सुनिए जी..! हम रोज़ इस पार्क में टहलने आते हैं और हमारे जाने तक, वह लड़का भी वहीं बैठा रहता है… वह इतनी देर ना तो अपने फोन को देखता है और ना ही किसी से बातें करता है… आज की पीढ़ी, वह भी इतनी गंभीर..? कितना अजीब है ना..?
विमला जी ने अपने पति विनोद के कहा…
विनोद जी: हां…! वैसे मैं भी इसे काफी दिनों से गौर कर रहा हूं.. जाने दो, हमें क्या…?
विमला जी: चलिए ना… उसके पास जाकर उससे बातें करते हैं… बिल्कुल हमारे रमन जैसा है… अब वह तो हमसे बात करता नहीं, जो उसकी कोई समस्या सुनूं… तो चलिए इसकी कुछ समस्या सुन लेते हैं.
विनोद जी: विमला…! आज की पीढ़ी से थोड़ा बचकर रहने में ही भलाई है… यह जैसे दिखते हैं, वैसे होते नहीं और जो होते हैं वह दिखते नहीं… कौन जाने हम इसकी समस्या सुनने जाएं और यह हमारे लिए ही कोई समस्या खड़ी कर दे…!
विमला जी: मैं जानती हूं… रमन के व्यवहार को देखते हुए आपका यह रवैया है और जो जायज भी है… पर हम दुनिया में एक ही आदमी के रवैया को देखकर, बाकी सभी को वैसा ही समझ लेंगे, तो फिर जीना ही दूभर हो जाएगा… चलिए ना जी…! एक बार मुझे उसकी तकलीफ जाननी है… हम अपनी तकलीफ तो कम नहीं कर सकते, पर शायद उसकी थोड़ी मदद कर पाएं.
फिर दोनों पहुंच जाते हैं उस लड़के के पास… विमला जी एक तरफ और एक तरफ विनोद जी बैठ जाते हैं… वह लड़का उन दोनों को अपने बगल में बैठता देख, अपने आंसुओं को पोंछता है और थोड़ा सतर्क हो जाता है…
विमला जी: हेलो बेटा…! हम काफी दिनों से तुम्हें देख रहे हैं… तुम घंटों यहां अकेले बैठे रहते हो… इतने शोर-शराबे में भी तुम शांत खोए खोए से रहते हो… कोई परेशानी है क्या…? तुम चाहो तो हमें बता सकते हो…
वह लड़का थोड़ा सा हिचकिचाता हुआ कहता है… नहीं आंटी जी…! ऐसी कोई बात नहीं… थोड़ी देर यूं ही अकेले बैठने में मुझे अच्छा लगता है.
विनोद जी: बेटा..! तुम बताना नहीं चाहते तो, कोई बात नहीं… पर इतना तो हम भी जानते हैं… कि इंसान तब ही अकेला रहना पसंद करता है, जब उसको किसी का साथ ना पसंद आए… जैसे हमारा रमन.
यह बोलकर विनोद जी खामोश हो गए… और साथ में सभी… थोड़ी देर बाद, लड़का: अंकल..! आपने अपनी बात खत्म नहीं कि…
विनोद जी: बेटा..! तुम्हारी तरह हमारा एक बेटा है जो, अब फॉरेन सेटल है… उसे भी अकेला रहना पसंद था शायद, इसलिए अपने मम्मी पापा को भी भूल गया.
विमला जी: बस, आप तो हर वक्त मेरे बेटे के पीछे ही पड़े रहते हैं.
