‘ तुम एक बार सिर्फ़ मेरे कहने पर मेरे ‘गुरूजी’ से मिल लो वे बहुत सामर्थ्यवान और दयालु हैं अगर उनकी कृपा बरस गयी तो अपनी ‘सलोनी’ इसी महीने से दौड़ने लगेगी’
दीदी के बार-बार किये जा रहे अनुरोध पर
— राजी भुनभुनाती हुई ,
‘ हम बेकार ही अपनी ऊर्जा, धन और समय को इन गुरूजी के चक्कर में बर्बाद कर रहे हैं ‘ कहती हुई उठ कर तैयार होने चली गईं।
आश्चर्य है ,
उसकी कही हुई इस बात का दीदी ने जरा सा भी बुरा नहीं माना है जब कि और कोई दिन होता तो वह सारे घर को सिर पर उठा लेतीं ।
कितनी मन्नतें मान कर शादी के छः साल बाद राजी को प्यारी सी बिटिया हुई सबने मिल कर उसका नाम रखा है ‘ सलोनी’
सलोनी वास्तव में सलोनी है।
अपने प्यारे हावभाव से सबका मन मोह लेने वाली।
चार-पाँच महीने की हुई सलोनी ने घुटनों के बल चलना शुरू कर दिया है।
लेकिन खड़े होने के प्रयास में जब वह खड़ी नहीं हो पाती है तो सबको चिंता होने लगी।
राजी और उसके पति राकेश नन्ही सलोनी को लेकर शहर के दो-तीन ऑर्थोपेडिक सर्जन से मिल चुके हैं।कमोवेश हर ने एक ही बात दोहराई है।
‘चिंता की बात नहीं है इसका शतप्रतिशत इलाज संभव है तथा व्यायाम की आवश्यकता पर बल देते हुए उसे ही कराते रहने की सलाह दी है ‘
दोनों पति-पत्नी इससे संतुष्ट हैं एवं डौक्टर के बताए हुए मार्ग पर चल रहे हैं।
लेकिन राजी की ननद कई दिनों से अपने भाई-भाभी के पीछे पड़ी हैं ।
जिन्हें वे दोनों कितने दिनों से टालते आ रहे हैं।
फिर भी वे बड़ी हैं आखिर उन्हें कब तक टाला जा सकता है ?
झक मारकर राजी को तैयार होना ही पड़ा है।
जबकि पति राकेश ने साफ इंकार कर दिया है।
बहरहाल…
राजी नन्हीं सलोनी को लिए हुई दीदी के साथ गुरूजी के आश्रम के लिए निकल पड़ी।
वहाँ की सजावट का तो कहना ही क्या रंगबिरंगे फूलों से कोना-कोना महक रहा है।
राजी सिर झुकाई अनमनी सी दीदी के पीछे चलती हुई छोटे से कमरे में पहुँच गयी है।
जो पहले से ही गुरूजी के चेला-चपाटियों से भरा पड़ा है। कुछ अन्य श्रद्धालु महिलाएं भी वहाँ बैठीं हैं।
उनके प्रवेश करते ही बैठी हुई अन्य महिलाओं की तीक्ष्ण दृष्टि उसपर पड़ी।
दीदी एक कोने में जगह बना खुद बैठ कर उसे भी बैठने को बोल रही हैं।
इस सब के बीच राजी खुद को सहज नहीं कर पा रही है।
वह सलोनी को गोद में पकड़ी हुई कमरे के बाहर गलियारे में जा कर खड़ी हो गई।
तभी गुरूजी की जयजयकार होने लगी। जिसे सुन कर उसने नजर उठा कर देखा सामने से लंबे-चौड़े आकर्षक व्यक्तित्व वाले गुरूजी आ रहे हैं।
गुरूजी की नजर उससे मिलते ही नई भक्तिन को देख उनके होठो पर मुस्कान आ गई एवं उन्होंने अपने गले में पहनी हुई श्वेत पुष्प की माला उछाल कर राजी की ओर फेंक दिया।
उनके इस दुस्साहस पर राजी हड़बड़ी में बौखलाती हुई पीछे हट गयी।
माला उसके पाँव के पास आ कर गिर गई यह देख कर वहाँ उपस्थित सारी औरतें खुश हो कर कहने लगी हैं,
‘ तुम पर गुरुजी की कृपा बरसी है तुम्हारे काज तो अवश्य पूर्ण होगें ‘
इधर मारे गुस्से के राजी कमरे में जा घुसी और दीदी जो आँखें मूंद कर गुरु भजन में लीन हैं, उनको कंधे से पकड़ कर हिलाने लगी ,
‘ दीदी, आपको रुकना है तो रुकिए मैं तो अब एक पल भी और यहाँ नहीं रुकने वाली हूँ ‘
सारी औरते उसे इस तरह देख रही हैं मानों वह पागल हो।
लेकिन राजी ने उनपर तनिक भी ध्यान नहीं दिया है।
आक्रोश से भरी हुई वह तेजी से आगे निकल गई अपने पीछे उठे तमाम प्रकार के प्रश्नों को छोड़कर।
सीमा वर्मा