“अरे करमजली सोती ही रहेगी क्या? इतना काम पड़ा है कौन करेगा?”
“आई चाची” कहकर नीता उठने लगी।
नीता जब 10 साल की थी, उसके माता-पिता की एक कार एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। बस तभी से चाची की जली कटी बातें सुनकर नीता बड़ी हो रही थी। नीता घर का सारा काम करती, झाड़ू पोछा करना, बर्तन मांजना, खाना बनाना, कपड़े धोना, इतना ही नहीं इसके साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी करना।
इतना सब करने के बावजूद भी उसकी चाची यही कहती “करम जली तू तो कुछ भी नहीं करती है”| लेकिन नीता चुपचाप खून का घूंट पीकर सब कुछ सह लेती, क्योंकि वह जानती थी कि अभी वह कहां जाएगी चाचा चाची के सिवा उसका कोई भी अपना नहीं था।
नीता की चाची तो उसकी पढ़ाई के भी खिलाफ थी, पढ़ाई का खर्चा भी उसे फिजूलखर्ची ही लगता था| वैसे तो उसके चाचा भी कम खडूस नहीं थे, पर खडूस होने के साथ-साथ बह दूर की सोचते थे। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को उल्टी पट्टी पढ़ाई, यह कहकर कि भागवान दुनिया वाले क्या कहेंगे?
बिन मां बाप की बच्ची को पढ़ाया लिखाया भी नहीं चाचा चाची ने, एक तो पहले ही घर में हम लोग जैसा व्यवहार करते हैं इसके साथ वो दुनिया वालों से छुपा नहीं है और उसके ऊपर से पढ़ाया नहीं तो रही सही इज्जत भी चली जाएगी। तुम परेशान मत हो वैसे इसका भी तोड़ मैंने सोच लिया है। अगर हम इसे पढ़ाते हैं तो इसका फायदा भी आगे जाकर हम ही उठाएंगे, तुम पूछो कि वह कैसे| वह पढ़ लिख लेगी तो हम इससे नौकरी करवाएंगे और जो पैसे आएंगे वह भी हम ही लेंगे।
जिस लड़के से हम इसकी शादी करवाएंगे, उसके सामने शर्त रख देंगे कि शादी के बाद भी उसकी कमाई तुम्हें हमें देनी पड़ेगी, नहीं तो हमारा गुजर बसर कैसे होगा| हम बुड्ढे-बुड्ढी का इसके सिवा और कोई नहीं है। अब बताओ भागवान कैसी रही? मानती हो ना लोहा मेरे दिमाग का , एक पंथ दो काज।
लालची चाची यह सब सुनकर मुस्कुराने लगी। नीता अपने चाचा की चाल के बारे में सब कुछ जानती थी, लेकिन उसने कभी आभास नहीं होने दिया, अपना हुकुम का पत्ता भी नहीं खोला, क्योंकि वह जानती थी अगर चाचा को भनक भी लगी कि वह भागने वाली है, वह बीच में ही उसकी पढ़ाई रोक देंगे । आगे के सारे रास्ते उसके लिए बंद हो जाएंगे और वह अपने पैर पर खड़ी भी नहीं हो पाएगी।
बचपन में उसके मस्तिष्क पर गहरा आघात लगने के कारण वह बह उम्र से पहले ही बड़ी हो गई थी। इसलिए उसने अपना सारा ध्यान इधर-उधर की बातों में न लगा कर पढ़ाई में लगाया, आखिरकार उसकी मेहनत रंग लाई, उसने अपने पूरे कॉलेज में टॉप किया अब नीता की टेंशन थी।
चाचा चाची को कैसे मनाया जाए की वो बाहर जाकर पढ़ने की इजाजत दे दे। इतनी आसानी से तो मानेंगे नहीं कुछ ना कुछ तरकीब तो लगानी ही होगी। सोचते सोचते उसके दिमाग में तकनीक सूझी,और वो चाचा चाची के पास गई , कहां चाचा मुझे आपसे कुछ बात करनी है। हां बोल! चाचा जैसा कि आप जानते हो, कि मैंने पूरे कॉलेज में टॉप किया है। इसलिए सरकार ने मेरी आगे की पढ़ाई के लिए फीस माफ कर दी है।, लेकिन वह यहां संभव नहीं है। उसके लिए मुझे दिल्ली जाना होगा,
और रहा मेरे रहने खाने का सवाल, जाने का खर्च वगैरह! इसके लिए भी आप लोग बिल्कुल निश्चिंत रहिए, क्योंकि मेरी एक फ्रेंड है जिसकी शादी दिल्ली में हो गई है। आप उसे नहीं जानते। उसकी मां की बीमारी की वजह से उसके पापा ने उसकी शादी जल्दी कर दी ताकि उसकी मां बेटी के कन्यादान का लुफ्त उठा सके, उसके पापा ने मेरी ट्रेन की टिकट भी बनवा दी है, जो ठीक आज से 1 महीने बात की है।
वो हमारे घर के हालात जानते हैं। मेरी 2 साल की पढ़ाई और है, उसके बाद मेरी अच्छी कंपनी में जॉब लग जाएगी, और मैं आपको हर महीने मनीआर्डर भेज दिया करूंगी। बीच-बीच में फोन करके खैरियत भी पूछती रहूंगी। प्लीज चाचा हां कर दीजिए ना। चाचा तो उसे वैसे भी से सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझकर ही पाल रहे थे।, और उन्होंने हां कर दी। थैंक्यू चाचा वोलकर वहां से चली गई।
