बेटी बनाम बहू – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

यदि हर सास अपनी बहू को एक साधारण इंसान समझ ले जिसको दर्द होता है,थकती है, भूख-प्यास लगती है,कड़वी बातों से उसका स्वाभिमान  चोटिल होता है, वह भी हाड मांस की बनी इंसान है कोई रोबोट या मशीन  नहीं जो केवल चौबीस घंटे काम करती  रहेगी।सुबह पाँच बजे से उठकर रात ग्यारह  बजना तो मामूली बात है ।दिन भर चकर घिन्नी कीँ तरह एक पैर पर हर किसी की फरमाइश पूरी करने के लिए  दौड़ती  रहती है।

क्या किसी के मन में यह भाव उत्पन्न होता है कि उससे दो बोल  प्यार से बोल लें। कुछ उसके कामों की प्रशंसा कर दें।उसका पति सुबह  एक कप चाय ही बना कर दे दे तो  उसे पूरे दिन का टॉनिक मिल जाए यह सोचकर कि  किसी को तो  मेरी  परवाह है। यह उसके लिए ग्रीसिंग का कार्य करेगा। कभी  सास या नन्द उसे प्यार से अपने साथ  बिठाकर नाश्ता करने को कह दे। त्योहार के दिन , छुट्टी वाले दिन उसकी डबल ड्यूटी हो जाती है

अलग-अलग फरमाइश का नाश्ता , खाना बनाओ।सब खा रहे हैं इंज्वॉय कर  हैं वह अकेली  किचन में लगी है  बना कर देने के लिए। कोई उसका हाथ बंटा दे,थोडी ही मदद बहुत होती है तो वह  भी सबके साथ  बैठ कर खाने का बोलने का आंनद ले सकती है।

यदि सास बहु का दुख समझ ले तो  किसी माँ को अपनी बेटी की चिन्ता नहीं रहेगी। क्योंकि  हर बेटी किसी की बहू है जब बहू खुश है तो हर मां की  बेटी खुश है। किन्तु  ऐसा होता नहीं है।औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती है। इस  मामले में घर के मर्दों का ज्यादा लेना देना नहीं होता। कुछ अपवादों को छोड़कर।

सास को अपनी बेटी की चिन्ता रहती है कि उसकी सास उनकी बेटी के साथ कैसा व्यवहार  कर रही होंगी और खुद वहीं बहु के साथ अमानवीय व्यवहार करती हैं। समझ नहीं आता कि एक ही औरत का दिल दो तरह से कैसे सोचता है।माँ के रूप में अपनी बेटी की चिन्ता है किन्तु सास के रूप में वह दूसरे की बेटी है सोच कर कठोर हैं ।दो प्रकार के विचार एक साथ लाने भी बहुत ही चतुराई का काम है।

भयंकर  सर्दी पड़ रही है सब रजाई में दुबके बैठे हैं। केवल बहू ही है जिसे सर्दी नहीं लगती वह किचन से हरेक के कमरे में दौड़-दौड़ कर कभी चाय, दूध कभी नाश्ता-खाना पहुंचा रही है। सब इतने पत्थर  दिल कैसे हो जाते हैं जो कोई भी नहीं सोचता कि कुछ उसकी मदद कर दें तो वह भी जल्दी काम से मुक्ति पा रजाई में दुबक ले। सास उम्रदराज है पर ननद वह तो भाभी  के समान ही है माँ को बेटी की चिन्ता है मत निकल बाहर ठंड

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खा जायेगी। कमरे से ही आवाज देती हैं  नीरू जरा सब्जी और ले आना। सब्जी लाने पर तूने  रायता कम कम डाला है और ले आ रायता लाने पर  भाभी  पापड़ और सेंक लायेंगी । पापा बोले परांठा ओर ले आओ बहू । उसका पति बैठा देख रहा है कि वह कैसे भाग रही है किन्तु  इतना नहीं बनता कि उठ कर लाने में ही मदद कर दे। यह करते ही, वह जोरू का गुलाम हो जाएगा। पर यहि मां जो बेटे को जोरू का गुलाम कहती हैं

वही बडे ही फख्र के साथ कहती हैं हमारे दामाद तो बेटी का बहुत ही ख्याल रखते हैं। काम में बहुत मदद कर देते हैं ,अब उसकी माँ के लिए यही दामाद जोरू का गुलाम है ।क्या करें इस गुत्थी को कैसे सुलझाया जाए। बस एक ही उपाय है कि हर मां अपनी बेटी की चिन्ता छोड केवल बहू की चिन्ता करे उसकी बेटी अपने आप सुखी हो जाएगी। क्योंकि हर बेटी  किसी की  बहू है। जब हर  बहू खुश, सुखी होगी तब कौनसी  बेटी दुखी रहेगी। 

सब नजरिए का खेल है बहू और बेटी एक

ही माया है कोई किसी की बेटी है तो वही किसी की बहू भी है।मन से इस भेद को मिटा दें तो न जाने कितनी बेटियां  जो गृह क्लेश से परेशान हो मौत को गले लगा लेती हैं वे बच जाएं। यदि  दहेज का लालच मन से मिटा दें  तो कितनी बेटियां जो दहेज रूपी बलीवेदी पर बली चढ़ा दी जाती हैं जीवित रह जीवन का सुख भोग सकती हैं। बॉझ होने का ताना  न देकर विकल्प अपनायें। काम नहीं आता माँ ने कुछ नहीं सिखाया यह कह कर उसकी आत्मा को आहत ना कर मां बन खुद ही काम सिखा दें। 

देखिए ऐसा होने पर जीवन कितना आनंदित हो जाएगा। यहाँ एक बात और कह‌ना चाहूँगी सब लोग एक जैसे  नहीं होते अप‌वाद सब जगह होते हैं ।कभी-कभी बहू भी गलत होती हैं। 

बेटियां भी मायके की तरह यदि  ससुराल और  यहाँ के रिश्तों  को स्नेहपूर्वक अपनाऐं तो देखेंगी सब अपने ही लगेगें।

बस  बेटियों और बहूओं का फर्क छोडकर प्यार से उन्हें अपनाए , कमी है तो दूर करने की कोशिश करें। बहूएं  भी बेटियां ही लगने लगेंगी। हर मां  की चिन्ता बेटी के प्रति दूर हो जाएगी।

शिव कुमारी शुक्ला 

17-9-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

ससुराल में बेटी की चिन्ता होती है *****बहू दूसरे की बेटी है

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