेकिन मैं किसी को ये महसूस नहीं होने दूँगी कि बेटा की ख्वाहिश मुझे भी है, बस मम्मी जी का ही बहाना

बनाऊंगी । ख्यालों की खिचड़ी नीलू के मन में पक ही रही थी कि अनीस  अंदर आ गया । फ्रेश ही हो रहा था अनीस कि नीलू चाय और पकौड़े लेकर आ गयी । चाय की एक सिप लेते ही नीलू ने कहा…”अनीस ! बेटियाँ अब बड़ी हो रही हैं, सब दोस्त मुझे हमेशा कहते हैं एक बेटा होना चाहिए, आज तो मम्मी जी ने भी बोल ही दिया ।

अनीस चाय का प्याला मुँह में ही लगाए एकटक नीलू को देखता रहा फिर बोला…” अरे ! सबका काम है कहना, बेटे के चक्कर में बेटियाँ एक से दो हो गयी हैं अब कि क्या गारंटी है कि बेटा होगा?

“एक लास्ट चांस लेते हैं अनीस” !  ज़ोर देते हुए फिर से नीलू ने कहा तो अनीस  मान गया। 

अगले साल…..

नीलू की डिलीवरी हुई और फिर लड़की हुई । ऑपरेशन के बाद जब बेड पर डॉक्टर ने बच्ची को दिखाया तो नीलू खुश थी । लेकिन जब वार्ड में शिफ्ट किया गया तो उसका मन तीन बेटियों को सोचकर कोसने लगा ।

बबिता जी जब नीलू के पास आईं तो नीलू ने मुँह फेर लिया । बबिता जी उसकी पीड़ा समझ सकती थीं पर उस विषय पर चर्चा करना उसके जले पर नमक छिड़कना होता इसलिये वो चुप रह गईं । साधारण गतिविधियाँ कर रही थी नीलू पर चेहरे के हाव – भाव से नाराजगी साफ झलक रही थी ।

शाम के वक़्त उसकी पड़ोसन और सहेलियाँ आ गईं…फीकी मुस्कान छिपाने की कोशिश करते हुए नीलू ने कहा…”अभी अनीस मिठाई लेने गए हैं मुँह मीठा कराती हूँ । नीलू की सहेली संध्या ने कहा…छोड़ न मिठाई ! घर आओगी तुम , तब खा लेंगे मिठाई । थोड़ी औपचारिकता वाली बातें हुई फिर सभी सहेलियाँ बधाई देते हुए वापस आ गईं ।

पाँच दिन बाद जब नीलू डिस्चार्ज होकर आयी तो पहले जैसा हर्षोल्लास नहीं था उसके मन में । हर वक़्त बुझी बुझी सी रहती और खोई रहती । बबिता जी बच्ची की मालिश कर देती थीं और नहला कर सुला देती थीं । ऐसे ही दो सप्ताह बीत गए ।एक दिन स्टूल पर चढ़कर कुछ निकालते समय बबीता जी के कमर में इतनी ज्यादा मोच आ गयी कि उन्हें जांच कराना पड़ गया । डॉक्टर ने पन्द्रह दिन कम से कम बेड रेस्ट की सलाह दी । अब पूरे दिन के लिए कोई बाई नहीं मिल रही थी और नीलू का मन

खीझ रहा था । एक दिन अनीस ने ऑफिस निकलते हुए कहा…”जब बच्चे से फ्री होगी तो एक बार मम्मी के कमरे में भी झाँक लेना अगर कुछ जरूरत हो तो…यही बात सुनकर नीलू चिढ़ते हुए तेज आवाज में बोली..”एक तो बच्चे को देखो, ऊपर से मम्मी जी की तिमारदारी करो, क्या – क्या करूँ मैं ?

तैश में बोली जा रही थी नीलू बिना सोचे समझे…एक तो जबर्दस्ती ज़िद करके मम्मी जी ने मुझे बेटे के बारे में सोचने को कहा । और कुछ बोलती नीलू उससे पहले ही अनीस ने कहा…”किस ज़बरदस्ती की बात कर रही हो तुम नीलू ? मन तुम्हारा भी था, मम्मी पर मत थोपो ऐसी परिस्थिति आ गई है तो । “मैं उनके बहकावे में आ गयी थी अनीस..नीलू ने सफाई देते हुए कहा ।

वॉलेट पटकते हुए बिस्तर पर अनीस बैठ गया और फिर से थोड़ा शांत होकर बोलने लगा…”मम्मी तो बहुत कुछ तुम्हें कहती हैं नीलू, क्या – क्या मम्मी की बात सुनती हो ? मन तुम्हारा भी था, आज बेटी हो गयी तो मन छोटा हो गया इसलिए तुम बहकी – बहकी बातें कर रही हो । तुम अपनी सहेलियों से

