बेरोजगार (भाग-5) – रश्मि झा मिश्रा : Moral stories in hindi

***आगे की कहानी****

बारात का स्वागत बड़े ही शानदार तरीके से किया गया…. वहां जाकर तरुण को अच्छा महसूस हुआ…. वह अभी इधर-उधर की बातें कर ही रहा था कि…. निशा ने जोर से कहा…” लता दीदी… आप”

तरुण ने एक बार ही पलट कर देखा… एक करीने से सजी… खूबसूरत महिला… अपने भरे पूरे शरीर को… साड़ी और गहनों से ढकी हुई… हंसते हुए… निशा के गले लगी…!

तरुण बिल्कुल भी पहचान ना पाया…. लेकिन फिर थोड़ी देर ध्यान से परखने के बाद…. उसकी आवाज सुनकर… उसे यकीन हो गया कि… वह उसकी लता ही है….!

वह सोच ही रहा था की बात करे या ना करे कि…. उसके कान में लता की आवाज आई….”अरे तरुण..! हाय कैसे हो…? नहीं पहचाना ना…. यार बहुत मोटी हो गई हूं ना…!

तरुण संभलते हुए बोला…” नहीं… नहीं… एकदम सही लग रही हो…”

“चलो… तुम्हारी झूठी तारीफ करने की आदत… गई नहीं अभी तक… अच्छा क्या कर रहे हो…. कहीं नौकरी वौकरी लगी… कि अभी तक…. बस ऐसे ही…..!”

तरुण झेंप गया.. बोला..” नहीं… अभी तो कोशिश जारी है…!

लता हंसते हुए बोली… “अच्छा है… मैंने पापा की बात मानकर शादी कर ली…. नहीं तो… यार!… तुम्हारे इंतजार में तो मैं बुड्ढी ही हो जाती…!”

इस बात पर तरुण ने भी तंज कसा…” हां सही बात है… तुम्हारी ठाट की जिंदगी… फिर कहां मिलती… लगता है बड़े ठाठ से हो….!

लता ने जोर का ठहाका लगाया…” हां यार…! सही कहते हो… देखने से नहीं लग रहा…!

इतने में एक छोटी बच्ची भागते हुए आई…” मम्मी चलो… उधर आंटी बुला रही है…!

लता ने उसका हाथ पकड़ा…. और बोली…” देखो बेटी… ये हैं… तरुण मामा… नमस्ते करो…!

फिर तरुण की तरफ देख… शरारत भरी हंसी हंस पड़ी…!

बच्ची नमस्ते बोलकर मम्मा को साथ ले चली गई….!

 तरुण नई पुरानी यादों के हिंडोले पर झूलता… अचानक धड़ाम से जमीन पर आ गिरा….!

अब उसके लिए इन यादों का कोई मतलब नहीं था…

किसी तरह रात गुजार…. अहले सुबह…..  कोलकाता की तरफ रवाना हो गया…!

अनुज की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई थी… बुखार था जो उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था… कोई हफ्ते भर हो चुके थे उसे बुखार लगते… तरुण ने वहां पहुंचते ही… अनुज की हालत देख… उसे तुरंत ही ब्लड टेस्ट करवाने… और अच्छे डॉक्टर से दिखलाने की जुगत शुरू कर दी… एक-दो दिन तो जांच पड़ताल में लग गए… फिर कहीं जाकर रिपोर्ट आई…. तो अनुज को टाइफाइड निकला….!

अब उसका बुखार धीरे-धीरे कम होने लगा था…. लेकिन अनुज कुछ अनमना सा दिख रहा था…. पहले तो तरुण ने सोचा… कि हो सकता है कमजोरी की वजह से ऐसा हो…. लेकिन बात कुछ और ही थी… यह बात समझते तरुण को देर नहीं लगी…. अनुज से पूछता… तो वह बात टाल जाता….!

एक दिन तरुण दवाइयां लेने बाहर निकला ही था कि दो लड़कियां धड़धड़ाती हुई  सीढ़ियों से ऊपर… अनुज के कमरे की तरफ जाती… तरुण से टकरा गईं…. तरुण ने हड़बड़ा कर संभलते हुए… सवाल भरी आंखों से उनकी तरफ देखा… तो दोनों सहम गईं…. तरुण एक तरफ हो गया….. दोनों सीधे अंदर चली गई…. तरुण बड़े असमंजस में खड़ा रह गया…..!

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रश्मि झा मिश्रा

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