बेटी बना कर रखूंगी – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

कहते हैं  ताली एक हाथ से नहीं बजती, दोनों हाथों का उपयोग करना जरूरी होता है ठीक वैसे ही सिर्फ बहू से ही बेटी बनने की उम्मीद करना एक असफल प्रयास है क्योंकि जब तक पूरा परिवार उसे बेटी नहीं  मान लेगाऔर बेटी के समान ही उससे व्यवहार नहीं करेगा तब तक बहु-बहु ही रहेगी बेटी कभी नहीं बन सकती।

 आइए आपको एक परिवार से मिलवाती हूं जिसकी  कथनी और करनी में जमीन आसमान का फर्क है।  कहने को तो वे बहु से यहि कहते हैं कि तुम तो  हमारी बेटी हो। किन्तु अब यदि उनके व्यवहार पर  गौर करें तो आप शीघ्र हीं समझ पायेंगे कि केवल  दिखावे भर को वह बेटी है।

स्वधा की शादी  एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुई थी।  वह स्वयं  भी ऐसे ही परिवेश से आती थी। सो स्तर लगभग समान ही था। ससुराल में  पति सचिन के अलावा उसके माता-पिता एवं एक छोटा  भाई और बहिन थे। बहुत बड़ा परिवार नहीं था।सासुर भी जॉब कर रहे थे, बिजली विभाग में लेखाकार  के पद पर कार्यरत थे।

सास  गृहिणी थीं  छोटा भाई कालेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था, एवं बहन बारहवीं कक्षा की छात्रा थी। सचिन RAS अधिकारी   के बतौर कार्यरत था। स्वधा ने M.com किया हुआ था  सो वह भी नौकरी करना चाहती थी । सचिन को तो  कोई आपत्ति नहीं थी किन्तु उसकी माँ ने यह कह कर  मना कर दिया कि घर की जिम्मेदारी अब मुझसे  नहीं सम्हलेगी। बहू नौकरी पर जायेगी तो पीछे काम कौन करेगा। 

पहला प्रहार उसकी इच्छा कुछ बनने की अपनी पहचान बनाने पर किया गया। वह मन मार कर रह गई।  

कहने को तो सास विमलाजी दसीयों बार कहतीं कि स्वधा तू मेरी बेटी है,पर उनका

एक भी आचरण ऐसा नहीं था जो उनके कहे वाक्य को सही साबित कर सके।   बेटी  प्रज्ञा सुबह आठ बजे तक सोकर  उठती और फिर स्कूल जाने की हडबडी मचाती, मेरा  टिफिन, मेरे  कपड़े  भाभी प्रेस कर दें  मैं  नहा कर आ रही हूँ। आठ बजे तक परिवार के  अन्य सदस्य चाय नाश्ता कर लेते थे।

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जैसे प्रज्ञा उठती विमला जी स्वधा को आवाज लगातीं जा जरा जल्दी से चाय नाश्ता ले आ  प्रज्ञा को भूख लगी होगी। कभी भूले से भी स्वधा से नहीं पूछतीं कि तुमने चाय नाश्ता किया है या नहीं। काम के चककर में  भाग -भाग कर कई बार उसे समय ही नहीं मिलता  नाश्ता करने का चलते फिरते चाय का कप ले  काम करते-करते पीती।

इसी तरह देवर के नखरे उठाना , भाभी  लेट हो रहा है, आप प्लीज मेरी शर्ट प्रेस करदें, मेरी ये बुक्स व्यवस्थित कर दें। आज  मेरे दो दोस्तों का नाश्ता भी बना लें वगैरह बगैरह । ससुर और सचिन  के ऑफिस निकलने  तक वह इसी तरह एक पैर पर नाचती रहती ।उनके जाने तक विमला जी नहा धोकर पूजा करने को तैयार हो जाती।

अब उनके पूजा स्थल की सफाई, फूल तोड ला, घी पिघला दे । एक कप चाय पीने का मन है और बना दे जैसे कार्यो में उसे उलझा देतीं। उसके खाने-पीने की उन्हें कभी  चिन्ता नहीं होती  क्या एक बेटी से ऐसे ही काम करवाया जाता है स्वधा मन ही मन सोचती ।  कहतीं तो है कि बेटी हूँ किन्तु बेटी छोड़ बहू बनने का भी हक नहीं मिला केवल बिना पगार की चौबीसों घंटे की नौकरानी हूं।

स्कूल से आने पर बेटी का लाड लडाती उसके पास बैठकर खाना  खिलाती और स्वधा दौड़-दौड़ कर गर्म रोटी लाती, कभी सब्जी, कभी रायता, कभी पापड । तब स्वधा सोचती कि मैं किस तरह की बेटी हूं जिससे मम्मी जी कभी यह भी नहीं पूछतीं कि तुमने खाना खा लिया या तुम्हें क्या पंसद है। यही सब सोचते-सोचते  वह जल्दी -जल्दी  हाथ चलाने लगी

पूजा से उठते ही विमला जी  को खाना  चाहिये। शाम को सबके लौटने पर फिर चाय-नाश्ता, खाना, दूध एक एक के कमरे में पहुंचाना, कभी चाय के साथ स्पेशल फरमाइश पकौड़े हो जायें। यही सब करते करते रात के  ग्यारह बज जाते। अभी नई शादी हुई थी केवल पाँच माह ही तो हुए थे पति के पास बैठने ,दो पल बात करने का समय भी नहीं मिलता ।

कभी छुट्टी वाले दिन सचिन बाहर चलने को कहता तो मम्मी जी कुछ न कुछ बाहना बना कर उसे जाने से रोक लेतीं। कभी सचिन मूवी जाने की कहता तो बहन को साथ भेज देतीं। स्वधा को अपनी सास का व्यवहार  समझ नहीं आ रहा था। सचिन भी न जाने का गुस्सा उसी पर निकालता पर वह क्या करे। इतना कर के भी तो वह बेटी नहीं बन पाई ।