बराबरी करने चली थी …याद करो, जिनके बेटे हैं उनका चर्चा और त्योहार का चर्चा करके तुमने मुझे बच्चा सोचने के लिए कहा था । ये अच्छा है तुम्हारा, अपना  काम न हो तो दूसरे के ऊपर ठीकरा फोड़ दो । मैंने तुम्हें तब भी कहा था कि चांस लेने से क्या गारंटी है कि बेटा ही होगा, लेकिन सबको देखकर तुम पर ज़िद हावी थी ।

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई..संध्या , और नीलू की पड़ोसन मेघना और पूजा मिलने आयी थीं । जल्दी से लंच उठाकर आधे मन से नीलू की सहेलियों को नमस्ते कर अनीस निकल गया ।

नीलू ने उदास मन से बैठने को कहा तो मेघना बोली..”पहले आंटी जी से मिल लेती हूँ फिर तुमसे बात करुंगी । मेघना जाकर बबिता जी के पास बैठते हुए बोली…कैसी हैं आंटी ? उठकर बैठते हुए बबिता जी ने कहा…”ठीक हूँ बेटा ! बहुत बुरा लग रहा है पर क्या करूँ ? नीलू को तुम्ही लोग समझा सकती हो । अभी दोनो पति – पत्नी में बच्चे को लेकर बहस हुई है, मैं उधर देखने भी नहीं गयी दर्द उखड़ जाता है, पर सुनती हूँ तो बुरा लगता है । संध्या मेघना पूजा ने अच्छे से बातों को सुलझा लिया और फिर नीलू के पास गई ।

नीलू ने पूरे शिकायतों का पिटारा खोलकर रख दिया । पूजा और संध्या ने सारा दोष नीलू को देते हुए कहा…”सारी गलती तुम्हारी है, तुम्हारे मन में बेटे की ललक नहीं होती तो क्या तुम आंटी के कहने से कर लेती ? उनकी स्थिति खराब हो गयी थी, उन्हें पता नहीं था , और वो पुराने समय की भी हैं जो सही लगा उन्होंने बोला ।

तभी संध्या ने कहा..”मेरी तो दो बेटियाँ हैं, हर दूसरा इंसान मुझे बेटे के बारे में सोचने को उकसाता है । तो मुझसे नहीं हो पाएगा मैं नहीं सोचती ।

आज के समय में भी बेटा – बेटी में इतना अंतर क्यों नीलू ?

“पूजा ने गम्भीरता से कहा तो नीलू बिल्कुल सोच में पड़ गई । जो नहीं हुआ तुम उसका दुःख मना रही हो, पर जो हुआ उसका सुख तुम्हें नहीं दिख रहा । तुम्हारे जैसे लोग होंगे तो बेटियों का जीवन दूभर होगा । “अनीस जी ने बिल्कुल सही कहा तुम्हें” । मुझे तो उनकी एक बात गलत नहीं लग रही । बेटी होने की खुशी मनाओ, बेटा न होने का दुःख नहीं । जो किस्मत में होना था वो हुआ । यही नन्हीं कली पढ़ लिखकर तुम्हें सुख देगी न तो तुम्हें खुद पर पश्चाताप होगा कि तुम इसके बारे में क्या सोच रही थी ।

तभी नन्हीं कली के रोने की आवाज़ आयी ।झट से नीलू ने गोद उठाकर ममत्व दिखाया । और महसूस किया ” सचमुच मेरी ही गलती थी, मैंने तिल का ताड़ बना दिया । पर अनीस की समझाई हुई बातें मुझे खटकने लगती हैं। मम्मी जी का भी कोई दोष नहीं । अपनी गलती की वजह से सब पर हावी होने चली थी । मेघना संध्या और पूजा के साथ नीलू बबिता जी के कमरे में जाकर उसने बच्ची को बबिता जी को गोद मे देते हुए कहा…”सम्भालिए मम्मी जी ! आपके लिए सूप लाती हूँ ।

“बैठे – बैठे शाम हो गयी दोपहर से, अब हम भी चलते हैं नीलू “! मेघना बोलकर उठने लगी तो सब उठ गईं । बबिता जी ने मुस्कुराते हुए कहा …”आते रहना तुमलोग, तुमलोगों के साथ बहुत अच्छा लगता है । 

आधे घण्टे बाद जब अनीस आया ऑफिस से घर का माहौल गरम से नरम हो चुका था । वो चुपचाप माँ के कमरे में गया और बिस्तर पर बच्ची , हाथ में सूप  बाउल देखकर हैरान पूछने लगा..”ये क्या माँ ? किसने बनाया ? तब तक नीलू ने आकर सूजी का हलवा थमाते हुए कहा..”आपको सूप नहीं पसन्द तो हलवा बनाया है । अचानक बदले इस मिजाज पर अनीस नज़र नहीं लगाना चाहता था । उसने मुस्कुराकर माँ को तो कभी नीलू को देखा और दोनों बेटियों को लेकर झूमते हुए बाजार चल दिया ।

मौलिक, स्वरचित

अर्चना सिंह

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