बेटी ही क्यों दे त्याग – स्नेह ज्योति : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : काव्या जो ज़िंदगी को बिंदास होकर जीती थी । जिसने कभी भी ना झुकना सीखा , ना ही कभी ग़लत का साथ दिया । काव्या अपने पिता का मान है या यूँ कहे उनके जीवन का पूरा सारांश है तो गलत नहीं होगा । क्योंकि राम किशोर जी ने उसकी पहलवान बनने की ख्वाहिश को पूरा करने के लिए ना जाने कितने लोगो की बाते सुनी , ना जाने क्या क्या सहा । पर फिर भी उन्होंने उसके सपने को पूरा ही नहीं किया बल्कि ,उसके हर सपनें हर ख़ुशी को उसके साथ जिया है । आज जब भी काव्या कोई प्रतियोगिता में विजयी होती है ,तो रामकिशोर जी की छाती चौड़ी हो जाती है ।

लेकिन आज के युग में जब वो अपने देश की महिला खिलाड़ियों के साथ कुछ गलत होता देखते । तो कहीं ना कहीं वो अंदर से डर जाते कि अगर मेरी बेटी के साथ कभी ऐसा कुछ हुआ तो क्या होगा ?? काव्या ने उन्हें बहुत समझाया कि बाबा आगे क्या होगा उसका नहीं पता । तो क्या उससे डर कर आज में जीना छोड़ दे । नहीं बेटा , मैं जानता हूँ तुमने यहाँ तक पहुँचने के लिए बहुत मेहनत की है ।

तो फिर आप क्यों डरते है बाबा “मैं बहादुर हूँ सब सम्भाल लूँगी बोल वो चली जाती है “। लेकिन रामकिशोर जी बिन माँ की बेटी को ज़्यादा बोल नहीं पाए , क्योंकि एक माँ जो बेटी को हर बात खोल कर समझा सकती है वो एक बाप नहीं कर सकता ।

आए दिन काव्या के लिए रिश्तें आते रहते थे , पर उसकी जोड़ का कोई रिश्ता ही नहीं मिल रहा था। रामकिशोर चाहता था कि उसकी बेटी जल्दी अपने घर की हो जाए । एक दिन जब काव्या के लिए एक अच्छा रिश्ता आया तो उसने मना कर दिया । तब रामकिशोर जी ने कहा … बेटा शादी के बाद कोई तुम्हें पहलवानी ना करने दे , तो क्या तुम सारी उमर कुँवारी रहोगी । मेरी ये इच्छा है कि तुम अपने घर की हो जाओ । अपने बाबा की ख्वाहिश के आगे वो अपने सपने अपने अरमानों का गला घोंट प्रयाग से शादी के लिए मान गई और ससुराल रूपी नाव में बैठ अपने गृहस्त जीवन में प्रवेश कर गई ।

शादी के कुछ दिनों बाद ही प्रयाग और काव्या दिल्ली चले गए । क्योंकि प्रयाग दिल्ली में नौकरी करता था । सब अच्छा चल रहा था । एक दिन प्रयाग ने अपने घर में दिवाली की एक छोटी सी दावत रखी । जिसमे उसके करीबी दोस्त आए थे । जब उन्हें पता चला कि काव्या एक पहलवान थी । तो वो सब काव्या से बहुत प्रभावित हुए । और कहने लगे आपने पहलवानी छोड़ क्यों दी । आपको अपना काम जारी रखना चाहिए था । यें सब बाते सुन प्रयाग बीच में बोल पड़ा क्या यार ! तुम सब इसके पीछे ऐसे पड़े हो जैसे कोई फ़िल्मी हस्ती हैं। वो एक पहलवान ही थी इसमें इतना बड़ा क्या है ?? जो तुम इतना प्रोत्साहन दे रहे हो ।

प्रयाग हँस कर बोला …. पहलवान से ज़्यादा यें एक अच्छी पत्नी के रूप में जँचती है । वैसे भी पहलवानी करने से क्या मिलता है ?? अगर किसी प्राइवेट कंपनी में काम कर रही होती तो सोचो आज कहाँ होती । प्रयाग की ऐसी सोच जान उसके कुछ दोस्तों को आश्चर्य हुआ । पर वो मेहमान थे , जो थोड़ी देर बाद अपने घर चले गए ।लेकिन काव्या यें सब जान जीना ही भूल गई थी । वो अब कम बाते करने लगी थी । प्रयाग के साथ भी अब वो कभी- कभी ही बाहर जाती थी , क्योंकि प्रयाग को अच्छा नहीं लगता था , जब उसकी बीवी को एक पहलवान के तौर पर सब बुलाते थे । वो चाहता था कि काव्या की पहचान बस उसकी पत्नी के रूप में जानी जाए ।

कुछ महीनों बाद जब काव्या ने अपने बाबा से बाते करना बंद कर दिया । तो उसके बाबा को उसकी चिंता होने लगी और वो उससे मिलने उसके घर आ गए । अपने बाबा को अचानक से यूँ अपने सामने पा वो उनसे लिपट कर रोने लगी । उसकी पीड़ा से अनजान रामकिशोर समझे कि इतने समय उपरांत उससे मिला हूँ शायद इस वजह से वो ऐसा बर्ताव कर रही है । एक दिन दामाद और ससुर दोनों बैठ बाते कर रहें थे । तभी रामकिशोर काव्या की पुरानी बाते उसकी पहलवानी के क़िस्से सुनाने लगें । बस फिर क्या होना था यें सुन प्रयाग चिढ़ कर खड़ा हुआ और बोला आपकी वजह से आज मुझे बहुत शर्मिंदगी होती हैं ।

क्या हुआ दामाद जी ??

