बेनकाब – विजया डालमिया

गहराती रात के साथ बीता हर पल उसे और अंधेरे की तरफ धकेल रहा था। जो हुआ उस पर वह यकीन नहीं कर पा रही थी। ना ही वह इसके लिए तैयार थी। कुछ महीनों पहले की ही तो बात है जब वह पल्लव से जुड़ी थी ।पावनी एक मिडिल क्लास फैमिली की लड़की थी । जिसके सपनों की उड़ान हमेशा ही ऊँची  थी ।एक  दिन कॉलेज में जब कुछ लड़कों ने उस पर भद्दे कमेंट किए तो उसकी आँखें छलक पड़ी । तभी एक आवाज ने उसका ध्यान आकर्षित किया।…. “आप चलिए। मैं निपट कर आता हूँ इनसे”। सामने देखा तो देखती ही रह गई ।अरे यह तो वही लड़का है जिसकी रईसी और सुंदरता के चर्चे पूरी कॉलेज में मशहूर हो रहे हैं। …”आप …आप… रहने दीजिए” जैसे ही पावनी ने कहा वह  अनसुना  कर उस तरफ बढ़ गया जहाँ वे लड़के खड़े थे ।थोड़ी ही देर में वे दोनों लड़के उसके सामने सर झुकाए सॉरी बोल रहे थे ।

उसने उन्हें तो कुछ नहीं कहा अलबत्ता  पल्लव से जरूर कहा… “थैंक्स” और मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गई ।यूँ तो पावनी कोई  ज्यादा खूबसूरत नहीं थी। किंतु उसकी सादगी,उसकी हाजिर जवाबी, उसकी वाकपटुता उसे अलग ही श्रेणी में रखती थी ।वह सांवली रंगत की थी, लेकिन उसकी आँखों में ईमानदारी और ऊंचे  सपनों की चमक थी। बस यही बात पल्लव को भा गई। अब यदा-कदा आपस में मुस्कुराहटों का आदान-प्रदान होने लगा। धीरे-धीरे कैंटीन में खाना पीना और फिर बाहर घूमना-फिरना भी शुरू हो गया ।दिनभर कॉलेज में साथ -साथ रहते और उसके बाद फोन पर बातों में साथ रहते। निगाहों ने आपस में इकरार कर लिया पर जुबान से इकरार अभी भी बाकी था। शायद दोनों ही इस बात को समझ रहे थे। इसीलिए भावनाओं को शब्दों का रूप देने की जरूरत नहीं पड़ी। पावनी के लिए पल्लव हर पल जरूरी हो चला था।

एक दिन पल्लव के कॉलेज नहीं आने पर पावनी बेचैन हो उठी। उसने पल्लव को कॉल किया ।तब पल्लव ने बताया कि…. आज तबीयत ठीक नहीं है। सुनते ही पावनी बेचैन हो उठी। उसका लेक्चर में जरा भी दिल नहीं लगा। कॉलेज छोड़कर वह दिल के हाथों मजबूर हो गई और पहुंच गई पल्लव के बंगले पर। वहाँ पहुंच कर उसने उसे कॉल किया। पल्लव ने तुरंत ही उसे कहा….” तुम भीतर चली आओ “।पावनी के बढ़ते कदम ठिठक गए। पता नहीं कौन-कौन होगा घर पर ?फिर उसे याद आया कि पल्लव ने कहा था अभी मम्मी पापा कुछ दिनों के लिए बेंगलुरु गए हैं ।बस वह बेखौफ होकर अंदर चली गई ।इतना बड़ा बंगला ।बाहर बेहद खूबसूरत गार्डन और गार्डन में बनी तरह-तरह की क्यारियाँ ।



