बेटा बहू को एकांत में रहने दो – रश्मि प्रकाश  : Moral Stories in Hindi

“ बहुत दिन हो गए हम कहीं बाहर ना तो घुमने गए हैं ना किसी रेस्टोरेन्ट में जाकर बैठ कर खाए ही हैं… इस बार हम संडे को बाहर चलेंगे बस।” दीया ने रात के खाने के बाद फ़रमान जारी कर दिया.

“ बेटा पापा को एक दिन तो आराम करने को मिलता है उसमें भी तुम्हें घूमने जाना है ?”राशि ने कहा

“ क्या माँ … जब देखो मना कर देती हो… दोस्तों के साथ जाने नहीं देती खुद लेकर जाती नहीं ।” पैर पटकतीं दीया उठकर चल दी

“ क्या बोलूँ निकुंज बच्चों को आप भी कह देते हो एक दिन मिलता आराम का उसमें भी सबकी सौ फ़रमाइशें ।” राशि निकुंज से जाकर बोली

“ चलो इस बार बच्चों को ले चलते हैं… अच्छा हाँ सुनो… भाभी का फ़ोन आया था कह रही थीं रचित और मानसी हो सकता यहाँ आए … कब आएँगे ये तो नहीं पता पर उनके ऑफिस का काम है कुछ इस शहर में तो वो हमारे पास ही रूकेंगे ।” निकुंज ने राशि को बताया

 “ ठीक है आने दीजिए… अब यहाँ आ रहे हैं तो हमारे पास ही रहेंगे ना और किधर जाएँगे ।” राशि ने सहमति जताई

“ बेटी को बोल आऊँ संडे का प्रोग्राम फ़िक्स है नाराज़ ना हो ।” राशि दीया के पास जाकर उसे ख़ुशख़बरी दे आई

” अरे वाह दीदी ये तो गुड न्यूज़ है तुम्हारे लिए क्यों… पता मम्मा कब से कह रही थीं सबके पैरेंट्स वीकेंड पर कहीं ना कहीं जाते एक हमारे पैरेंट्स हैं बोरिंग ।” राशि की बात सुन दिव्य उसे चिढ़ाते हुए बोला

संडे के दिन सब शहर के बड़े मॉल में पहुँच गए

बहुत दिनों से बच्चे कपड़े लेने की बात कर रहे थे…सब एक शॉप में चल दिए राशि और दीया लेडीज़ सेक्शन में तो निकुंज और दिव्य जेन्ट्स सेक्शन में चल दिए.

कुछ कपड़े सलेक्ट कर दीया और राशि ट्रायल रूम की तरफ़ बढ़ गए.

राशि बाहर इंतज़ार कर रही थी और दीया कपड़े ट्राई करने चल दी।

दीया कपड़े पहन कर राशि को दिखाने बाहर आई तो साथ में एक लड़की और निकल कर आई ….

“रचित …. ।” उसने आवाज़ दिया

राशि और दीया दोनों नाम सुन उस ओर मुड़ कर देखने लगे.

दोनों लोग सामने का नजारा देख कर जहाँ राशि और दीया की आँखें आश्चर्य से फैल गई वहीं उसके होश उड़ गए.

“चाची जी आप।” आश्चर्य से राशि को देख रचित और मानसी ने कहा उसके पैर छुए.

मानसी एक ड्रेस पहन कर बाहर रचित को दिखाने आई थी पर राशि और दीया को देख उसके होश उड़ गए ।

 मानसी जल्दी से ट्रायल रूम की ओर जाने लगी तो राशि और दीया ने रोक लिया ।

“ अच्छी लग रही हो भाभी ।” दीया ने मानसी से कहा

“ हाँ मानसी अच्छी लग रही हो… पर ये तो बताओ तुम लोग यहाँ आए हुए हो और घर पर नहीं आकर इधर घूम रहे?” राशि ने सवाल किया

“ सब बताते हैं पर पहले ये तो बताइए चाचा जी भी साथ आए हैं क्या?” रचित घबराते हुए पूछा

“ हाँ आए हैं ना वो दिव्य के साथ जेन्ट्स सेक्शन में घूम रहे ।” राशि ने कहा

“ अरे बाप रे….मानसी जाकर जल्दी से ये कपड़े बदलो और सूट पहन कर आओ।” रचित घबराते हुए बोला

“ क्या हुआ बेटा…. मानसी पहन सकती ऐसे कपड़े…दीया भी तो पहनती है फिर तुम्हारी बहने भी तो पहनती ही है।” राशि ने कहा

“ पता है चाची जी आप कूल हो पर घर पर मम्मी और दादी जी को जब पता चलेगा… जान खा जाएगी ।” रचित घबराते हुए बोला

“ अच्छा अच्छा वो सब छोड़ो पहले जो लेने आए हो वो तो ले लो।” राशि मुस्कुराते हुए कह कर वहाँ से हट गई

कुछ देर बाद शॉपिंग कर निकले तो निकुंज ने भी रचित से वही पूछा ,“पहले घर क्यों नहीं आए?”

