बेटा मैं तो तेरा भला ही चाहती हूँ – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ बधाई हो, सुमिता तेरे बेटे की नौकरी लग गई अब तुम्हें किसी की कोई बात सुनने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी ।” वीरेन बाबू ने पत्नी से कहा और मिठाई का डिब्बा उसकी ओर बढ़ा दिया

“ आप ख़ुश हो?” आश्चर्य से सुमिता ने कहा

“हाँ सुमिता आख़िर हमारा बेटा है अपने पैरों पर खड़ा हो गया ये तो अच्छी बात है ना।” वीरेन बाबू ने कहा

“ हाँ जी है तो अच्छी बात पर…. ?” सुमिता जी कुछ कहना चाहती थी पर कह नहीं पाई

“ बोल क्या चल रहा है तेरे मन में…. अब मुझसे भी नहीं कहेंगी तो किससे कहेंगी ?” वीरेन बाबू ने पूछा

“ रितेश माफ कर पाएगा ना मुझे…. बस यही सोच कर थोड़ी परेशान हो रही हूँ ।” सुमिता जी कुछ सोचते हुए बोली

“ तुने कुछ ग़लत नहीं किया है परिस्थितियाँ ऐसी आई कि हमें वो सब करना पड़ा….अब मुँह खोल और लड्डू खा।“ कहते हुए वीरेन बाबू ने ज़बरदस्ती पत्नी के मुँह में लड्डू डाल दिया

 सुमिता जी लड्डू खा तो ली पर ना जाने क्यों उसमें मिठास महसूस ना हुई…. शाम का वक़्त हो चला पति से बोली,“ चलो मंदिर हो आते हैं भगवान को भी हाथ जोड़ आऊँ जो अज उसने हमारी सुन ली।” सुमिता जी पति से बोल तैयार होने चली गई

मंदिर से आकर वो रात के खाने की तैयारी करने गई पर आज हाथ ना चल रहे थे रह रह कर बेटा याद आ रहा था…

“ माँ ये सब ज़बरदस्ती कर रही हो…. मुझे अभी शादी नहीं करनी… पढ़ाई करना है नौकरी करनी है… तुम समझ क्यों नहीं रही हो?” रितेश ने कहा था

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“ बेटा निशिता तुम्हें पसंद तो है ना…. फिर उसकी माँ की बीमारी ऐसी की बचने के कोई उम्मीद नहीं है… उसकी आख़िरी इच्छा है कम से कम बेटी का ब्याह कर दे… निशिता भी पढ़ाई ही कर रही है… बस ब्याह ही तो करना है फिर तुम दोनों अपनी पढ़ाई करते रहना…. कुछ ना बोलूँगी ।” सुमिता जी ने बहुत समझाया था

वीरेन बाबू भी ज़बरदस्ती ब्याह के पक्ष में नहीं थे पर सुमिता जी की सबसे प्यारी सहेली मौत के कगार पर थी और उनकी बेटी को वो अपनी बहू बनाना चाहती थी … कही ना कही रितेश इस बात को जानता भी था पर ब्याह नौकरी कर सेटल होने के बाद ही करना चाहता था कि अचानक पता चला निशिता की माँ को कैंसर है …. इलाज भी चल रहा था पर बचने की उम्मीद ना के बराबर थी वो बस निशिता के ब्याह करने की जल्दी कर रही थी…. सुमिता जी से इस संबंध में बात हुई तो वो बेटे को मना रही थी….. बहुत मान मनौव्वल के बाद रितेश तैयार तो हो गया था पर शर्त भी रख दिया था….. अब घर पर रह कर ना पढ़ाई पूरी करूँगा ना नौकरी….. बहू को रखना हो रखना अपने पास पर …. मुझे शादी के बाद के बंधन में अभी से नहीं बँधना…. सुमिता जी ने हामी भर दी थी

 शादी के बाद…. रितेश निशिता के साथ इस कदर मशगूल होने लगा कि पढ़ाई करना भूलने लगा… घूमना फिरना ज़्यादा करने लगा… वीरेन बाबू की कमाई से घर चल रहा था…. अब निशिता के खर्च भी थे… सुमिता जी महसूस करने लगी रितेश अपने मार्ग से भटक रहा है ।

कुछ समय तक तो सुमिता जी कुछ नहीं बोली…निशिता की माँ की तबियत अब ज़्यादा बिगड़ने लगी तो निशिता अपने मायके चली गई…. रितेश जब तब कहे… निशिता को ले आता हूँ….