पर उसे तो पल्लव  से मिलने की जल्दी थी । उसने बस एक सरसरी नजर डाली उन पर ।तभी सामने पल्लव खड़ा दिखा बीमार सा।उसने कहा ….”तुम क्यों चले आए बाहर? चलो अंदर “कहते हुए उसका हाथ पकड़कर अंदर ले गई ।पल्लव ने कहा ….”चलो, तुम्हें अपना रूम दिखाता हूँ”। यह कहते वक्त उसके चेहरे पर हल्की शरारत थी। जिसे समझ कर पावनी लजा गई ।उसने कहा ….”इतनी सीढ़ियों से चढ़कर जाओगे तो थक जाओगे। रहने दो ।फिर कभी “।तभी पल्लव ने कहा….” लिफ्ट भी है”। लिफ्ट से रूम तक वह मंत्रमुग्ध सी उसका हाथ  थामे अपनी भावी दुनिया में चली जा रही थी ।लेकिन रूम में पहुंचकर उसके कदम जैसे जम गए। वहाँ वे लड़के मौजूद   थे जिन्होंने उस दिन उस पर कमेंट किए थे ।पावनी को  सारी  बात समझने में जरा सी भी देर नहीं लगी। उसने जलती नजरों से पल्लव को देखा।

पल्लव बेशर्म की तरह मुस्कुरा रहा था। उसकी आँखों में आज एक शैतानी चमक थी जिसे पावनी भांप चुकी थी ।उसने पलट कर जाना चाहा,पर…….. और ईमानदारी पर दरिंदगी हावी हो गई। पहले कदम पर ही देखे पहले ख्वाब इस तरह टूटेंगे उसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी ।पर मिडिल क्लास फैमिली की लड़कियाँ किसी से कुछ नहीं कहती। ना ही घर में ।ना ही बाहर।बस खामोशी से बुत बन जाती है। पौ फटने ही वाली थी ।पावनी की नसें भी फट रही थी। उसने मन ही मन एक निश्चय किया।

यूँ तो आवाज नहीं होती दिल और सपनों के टूटने की। पर यह खामोशी से इंसान को ही खामोश कर देते हैं। बस उस हादसे के बाद यही हाल पावनी का हुआ। किंतु उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी ।इन सब में एक बात उसके हित में हुई वह यह कि उसके पापा का ट्रांसफर हैदराबाद हो गया और उससे वह शहर भी छूट गया ।पावनी ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया। हिम्मत की धनी तो वह थी ही ।उसने वकालत की प्रैक्टिस शुरू कर दी। कुछ ही समय में उसकी गिनती जाने-माने वकीलों में होने लगी। एक दिन उसके पास एक रेप केस आया जिसे पूरा सुनने के बाद केस लड़की के पक्ष में ही जा रहा था। वह लड़के को सजा दिलाना चाहती थी।सालों पहले खुद के साथ बीता हादसा उसकी आँखों के सामने  घूम गया ।उसने तुरंत कहा….” ठीक है “।

उसने केस की अच्छे से स्टडी की ।अपने तर्क वितर्क से उसने लड़के को दोषी करार दे दिया। हालांकि लड़का अभी भी उसे देखने पर बेगुनाह दिख रहा था। फिर भी ना जाने क्यों उसने उस लड़की के केस से खुद को जोड़ लिया था।  केस जीतने के बाद जब वह लड़की उससे मिलने आई तो उसकी आँखों में उसे अपनी जीत की चमक दिखी। उसने उससे पूछा….” सुनो तुम्हारे साथ तुम्हारे पेरेंट्स वगैरह…” वह बोली…. “दोनों की डेथ हो गई”… “तो तुम अकेली”?….” “नहीं अकेली कहाँ  हूँ?पैसा है ना मेरे साथ और वह है तो सब कुछ है “कह कर मुस्कराते  हुए वह चली गई। मौन मुस्कान उतनी ही सत्य है जितना सत्य दुख छुपाने के लिए बेवजह हँसना। बस यही एक बात मुझे उस वक्त उस में नजर आ रही थी। उसकी यह बात मुझे   विचलित कर गई।… “मुझसे कहीं कुछ गलत तो नहीं हो गया”?



