बेटा ससुराल को करता बुरा क्यों लगता… –  रश्मि प्रकाश   : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  “ देखो तुम्हारी चिंता तो जायज है, पर ये भी तो समझो ना वो भी अब उसका ही परिवार है….. सरला अपने बच्चे पर भरोसा रखो….एक तो तुम्हारी वो बेकार सी सहेलियाँ जाने क्या पटी पढ़ा जाती तुम्हें और तुम बस चिन्ता में मरी जाती हो…. अरे अपने दिए संस्कार पर भरोसा तो रखो…कल को कहीं इस बात का पता बेटे को चला तो कही वो ही ना कह दे पता नहीं किस जमाने में जी रही है आप…. जब तुमने ही बहू के साथ बेटे से कहा ही है कि वो घर भी तेरा ही है और वहाँ की ज़िम्मेदारी भी तो फिर बेकार की चिंता कर अपना बीपी मत बढ़ाओ… ।”गगन जी पत्नी को परेशान देख बोले

“ आप नहीं समझ रहे हैं जी…. देख लेना एक दिन निकुंज हमारा नहीं उनका बेटा बन कर रह जाएगा…चलिए आप खाना खा लीजिए मुझे भूख नहीं है।” कह ख़्यालों में खोई सी सरला जी पति गगन जी को खाना परोसने लगी

“ ये औरतें भी ना जाने क्यों दोस्तों की बात पर आँख बंद कर भरोसा कर लेती है… सबके बच्चे एक जैसे नहीं होते ये बात सरला को कैसे समझाऊँ?” मन ही मन रोटी का टुकड़ा मुँह में डालते गगन जी सोच रहे थे 

“ सरला तुम भी थोड़ा खा लो…. ऐसे भूखे पेट एसिडिटी होगी सो अलग ।” चिंतित पत्नी को पास की कुर्सी पर बिठा कर हाथों से निवाला खिलाने की कोशिश करते गगन जी ने कहा 

“ पता नहीं एक ही बेटा है मेरा अगर वो भी….. मैं सच कहती हूँ जी  जीते जी मर जाऊँगी ।” कह वहाँ से उठ सरला जी कमरे में जाकर सोने की कोशिश करने लगी 

कानों में बार बार दोस्त कस्तूरी की बात गूंज रही थी… देखना गया तेरा बेटा भी अब तेरे हाथ से……

सोच ही रही थी कि मोबाइल की घंटी बजी देखा तो बेटे निकुंज का फ़ोन था

“ हैलो ” सरला जी ने कहा

“ क्या हुआ माँ इतने मद्धिम स्वर में बोल रही हो तबियत ठीक नहीं है क्या ?” निकुंज ने पूछा 

“ नहीं नहीं ठीक हूँ ।” आवाज़ दुरुस्त कर सरला जी बोली 

” अच्छा सुनो कल राशि के पैरेंट्स के घर जाना…. कुछ लेकर जाना होगा क्या….. पहली बार यहाँ से जा रहा हूँ तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है ….वहाँ से तो तुम पता नहीं क्या क्या  थमा देती थी ।” निकुंज ने जैसे ही बोला सरला जी की रही सही चिन्ता सच में बदलती नज़र आने लगी

“ सही है बेटा यहाँ आने का वक़्त नहीं मिलता ससुराल जाने का बहुत मन कर रहा तेरा…. चल जा ही रहा है तो ख़ाली हाथ क्या जाएगा…. गगन जी का बेटा है वो भी इतनी अच्छी कंपनी में काम करता है…. अच्छे से मिठाई फल लेकर जाना।” कह सरला जी ने फ़ोन रख दिया 

उधर निकुंज सोचने लगा ये मम्मी को क्या हुआ ऐसे क्यों बोल रही उसने फटाफट से पापा को फोन लगा दिया…

” हैलो पापा ये मम्मी को क्या हुआ है…. उखड़ी उखड़ी सी थी मुझसे बात भी ठीक से नहीं किया ।” परेशान हो निकुंज ने पूछा 

“ अरे कुछ नहीं …जानते तो हो अपनी माँ को कोई कुछ कह देगा बस दिल पर ले चिन्ता में डूब जाती।” गगन जी समझा बुझा कर फ़ोन रख दिए 

खाकर कमरे में गए तो सरला जी  रो रही थी ।

“ सरला बेटा है वो तुम्हारा…. तुम्हारा ही कहलाएगा…. और क्यों उससे ठीक से बात नहीं की …. मुझे पूछ रहा क्या हुआ मम्मी को … हो गया ना वो भी परेशान…।” गगन जी ग़ुस्सा करते हुए बोले

