Moral stories in hindi : आज करीब बयालीस साल बाद विजय जी व उनकी पत्नी सीमा जी उसी वृद्धाश्रम के दरवाजे पर रोते हुए खड़े थे, जहाँ एक दिन विजय खुद अपनी पत्नी का कहा मानकर अपने लाचार माता पिता को रोता हुआ छोड़कर चले गए थे।
आज रह रहकर उनको आपने माता पिता की वह कतार विनती करती और आंसुओ से भरी मजबूर आँखे दिखाई दे रही थी जो उनको देख रही थी मानो कुछ कहना चाह रही हो,बेटा हमें यूँ ना जाओ अकेला छोड़ कर ,पर वह उसवक्त पत्नी प्रेम में यह सब अनदेखा कर गये थे ।
जबकि वह तो उनकी अकेली संतान थे एकमात्र बुढ़ापे का सहारा थे।
आज उसी मोड़ पर आकर वह भी खड़े थे अपनी करनी का फल भुगतने को अपने माता पिता की तरह ही लाचार होकर रोते हुएं।
रह रह कर उन्हें अपने बीते दिन याद आ रहे थे। उन्हें याद आया वह दृश्य जब उनकी पत्नी कह रही थी, ‘इकलौता होना भी सजा है।लोगों को फायदा दिखता है कि पूरी संपत्ति के मालिक हैं हम। पर इन लोगों को संभालना बुढ़ापे में क्या मुसीबत से कम है? कहीं आ-जा नही सकते इनको छोड़ कर। बच्चें हर छुट्टी में घूमने जाने का बोलते हैं पर इनको किसके सहारे छोड़ें?…. सुनो क्यों ना हम इनको किसी वृद्धाश्रम में छोड़ दें?
आजकल बहुत सुविधाजनक आश्रम बन चुके हैं। वहाँ इन लोगों को अपनी हम उम्र लोगों की कम्पनी भी मिल जायेगी। हम त्यौहार पर ले आया करेंगे या मिल आया करेंगे। इस तरह हम भी चिंतामुक्त होकर अपनी जिंदगी जी पायेंगे।”
“…अरे पर लोग क्या सोचेंगे हमारे बारे में कि अपने स्वार्थ की खातिर हम वृद्ध माँ-बाप को वृद्धाश्रम छोड़ आए।” विजय ने पत्नी का विरोध किया।
“…अरे लोगों का क्या है, वक्त पर कोई आता है क्या उनको संभालने? सीमा गुस्से में बोली।
“अच्छा ठीक है बाबा कल मैं देखकर आऊँगा एक दो जगह।” विजय ने कहा और दोनों कमरे में सोने चले गए।
सुबह सीमा ने फिर वही बात दोहराई तो एक दो जगह तलाश करने के बाद विजय एक आश्रम में बात करके आ गए। वह भूल गए थे कि सुबोधजी व मायादेवी ने अपने इकलौते लाड़ले बेटे अर्थात उन्हें पालने के लिए कितना त्याग व संघर्ष किया था।
शाम को माता पिता के बैग में जरूरत का सामान व दवाईयां वगैरह रख, उनको समझा बुझा कर मिलने आते रहने का वादा किया और वह लोग रोते हुए माता पिता को छोड़ कर घर आ गये थे। कुछ दिनों तक तो वह लोग उनको पूछने व मिलने जाते रहे पर वक्त के साथ ही बढ़ते काम व अपने शौक के कारण भूल ही गए कि उनके माता पिता जिंदा हैं भी या नही?
और उनके अंतिम समय जब वृद्धाश्रम से फोन भी आया तो वह सापरिवार विदेश में थे ।
…और आज उनके बच्चे उनको छोड़ कर गए हैं, उसी जगह। वह भी जान गए थे कि अब वह भी अपने बच्चों से आखरी बार ही मिल रहे हैं। वक्त फिर खुद को दोहरा रहा है आज।
– मंगला श्रीवास्तव इंदौर
स्वरचित मौलिक लघुकथा है।