अगर आपने काव्या को पहलवान नहीं बनाया होता तो …. अच्छा होता । मैंने आपसे शादी से पहले ही कहा था कि मुझें पहलवानी पसंद नहीं है ।

तो बेटा वो कहाँ खेलती है , हम तो बस बाते ही कर रहें है ।

आप बाते भी क्यों कर रहें है ……मत करा करे

यें सब सुन वो अपनी बेटी की पीड़ा उसके निर्झर बहते आसुओ का सबब जान गए । जो इंसान उसकी ख़ुशियों उसके अरमानों का खूनी है । आज वो अपने आप को कातिल नहीं , बल्कि कोतवाल समझ मेरी बेटी को ही मुजरिम ठहरा रहा है । बस बहुत हुआ ….. अब मेरी बेटी यहाँ नहीं रहेगी ।

क्यों ? क्या हुआ ससुर जी !

जो इंसान मेरी बेटी के सपनों की इज़्ज़त नहीं कर सकता तो फिर मेरी बेटी का यहाँ रहने का क्या मतलब ??

प्रयाग ने तभी काव्या को बुलाया और कहा सुना तुम्हारे बाबा क्या कह रहें है ??

सब बातो से अनजान काव्या ने अपने बाबा से पूछा ….क्या हुआ बाबा ??

बेटी मुझें माफ़ कर दो ! मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ जो ऐसे शख्स को तुम्हें सौंप दिया ।

नहीं बाबा , इसमें आपकी कोई गलती नहीं है । शायद मेरी क़िस्मत में यहीं था …

देखा ससुर जी ! आपकी बेटी को कोई परेशानी नहीं है । अब चाहें मैं उसके साथ कैसा ही बर्ताव करूँ , आपको रोकने का कोई हक़ नहीं है , क्योंकि सब हक़ मेरे है ।

नहीं बेटी , मैं तुम्हें ऐसे आदमी के साथ अकेला नहीं छोड़ कर जाऊँगा ।

क्या ससुर जी ! आप भी यही रहेंगे । मैं और खर्चा अफ़्फोर्ड नहीं कर सकता ……आप जा सकते है ।

तुम क्या कह रहे हो प्रयाग ….. ये मेरे बाबा है , तुम से बड़े है !

बड़े है , तो क्या मैं इनकी हर बात मानूँगा ।

प्रयाग और काव्या दोनों में बहस छिड़ गई और इसी बहस में जब रामकिशोर जी बीच में आए , तो प्रयाग ने उन्हें धक्का दे दिया , जिसके कारण उन्हें चोट लग गई । चोट बेशक से मामूली थी , पर काव्या के लिए उसके बाबा का मान- सम्मान बहुत बड़ा था । काव्या ने तभी प्रयाग का गिरेबान पकड़ा और कहा …..ये मत समझना मैं तुम्हारी पत्नी हूँ ,तो मेरा किसी से कोई रिश्ता नहीं है । तुम से पहले मेरे बाबा के साथ जो प्यार मान -सम्मान का मज़बूत रिश्ता है । तुम तो उस दहलीज़ के पास भी नहीं आते । ये मत भूलो …. मैंने सिर्फ़ पहलवानी करना छोड़ा है , दांव – पेंच आज भी आते है । ऐसा ना हो कि आज कहीं इस अपमान के बदले तुम्हारे हाथ पैर टूट जाए । इसलिए अच्छा है तुम यहाँ से चलें जाओ ।

प्रयाग ने थोड़ी देर बाद राहत की सांस ली और बोला मैं क्यों जाऊ ?? ये मेरा घर है , जाना है तो तुम जाओ । यें सुन वो अपने बाबा के साथ अपने घर आ गई ।लेकिन अब काव्या ने अपने सपनों को फिर से जीना सीख लिया था । आज जब भी वो रिंग के अंदर लड़ने जाती तो अपने बाबा के साहस से दुगना साहस पा हर जीत को पा लेती । आज भी प्रयाग और काव्या का तलाक़ का मुक़दमा चल रहा है , पर अब काव्या की बस इतनी शर्त है कि अगर प्रयाग को अब मुझे अपनाना है तो मेरे बाबा का मान उन्हें लौटाना होगा और मुझें मेरी सोच मेरे सपनों के साथ अपनाना पड़ेगा , नहीं तो मैं आज भी अपने बाबा की बेटी उनका मान हूँ ।

#वाक्य प्रतियोगिता

मैं आपकी पत्नी ही नहीं ,किसी की बेटी भी हूँ

स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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