बेबस और लाचार से पड़े भाई को देखकर करूणा के आंख से झर झर आंसू बह रहे थे ।वो भाई का हाथ पकड़ कर वहीं बैठ गई और रोए जा रही थी। रोते-रोते ही हालचाल पूंछ रही थी इतने में भाभी चाय नाश्ता लेकर आ गई। भाभी बोली करूणा अब आज त्योहार के दिन मत रोओ तुम रोओगी तो भइया भी रोएंगे और फिर उनकी तबीयत खराब होगी।अब ठीक है जो परेशानी आ गई है उसका सामना तो करना ही है न, इलाज चल रहा है भइया का जल्द ठीक हो जाएंगे। चलों तुम आंसू पोछों और भइया को राखी बांधों।
करूणा दो बहन और दो भाई थी भाई दोनों बड़े थे और बहनें दोनों छोटी थी। करूणा की शादी ललितपुर में हुई है और दूसरी बहन रांची में है । दोनों भाई अपने पुश्तैनी मकान में इलाहाबाद के पास झलवा में रहते थे ।घर का बिजनेस चलता था जिसमें दोनों भाई पिताजी के साथ काम करते थे । करूणा के बड़े भाई कम पढ़े लिखे थे तो वो बिजनेस में पूरी तरह रम गए थे किन्तु छोटे भाई अखिलेश पढ़े लिखे थे उनका मन कम ही लगता था बिजनेस में वो अपना कुछ अलग से काम धंधा करना चाहते थे।
छोटी भाभी का मायका कानपुर में था वो पांच बहनें और चार भाई थे ।जो सभी के सभी कानपुर में ही व्यवस्थित थे ।सब वही पर अपना काम धंधा जमाए हुए थे।एक करूणा की भाभी ही सभी भाई बहनों से दूर थी ।और वो यही कोशिश करती रहती थी कि भइया ससुराल का काम धाम छोड़कर कानपुर में ही शेटिल हो जाए ।और वही पर अपना कोई काम करें। कानपुर में ही भाभी अपने मायके वालों के पास में ही रहना चाहती थी अपने भाई बहनों के पास । भाभी के पिता जी नहीं थे मां थी।
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कोई भी त्योहार है राखी हो या भाईदूज बस भाभी को अपने मायके भागने की पड़ती थी । कुछ समय बाद करूणा के पिता जी की मृत्यु हो गई और दोनों भाइयों में बंटवारा हो गया। करुणा की मां छोटे भाई अखिलेश के पास रहती थी बड़े भाई का कुछ समय बाद एक एक्सीडेंट में मौत हो गई उनके तीन लड़के थे वो ही झलवा में रहकर बिजनेस देखते थे । छोटे भाई धीरे धीरे ससुराल के ही होकर रह गए ।जब भी कोई त्यौहार होता वो बहनों को कभी न बुलाते बस भाभी को लेकर ससुराल पहुंच जाते।
दीवाली की रात पूजा करके दूसरे दिन सबेरे सबेरे गाड़ी पकड़ कानपुर आ जाते भाभी का भाईदूज मनाने। करूणा की मां अखिलेश से कहती कि बेटा बहू को मायके में छोड़कर तुम बहन करूणा के पास चले जाना । वहां से कोई बहुत दूर नहीं है बहन का घर ।और फिर भाई दूज या राखी में ससुराल में तुम्हारा क्या काम । बहनें भी रास्ता देखती है लेकिन भाई नहीं जाते । बहनें तरस जाती भाई का टीका करने को । मायके भी नहीं जा सकती बहनें क्योंकि भाई तो ससुराल में है ।
कुछ सालों बाद मां भी नहीं रही इस दुनिया में ।भाई के एक बेटा और एक बेटी है जिसको अच्छी शिक्षा दीक्षा देने के बहाने से भाई भाभी ने पुश्तैनी घर बेचकर ससुराल कानपुर में एक किराए का मकान लेकर शिफ्ट कर लिया।भाई भाभी शहर से तो बहनों के नजदीक आ गए थे
