“देखिए मिस्टर सेन… मैं आपको किसी भुलावे में नहीं रखना चाहता… आपकी दोनों किडनी फेल हो गई है खाना पीना सब छोड़ना होगा… हफ्ते में दो दिन डायलिसिस करवाना होगा…!”
थोड़ी देर के लिए कमरे में खामोशी छा गई… फिर डॉक्टर के सामने बैठे मिस्टर सेन ने टेबल पर हाथ रखते हुए कहा…” यह क्या है डॉक्टर… इससे तो बेहतर होता आप कहते सेन जीना छोड़ दे… जिंदगी का मतलब ही क्या है… मेरे लिए तो यही जिंदगी रही है… आप तो जानते हैं…!”
” मिस्टर सेन बेकार की बातें ना करें… आपको अब अपना खास ख्याल रखना है… अभी उम्र ही क्या हुई है आपकी… आप घर जाइए… मैं आगे की बात अतुल से कर लूंगा…!”
” नहीं डॉक्टर उससे क्या कहेंगे… वह तो अभी छोटा है…!”
डॉक्टर ने एक लंबी सांस लेकर पीठ कुर्सी पर पीछे टिकाते हुए कहा…” कहना तो पड़ेगा ही सेन… अब तो परिस्थिति ने उसे बड़ा बना दिया है…!”
मिस्टर सेन आगे कुछ नहीं बोले… उठकर घर को चल दिए… कितना काम था अभी उन्हें करने को… निधि का ब्याह सर पर था… अतुल की पढ़ाई… घर बनवाना… मां की आंखों का ऑपरेशन… “आह… कुछ भी तो नहीं कर पाया जिंदगी में अभी तक… इससे तो अच्छा होता कि एक झटके में मर ही जाता… क्या अब सारी जिंदगी बोझ बनकर जीऊंगा… बेचारी रजनी कैसे उठाएगी इतना भार… अब तो उसे ही घर संभालना पड़ेगा… बच्चों को भी और मुझे भी…!” सेन ने एक लंबी सांस छोड़ी… मन तो कर रहा था कि घर न जाए… वहीं कहीं किसी पेड़ के नीचे… या पार्क में… या फिर तालाब के किनारे बैठा रहे…
इसी उधेड़बुन में घर आ गया… दरवाजा खोलते ही रजनी ने सवालों की झड़ी लगा दी…” फोन क्यों नहीं उठा रहे आप… कब से फोन लगा रही हूं… क्या कहा डॉक्टर ने… यह डॉक्टर भी ना पता नहीं कौन सी फर्जी डिग्री लेकर बैठा है… इतने दिनों से दवाई चल रही है कोई असर भी दिखे तब ना… इतने टेस्ट करवा लिए… कुछ पता ही नहीं चला होगा… तभी तो……!” सेन ने रजनी का हाथ पकड़ लिया…” रजनी मेरी दोनों किडनी फेल हो गई है…!”
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” क्या……?”
” हां रजनी…!”
रजनी ने अपने दूसरे हाथ से मिस्टर सेन का हाथ कस कर दबा दिया…” अब क्या होगा… क्या करेंगे… कैसे करेंगे… हे भगवान……!” जो बातें सेन पूरे रास्ते सोचता आ रहा था… रजनी के दिमाग में इनमें से एक बात भी नहीं आई… उसके दिमाग में तो बस सेन की जिंदगी थी… उसने थोड़ी देर बाद हाथ छुड़ाते हुए कहा…” हो गया… कोई बात नहीं… आजकल सब नॉर्मल है… इलाज करवाएंगे… नहीं तो किडनी तो ट्रांसप्लांट भी होती है… वही करवा लेंगे… आपको चिंता किस बात की है… मेरे पास दो हैं ना… एक-एक दोनों बांट लेंगे…!”
मिस्टर सेन के होठों पर एक हल्की पीड़ा की मुस्कान खिंच गई…” धत पगली… कोई चॉकलेट है क्या… जो एक-एक बांट लेंगे… इतना आसान थोड़े ही होता है…!”
” आसान नहीं होता… जानती हूं… मैं भी जानती हूं… पर थक कर बैठ तो नहीं जाऊंगी ना…!”
