दो साल की छोटी सी मोनू का उंगली पकड़े सोनल चली जा रही थी विचारों में गुमशुम । क्या है एक बेटी का जीवन क्यों शादी होते ही वो घर पराया हो जाता है
जहां वो पैदा हुईं,खेली खाई बचपन बीता , मां बाप के साए में महफूज रही कोई तकलीफ़ नहीं । क्यों इतनी जल्दी सब पराये हो जाते हैं ।सात फेरे होते ही क्यों सब पराया हो जाता है। है ईश्वर तूने बेटी जात को क्यों इतना मज़बूर बनाया है दो दो घर देकर भी बेघर ही रखा।
सोनल सोचने लगी क्या सोचकर आई थी मां के पास ,कम से कम बेटी का दुख दर्द समझेगी मां , पर ऐसा नहीं हुआ मां ने तो साफ़ साफ़ ही कह दिया कि बेटी अब तेरी शादी हो गई है । अच्छा बुरा जैसा भी है अब ससुराल ही तेरा घर है मायका नहीं। बेटी मायके के लिए तो तू पराई हो गई है।
अभी नया-नया है ससुराल भाई साल ही तो हुए हैं । वहां के लोगों का व्यवहार , स्वभाव और वहां के तौर तरीके सीखने में समय लगेगा बेटा , अभी तेरी शादी के हुए ही कितने साल है। धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा। यहां मायके में तू कब तक रहेगी तेरे इस तरह से ससुराल छोड़कर आ जाने
से तेरी छोटी बहन पर भी असर पड़ेगा।और तेरी भाभी , भाभी तो बस ताने मारेगी। इसलिए बेटा ससुराल को ही अपना घर बनाने की कोशिश कर ।जा वापस चली जा अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा है । ज्यादा लम्बी बात खींच जाती है तो संभालना मुश्किल हो जाता है।
सोनल ससुराल से तंग होकर आज मम्मी के पास आई थी ।ये पहली बार नहीं आई थी दो बार और झगड़कर गौरव से आई थी फिर गौरव आकर ले गया था ।हर बार मम्मी समझा बुझाकर वापस भेज देती थी । लेकिन आज तो हद हो गई थी गौरव ने सोनल पर हाथ उठा दिया था बस इसी गुस्से में सोनल ने थोड़ी पैकिंग की और मोनू का हाथ पकड़ा और चली आई थी मम्मी के पास।
मम्मी के गले लगकर सोनल ज़ोर ज़ोर से रोने लगी थी ।उसे रोता देखकर छोटी मोनू भी रोने लगी । क्या हुआ बेटा सोनल मम्मी ने पूछा तो सोनल रोते-रोते बताने लगी आज गौरव ने मुझपर हाथ उठाया मम्मी । अच्छा तूने कुछ किया होगा नहीं मैंने कुछ नहीं किया ।
नहीं बेटा ऐसा नहीं हो सकता। कोई इंसान बेमतलब में ही थोड़े न हाथ उठाऐगा। हां मम्मी आज मैं थोड़ा देर से सोकर उठी थी तो गौरव का लंच बॉक्स बनाने में देर हो गई तो गौरव ने भी डांटा और सासू मां ने कहा जब पता है
कि नौ बजे गौरव को लंच बॉक्स चाहिए तो जल्दी क्यों नहीं उठती तो मैंने भी सासू मां से कह दिया देर हो गई मुझे तो आप ही बना देती ख़ाना आपका बेटा नहीं है क्या । सिर्फ मेरी ही जिम्मेदारी थोड़े ही है। इसी बात पर गौरव ने थप्पड़ मार दिया कि मां को जवाब देती है ।
बस मैने गुस्से में अपना सामान उठाया और मोनू का हाथ पकड़ा और आ गई तुम्हारे पास ।अब मैं नहीं जाऊंगी उस घर में।
नहीं बेटा ऐसा नहीं कहते वो घर तुम्हारा है । तुम्हें ब्याह कर लें गए हैं उस घर में । दूसरे घर के रीति-रिवाज और दिनचर्या और लोगों का स्वभाव समझने में समय लगता है बेटा। आखिर में बाद में वो घर और सबकुछ तुम्हारा ही तो है ।
और तुम उस घर की मालकिन । धीरे धीरे सबकुछ तुम अपने हिसाब से कर लेना । किसी चीज को अपना बनाने के लिए मेहनत और जद्दोजहद तो करनी ही पड़ती है न। कुछ भी इतनी आसानी से हासिल नहीं होता है। कोई भी मंजिल पाने के लिए मेहनत तो करनी ही पड़ती है।
तुम भी अपनी जिम्मेदारी समझों उस घर को अपना समझों । अपने व्यवहार से सबका दिल जीतने की कोशिश करो । फिर क्या, कोई इंसान इतना पत्थर दिल नहीं होता जो न बदले। धीरे धीरे ससुराल वालों को भी पता चल जाती है एक बहू की अहमियत।
लेकिन मम्मी तुम तो भाभी के साथ ऐसा नहीं करती हो ।सबका स्वभाव एक सा नहीं होता है फर्क होता है कोई धर्म तो कोई गर्म ।अब तेरी भाभी सारी जिम्मेदारी बखूबी निभाती है मुझे कुछ कहने का मौका ही नहीं देती है । बेटा जो तुम मुझे इस घर की मालकिन समझ रही हो न इसको पाने के लिए तेरी दादी से और तेरे पापा से बहुत से ताने सुनने है हमने।
बहुत बातें सुनी है मेरे मां बाप को भी सुनाया जाता था सब सुना है मैंने तब जाकर आज यहां तक पहुंची हूं।
तुम्हारी नानी तो हम लोगों को बांट देती थी कि अपने ससुराल की बातें यहां मायके में आकर नहीं कहा करों। तुम्हारी भाभी सुनती है तो वो भी यहां की बात जाकर अपने मायके में कहेगी । नानी कहती थी कि अब ससुराल ही तुम्हारा घर है
वहां की बेइज्जती तुम्हारी बेजजती होगी। वहां कैसे रहना है कैसे सबके संग अजेसट करना है ये तुम्हारा काम है । यहां बार बार और बात बात में मायके आने की जरूरत नहीं है। हां हंसी खुशी से दो-चार दिन को तो आ सकती है लेकिन लड़ झगड़ कर तो बिल्कुल भी नहीं ।समझी सोनल बेटा , हां मम्मी।
विचारों के झंझावात से सोनल बाहर निकलीं जम मोनू ने अपनी तोतली बोली में बोली मम्मा मम्मा वो आ गया अपना घर।और गौरव घर के बाहर ही ठेले से सब्जी खरीद रहा था मोनू दौड़कर लिपट गई पापा, पापा अरे आ गई मेरी गुड़िया ।
सोनल चुप चाप वहीं खड़ी रही । फिर धीरे से बोली सारी गौरव , गौरव बोला अच्छा ठीक है अंदर चलो घर तुम्हारा है ।और मोनू को गोद में उठाए एक हाथ से सोनल का हाथ पकड़ा और अंदर ले आया । सोनल ने जाकर सासू मां के पांव छूए ।
कुछ भी पुरानी बातों को न उखाड़कर सब शांत रहे । सोनल को अपनी ग़लती का अहसास हो गया था इस बात पर सब मन ही मन खुश हो रहे थे ।
घर में एक बार फिर खुशियां लौट आई थी । मोनू की तोतली बोली से सब खिलखिला कर हंस रहे थे ।
धन्यवाद
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
#बेटी अब से ससुराल ही तेरा घर है अब तो तू यहाँ की मेहमान है