सुमिता जी को ये सब देख ग़ुस्सा आ रहा था उन्हें अफ़सोस भी हो रहा था बेटे की शादी करवा कर उसकी ज़िन्दगी कहीं चौपट तो नहीं कर दी…. वो कठोर हो कर रितेश से बोली,“ बेटा ये बार बार तुम निशिता को लाने की बात करते हो… उसके लिए तुम्हें उसके घर जाना होगा…. निशिता के परिवार वालों को पता है कि उनका दामाद पढ़ने में होशियार है कहीं अच्छी जगह नौकरी करेगा तो मेरी बेटी का ख़्याल भी अच्छे से रखेगा…. अब तुम तो पढ़ाई कर नहीं रहे….तुम्हारे पापा कब तक तुम दोनों की ज़िम्मेदारी उठाते रहेंगे….. सोचे हो?”

“ माँ जब मैं मना कर रहा था तो तुमने शादी करवा दी अब मैं इसे निभाना चाहता हूँ तो … तुम मुझे ऐसे बोल रही हो।” रितेश ने ग़ुस्से में कहा

“ मुझे सब याद है बेटा पर तू अपनी बात भूल गया… माना तेरी शादी करवा दी वो मेरी दोस्त की ज़िन्दगी अब तब में है इसलिए पर तुम्हारी सारी ज़िन्दगी बाकी है और बिना पैसों के ज़िन्दगी चलने से रही…. फ़िलहाल तुम्हें अपनी एक साल की पढ़ाई पूरी कर नौकरी करने पर विचार करना चाहिए…. ।” सुमिता जी ने कहा

 “ पर मेरा मन अब नहीं लगता पढ़ने में…।” रितेश लापरवाही से बोला

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“फिर बेटा हम भी तुम दोनों का खर्च नहीं उठा सकेंगे हमेशा…..तुम अपने बारे में सोच लो नहीं तो निशिता के साथ जहाँ रहना जा कर रहो।” सुमिता जी इस बार ग़ुस्से में बोली

रितेश भी ताव में आकर निशिता के साथ रहने को निकल गया

” ये आप क्या कह रहे हैं…. हम कहाँ जाकर रहेंगे… और अभी मेरी माँ को छोड़कर कही नहीं जा रही… मेरा ग्रेजुएशन भी मुझे पूरा करना है…. हमारी शादी माँ की वजह से हुई थी….हमारे बीच सब तय था…. मेरी पढ़ाई की ज़िम्मेदारी मेरे पापा की है…. उसके साथ साथ आपको भी पढ़ाई ख़त्म कर नौकरी करना था…. और आप जो कह रहे हैं अलग रहेंगे जाकर ,सोचे भी है उन सब के पैसे कहाँ से आएँगे… मैं तो फ़िलहाल बिल्कुल नहीं जाने वाली आपके साथ…..जब तक माँ है मैं यही उसके पास रहूँगी…. और आपको यहाँ रहना शोभा नहीं देगा…. लोग समझेंगे घर जमाई बन गए हैं जो मुझे गवारा नहीं ।” निशिता ने दो टूक शब्दों में कहा

रितेश उसकी बात सुन दंग रह गया….. उधर माँ ने सुना दिया यहाँ पत्नी ने…. वो वहाँ से चुपचाप निकल गया…

“ मम्मी जी आपने जो कहा सब सही था ये तो नौकरी करने के पक्ष में ही नहीं लग रहे …पर मुझे लग रहा है मेरी बात लग गई है…. हो सकता वो घर लौट कर जाए।” निशिता ने सुमिता जी से कहा जिन्होंने पहले से ही निशिता को समझा दिया था

 घर आकर रितेश अपना सामान बाँधने लगा।

“ क्या हुआ बेटा…. तू वापस आ गया?” सुमिता जी अनजान बनते हुए पूछी

“ हाँ नहीं रहना किसी के साथ… जा रहा हूँ सब छोड़कर…. तुम माँ हो कर भी मुझे नहीं समझ रही…।” रितेश ग़ुस्से में बोला

