आज अमिता के पैर जमीं पर नहीं पड़ रहे थे।गोद में नन्ही पोती को लेकर वो ऐसे खुश हो रही थी जिसकी कोई सीमा नहीं थी। सबको दिखा रही थी देखो मेरे घर नन्ही परी आई है।कितनी प्यारी है न कितने नन्हे नन्हे हाथ पांव है , कितना प्यारा सा मुखड़ा है ,और देखो इसके बाद कितने काले है ।
कितनी सुन्दर लग रही है खुशी का ठिकाना नहीं था अमिता के । तभी पति ओंकार ने कहा शांत हो जाओ अमिता बच्चे तो छोटे होते ही हैं क्या हो गया है तुमको अभी ये है ही कितने दिन की महज दो घंटे की । अभी दो घंटे पहले ही तो दुनिया में आई है।और साथ में इसके छोटा भाई भी आया है उसको नहीं देखोगी क्या । हां हां क्यों नहीं लेकिन भाई मुझे तो बेटी ही चाहिए थी वो आ गई मेरी खुशी दोगुनी हो गई।
बेटियों के बिना घर कितना सूना होता है न , बेटियां न हो जिस घर में मेरे ख्याल से तो वो घर , घर नहीं होता।मैं तो इसके लिए खूब शापिंग करूंगी , छोटी सी पायल पहनाऊंगी जब ठुमक ठुमक चलेगी तो हाय मैं बलिहारी जाऊं।अरे मयंक वो जो मैंने छोटी सी लाल रंग की फ्राक बनाई थी न वो नर्स को दे दो पहना दें मेरी परी और सुंदर लगेगी उसमें।
अमिता जिस घर में ब्याह कर आई थी वहां बूढ़ी सास और तीन जेठ जेठानी थे अमिता के। सभी जेठ जेठानी के दो दो बेटे थे किसी के भी बेटी न थी । सभी लोगों का संयुक्त परिवार था ।घर में सभी बेटे थे इसलिए घर के त्योहार बड़े बेरौनक से लगते थे।तीसरी जेठानी का बेटा जो अमिता की शादी में तीन साल का था
जब भी राखी या भाई दूज आती तो वो घर में आकर मां से जिद करने लगता कि मम्मी मम्मी मुझे भी राखी बांधनी है बाहर देखो सब बच्चे राखी बांध कर घूम रहे हैं मैं भी राखी बांधूंगा । जेठानी उसको समझाती बेटा राखी तो बहन बांधतीं है और तुम्हारे कोई बहन नहीं है ।घर में कोई लड़की नहीं है तो कौन बांधेगा राखी । बच्चा छोटा था तो समझ नहीं पाता था बार बार समझाने पर भी जिद करता था ।
अमिता भी भरे पूरे परिवार से आई थी चार बहनें दो भाई और तीन बुआ थी ।राखी भाई दूज जैसे त्यौहार आते तो उसके घर में खूब रौनक होती । खुद भी भाइयों का टीका करना और राखी बांधना चलता रहता था और बुआ लोग भी आ जाती थी अपने भाइयों को राखी बांधने।घर में खूब हो हल्ला और रौनक हुआ करती थी
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त्योहारों पर।पर अमिता के ससुराल में ऐसा कुछ न था सबके बेटे थे तो बेटे तो बड़े होकर वैसे भी रिजर्व हो जाते हैं उनको घर की अपेक्षा दोस्तों में समय बिताना ज्यादा अच्छा लगता था ।और बड़े बेटे कुछ बाहर पढ़ने चले गए या कुछ नौकरी करने चले गए तो घर में सन्नाटा सा खिंचा रहता था। त्योहारों पर अमिता को ससुराल में बड़ा खराब लगता था।उसे अपने मायके की बहुत याद आती थी यहां ससुराल में तो बेरौनक ही त्योहार बीत जाते थे।
शादी के आठ महीने बाद ही अमिता प्रेगनेंट हो गई तो उसने मन में सोचा है भगवान मुझे तो बेटी ही देना इस बेरौनक घर में कुछ तो रौनक आ जाएगी। वैसे भी अमिता को बेटियां बचपन से ही बड़ी प्यारी लगती थी । अपनी भतीजी को खूब लाड़ करती थी और सजातीं संवारती रहती थी । अमिता को सिलाई कढ़ाई बहुत अच्छे से आती थी तो वह छोटे छोटे सुंदर सी फ्राक और स्वेटर बना कर पहनाती थी भतीजी को ।
बेटियां बड़ी होते ही मां के संग संग रसोई में लग जाती है क्या बना रही है मम्मी पूछती रहती है तो बहुत अच्छा लगता है। अमिता सोच रही थी बेटी हुई तो उसे सब काम सिखाऊंगी परफेक्ट कर दूंगी उसको जिससे कभी यदि मैं बीमार हो गई तो कम से कम बेटी कुछ बना कर खिला तो देगी ।बस ऐसे ही सपने बुनते बुनते अमिता की डिलीवरी का समय आ गया और भगवान ने उसकी प्रार्थना भी सुन ली उसने एक बेटी को ही जन्म दिया ।
