“माँ एक कप चाय बना कर दे दो ।” अपने कमरे में काम करते हुए रितेश ने सुभद्रा जी से कहा
“ अभी बनाती हूँ ।” सुभद्रा जी ने कह तो दिया पर आज उनकी हालत ख़राब हो चुकी थी दिन में तारे दिखाई देने लगे थे मन कर रहा था काश मैं चुप ही रह जाती तो क्या बिगड़ जाता
चाय बना कर जब वो रितेश को देने गई तो कुछ देर यूँ ही उसके पास खड़ी हो कर कुछ कहने की कोशिश कर रही थी पर ये भी जानती थी कहीं बेटा नाराज़ ना हो जाए..,फिर भी हिम्मत कर के बोली,” बेटा सुन बहू को बोल देना वो फिर से रम्या को खाना बनाने के लिए रख ले… मैं तो सोच रही थी मैं सब कर सकती हूँ पर अब समझ आया दो दिन में ही मेरी हालत ख़राब हो गई मुझे दिन में तारे दिखाई देने लगे।”
रितेश मन ही मन मुस्कुरा रहा था पर सामने वो चेहरे पर थोड़े क्रोध के भाव लाकर बोला,” माँ निशिता ऑफिस से आकर भी घर पर काम करती थी तब भी तुम उसको सुनाया करती थीं घर का ना काम ठीक से होता ना खाना बनता …उसने सोचा आपको मन पसंद खाना मिल जाए इसलिए कुक रख लिया …
अब आपको कभी उसके खाने में तेल ज़्यादा …तो कभी मिर्ची ….तो कभी नमक तो कभी बेस्वाद कह कर आप उसे ताने देती रहती थी ऐसे में आपने ही तो कहा खाना मैं बना लूँगी बस जब निशिता रहे वो आपकी मदद कर दिया करेगी ….आपके कहने पर ही उसने रम्या को हटा दिया..
वो आपकी मदद की कोशिश भी कर रही थी पर काम की अधिकता में कई बार देर सवेर हो जाता है पर आप खुद ही करने की धुन में रहती अब कह रही है रम्या को बुला लो… वो क्यों फिर से आएगी जब आपको उसके हाथ का खाना ही नहीं पसंद ।”
“ बेटा अब कह दिया सो कह दिया आगे से नहीं कहूँगी बस अब बहू को फ़ोन कर के कह दे रम्या को वापस बुला ले और रात का खाना आज बाहर से आर्डर कर लेना.. मेरे शरीर से अब कोई काम नहीं होगा ।” सुभद्रा जी बोली
तभी दरवाज़े की घंटी बजी निशिता घर आ गई थी साथ ही रम्या भी …
“ माँ मुझे पता था आपसे नहीं हो पाएगा सुबह जाते वक्त ही आपको देख कर समझ गई थी दो दिन में आपके चेहरे की रंगत चली गई थी और उधर से रम्या को फ़ोन कर के आने को कह दिया था ।” निशिता कहते हुए रम्या को रसोई में जाने का इशारा कर दी
“ सही कहा बहू मुझे तो दिन में तारे नज़र आ रहे थे अब रम्या को ज़्यादा नहीं कहूँगी पर तुम उसे कह देना ज़्यादा तेल मसाले ना डाला करें ।” सुभद्रा जी रम्या को तीखी नज़रों से देखते हुए बोली
रितेश और निशिता मुस्कुरा कर रह गए आदत है जाते जाते जाएगी नहीं तो …
बहुत घरों में आज भी औरतों को काम वालियों से बहुत शिकायत रहती है.. ग़ुस्से में जब हटा देती हैं और खुद करना पड़ता है तब दिन में तारे दिखाई देने लगते हैं ऐसा ही सुभद्रा जी के साथ भी हुआ…आपकी नज़र में भी ऐसे लोग होंगे प्रतिक्रिया स्वरूप हमें भी ज़रूर बताएँ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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