“ बेटा माँ कुछ ग़लत नहीं बोल रही है…. तुम इतने बड़े तो हो ही चुके हो कि भला बुरा समझ सको…. घर से जा रहे हो जाओ पर जब आओ तो कुछ बन कर ही आना… और हाँ जब तक तुम कमाने लायक़ नहीं हो जाते ये रखो…. पैसे की ज़रूरत हर जगह पड़ेगी…. निकाल लेना।” वीरेन बाबू एक कार्ड थमाते हुए बोले

“ हाँ हाँ जा रहा हूँ ।” कहते हुए रितेश निकल गया था

जब से गया कभी सुमिता जी से बात नहीं करता था…. उसे सुमिता जी ही दोषी नज़र आती थी…. निशिता और वीरेन बाबू से कभी कभार बातें हो जाती थी…

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कुछ महीने में ही निशिता की माँ का देहांत हो गया वो तब बहुत अकेली हो गई थी रितेश आया था तब वो उसे बस इतना ही बोल कर भेजी…. ,“लोग पूछने लगे है पति क्या करता है…. अब जब आप कुछ करने लगो तभी यहाँ आना।”

लगभग दो साल यूँ ही निकल गए और आज ये खबर मिली …..

“ अरे सुमिता खाना बना की नहीं सुनो दो लोगों का खाना और बना देना… ।” वीरेन बाबू की आवाज़ सुन वो यादों से निकल सामने चूल्हे की और देखने लगी गैस जलाई ही नहीं और कलछी चलाए जा रही थी

 जल्दी जल्दी हाथ चला कर वो खाना बना कर वीरेन बाबू को पूछने आई,“ खाना लगा दूँ?”

“ थोड़ा रूक जा वो लोग आ जाए फिर साथ में निकाल देना।” वीरेन बाबू ने कहा

और दिन होता तो सुमिता जी सौ सवाल करती कौन आ रहा है… पर आज कसक सी थी पता नहीं बेटा अब कभी बात करेगा भी की नहीं ।

तभी दरवाज़े खटकने की आवाज़ आई …

“ आओ आओ तुम लोगों का ही इंतज़ार कर रहा था…. सुमिता बाहर आ देख कौन आया है और सुन आरती की थाली लेकर आना… ।” वीरेन बाबू ने कहा

सुमिता जी बुझे मन से बुदबुदाते हुए थाल लेकर जैसे ही बाहर आई बुत बन कर खड़ी हो गई

“ तुम दोनों आने वाले थे और इन्होंने मुझे बताया भी नहीं ।” कहते हुए वो दोनों की आरती उतार अपने आँसू पोंछने की कोशिश करने लगी

“ माँ मुझे माफ कर दे…. तुम तो मेरा ही भला चाहती थी…. मैं भी प्रतिज्ञा कर बैठा जब तक कुछ कर नहीं लेता तुम्हें मुँह ना दिखाऊँगा….।” रितेश माँ को प्रणाम कर गले लगते हुए बोला

“ माँ अब तो ख़ुश हो जाइए…. रोना बंद कीजिए बहुत रोई है आप … चलिए पहले ये मिठाई खाइए ।” कहते हुए निशिता ने सुमिता जी के पसंद की मिठाई मुँह में देते हुए बोली,“ बधाई हो माँ… आपका बेटा अब नौकरी वाला हो गया ।”

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सुमिता जी बस रो रही थी….बेटे की ज़िन्दगी बन जाए इसलिए खुद को कितना कड़ा कर बेटे को खुद से दूर की थी वो बस वही जानती थी।

 दोस्तों कभी कभी कुछ परिस्थितियाँ ऐसी आ जाती है कि लोग जो सोचते उससे पहले ज़िन्दगी कुछ और मोड़ ले लेती हैं….उसके बाद अगर भटकाव आए तो उसे सही राह दिखाना भी ज़रूरी होता है…. सुमिता जी को इसका एहसास हो रहा था तभी वो अपने भटके बेटे के लिए कठोर बन गई थी….

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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