अगले दो-चार दिनों में… घर में नाते रिश्तेदारों में सब को खबर मिल गई की रजत सेन बीमार है… खैर खबर लेने वालों का तो जैसे तांता ही लग गया… ऐसे समय में सब अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हैं… हाल समाचार लेना…पर सही मायने में बीमार व्यक्ति के लिए यह नैतिकता असहनीय होती है…
तीन बहनों का इकलौता भाई था रजत… तीनों बहनों का ब्याह पिताजी ने अच्छे घरों में किया था… सभी बहने संपन्न थीं… रजत भी अच्छी नौकरी करता था… लेकिन जिंदादिल रजत… जिंदगी में खाने-पीने मौज मस्ती के पीछे अपनी जिम्मेदारियां को टलता जा रहा था…
मां दो साल से आंखों से परेशान थी… ऑपरेशन करवाना था… बस मां अगले महीने… अगले महीने… यही करते पूरा दो साल बीत गया… निधि के लिए लड़का छोटी बुआ ने पिछले साल ही बताया था… सारी बात पक्की हो गई थी… मगर अगले लग्न में करेंगे… घर बनवा लें तो करेंगे… के चक्कर में कुछ ना हो पाया… इधर तो महीने दिन से खुद ही बीमार था… कुछ भी खाना खा नहीं पाता… जो खाता पचा नहीं पाता… इसलिए अस्पताल के चक्कर काट रहा था…
अतुल ने डॉक्टर से सब बात कर ली थी…” पापा लखनऊ चलिए… वहां छोटी बुआ का घर भी तो है बड़े अस्पताल के पास ही… बाकी तो सभी रिश्तेदार दूर ही रहते हैं… वहां ट्रांसप्लांट करवा लेते हैं… ऐसे डायलिसिस पर कब तक चलेगा… मम्मी बोल रही है अपनी किडनी देगी तो क्या दिक्कत है… एक बार चल कर देखते हैं ना…!”
पर क्या इतना आसान होता है, चाहने भर से कि मैं दूंगी या दूंगा… मिस्टर सेन एक महीने से अस्पताल में भर्ती थे… रजनी की किडनी मैच नहीं हुई… कोई दूसरा दाता नहीं मिल रहा था… यहां तक की रजनी अपना देकर भी दूसरे का लेने को तैयार थी… फिर भी परफेक्ट मैच नहीं मिल रहा था…
निधि ने एक दिन धीरे से मां से कहा…” मैं चेक करवाऊं… शायद मेरा मिल जाए…!” मिस्टर सेन की आंखें मूंदी थी मगर वह जाग रहे थे… उसी हालत में चिल्ला उठे…” खबरदार… अगर दोबारा यह बात जबान पर लाई…!”
अतुल ने परिवार वालों से मदद मांगी… फैमिली ग्रुप में सारी मेडिकल रिपोर्ट… ब्लड ग्रुप… सब भेज कर रिश्तेदारों से विनती की… कि अगर किसी की किडनी मैच कर जाए तो हम पूरी जिंदगी आपके ऋणी रहेंगे… मगर सहानुभूति के अलावा दूसरी कोई मदद नहीं मिली…
शाम का समय था… छोटी बुआ अपने पति और बेटे के साथ अस्पताल के कमरे में रजत के पास चिंता में बैठी थी… सभी चुप थे… अचानक बूआ बोली… “अतुल मेरा टेस्ट करवा कर देखो ना… शायद मैच हो जाए… आखिर बहन हूं मैं…!”
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फूफा जी और उनके बेटे ने एक दूसरे का मुंह देखा… मगर चुप रहे…
मिस्टर सेन की सबसे छोटी बहन रितु दी की किडनी उनसे मैच हो गई… रजनी रितु दी के गले लिपटकर बोली…” दीदी आपने तो हमारी चिंता आधी कर दी…!”
फूफा जी तपाक से बोल पड़े…” नहीं रजनी जी… टेस्ट करवाने तक तो ठीक था… लेकिन रितु किडनी नहीं देगी… आखिर उसकी भी तो जिंदगी अभी बहुत बची है…!”
उनका बेटा भी मां के पास आकर बोला…” हां मामी… वैसे बोलना तो नहीं चाहिए पर किडनी तो बहुत महंगा होता है… ऐसे कैसे देगी मम्मी…!”
रितु दी ने छूटते ही खींचकर एक तमाचा अपने बेटे के गाल पर जमा दिया… और पति की तरफ तीखी निगाह से घूरते हुए बोली…” तुम लोगों से पहले मेरी जिंदगी में मेरा भाई आया है… पहला बच्चा है वह मेरा… जो मेरी गोद में खेला है… यह तो बस किडनी है… अगर जरूरत पड़े तो मैं अपनी जान भी अपने भाई को दे सकती हूं… बहन हूं मैं… उसकी बड़ी बहन… मेरे सामने मेरा भाई दर्द से घुटता रहे… और मैं तमाशा देखूं… लानत है मुझ पर… अतुल ऑपरेशन की तैयारी करवाओ……!”
ऑपरेशन सफल रहा… अगले दो-तीन महीने पीड़ा दायक थे… मगर धीरे-धीरे सब सही हो गया…
इस बार राखी के त्यौहार में रितु दी ने बड़े प्यार से अपने हाथों से राखी बनाई… और रजत के हाथों पर बांधकर उसका सर चूमा तो रजत की आंखें भर आई… उसने दीदी के पैर छूकर गले लगाते हुए कहा…” दी तुम जैसी बहन अगर हर भाई को मिल जाए तो कोई बुरी बला उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती…!”
स्वलिखित
रश्मि झा मिश्रा