बासी बहू के लिए, और अच्छा उसे नसीब नहीं – रोनिता कुंडु   : Moral Stories in Hindi

मम्मी जी.. मैं खाना खाने बैठी हूं… खा लूं फिर आपकी दवाई देती हूं.. मनीषी ने कहा 

जब तुम्हें पता ही होता है खाना खाने के बाद ही मुझे दवाई लेनी होती है… फिर पहले ही मुझे दवाई देकर क्यों नहीं खाने बैठी..? या फिर यूं कह लो आज पुलाव देखकर तुम्हारी जीभ सब्र नहीं कर पाई… अरे तुम्हारा खाना मैं थोड़े ही ना खा लूंगी… थोड़ा सब्र करना भी सीख लो… कविता जी ने कहा 

मनीषा कविता जी के इन बातों से बड़ी खींझ गई और अपने खाने को छोड़कर वह उठकर पहले कविता जी को दवाई देने चली गई… खाने पर से यूं उठकर उसने दोबारा खाना खाया तो सही, क्योंकि वह बड़े ही गरीब परिवार से थी जहां खाने की बर्बादी का सोचना तो दूर बड़ी मुश्किलों से दो वक्त का खाना भी नसीब होता था… पर दोबारा खाते हुए उसकी पहले सी भूख नहीं रही… उसने बस खाने की बर्बादी ना हो इसलिए खाने को बड़े ही बेमन से खा लिया… 

खैर अगले दिन मनीषा सबको खाना खिलाने के बाद कविता जी को दवाई देकर फिर खाने बैठी… पर जैसे ही खाने के दो निवाले उसने खाया कविता जी उसके सामने आकर कहती है.. बहु सब खाना खा लिया क्या..? अरे ममता आ रही है और दोपहर में आ रही है तो खाना तो खाएगी ही ना, उसके लिए थोड़ा खाना रख देना …

मनीषा:   पर मम्मी जी.. खाना तो बस मेरे भर बचा है. कोई नहीं आने दो दीदी को उनके लिए कुछ बना दूंगी… 

कविता जी:   कुछ बना दूंगी से क्या मतलब है तुम्हारा..? शाम का समय नहीं है जो कुछ भी बना दोगी… दोपहर का खाना इंसान पेट भर खाता है… ऐसे में कुछ कैसे चलेगा..? तुम एक काम करो तुमने अभी तक दो ही रोटियां खाई है ना..? कोई बात नहीं बाकी की रोटियां और चावल ममता के लिए रख दो और जो तुम कुछ बनाने वाली थी ममता के लिए, वही तुम अपने लिए बनाकर खा लो.. हम तो घर के ही लोग हैं थोड़ा कम ज्यादा चल जाएगा… पर बेटी ससुराल से आकर भूखे पेट रहे… यह अच्छा थोड़े ही ना लगता है..

मनीषा कहना तो चाहती थी बहुत कुछ, पर जो वह खाने के लिए बोलती तो कविता जी उसके मायके की गरीबी का ताना देकर कहती कभी जिंदगी में ढंग से तो खाया नहीं, इसलिए ऐसा करती है… क्योंकि यह आज पहली बार नहीं था, हमेशा से ही उसे उसके परिवार के गरीब होने का ताना दिया जाता था.. इसलिए उसने बस दो ही रोटियां खाई और सारा खान समेटकर रसोई में रखने चली गई… वह कुछ क्या बनाती..? उसकी भूख ही मर गई थी कविता जी के बातों से.. थोड़ी देर बाद ममता आती है उसके आते ही कविता जी कहती है… आ गई लाडो… जल्दी हाथ मुंह धो लो… तब तक तुम्हारी भाभी खाना लगा देगी.. वह रसोई में ही है.. मैं उसे अभी आवाज देती हूं 

ममता:   मम्मी मैं तो मैनें आपको कुछ ही देर पहले ही अपने आने के बारे में बताया, फिर मेरा खाना कैसे बना इतनी जल्दी..?

कविता जी:   वह क्या है ना..? तुमने जब मुझे फोन किया उस वक्त तुम्हारी भाभी बस खाने ही बैठी थी और उसने जब सुना तुम आ रही हो, उसने झट सारा खाना उठाकर तुम्हारे लिए रख दिया…

ममता:   फिर उन्होंने क्या खाया..? 

