सुबह के नौ बज रहे थे। रवि आफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था। “अरे रवि बेटा कल रविवार है..कल तुम्हारी मौसी आ रही है.. उनके साथ कुछ मेहमान भी आ रहे है.. आफिस से लौटते समय तुम ये सामान लेते आना भूलना नही”रवि की मां विद्यावती रवि को निर्देश देते हुए बोली।”ठीक है मम्मी” रवि अपनी मां विद्यावती के हाथ से समान की पर्ची लेते हुए घर से आफिस जाने के लिए बाहर निकल गया।
रवि विद्यावती का इकलौता बेटा था। पांच वर्ष पहले रवि के पिता का देहान्त हो चुका था। छोटी बेटी शुभि का विवाह हो चुका था। एक वर्ष पहले रवि अपने पिता की जगह रेलवे मे अनुकम्पा के आधार पर टी,एस,आई, के प्रतिष्ठित पद पर नियुक्त हुआ था। घर पर उसकी मां और एक नौकरानी के अलावा रहने वाला और कोई नही था। रवि के लिए उसकी मां ही सब कुछ थी। वह उसको हमेशा खुश देखना चाहता था। वह अपनी मां की हर आज्ञा का पालन करने वाला बेटा था।
सुबह के दस बज रहे थे।”अरे रवि बेटा देख लगता है तुम्हारी प्रभा मौसी के साथ मेहमान लोग आ गए है” विद्यावती गेट पर गाड़ी की आवाज सुनकर बोली। “जी मम्मी देखता हूं” कहते हुए रवि घर से बाहर आ गया। सामने गेट पर उसकी मौसी के साथ एक अन्य महिला पुरुष खड़े हुए थे। जिन्हे वह नही जानता था। “मौसी प्रणाम” रवि गेट खोलकर प्रभा के चरण छूकर बोला। “खुश रहो बेटा, इन्हे भी प्रणाम करो बेटा” प्रभा रवि की पीठ पर हाथ फेरते हुए अपने साथ आए मेहमानों की तरफ इशारा करते हुए बोली। रवि ने उन लोगो को प्रणाम किया और अन्दर चलने का आग्रह किया।
विद्यावती ने मेहमानों के लिए पहले से ही तैयारी कर लिया था। “दीदी ये है बिटिया के मम्मी पापा ” प्रभा सोफे पर मेहमानों के साथ बैठते हुए विद्यावती से बोली। “बिटिया के मम्मी पापा” रवि चौक गया उसे तो पता भी नही था। कि उसे देखने लड़की वाले आये थे। वह चुपचाप दूसरे कमरे मे चला गया। कमरे से मौसी और उनके साथ आए मेहमानों की आवाज आ रही थी। रवि परेशान था। शायद उसने देर कर दिया था। रमा के बारे मे मम्मी को बताने मे, आज वह कर भी क्या सकता था।
“रवि बेटा यहा आओ” कमरे से विद्यावती ने रवि को बुलाया। “अभी आया मम्मी” रवि विद्यावती के पास जाकर बैठ गया।
“,देख लिजिए भाई साहब अपने होने वाले जमाई को” प्रभा मेहमानों की तरफ इशारा करते हुए बोली। मां बहुत खुश नजर आ रही थी। रवि न चाहते हुए भी खुश रहने की कोशिश कर रहा था।”ये देखो बेटा ये मेरी बेटी, तुम देख लो, तुम उससे मिलना चाहो और बात करना चाहो तो मोबाइल से कर लो” एक फोटो रवि के आगे रखते हुए आई हुई मेहमान महिला रवि से बोली। “जी ठीक है” रवि ने बिना फोटो देखे ही सिर हिला दिया। “मेरी बेटी को ड्राइव करना पसंद है मै इसका ख्याल रखुगा” आएं हुए सज्जन ने रवि की तरफ देखते हुए कहा। रवि खुश होने का असफल प्रयास करता हुआ अपनी मां की तरफ देखते हुए अपने कमरे की तरफ निकल गया।”देखा शर्मा गया” प्रभा हंसते हुए बोली। मम्मी के साथ साथ सभी लोगों के हंसने की आवाज़ गूंज रही थी।
