Moral Stories in Hindi : सोमेश एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाला एक मामूली मुलाजिम है। उसकी आमदनी सीमित है। परिवार में उसकी पत्नी ज्योति और दो बेटियां नैना और प्रिया है। मध्यमवर्गीय परिवारों में आर्थिक समस्या चलती ही रहती हैं। सोमेश दोनों बेटियों से भी थोड़ा कटा-कटा सा रहता था। वह सोचता अगर उसके बेटा होता तो उसके बुढ़ापे में उसका सहारा बनता। उसे भगवान से #शिकायत रहती कि उसके दो बेटियांँ क्यों हो गई?
उसे लगता कि उसके जीवन पर बोझ बढ़ गया है। उसकी चाहत थी की कम से कम एक बेटा तो उसके हो ही जाता। समय चाहे कितना भी परिवर्तनशील क्यों ना हो गया हो संकुचित मानसिकता के लोग समाज में अब भी विद्यमान हैं।
सोमेश सोचता बेटियों का क्या है? यह तो एक दिन विवाह कर पराए घर चली जाएंगी। साथ में उसे इनके विवाह शादी में दान -दहेज भी देना पड़ेगा। इन्हीं बातों के चलते वह बच्चियों से लगाव कम रखता।
नैना और प्रिया दोनों बहुत प्यारी बच्चियां थी। पढ़ाई लिखाई व खेलकूद मैं भी बहुत होशियार थी। समझदार भी बहुत थी। अपनी मम्मी को कभी परेशान नहीं करती। साथ में घर के कामों में भी उनका हाथ बंटाया करती थी।
बच्चियों से पूरे घर में रौनक रहती है। शाम को जब सोमेश घर आता तो बच्चियाँ उससे चिपट जाती, लेकिन सोमेश का रवैया कुछ उखड़ा हुआ सा ही रहता।
एक दिन सोमेश की पत्नी ज्योति अपनी अपनी छोटी बेटी प्रिया को लेकर अपने मायके जाती हैं। बड़ी बेटी नैना घर पर ही रह जाती है। शाम को सोमेश दफ्तर से घर लौटता है। उसकी तबीयत कुछ नासाज़ थी।
घर आते हैं ही वह बिस्तर पर लुढ़क जाता है। बेहोश सा हो जाता है।
नैना घबरा जाती है। वह पापा का सर छूकर देखती है। पापा का शरीर भट्टी सा तप रहा होता है। नैना तुरंत गीले रुमाल की पट्टी पापा के सिर पर रखती है। पास में ही बैठकर बार-बार पट्टी बदलती है। अपनी मम्मी को कॉल करके दवाइयों की जानकारी लेती है। उसकी मम्मी रात को अचानक से घर वापस नहीं आ सकती थी। इसलिए नैना ने ही दवाई के डिब्बे में से दवाइयाँ लेकर अपने पापा को खिला देती हैं। बच्चे अगर शिक्षित हो तो कितना सहारा बनते हैं। इसलिए ही तो कहा जाता है चाहे दो रोटी कम खा ले पर अपने बच्चों को सभी पढ़ा ले। विशेष तौर पर बेटियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए। क्योंकि बेटियों के हाथों में दो-दो घरों की बागडोर होती है।
सुबह सोमेश की आंख खुलती है। अब उसका बुखार उतर जाता है। वह बेहतर महसूस करता है। सोमेश अचंभित हो जाता है कि नैना उसके पलंग के बराबर में ही सोई पड़ी होती हैं। गीले रुमाल की पट्टियां और दवाइयों का डिब्बा देखकर उसको सारा माजरा समझ आ जाता है। उसे पता चलता है कि नैना ने रात भर उसकी कितनी सेवा की हैं। अगर नैना उसका इलाज नहीं करती तो क्या पता उसकी क्या हालत होती ?
सोमेश नीचे पड़ी नैना को उठाकर गोद में भरता है। उसको सही से पलंग पर सुलाता है। आज उसे एहसास होता है की बेटी-एक आत्मानुभूति है। और उसे फक्र होता है अपनी किस्मत पर कि परमात्मा ने उसे दो-दो नेमतों से नवाजा है। आज उसकी#शिकायत खत्म हो जाती है।
पिता और पुत्री का रिश्ता बहुत ही प्यारा होता है। यह दिल के सबसे करीब होता है। माता तो अपनी बेटी पर लाड़ जताकर बता देती है, लेकिन पिता नहीं कह पाते कि उन्हें अपनी बेटी कितनी अज़ीज़ होती हैं। विदाई के समय भी या तो पिता बिल्कुल मौन हो जाते हैं या बह जाता है आंसुओं का सैलाब। उस समय बहुत से लोगों से बेटी के पिता के संबंध में यह भी कहते हुए सुना जाता है कि “आज उनकी आंखों में आंसू कैसे हैं यह तो बड़े कठोर व्यक्ति हैं”।
कठोरता का आवरण औढ़ते पिता का हृदय भी द्रवित हो जाता है अपनी बेटी की विदाई के समय। बहुत खुश नसीब है वह माता-पिता जिनके घर आंगन में जन्म लेती है बेटियाँ।
पलती है बेटियांँ, खिलखिलाती है बेटियाँ।
कभी भी बोझ नहीं होती है बेटियाँ।
अपने हिस्से का भाग्य साथ लाती है बेटियाँ।
अगर मौका मिले तो नभ तक की भी उड़ान भर जाएगी बेटियांँ।
सभी बेटियों को समर्पित मेरी यह कहानी
#सर्वाधिक सुरक्षित
#शिकायत
स्वरचित मौलिक
प्राची लेखिका
खुर्जा उत्तर प्रदेश