जैसा बताया उसके मुताबिक नीता ने ठीक 1 महीने बाद की टिकट निकाल ली! नीता अगर यह बता देती की एक्स्ट्रा क्लासेस के बहाने बच्चों को ट्यूशन देकर उसने ₹20000 रुपए जमा किये है।, तो वो रुपया तो ले ही लेते, और जाने भी नहीं देते, इसलिए उसने अपने फ्रेंड और उसके पापा को बीच में लाकर झूठ का सहारा लिया। उसे पता था। एक न एक दिन चाचा चाची के चंगुल से बाहर निकलने के लिए ये कदम उठाना ही पड़ेगा।
इसलिए उसने सब कुछ पहले ही प्लान कर लिया था। नीता बहुत खुश थी। यह सोचकर की अब वह भी चैन की सांस लेगी।, और खुलकर जिएगी। दुख के चंद दिन भी आखिर बीत ही गए, आखिरकार वो दिन आ ही गया।, जब नीता को आजादी मिलनी थी, चाचा चाची की कैद से। नीता दिल्ली पहुंच गई। सबसे पहले नीता ने सस्ती धर्मशाला देखकर वहां रहने का तय किया, उसने सोचा एक बार रहने का तय हो जाए तो नौकरी भी ढूंढ लूंगी।
दूसरे दिन सुबह से ही वह नौकरी की तलाश में निकल गई। 15 दिन धूप में थकी मांदी भटकती फिरती रही, लेकिन उसे कोई नौकरी नहीं मिली। आखिरकार उसका इम्तिहान खत्म हुआ, और मेहनत रंग लाई। ठीक 29 वें दिन उसे एक अच्छी कंपनी में जॉब मिल गई,तनख्वाह 25000 रुपया महीना , नौकरी तो मिल गई लेकिन समस्या यह थी।,कि ऑफिस और धर्मशाला के बीच की दूरी बहुत ज्यादा थी।
इसलिए ऑफिस जाने में अक्सर लेट हो जाती थी।इसलिये अब वह चाह रही थी ।,कि वह कहीं पेइंग गेस्ट बनकर रहे।”जिससे कि उसे बात करने वाला भी कोई मिल जाए, और जिसका फ्लैट ऑफिस के कुछ करीब भी हो, तो वह टाइम से ऑफिस भी पहुंच सके। वह रोज सुबह न्यूज़पेपर , इश्तिहार, देखती की शायद किसी ने एड दिया हो, लेकिन नाकाम रही। देखते देखते कुछ दिन बाद उसे न्यूज़पेपर में मनजीत भल्ला नाम की एक लेडी का ऐड मिला, जिसे
पेईंग गेस्ट चाहिए था। जिसका फ्लेट करोल बाग में था। जो नीता की ऑफिस के आधे घंटे के करीब में ही था।,””नीता कीआंखों में तो मानो खुशी की लहर सी दौड़ गई। वह तुरंत दिए गए एड्रेस पर पहुंच गई। दरवाजा खटखटाया मनजीत भल्ला जी आई, देखा तो बाहर एक लड़की भोली सी सूरत, बड़ी-बड़ीआंखें डरी और सकुचाई हुयी सी इतनी प्यारी लग रही थी।
“कि मंजीत जी तो बस कुछ देर उसे देखती रही। कुछ पूछ ही नहीं पाई। अब नीता ने कहा ” आंटी अपने पेपर में ऐड दिया था। ” ना कि आपको पेइंग गेस्ट चाहिए। “वह तो ठीक है लेकिन तुम तो यहां की नहीं लगती बेटा , तुम कहां से आई हो? मैं कोलकाता से आई हूं। और अपने बारे में कुछ बताओ। तूम कोलकाता से इतनी दूर अपने परिवार को छोड़कर क्यु आई हो बेटा? इतना अपनापन देख कर नीता फूट-फूट कर रोने लगी,
और अपनी सारी आपबीती आंटी को सुना दी। उसकी बातें सुनकर आंटी को भी रोना आ गया। “आंटी ने उसको अपने गले से लगा लिया और कहा “बेटा अब तुम्हें रोने की जरूरत नहीं है और तुम्हें पेइंग गेस्ट बनकर रहने की भी कोई जरूरत नहीं है। मैंने तुम्हारी आंखों में सच्चाई देखी है। आज और अभी से तुम मेरी बेटी बन कर रहोगी। भगवान का खेल भी निराला है, तुम्हें मां चाहिए थी।,
और मुझे बेटी, शायद इसीलिए मुझे भगवान ने बेटी नहीं दी। क्योंकि वह मुझे तुमसे मिलवाने वाला था। मेरा एक ही बेटा है। जो कि अमेरिका में अपने बीवी बच्चों के साथ रहता है। मेरे पति अपनी बीमारी की वजह से मुझे छोड़ कर चले गए, बेटे ने बहुत आग्रह किया कि मां आप हमारे साथ आकर रहो, मैं गई भी थी। लेकिन मेरा वहां मन नहीं लगा, इस घर में मेरे पति की यादें है।
हर कोने मैं उनको महसूस करती हूं। मेरा पूरा बचपन दिल्ली में वीता है। यहां की मिट्टी में मेरी जान बसती है। मेरे बेटा बहू तुमसे मिलकर बहुत खुश होंगे। उन्हें हमेशा मेरी चिंता लगी रहती है, क्योंकि मैं अकेली रहती हूं। लेकिन अब तुम आ गई हो। हम मां बेटी एक साथ मिलकर रहेंगे।
आंटी का इतना अपनापन देखकर नीता की आंखों में आंसू आ गए और उसे एहसास हो गया कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं, भले ही बचपन में भगवान ने उससे उसके मां-बाप छीन लिए, लेकिन आज भगवान ने आंटी को भेज कर बेगाने शहर में कोई अपना सा दे दिया।
दोस्तों, आपको क्या लगता है? क्या नीता ने घर से भागकर गलती की?
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मनीषा भरतीया