उसकी स्थिती को सचिन समझ रहा था किन्तु माँ का लिहाज करके चुप रह जाता किन्तु  स्वधा के लिए दुखी होता।उसके पापा सुदेश जी भी बहू की हालत देख खुश नहीं थे किन्तु गृह क्लेश से बचने के लिए वे भी  चुप लगा जाते। किन्तु अब पानी सिर से ऊपर निकल रहा था।विमला जी का व्यवहार उन्हें कचौट रहा था वे बहू स्वधा के लिए चिन्तीत रहने लगे।

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तभी एक दिन घर में मेहमान आये थे। उनको चाय नाश्ता कराते फिर  खाना बनाते स्वधा को नाश्ता तक करने का समय नहीं मिला। उसे चक्कर आने लगे और वह  किचन में ही  सबके लिए  खाना ले जाते गिर पड़ी। 

अब तो सब हड़बड़ा गये। सचिन उसे उठाकर  कमरे में ले गया।

उसके ससुर ने  तुरन्त गाडी निकाली और सचिन से बोले बेटा जल्दी कर गाडी में लिटा डाकटर  के पास चलते हैं।

विमला जी बोलीं अरे कुछ नहीं हुआ है वो तो काम से बचने के लिये बाहना कर रही है। सुदेश जी ने जलती आँखों से उन्हें घूरा और गुस्से से बोले तुम चुप रहोगी।

चेक अप के बाद डाक्टर ने कहा बहुत अधिक कमजोरी, भूख की वजह से चक्कर आ गया चिन्ता की बात नहीं है । हां आप इनके  आराम का पूरा ध्यान रखें बहुत कमजोर हैं । खाने-पीने का विशेष ध्यान रखें अन्यथा समस्या हो सकती है। घर आते ही सचिन ने उसे कमरे में ले जाकर  लिटा दिया और बोला उठोगी नहीं। वह खाना लेकर आया खाना खिलाया और सोने का बोल चला गया।

उसके बाहर आते ही विमला जी बोलीं जरा सा चक्कर क्या आ गया तू तो उसकी सेवा में जुट गया। 

 हां मां वह भी तो भूखी-प्यासी रह इतने दिनों से हमारी सेवा में जुटी है तभी तो उसकी यह हालत हो गई।  

तू कहना क्या चाहता है।

मैं बताता हूं क्या कहना चाहता है आज सुदेश जी को स्वधा के लिए बहुत बुरा लग रहा था ।बोले क्या कहकर आईं थीं तुम समधन जी से बेटी बनाकर रखूंगी ,ऐसे बेटी बनाया कि उसकी जान पर ही आ पडी। क्या  मुँह दिखाओगी उसके माता-पिता को यदि आज उसे कुछ हो जाता। कैसी फूल सी हंसती ,मुस्कुराती बच्ची आई थी अपना सब कुछ छोड कर हमारे भरोसे उसकी तुमने क्या हालत बना दी। अभी तुम इतनी बूढ़ी नहीं

हो कि घर के काम न कर सको। पांच महीने पहले तुम  पूरा घर सम्हालती थीं अब क्या हो गया जो तुमने सारा काम उसके नाजुक कन्धों पर डाल दिया। तुम उसके साथ मिलकर भी तो काम कर सकती थीं। सास बनते ही तुम बुढा गईं। सोच लो तुम भी एक बेटी की माँ हो।

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अभी तो  उसे एक ग्लास पानी भी हाथ में चाहिये जब उसकी सास भी उसके साथ तुम्हारा जैसा व्यवहार  करेगी तब तुम्हें कैसा  लगेगा। जैसा कर रही हो वैसा ही पाओगी। तब दुखी मत होना । आज से या तो तुम अपना व्यवहार बदल लो  नहीं तो मत कहना कि बेटा पत्नी के आते ही बदल गया। 

प्रज्ञा, नितिन तुम दोनों आज से आपनी भाभी से किसी काम के लिए नहीं बोलोगे खुद करो अपना काम ।

सचिन तूने शादी की है तो पत्नी का ध्यान रखना भी सीख ।यदि इस घर में उसे सम्मानीत जीवन नहीं मिल रहा है  तो अलग हो जा उसे लेकर जहाँ वह सकून से जी सकें ।

 विमला तुम अभी तक जैसे करती आईं थीं  वैसे ही घर का  काम तुम सम्हलोगी। अभी स्वधा पूरा आराम करेगी ।  बेटी मानती हो न तो समझ लो बेटी बीमार है।  

वह तो बेटी बनते-बनते इस हालत पर पहुंच गई किन्तु  तुम उसे अपनी बेटी नहीं बना पाईं। पूरी उम्मीद बहू से ही क्यों हम क्यों नहीं उसे बेटी बनने में मदद करें।

 विमला जी सोच रही थीं कि अपना व्यवहार बदलने में ही  भलाई है, यदि सचिन उसे ले अलग हो गया तो बदनामी  भी होगी कि पाँच महिने में ही बेटा-बहु अलग हो गये ।सब मुझे ही दोष देंगे कि सास नहीं निभा पाई और जो काम में थोडी बहुत मदद मिलेगी उससे भी जाऊँगी। अतः  अपने हाथ प्यार से उसकी ओर बढाने में ही भलाई  है। अब घर का वातावरण बदल चुका था। स्वधा को भी  राहत मिली। वह भी हंसी खुशी रहने लगी।

शिव कुमारी शुक्ला

7-10-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

वाक्य*** सिर्फ बहू से बेटी बनने की उम्मीद क्यों

VM

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