कविता जी:   उसने खाई है दो रोटी और अब तक शायद कुछ बनाकर खा भी चुकी होगी… मैंने उससे कहा था… 

ममता:   पता है मम्मी… आज मैं इस समय यूं अचानक क्यों आई..? क्योंकि आज मेरी सास ने मेरे हिस्से की खीर मेरी ननद माया को दे दिया.. आपको तो पता ही है मुझे खीर कितनी पसंद है और मैंने सबको खिलाने के बाद ही अपनी खीर ली थी… माया ने भी खीर खाई थी… पर फिर भी उन मां बेटी की नजर मेरी खीर पर थी… बात सिर्फ खीर की नहीं है, बात यह है कि उस घर में बहू को बाकी सदस्यों से अलग समझा जाता है, जो कभी कुछ बच गया वह बासी खाना बहू के नाम… जो कभी कुछ अच्छा बन गया तो बहू के नाम कुछ नहीं आता… अब आप अपनी बेटी से इतना प्यार करते हैं वहीं दूसरे की बेटी जिसको आप खुद ही इस घर में लेकर आए हैं.. वह नौकरानी दिखती है… इससे आप जो अपने रिश्तों में कड़वाहट घोल रही है उसका घूंट एक दिन आपको ही पीना पड़ेगा… बेटी का क्या है वह तो अपने ससुराल चली जाएगी और साथ रहेगी बहू.. तब जब आपको सच में उसकी जरूरत पड़ेगी तब वह चाह कर भी आपका साथ नहीं दे पाएगी… जिस तरह से आज अपनी सास से परेशान होकर मैं यहां आई हूं और उनके बारे में बुरा भला बोल रही हूं… कल को आपके साथ भी वही होगा और उस समय बुरी कहलाती है सिर्फ बहुएं… पर यह कोई नहीं देखता के बोया पेड़ बबुल का तो आम कहां से खाएंगे..? अभी आपको देखना है की आपको इस कड़वाहट का घूंट पीना है या रिश्तो में मिठास घोलना है 

कविता जी:   सच में बेटा… कभी मैंने इस नजरिया से देखा ही नहीं… बहू को तो कभी चैन दिया ही नहीं…  पर जब आज तेरी बातें सुनी तो यह एहसास हुआ कि मैं अब तक कितनी गलत कर रही थी.. 

ममता:   अब जो खाना मेरे लिए भाभी के मुंह से छिना था.. वह रात में खुद ही खा लेना आप… अभी मैं और भाभी बाहर खाना खाने जा रहे हैं.

कविता जी:   मैं भी चलूंगी… बड़े दिन हो गए बाहर का खाना खाए हुए… 

ममता:   नहीं यहां बस बहूओ को ही इजाजत है… आज कुछ घंटे के लिए मुझे हर सास से मुक्ति चाहिए.. आज हम बहूए मिलकर थोड़ा खाएंगे और आधा पेट सास की चुगली करके भरेंगे… आप रहो घर में अकेले… यही आपकी सजा है 

कविता जी:   ठीक है अब गलती की है तो सजा भी तो भूकतनी पड़ेगी 

ममता:   मैं जाकर भाभी को बताती हूं… यह कहकर ममता जैसे ही उठी.. पीछे मनीषा को खड़ा पाया.. ममता कहती है अरे भाभी आप पीछे ही हो..? इससे ज्यादा वह और कुछ कह पाती मनीषा उसे गले लगा कर अपने आंसू पोंछते हुए कहती है… मेरी ननद तो इतनी समझदार है और उसने मेरी गृहस्थी में तो सब ठीक कर दिया… पर बेचारी अपने ससुराल वालों को कैसे बदलेगी.? 

ममता:   उसकी चिंता आप मत करो भाभी.. आपकी ननद निरूपा राय नहीं झांसी की रानी है… या तो वह अपने ससुराल वालों को बदल देगी या खुद को ही ढीठ बना लेगी… वहां मौजूद सभी हंस पड़ते हैं… 

धन्यवाद 

रोनिता

#कड़वाहट

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