मैं उस बेगुनाह लड़के की शक्ल याद करने लगी जहाँ मुझे बेबसी और सूनेपन के अलावा और कुछ नजर नहीं आ रहा था। मुझे ख्याल आया कि उस लड़के ने अपनी सफाई में एक लफ्ज़ भी नहीं कहा था। बस खामोश नजरें झुकाए ही खड़ा था। मैंने केस रिओपन किया। नए सिरे से और नए नजरिए से खुद को दरकिनार कर सिर्फ वकील की हैसियत से उस लड़के से जाकर मिली। जब मैंने उससे कुछ जानना चाहा तो वह एक ही बात बोला ….”मैम  कभी-कभी पिता के गुनाहों की सजा बेटे भी भुगतते हैं “।मैंने आश्चर्य से उसे देखा और पूछा… “मतलब”? वह बोला… मैम, सुहानी और मैं बहुत अच्छे फ्रेंड थे ।मैं रईस फैमिली का अकेला लड़का और सुहानी मिडल क्लास फैमिली की इकलौती लड़की ।यह जानने के बावजूद भी कि हम कभी एक नहीं हो सकते सुहानी ने मेरी एक नहीं मानी। मैंने उसे बहुत समझाया।

पर उसकी एक ही जिद थी मुझे पाने की। इसमें वह कामयाब भी हो गई ।सुहानी के रूप सौंदर्य और मीठी बातें मुझे उसकी तरफ खींचने लगी। धीरे-धीरे हमारी नज़दीकियां बढ़ती चली गई ।सुहानी अब मुझसे काफी खुलकर हर टॉपिक पर बात करती थी ।मैंने एक  दिन उससे कहा…. “सुहानी अब हमें शादी के बंधन में बंध जाना चाहिए”। उसने कोई जवाब नहीं दिया। वह मुझे परेशान सी लगी। धीरे-धीरे उसने मुझसे दूरी बना ली ।मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था कि आखिर वह ऐसा क्यों कर रही है। फिर अचानक वो गायब हो गई ।मैंने उसे ढूंढने की बहुत कोशिश की, पर सुहानी कहीं नहीं मिली। उसकी जुदाई में मुझे महसूस हुआ कि उसके बिना मैं कितना अधूरा हूँ ।मैंने निश्चय कर लिया कि सुहानी के मिलते ही मैं उसे शादी के लिए मना लूँगा ।कुछ दिनों बाद सुहानी मिली तो सही परंतु एकदम बदली-बदली सी ।

अचानक ही उसकी लाइफ स्टाइल भी चेंज हो गई थी ।शादी की बात तो दूर वो मुझसे बात तक नहीं करना चाहती थी। और फिर अचानक उसने मुझ पर यह केस कर दिया ।जेल में वह मुझसे जब मिलने आई तो मैंने उससे सिर्फ एक ही सवाल किया ….”क्यों”? तो उसने एक ही जवाब दिया….” जाकर अपने पापा से पूछो “।और मैं सब समझ गया। उसकी बेरुखी। उसका बदलता व्यवहार और अब यह केस क्योंकि मैं अपने पापा को अच्छे से पहचानता हूँ ।आप सोच रही होंगी कि इसमें अचरज वाली क्या बात है। हर बेटा अपने पापा को पहचानता है। दरअसल मैंने बचपन से ही उनकी ऐय्याशी  देखी है ।जिनकी वजह से मेरी मम्मी घुट-घुट कर जीते रही और एक दिन हमें छोड़ कर चली गई ।पापा को तो कोई फर्क नहीं पड़ा । मैं  भी आदी हो चुका था इन सब बातों का। सुहानी से मिलकर मेरी जिंदगी में एक नई रोशनी मुझे नजर आ रही थी ।वह भी मेरे पापा ने….। बस दुख यही है कि उन्होंने अपने बेटे की पसंद को भी नहीं छोड़ा”। पावनी के मुँह से अचानक निकल गया …”तुम्हारे पापा का नाम”? उसने कहा पल्लव … पूरा नाम सुनते के साथ ही उसने कहा…” उनके गुनाहों की सजा तो भगवान उन्हें देगा ही ।तुम तो जबरदस्ती बीच में आ गए”। कहकर उसने एक लंबी आह भरी। एक आँसू आँख से टपक गया।  उसने एक कठोर निर्णय ले लिया तथा पुलिस स्टेशन का नंबर घुमा दिया क्योंकि आज उसे अपने अतीत के बेनकाब होने का कोई खौफ नहीं था

देखने में छोटा पर सागर से भी गहरा होता है।

यह यादों का गुल्लक है जिस में दर्द रहता नहीं ठहरा होता है।

विजया डालमिया

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