लड़का: काश..! मेरे लिए भी कोई ऐसा कहता… जानते हैं अंकल… मैं भी फैमिली पर्सन हूं… आप यकीन नहीं करेंगे, मेरे परिवार में मेरे मम्मी पापा, एक भाई, एक बहन है… पर फिर भी मैं हमेशा अकेला ही महसूस करता हूं… मैं सुबह उठकर अपने काम पर चला जाता और जब घर वापस आता, हर कोई अपने अपने कमरे में होता है… हां समय-समय पर, मम्मी खाना-पीना दे जाती है.. बस फिर हम सभी अपने अपने कमरे में… कभी-कभी तो लगता है, किसी हॉस्टल में रहता हूं मैं… घुटन सी होती है उस घर में… इसलिए मैं थोड़ी देर इस भीड़ में आ जाता हूं… यहां परिवारों को हंसते खेलते देखकर सोचता हूं… काश..! मेरा परिवार भी ऐसा होता..!
उसकी बातें तो थी बड़ी ही साधारण सी, पर उसमें गहराई बहुत थी… जो शायद विमला जी और विनोद जी समझ गए थे.
विमला जी: बेटा…! तुमसे एक बात पूछूं…? थोड़ा निजी है.
लड़का: हां पूछिए ना आंटी जी…!
विमला जी: तुमने आखरी बार अपने परिवार के साथ बैठकर चाय कब पी थी…?
लड़का अपने भौंहे सिकुड़कर याद करने की कोशिश करने लगता है… पर उसे याद ही नहीं आता…
विमला जी: बस बेटा… तुम्हारी परेशानियों का कारण भी यही है..
लड़का: आंटी जी, मतलब नहीं समझा…
विमला जी: मतलब यह बेटा… जब हमारे पास काम ज्यादा होता है या फिर रोजमर्रा के काम और नियम को समय पर करने की चाहत ज्यादा होती है… ताकि हमारा काम आसानी से चलता रहे…. इस बीच ज़रा सा भी अलग कोई चीज़ या इधर-उधर का काम हमारे अंदर झुंझलाहट ला देती है… और वह झुंझलाहट हम अपने परिवार पर निकाल देते हैं… ऐसा कई बार होते ही हमारा परिवार उस चीज़ को स्वीकार कर उस स्थिति के अनुसार खुद को बदल लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है, हमें उनका साथ पसंद नहीं… और फिर यही बदलाव हमें खटकने लगता है.
लड़का: सही कह रहे हैं आप आंटी जी…! पिछले साल अपने काम को लेकर, मैं इतना व्यस्त हो गया था कि, जब भी मेरी बहन मुझसे बात करने आती या फिर कोई फरमाइश रखती… मैं उस पर चिढ़ जाता… यहां तक कि मम्मी पापा से भी मैं सीधे मुंह बात नहीं करता था… ऑफिस से लौटकर सीधे अपने कमरे में चला जाता था… शायद उसी का नतीजा है, यह सब… थैंक यू आंटी जी..! आप लोग अजनबी होकर, मेरी इतनी मदद की… मेरा नाम रौशन है और जब भी आप लोगों को मेरी ज़रूरत पड़े, इस नंबर पर कॉल कर लीजिएगा… यह कह कर वह एक कार्ड विनोद जी को थमा देता है.
अंकल..! मेरी कहानी तो आप जान चुके हैं, पर अब मैं आप लोगों के बारे में जानना चाहता हूं.
विनोद जी: बस बेटा…! समस्या वही है, सिर्फ किरदार और माहौल अलग.
रौनक: मतलब…?
विमला जी: तुमने अपनी गलती समझ ली और किसी किसी को अपनी कोई गलती नज़र ही नहीं आती… बेटा..! उम्र के इस पड़ाव में मां बाप अपने औलाद पर निर्भर हो जाते हैं… और यही वह वक्त है, जब सारी समस्याएं शुरू हो जाती है… हमारा बेटा विदेश में हमें भी अपने साथ ले गया था… पर वहां उसके पास हमारे लिए समय ही नहीं होता था… पराया देश, उस पर बेटे का यह पराया व्यवहार और भी पराया कर दे रहा था हमें… यहां अपने देश में बेटा ना सही, पर रिश्ते नातेदार, पड़ोसी का साथ होता था… पर वहां तो कुछ भी नहीं… यहां तक की भाषा भी अपनी नहीं… इसलिए हम वहां से चले आए… बस इसी बात पर गुस्सा कर, हमारा बेटा हमसे बात नहीं करता…
रौनक: आंटी जी…! उम्र में तो मैं आप लोगों से छोटा हूं, पर आज एक सलाह मैं भी देना चाहता हूं… जिस तरह आप लोगों ने मेरी समस्या समझी, क्योंकि आप लोगों ने खुद को माता-पिता के जगह रखकर सोचा… पर एक बेटे का नज़रिया देखने से चूक गए… जो नज़रिया एक बेटा होने के कारण मैंने देख लिया.
