बस…अब और नहीं – विभा गुप्ता : Moral stories in hindi

    ” अनिरुद्ध ….तेरा दिमाग तो ठीक है….बेटी को क्या उम्र भर यहीं बिठायेगा…समाज- बिरादरी वाले क्या कहेंगे…तू अभी के अभी सलोनी को उसके ससुराल भेज दे..।” रामराजी देवी अपने बेटे पर चिल्लाई।

   ” बस माँ….अब और नहीं…सलोनी अब कहीं नहीं जायेगी।” अनिरुद्ध चीखते हुए बोले।

      अनिरुद्ध और अनिता की इकलौती संतान थी सलोनी।विवाह के सात बरस बाद जब अनिरुद्ध ने बेटी का मुख देखा तो खुशी-से उनकी आँखें छलक पड़ी थी।हालांकि उनकी माताजी तो पोता का आस लगाये बैठी थीं लेकिन फिर अगली संतान की उम्मीद लगा बैठी।किस्मत की बात थी कि सलोनी के बाद अनिता को कोई संतान हुई ही नहीं।

      बस सलोनी अपने माता-पिता के आँख का तारा बन गई।नन्हें-नन्हें कदमों से चलकर अपनी तोतली बोली में जब उसने पहली बार रामराजी देवी को ताती(दादी)कहा था तब उन्होंने भी अपना गुस्सा थूक दिया था।

      समय के साथ सलोनी ने नर्सरी से सेकेंडरी स्कूल पास कर लिया।बारहवीं के बाद उसने काॅलेज़ में एडमिशन लिया जहाँ उसकी दोस्ती रिया से हुई।कभी-कभी रिया को छोड़ने उसका भाई आकाश आता था जो देखने में हैंडसम था और बैंक की तैयारी कर रहा था।

      बुखार की वजह से सलोनी तीन दिनों तक काॅलेज़ नहीं गई थी।उसने नोट्स लेने के लिये रिया को फ़ोन किया तो रिया बोली,” घर आ जा…साथ में बैठकर काॅफ़ी भी पियेंगे।” उस दिन सलोनी ने आकाश को देखा तो बस.. देखती ही रह गई।आकाश उसके दिल में बस गया था।आकाश भी उसे पसंद करने लगा था।

      एक दिन आकाश जब रिया को काॅलेज़ छोड़ने आया तब रिया ने बताया कि भाई की बैंक में नौकरी लग गई है।सलोनी ने Congratulation कहा तो जवाब में आकाश ने उसे एक किताब देते हुए बोला,” मुझे अच्छी लगी तो आपके लिये ले आया।” 

     सलोनी ने किताब खोला तो उसमें एक नोट लिखा था,” आई लव यू सलोनी ” सलोनी ने भी जवाब दिया और इस तरह से दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा।

      सलोनी का ग्रेजुएशन पूरा होते ही घर में उसके विवाह की चर्चा होने लगी।तब उसने अपनी माँ को आकाश के बारे में बताया।अनिरुद्ध रिया से मिल चुके थें, उसी से उन्होंने आकाश के बारे में भी एक छवि बना ली थी।उन्होंने फ़ोन पर आकाश के पिता से बात की और फिर उनसे मिलने चले गये।

      चाय-नाश्ते के बाद आकाश के पिता ने अनिरुद्ध को बताया कि आकाश हमारी अपनी औलाद नहीं है।शादी के दस बरस तक जब मेरी पत्नी की गोद सूनी ही रही तब हमने एक अनाथालय से आकाश को गोद लिया था।उसके कदम पड़ते ही मेरा बिजनेस बढ़ने लगा…साल भर बाद ही रिया हमारी गोद में आ गई थी।हमारे जीवन में तो वह एक फ़रिश्ता बनकर आया है…बाकी तो आप उससे मिल ही चुके हैं।आपको आपत्ति हो तो…।

    ” नहीं-नहीं…हम लोग किसी जाति-धर्म के भेदभाव में विश्वास नहीं रखते..लेकिन एक बार अपनी माँ से बात कर लेता तो ठीक रहता…हमारे घर की बड़ी तो वो ही हैं..।” अनिरुद्ध बोले तो आकाश के पिता ने भी कहा,” ज़रूर…।”