“ मानसी को काम के सिलसिले में यहाँ आना था फिर वीकेंड पर हमारा गोवा जाने का प्रोग्राम बन रहा था…. तो बस सोचे पहले शॉपिंग कर लेते हैं फिर घर आएँगे ।” रचित ने धीरे से कहा

“ अरे तो पहले घर आकर भी आ सकते थे ना ।” निकुंज थोड़ा पिता के रूप में आ बोला

 “ अरे जाने दो ना…आज छुट्टी है तो लेने आ गए… फिर घर से निकलना आसान कहाँ होता।”राशि बात सँभालते हुए बोली

रचित और मानसी समझ रहे थे चाची ऐसे क्यों बोल रही है ।

सबने साथ ही खाना खाया फिर निकुंज ने उन्हें साथ चलने कहा।

“ चाचा जी हमें ऑफिस की तरफ़ से होटल में रहने की सुविधा उपलब्ध है…उधर ही रूक जाते है ।” रचित चाचा के डर से धीरे-धीरे बोला

निकुंज फिर बिफरे

” कोई बात नहीं बेटा… होटल में चले जाओ पर घर भी आ जाना।” राशि ने कहा

रचित और मानसी होटल के लिए निकल गए

निकुंज अभी भी ग़ुस्से में था उसे राशि पर ग़ुस्सा आ रहा था उसने राशि से कहा ,“तुमने जानबूझकर उन दोनों को घर चलने नहीं कहा…. तुम्हारा काम जो बढ़ जाता।”

“ कमाल करते हो निकुंज तुम भी….जब ब्याह कर आई रचित बच्चा था ,उसे बेटे की तरह ही मानती हूँ उनके आने से क्या परेशानी हो सकती हैं थोड़ा सोच कर तो देखो तुम …. उनके ब्याह को दो महीने भी नहीं हुए हैं…. वर्क फ़्रॉम होम की वजह से वहाँ घर पर ही रह कर काम कर रहे थे दोनों….

कहाँ प्राइवेसी मिलती होगी…. अब यहाँ आकर होटल में रह रहे अपनी मर्ज़ी से खुशी से ….हमारे पास आकर भी बंदिश ही लगता …. अरे नए जोड़े एकांत खोजते…. अपना समय भूल गए क्या?” राशि ने कहा

निकुंज को राशि की बात समझ आ रही थी ।

घर पहुँच कर रचित ने राशि को फ़ोन किया,“ चाची चाचा ग़ुस्सा कर रहे हैं क्या और हाँ प्लीज़ आप बात सँभाल लेना वो मानसी की ड्रेस की बात भी मत बताना … मम्मी को वैसे होटल का बता दिया था फिर भी वो बार बार घर जाने की ही बात कर रही थी और हम थोड़ा फ्री…।” रचित कह कर चुप हो गया

 “ मैं बात कर लूँगी बेटा… डोंट वरी…शादी के बाद घर से बाहर पहली बार आए हो एंजॉय करो… कुछ भी हो बेझिझक घर आ जाना।” राशि ने समझाते हुए कहा

“ थैंक्यू सो मच चाची जी हमें समझने के लिए ।” पीछे से मानसी की आवाज़ आई

राशि दोनों से बात कर फोन रख दी…. सोच रही थी पता नहीं हम कब इन सब से आज़ाद हो पाएँगे…. अपने बच्चों को पहले हम ही सब कुछ की इजाज़त देते हैं फिर शादी के तुरंत बाद उनसे लंबे चौड़े एहतियात की बारिश लगा देते …… वो भी तो बच्ची है ये क्यों नहीं सोच पाते…।

दोस्तों परिवार में बहुत सीमाएँ होती है उनका उल्लंघन नहीं करना चाहिए पर रचित और मानसी जैसी नौबत क्यों आ जाती है क्योंकि हम उन्हें उनके विचारों को छोड़ हमारे विचार थोपने पर ज़ोर देते हैं…इस बारे में आपके विचार क्या है ज़रूर बताएँ ।

धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!