“पापा, हज़ार रुपये दो” अंकित ने लापरवाह अंदाज़ मे कहा।
“क्यों, इतने रुपयों की क्या ज़रूरत आन पड़ी” वीरेंद्र ने बेटे से पूछा।
“चिल करो यार पापा, वीकेंड पार्टी देनी है फ्रैंड्स को”अंकित ने कहा।
“पैसों को यूं मौज मस्ती में उड़ाना, अच्छी बात नही है, कुछ समीर से भी सीखो, मुंबई के कितने बड़े कॉलेज से इंजीनियरिंग कर रहा है, लेकिन उसका कोई फ़ालतू खर्च नही है, कितना संस्कारी है वो” वीरेंद्र ने खीजते हुए कहा।
“हाँ, आप तो उसी के गुणगान करो, सारी कमियां तो मेरे बेटे मे ही है, ले बेटा ये हज़ार रुपये” बीच मे वीरेंद्र की पत्नी सुरभि ने तान छेड़ी।
“ये ग़लत बात है सुरभि, तुम इसे बिगाड़ रही हो”वीरेंद्र ने खिसिया कर कहा।
“सुनो, शाम को सुधीर भाई साहब ने बुलाया है, समीर कल वापिस जा रहा है तो उससे मिलना भी हो जाएगा” वीरेन्द्र ने सुरभि से कहा।
“तो समीर लाड साहब है क्या, जो उससे मिलने जाना ज़रूरी है, मिल तो गया था यहाँ आकर, अब क्या ज़रूरत है जाने की” सुरभि तुनककर बोली।
सुधीर, वीरेंद्र का बड़ा भाई था और समीर उसका बेटा।समीर एक सुसंस्कारी लड़का था, सभी जगह उसकी तारीफ होती थी और वीरेंद्र का बेटा अंकित बिगड़ा नवाब। वीरेंद्र की पत्नी सुरभि को समीर एक आँख नही सुहाता था।
शाम को वीरेंद्र और सुरभि ,सुधीर के घर पहुंचे।
“नमस्ते चाचाजी, नमस्ते चाचीजी, “कहकह समीर ने दोनों के चरण स्पर्श किए।वीरेंद्र ने कनखियों से सुरभि को देखा।
“जीते रहो बेटा”वीरेंद्र ने आशीर्वाद दिया।
इधर उधर की बातें होती रही, सुरभि मन ही मन कुड़कुड़ाती रही।
“मेरा वॉलेट नही दिख रहा, कहाँ रख दिया, पापा आपने देखा क्या?”समीर ने पूछा।
“यहीं कहीं होगा बेटे”सुधीर ने कहा, सभी अपने अगल बगल देखने लगे उसका वॉलेट।तभी सुरभि की नज़र वॉलेट पर पड़ी।
“ये रहा तुम्हारा वॉलेट”सुरभि ने कहा।
समीर ने एकदम उसके हाथ से वॉलेट छीन लिया।
“क्यों भाई, ऐसा क्या है इसमे, जो तुमने एकदम झपट लिया, कोई ब्यूटीफुल की तस्वीर है क्या”सुरभि ने तंज कसा।
“नही चाचीजी, ऐसी कोई बात नही है”समीर ने झेंपते हुए कहा।
“हम कैसे मान लें, ऐसा नही है तो दिखाओ अपना वॉलेट”सुरभि ज़िद पर आ गई, उसने सोचा यही मौक़ा है, समीर को सबकी नजरों में गिराने का।
“समीर, दिखाओ अपना वॉलेट”सुधीर ने पूर्ण विश्वास से कहा।
“लाओ मुझे दो”कहकर सुरभि ने समीर के हाथ से वॉलेट ले लिया
और वीरेंद्र को चिढ़ाने के अंदाज़ में देखते हुए उसे खोला।
वॉलेट के भीतर की वॉल पर दो फोटोज लगीं थीं, एक सुधीर और उसकी पत्नी की थी, दूसरी तस्वीर पूरे परिवार की थी, जिसमे सुरभि ही छोटे से समीर को गोद में लेकर खड़ी थी।सुरभि का चेहरा फ़क्क रह गया।
“क्यों चाचीजी, देखी सबसे ब्युटीफुल तस्वीर, हॉस्टल में जब आप लोगों की याद आती है तो इसी ब्युटीफुल तस्वीर को देख लेता हूँ, और मेरे सारे फ्रैंड्स को पता है कि मेरी चाची के जैसे आटे के लड्डू दुनिया में दूसरा कोई नही बना सकता”समीर ने कहा और सुरभि से चिपट गया।
सुरभि की आँखों से अविरल अश्रुधार बह रही थी।
“चलो जी , जल्दी घर चलो, समीर के लिए आटे के लड्डू बनाने हैं, वह हॉस्टल लेकर जाएगा”सुरभि ने समीर का माथा चूमते हुए कहा।
*नम्रता सरन” सोना”*
भोपाल मध्यप्रदेश