       रामराजी देवी ने सुना कि लड़का ‘अनाथ है’ तब वो भड़क गई,” जिसके माँ-बाप का पता नहीं..जात-पात का ठिकाना नहीं..उसके हाथ में तू बेटी का हाथ कैसे दे देगा…।”

  अनिरुद्ध ने समझाया कि आजकल ये सब कोई नहीं मानता और फिर आकाश को संस्कार तो रिया के माता-पिता से ही मिले..।लेकिन उनकी माँ नहीं मानी…उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि जो उस लड़के को दामाद बनाया तो मेरा मरा मुँह देखना।

      सलोनी ने पिता की लाचारी देखी… उसके पिता अपनी माताजी के खिलाफ़ जाकर उन्हें दुख देना नहीं चाहते थें पर बेटी का दिल भी नहीं तोड़ना चाहते थें।तब सलोनी ने ही आकाश से माफ़ी माँग ली।उसकी दादी ने अपने ही एक परिचित के पोते निलेश जो कि मुंबई में साॅफ़्टवेयर इंजीनियर था, से उसका विवाह तय कर दिया।

         अनिरुद्ध ने बड़ी धूमधाम से बेटी का ब्याह किया।देखने वालों ने भी कहा कि लड़का क्या है…हीरा है हीरा।       कुछ ही दिनों में सलोनी ने अपने पति के साथ खुद को एडजेस्ट कर लिया लेकिन महीना बीतते- बीतते निलेश के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा।वह बेवजह सलोनी पर चिल्लाता…खाना फेंक देता…अपने मित्रों के सामने उसे अपमानित करता।कभी- कभी तो उसपर हाथ भी उठा देता।सब ठीक हो जायेगा ‘ यह सोचकर सलोनी सारे ज़ुल्म चुपचाप सहती रही।उसके पिता का फ़ोन आता..माँ से भी बात होती..सब ठीक है ‘ कहकर वह फ़ोन रख देती थी।

          इसी बीच सलोनी प्रेग्नेंट हुई…खुशखबरी सुनकर उसकी दादी बहुत खुश हुईं।पिता उससे मिलने मुंबई गये…बेटी कमज़ोर दिखी तो उन्होंने समझा कि प्रेग्नेंसी के कारण है… निलेश का व्यवहार भी अच्छा था..तो वे बेटी को अच्छी खुराक लेने और अपना ख्याल रखने का कहकर खुशी-खुशी वहाँ से लौट आये।सलोनी पर निलेश का ज़ुल्म बढ़ता ही गया।

            तीन महीने बाद सलोनी ने फ़ोन करके बताया कि सीढ़ियों से गिरने के कारण उसका गर्भपात हो गया है।वह नहीं कह पाई कि निलेश ने उसे मारा था..।एक महीने बाद बोली कि पापा..मैं आपलोगों से मिलने आ रही हूँ।

        ससुराल आकर उसने किसी से भी कुछ नहीं कहा।दो दिन बाद सास से बोली कि मायके जाना चाहती हूँ।सास-ससुर खुश कि बहू ने कोई शिकायत नहीं की..फिर भी उन्होंने सलोनी को समझाया कि मायके में ससुराल और पति की शिकायत करना अच्छी बात नहीं है।

        पूरे दो बरस बाद बेटी को देखकर सलोनी की माँ तो रो पड़ी थी।पोती का मुरझाया चेहरा देखकर उसकी दादी को कुछ खटका लगा लेकिन फिर मन को झटक दिया।अनिरुद्ध ने जब बेटी को सीने से लगाया तो वह फूट-फूटकर रोने लगी।पिता ने बेटी की आँखों से बहते आँसुओं में उसके साथ हुए अत्याचारों की पूरी गाथा पढ़ ली थी।उनकी लाडली दो वर्षों में ही बाईस की उम्र में चालीस की लगने लगी थी।