अमिता की खुशी का ठिकाना न था। लेकिन घर में सास और जेठानियों का मुंह बन गया बेटी का सुन कर। आखिर में बड़ी जेठानी ने कहा ही दिया घर में तो बेटी का ही रिवाज है पैदा करने का ।एक तुम ही अनोखी आई हो जो बेटी पैदा कर दी। अमिता ने कहा अब इसमें मेरा क्या कुसूर है भाभी जैसी भगवान की इच्छा और मुझे तो बेटी ही चाहिए थी मैं अपनी बेटी को पाल लूंगी आप लोग परेशान न हों।
धीरे धीरे अमिता की बेटी बड़ी हो रही थी । अमिता उसको देख देख कर खुश होती उसके एक मुस्कान पर बलिहार जाती। अमिता ने बेटी का नाम मुस्कान रखा जिसे देखते ही अमिता के चेहरे पर मुस्कान आ जाती।। मुस्कान अभी साल की हुई थी कि अमिता फिर से प्रेगनेंट हो गई ।अब जब बड़ी जेठानियों को पता लगा कि अमिता फिर से प्रेगनेंट हैं तो बड़ी जेठानी ने तेवर दिखाते हुए कहा
देखो फिर से बेटी न पैदा कर देना ,इस घर में बेटियां पैदा करने का रिवाज नहीं है और तुम्हें पहले से ही एक बेटी है। तभी अमिता बीच में बोल बैठी क्या मतलब है भाभी ये सब तो ईश्वर की देन है इसमें हम आप क्या कर सकते हैं ।बेटी अगर फिर से हो जाएगी तो कहीं उसे फेंक तो नहीं आऊंगी। फिर ये मेरा बच्चा होगा मैं देखभाल कर लूंगी उसकी। अमिता की बात सुनकर अमिता के बड़े जेठ बोल पड़े कोई बात नहीं है अमिता तुम परेशान न हों तुम्हारी भाभी की तो बस ऐसे ही आदत है बोलने की ।
अमिता ने इसबार एक बेटे को जन्म दिया वो बहुत खुश थी कि चलो मेरा परिवार पूरा हो गया बेटा बेटी दोनों हो गए अब तो घर में खूब रौनक रहेगी । लेकिन अमिता की खुशी ज्यादा दिन न रह पाई मुस्कान तीन साल की हो गई थी लेकिन वो लगती जैसे डेढ़ साल की हो । ऐसे ही वो पांच साल की हो गई लेकिन पांच साल के बच्चे जैसी उसकी ग्रोथ नहीं थी । फिर डाक्टर को दिखाया गया
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लोकल डाक्टरों ने बड़े अस्पताल में जाने की सलाह दी । बड़े अस्पताल में सभी जांच वगैरह कराई गई तो पता चला कि मुस्कान को जैनेटिक प्राब्लम है जिसमें शरीर में हार्मोंस नहीं बनते पूरी तरह शरीर पूरी तरह ग्रोथ नहीं ले पाता । हार्मोंस डिसआर्डर की समस्या थी ।और डाक्टरों ने ये भी बताया कि ऐसे बच्चे ज्यादा समय तक जीवित नहीं रहते । सुनकर अमिता को बहुत धक्का लगा। बहुत उदास रहने लगी
अमिता लेकिन उसका कोई इलाज नहीं था।बस ऐसे ही चलता रहा और दस साल की होते-होते मुस्कान की मृत्यु हो गई। बिल्कुल टूट गई अमिता भगवान को कोसने लगी है भगवान जब छीन लेना था तो दिया ही क्यों था।बेटी का अरमान अमिता के मन में ही रह गया।वो चाहती तो एक और बच्चा कर सकती थी लेकिन उसने नहीं किया।बेटे खुशाल को ही पाल-पोस कर बड़ा करने में लग गई।
खुशाल पढ़-लिख कर इंजिनियर बन गया नौकरी भी करने लगा था।अब उसकी शादी की बात चल रही थी । फिर बेटे की शादी हुई फिर एक साल बाद बहू प्रेगनेंट हुई अमिता फिर अरमान संजोने लगी कि पोती हो जाए ।उसकी खुशी का तब ठिकाना न रहा तीन महीने बाद पता चला कि जुड़वां बच्चे हैं लेकिन ये पता नहीं चल पाया कि बेटी है कि बेटा है।
बस उम्मीद में ही नौ महीने गुजर गए ।आज बहू की डिलीवरी का समय आ गया नर्स ने जब लेबर रूम से आकर बताया कि एक बेटी और एक बेटा है तो अमिता फिर से सपने संजोने लगी ।नर्स ने जब पोती को लाकर अमिता की गोद में डाल दिया तो अमिता के खुशी का ठिकाना न रहा । पोती को देखकर अमिता बोलने लगी मेरी बेटी फिर से आ गई मारे खुशी के आंखें भर आईं अमिता की ।
पोती को गोद में लेकर सोचने लगी मेरी बेटी फिर से आ गई है ।मैं अपने सारे अरमान पूरे करूंगी । बहुत बहुत धन्यवाद मेरे प्रभु जब मेरी बेटी को छीना था मुझसे तो मैं जी नहीं पा रही थी लेकिन आज तुमने फिर से मेरे जीने का सहारा दे दिया । धन्यवाद प्रभु।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
3 मार्च