मेहमान जा चुके थे। प्रभा मौसी रूक गई थी। “रवि तुमने लड़की देखा तुम्हे पसंद है ना” विद्यावती खुश होती हुई रवि से बोली।”अरे पसंद कैसे नही होगी बीस लाख की चमचमाती गाड़ी की चाबी मेहंदी रचे हाथो मे लेकर आयेगी हमारी बहू रानी” प्रभा मौसी खिलखिकर हंसते हुए बोली। “ये सब मेरे बेटे का भाग्य है” विद्यावती रवि के सर पर हाथ फेरते हुए बोली। “बेटा कल सुबह तुम अपनी मौसी को छोड़ आना”विद्यावती रवि से बोली। “जी मम्मी” रवि बोला। और चुपचाप अपने कमरे की ओर बढ़ गया।
रवि रात भर सो नही सका वह यह शादी नही करना चाहता था। वह रमा से प्यार करता था। उसे अपनाना चाहता था।वह उसके आफिस मे काम करने वाली पियून की बेटी थी। सीधी सादी भोली भाली सुशील लड़की मगर वह इस समय कुछ बोलकर अपनी मां का दिल नही दुखाना चाहता था।”चलो बेटा मुझे बस मे बैठा देना” प्रभा रवि की बाइक की तरफ देखते हुए रवि से बोली। रवि को तो जैसे इसका इंतजार था।
उसने बाइक स्टार्ट करते हुए प्रभा मौसी को बैठने के लिए कहा और चल पड़ा बस स्टॉप की ओर। मौसी को बस मे बैठाकर रवि वापस लौट रहा था। वह बेचैन था।वह समझ नही पा रहा था कि वह अपनी मां से कैसे कहे कि वह यह शादी नही करना चाहता है। उसका ध्यान भंग हो रहा था।
उसकी बाइक आगे वाले टैंपो से टकराकर नीचे गिर चुकी थी।
बाइक उसके पैर के ऊपर थी।वह जमीन पर पड़ा हुआ था।
रवि के एक्सीडेंट की खबर सुनकर विद्यावती का शरीर थर थर कांपे जा रहा था। वह अस्पताल पहुंच चुकी थी। सामने रवि पलंग पर लेटा हुआ था। विद्यावती की आंखो से आंसू छलक रहे थे। वह रवि को इस हालत मे नही देख सकती थी।
“चुप हो जाओ मम्मी मुझे कुछ नही हुआ है,बस पैर मे चोट लगी है” रवि सर उठाते हुए बोला। “आप लेटे रहिए अभी पैर मत उठाइये” रवि के पलंग के पास खड़ी रमा रवि को सहारा देते हुए बोली। “ये रमा है मम्मी” रवि विद्यावती से बोला। विद्यावती एकटक रमा की ओर देख रही थी। जो उसके बेटे के कितने करीब है। जो उसके आने से पहले रवि की देखभाल कर रही थी।वह समझ चुकी थी।कि उसका बेटा क्यो दुर्घटना का शिकार हुआ था। उसे रवि से उसके जीवन साथी के विषय मे बात करनी थी।जो उसने नही किया। वह जानती थी कि उसका बेटा अपनी मां की इच्छा को कभी नही टाल सकता।
उसने अनजाने मे जो पाप किया था,उसका प्रायश्चित भी उसे ही करना था।
“सूनो बेटी इधर आओ”रमा को अपने पास बुलाते हुए विद्यावती बोली।”जी मम्मी”रमा बोली। “क्या तुम और रवि एक दूसरे को पसंद करते हो”रमा ने शर्माते हुए सिर झुका लिया। “रवि बेटा मैं नही जानती थी कि तुम रमा को पसंद करते हो, तुमने मुझे बताया भी नहीं,मैने भी प्रभा की बातो मे फंसकर तुमसे नही पूछा कि तुम्हारी पसंद क्या है” विद्यावती रमा का हाथ रवि के हाथ पर रखती हुई बोली।
“रवि बेटा जरा अपनी प्रभा मौसी को फोन करके मुझसे बात कराओ” विद्यावती ने रवि से कहा। रवि ने प्रभा मौसी का नम्बर मिलाकर मोबाइल विद्यावती की तरफ़ बढ़ा दिया। “हैलो प्रभा मुझे माफ करना तुम उन लोगो को मना कर दो रवि की शादी कही और तय कर लिया है मैंने” विद्यावती प्रभा से बोली।” अरे दीदी क्या हो गया है तुम्हे कैसी बात कर रही हो” प्रभा हड़बड़ाते हुए बोली। “प्रभा मुझे मेहंदी रचे हाथो मे बीस लाख की गाड़ी लाने वाली बहू नही चाहिए, मुझे हाथो मे अपनो का दुख दर्द उठाने वाली बहू चाहिए वह मुझे मिल गई है,मै अपने रवि की शादी उसी से करूंगी” कहते हुए विद्यावती ने फोन काट दिया। रमा को विद्यावती ने अपने गले से लगा लिया।
माता प्रसाद दुबे,
मौलिक एवं स्वरचित,
लखनऊ,