        अगले दिन जब निलेश का चचेरा देवर सलोनी को लेने आया तो अनिरुद्ध कड़कते हुए बोले,” अब मेरी बेटी उस नरक में नहीं जायेगी।तलाक के कागजात भेज दूँगा…अपने भाई से साइन करवा लेना वरना तुम लोगों के खिलाफ़ घरेलू हिंसा,दहेज़ और मानसिक-उत्पीड़न के इतने केस ठोकूँगा कि पूरी ज़िंदगी तुम्हारा खानदान अदालत के चक्कर लगाता रह जाएगा।” उनकी माताजी ने टोकना चाहा तो उन्हें भी अब बस..कहकर बेटी का हाथ पकड़कर वे कमरे में आ गये।तब सलोनी की माँ बोली,” माँजी को नाराज़ करना ठीक नहीं…।”

     ” एक गलती कर चुका हूँ परन्तु अब नहीं…अपनी बेटी की खुशी के लिये मैं माँ तो क्या पूरी दुनिया के खिलाफ़ जा सकता हूँ।” दृढ़ स्वर में कहते हुए अनिरुद्ध ने बेटी को अपने अंक में समेट लिया।पिता के साये में सलोनी खुद को बहुत मजबूत महसूस करने लगी थी।

       सलोनी ने बीएड काॅलेज़ में एडमिशन ले लिया।बीएड की डिग्री मिलते ही वह एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगी और बच्चों के बीच रहकर अपने अतीत को भुलाने का प्रयास करने लगी।उसके ससुराल वाले अपने बेटे की करतूतों से अच्छी तरह वाकिफ़ थें…इसीलिए उन्होंने निलेश से तलाक के पेपर पर हस्ताक्षर करवाने में तनिक भी देरी नहीं की।

       एक दिन अनिरुद्ध को बैंक जाना पड़ा।वो किसी अधिकारी से बात कर रहें थें तभी एक नौजवान ने आकर उनके चरण-स्पर्श किया तो वे चौंक पड़े,” आकाश! तुम यहाँ…।” 

   ” जी अंकल…पिछले महीने ही इस ब्रांच में मेरी पोस्टिंग हुई है।घर में सब कैसे हैं..?” आकाश जो पूछना चाहता था…उसे अनिरुद्ध समझ गये थें।मुस्कुरा कर बोले,” किसी दिन घर आओ ना..सबसे मिल लेना।”

       घर आकर अनिरुद्ध ने अपनी माताजी और पत्नी को आकाश के बारे में बताया और ये भी कहा कि उन्होंने आकाश के साथ सलोनी का विवाह करने का फ़ैसला कर लिया है।फिर आकाश के पिता को फ़ोन करके सलोनी के बारे में बताया और ये भी कहा कि यदि आप चाहें तो….।

     ” चाहने की तो बात ही नहीं है अनिरुद्ध जी…रिया के जाने के बाद से हम बहू के लिये तरस रहें थें लेकिन आकाश तैयार ही नहीं ही रहा था…पर अब तो उसके इंकार करने की कोई गुंजाइश ही नहीं है।हम कल आकर आपसे मिलते हैं।” आकाश के पिता खुशी-से चहक उठे थें।

      अगले दिन स्कूल से आकर सलोनी ने घर में मेहमानों को देखा और एक लंबे समय बाद आकाश को देखकर वह चौंक उठी।तब दादी ने उसे कहा,” बिटिया… तेरी पसंद के खिलाफ़ जाकर हमसे जो भूल हुई है, उसे हम सुधारना चाहते हैं।तू मना मत करना…।” कहते हुए रामराजी देवी ने अपने हाथ जोड़ लिये तो सलोनी उनके गले लगकर रो पड़ी।

      एक शुभ-मुहूर्त में सलोनी और आकाश का विवाह हो गया।आज सलोनी अपने अध्यापिका होने की , सास-ससुर और पति की ज़िम्मेदारी बखूबी निभा रही है।

                                विभा गुप्ता 

                                स्वरचित 

# खिलाफ़

          कभी-कभी घर के बड़ों से भी गलत फ़ैसले ले लिये जाते हैं और तब छोटे उनके निर्णयों के खिलाफ़ जाकर उन गलतियों को सुधारते हैं जैसा कि कहानी के मुख्य पात्र सलोनी के पिता ने किया।

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