विमला जी और विनोद जी हैरानी से रौनक की बातें सुन रहे थे.
विमला जी: क्या मतलब है बेटा…?
रौनक: आप लोगों को वहां अकेला महसूस होता था, इसलिए आप लोग यहां चले आए… पर आपका बेटा… उसका क्या…? वह भी तो अकेला ही महसूस करता होगा, तभी तो वह अपने परिवार को अपने साथ ले गया था… आप लोगों के लौट आने का रास्ता भी था… पर वह सब कुछ छोड़ छाड़ कैसे आए…? वह आप लोगों ने नहीं सोचा…? बेहतर तो तब होता, जब आप लोग वहां रहकर, एक साथ समय बिताते… भले वह समय ना दे पा रहा हो.. पर फिर भी उसके समय पर हक जताकर उसको अपनेपन का एहसास कराते…. दोनों एक दूसरे की स्थिति को समझ कर, एक दूसरे का सहारा बनते…
दोनों खामोशी से रौनक की बातें सुनकर हैरान थे और सोच रहे थे… क्यों हमने इस नज़रिए से नहीं देखा..?
विमला जी: बेटा..! शायद आज हम लोगों का मिलना यूं ही नहीं था… दोनों ने आज एक दूसरे के नज़रिए को समझा…अब इस जाते हुए साल के साथ-साथ पुराने नजरियों को भी हम अलविदा कहेंगे… नए साल में नई उम्मीद लेकर, हम अपने परिवार को महत्व देंगे… भले उसमें थोड़ा एडजस्ट करना पड़े… पर अब शिकायत नहीं, सिर्फ प्यार होगा….
6 महीने बाद, फोन पर…
रौनक: हेलो आंटी…! कैसी हो आप..? जन्मदिन मुबारक हो.
विमला जी: शुक्रिया बेटा…! मैं बहुत अच्छी हूं… आज मेरे बेटे ने मेरे जन्मदिन पर पार्टी रखी है… बस उसी के लिए तैयार हो रही हूं… तुम अपनी बताओ बेटा…?
रौनक: आंटी जी..! मैं भी ठीक हूं… कल हम सपरिवार वैष्णो देवी दर्शन के लिए जा रहे हैं.
इतने में विनोद जी, विमला जी से फोन लेकर कहते हैं… बेटा..! हमारे जीवन में इसी तरह खुशियां बनी रहे ,माता से प्रार्थना करना…
आज सभी की आवाज़ में एक अलग ही खुशी का शोर था.
दोस्तों… समय के साथ-साथ काम, माहौल, हालात सब कुछ बदल गए हैं… पर पीढ़ियों का अंतराल… वह नहीं मिट पाया है… पुरानी पीढ़ी की सोच और नई पीढ़ी की सोच अलग-अलग है… पर दोनों का नज़रिया गलत नहीं… आज की पीढ़ी डिप्रेशन की शिकार भी इसी वजह से हो रही है, क्योंकि उन्हें लगता है उन्हें सुनने वाला कोई नहीं है… अगर दोनों पीढ़िया एक दूसरे की जगह पर, खुद को रख कर सोचे तो, डिप्रेशन शायद बहुत हद तक कम हो जाए.
धन्यवाद 🙏
#सहारा
रोनिता कुंडू