“ ये सही है तुम्हारा जब मैं ससुराल में करता तो बहुत अच्छा दामाद , सरला का पति कितना अच्छा है सुनकर बहुत ख़ुशी होती थी … पर आज बेटा ससुराल वाले शहर क्या रहने गया तुम्हें तकलीफ़ हो रही है…. वो पहले से ही वहाँ नौकरी कर रहा था…. अब राशि का मायका वही है तो उसकी क्या गलती…. तुम्हें तो तब बहुत अच्छा लगा कि बेटा इतनी बड़ी कम्पनी में  नौकरी करने गया  है तब उस शहर से कोई दिक़्क़त नहीं थी अब वो शहर ख़राब नजर आ रहा है?”गगन जी ने कहा 

” आप नहीं समझेंगे जी…सो जाइए ।” कह सरला जी मुँह फेर कर सो गई

समय गुजर रहा था और बेटे को लेकर सरला जी की चिंता भी …. पर बेटे से कुछ कह भी नहीं सकती थी…. सलाह भी तो खुद ही देती थी दोनों घर को अपना समझ कर चलना…. जब बेटा बहू अपने फ़र्ज़ इधर बख़ूबी निभी ही रहे हो …. जब समय मिलता यहाँ आते रहते गगन जी को भी तीन चार दिन की छुट्टी मिलते  ही निकुंज अपने पास बुला लेता… उधर जाते तो राशि के पैरेंट्स हमेशा अपने घर बुला लिया करते… गुजरते वक़्त के साथ सरला जी महसूस करने लगी थी जैसे बहू उनको दिल से अपना मान सब करती…. हर बात का ख़्याल रखती है…अपने माता-पिता के प्रति लापरवाह सी थी…. कहने का मतलब ये है कि जो बहू सास ससुर के रहते समय पर हर चीज़ कर के दे दिया करती मायके जाती तो कुछ नहीं करती ये देख बहुत बार निकुंज कहता भी जाओ मम्मी की मदद करो पर राशि नहीं सुनती तो कितनी बार निकुंज जाकर मदद करने की कोशिश करता दामाद को यूँ मदद करने सास कभी नहीं देती पर वो आग्रह कर के कर दिया करता।

इस बार जब सरला जी बेटे के घर गई तो राशि की माँ उनसे मिलने आई।

राम सलाम के बाद राशि दोनों के लिए चाय नाश्ता लेकर आई और दोनों को बातें करने छोड़ कर चली गई ।

“ आप बहुत क़िस्मत वाली है समधन जी….आप लोगों के पास निकुंज जैसा बेटा है…. जो कभी भी हमें ये एहसास नहीं होने देता की वो हमारा बच्चा नहीं है….. हम तो बहुत भाग्यशाली है जो निकुंज जैसा दामाद मिला बेटी तो थी ही बेटे की जो कमी कभी-कभी खलती थी वो निकुंज ने पूरी कर दी…. इतने अच्छे संस्कार दिए हैं आपने उसे ….तभी वो कभी गुमान नहीं करता वो हमारा इकलौता दामाद है… बस समझिए आपने हमारी बेटी अपना ली बस वैसे ही हमने आपके बेटे को….आपका बहुत शुक्रिया समधन जी।” राशि की मम्मी हाथ जोड़ भावावेश में डूब गई 

“ ये क्या कर रही है समधन जी राशि ने जब हमें इतना मान दिया तो निकुंज क्यों नहीं देगा।” चलिए हम दोनों का परिवार इनसे पूरा हो गया कह सरला जी ने राशि की माँ के हाथ पर हाथ रख अपनापन जताया 

राशि की माँ के चले जाने के बाद गगन जी जो ये सब देख सुन रहे थे सरला जी से बोले,“अब क्या होगा सरला समधन जी ने तुमसे तुम्हारा बेटा छिन लिया….।”कह हँसने लगे

“ ज़्यादा मेरा मज़ाक़ ना बनाइए मैं कितना गलत सोच रही थी जी जब बहू हमें अपना मान सब करती तो बहुत अकड़ में रहते बेटा ससुराल को करता बुरा क्यों लग जाता…. देखा मेरे संस्कार मेरा बेटा कितना भाग्यशाली हैं …दो दो माँ मिल गई उसे…।” सरला जी अपनी वाहवाही करते हुए बोली 

“ और मुझे क्या मिला माँ …?” राशि कमरे में आकर नखरे दिखाते सरला जी से बोली

“ तुम्हें भी तो दो दो माँ मिल गई…।” कह कर वो बहू को गले लगा ली

गगन जी और निकुंज दोनों हँसने लगे।

बहुत बार एक बेटे की माँ को इस बात की चिंता लगी रहती है कि बेटा कहीं ससुराल का होकर ना रह जाए…. बस सरला जी को भी यही चिंता सताए जा रही थी पर अब समझ गई कि जब बहू अपना सब छोड़ ससुराल वालों को अपना सकती है तो दामाद क्यों नहीं…!

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

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#पता नहीं किस जमाने में जी रही है आप

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