लेकिन मन से दूर हो गए थे ।अब भाई पूरी तरह से ससुराल के होकर रह गए थे।राखी हो या भाईदूज या और कोई मौका बस भाभी के मायके वालों का ही जमघट लगा रहता था।उन्हीं के लिए पकवान बनाए जाते आदर सत्कार किया जाता। बहनें और ननदें भाई भाभी से दूर होते गए।बस राखी भेज देने की मात्र औपचारिकता ही रह गई थी। बहनें तरसती थी कभी भाई के हाथ में राखी बांधने को । कभी भाई भाभी करूणा और छोटी बहन गरिमा को नहीं कहते थे कि तुम लोग ही आ जाओ त्योहार पर।आज करूणा की शादी के तीस साल हो गए पर आजतक राखी ने बांधी।
लेकिन कहते हैं न कि जहां मिठाई ज्यादा हो जाए वहां चींटियां लगने लगती है ।और वही हुआ जो बहुत नजदीक थे वो अब दूर होने लगे । अक्सर छोटी मोटी बातों से मन मुटाव होने लगा और फिर धीरे-धीरे सब उम्रदराज भी हो रहें थे । जिनमें भाभी की तीन बहनें और दो भाई नहीं रहे । मां तो पहले ही जा चुकी थी। धीरे धीरे सबको उम्र की परेशानी होने लगी बच्चों का जमाना आ गया तो रिश्ते आपस में वैसे नहीं रह गए ।आना जाना कम हो गया ।और लोग अपने में ही सिमटकर रह गए ।
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अखिलेश जी को भी बिमारियों ने घेर लिया तीन साल पहले किडनी की समस्या आ गई और समस्या बढ़ती गई और नौबत यहां तक आ गई कि डायलिसिस होने लगी और फेफड़ों की भी परेशानी आ गई ।भाई चलने फिरने में असमर्थ होने लगे ।अब धीरे धीरे भाई का बहनों के प्रति प्रेम हिलोरें लेने लगा । उनकी कभी महसूस होने लगी।जब बहनों को पता लगा कि भाई की तबीयत ठीक नहीं है तो बराबर हालचाल पूंछ कर चिंता दिखाने लगी ।अब भाई भाभी को जैसे ही महसूस हुआ बुलाने लगी बहनों को तुम दोनों आ जाओ
कुछ दिन भाई के पास रहोगी तो उन्हें अच्छा लगेगा ।शायद तबियत में थोड़ा सुधार हो । करूणा और गरिमा सोचने लगी आज किधर से सूरज निकला है।कि भाभी कह रही है कि तुम लोग आ जाओ।भाई की तबीयत ठीक नहीं थी तो दोनों बहनें दो दिन को गई भाई से मिलकर आ गई।वापस आने लगी तो भाई रोने लगे कि बहुत अच्छा लगा तुम लोग आई , आती रहना ।जो भाभी कभी पूछती न थी वो भी कह रही थी और रूको दो-चार दिन। करुणा मन में सोचने लगी अपने अपने ही होते हैं आज समझ में आया भइया को।
फिलहाल दो महीने बाद राखी का त्योहार था और भाई की हालत ठीक नहीं थी हफ्ते में दो बार डायलिसिस हो रही थी ।भाई का फोन आया कि करुणा और गरिमा इस बार राखी का त्योहार हमारे घर पर ही मनाना ,तुम लोग आ जाओ और एक हफ्ता रहो । सुनकर आंख में आसू आ गए करुणा के कितना तरसतीं थी ऐसे मौके के लिए।
आज दोनों बहनें भाई को राखी बांधने आई थी ।भाई लाचार से बिस्तर पर पड़े थे। दोनों भाई बहनों के आंख से आंसू बह रहे हैं भाई की ये हालत देखकर। जन्म जन्म के रिश्तों पर पड़ी धूल हट रही थी ।सच ही कहा है अपने अपने ही होते हैं ।जन्म के बंधे रिश्तों को कोई तोड़ नहीं सकता। फिर भाई बहन के रिश्ते तो अनमोल है । किसी वजह से आप दूर हो भी जाए तो रिश्ते कहां टूटते हैं ।शायद यही रिश्तों की मर्यादा है ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
17 अगस्त