सुधीर की सभी बातों को अनसुना कर राधिका तीर की तरह घर से निकल गई। नुक्कड़ पर राधिका थमी। एक रिक्शा को स्टेशन चलने को कह वो बैठ गई। साथ में एक बैग था जिसमें उसके सर्टिफिकेट थे और एक अटैची में कपड़े थे जो उसने अलमारी से निकाल कर अटैची में यूँ ही ठूस लिए थे।
स्टेशन पर आकर असमंजस में कुछ पल ऐसे ही निकल गए। हालात मुश्किल हैं पर अब थक-हारकर उसने फैसला कर लिया है। मायके जाने का सवाल ही नहीं है।माँ पापा तो अब रहे नहीं। पिछली बार जब छुट्टियों में गई थी तो रीता भाभी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी यह जतलाने की कि उसके आने से घर का बजट बिगड़ जाता है। हर समय खर्चों का हिसाब बताया करती थीं कि खाने में इतना खर्चा हो गया। अपने बेटे की पढ़ाई का भी खर्चा बताया करती थीं और फिर ये भी कि राधिका के आने से घरखर्च बढ़ गया और उसके कपड़े लेन देन पर भी अच्छी खासी राशि खर्च होने का बताती थीं। भैया भी हाँ में हाँ मिलाया करते थे कि बहुत महँगाई है रीता बहुत कठिनाई से घर चला पाती है।
दिल्ली का टिकट लेकर राधिका ट्रेन में बैठ गई। चार घंटे का सफर है। बैठे बैठे कट जाएगा। मानसी दीदी के यहाँ जाने का सोचा है। मानसी दीदी राधिका के मायके में पड़ोस के घर में अपने मम्मी पापा और एक बड़े भाई के साथ रहती थीं। दोनों परिवारों में मिलना जुलना था। मानसी दीदी की शादी दिल्ली में हुई थी। जीजाजी का स्वयं का मसालों का कारखाना है। दीदी भी व्यापार में उनका हाथ बटाती हैं। एक दो बार दीदी से मायके में मुलाकात हुई थी तो उन्होंने बताया था और कहा था कि कभी भी कोई बात या जरूरत हो तो बताना। जानती हैं कि भैया भाभी तो मेरी मदद करने से रहे।
इधर सुधीर का वही ढर्रा है। पत्नी को पैरों की जूती समझना और शक करना। राधिका की शादी हुए तीन साल हो गए है। ऐसी ही जलालत भरी जिन्दगी जीने को मजबूर थी राधिका । जब इस तरह के आदमी को ये पता चल जाता है कि पत्नी का मायका पत्नी के साथ नहीं खड़ा है तो ऐसे लोग निरंकुश हो जाते हैं और पत्नी पर अत्याचार करने लगते ?
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राधिका फिर भी कैसे न कैसे करके सहे जा रही थी।तीन साल में ये दूसरा मौका है जब वो गर्भवती हुई है। पहली प्रेग्नेंसी में आठवें महीने मे गर्भपात हो गया था। डॉक्टर ने आयरन की कमी, कुपोषण के साथ मानसिक तनाव बताया था गर्भपात के लिए जिम्मेदार।राधिका क्या बताती उनको कि किस तरह से प्रताड़ित करते हैं उसको। सास भी सुधीर का पक्ष लेकर आग भड़काने का काम बखूबी करती हैं।
एक साल के अंदर ही दूसरी बार गर्भवती हुई है राधिका । कुछ अपने होने वाले बच्चे और कुछ गृहस्थी का वास्ता देकर घर का माहौल सामान्य बना कर रखती है वो।
लेकिन शक्की आदमी का दिमाग है सुधीर का। आज काम से आते ही बोला,”कल तैयार हों जाना सुबह। डॉक्टर के पास चलना है। मैंने दफ्तर से छुट्टी ली है।”
राधिका को आश्चर्य के साथ खुशी भी हुई।क्योंकि अभी दूसरा ही महीना चल रहा है और पिछली प्रेग्नेंसी में तो वो अकेली ही डॉक्टर को दिखाने जाती थी।
इतने में सुधीर ने बम फोड़ा ये कहकर,”डीएनए टेस्ट करवाना है, पता करना है कि ये मेरी ही संतान है कि नहीं। मझे लगता है कि तुम मुझे धोखा दे रही हो।”
राधिका सन्न खड़ी रह गई। ऐसी बात सुधीर के दिमाग में क्यों कर आई। वो समझ ही नहीं सकी। सुधीर हमेशा ही उसके पड़ोसियों से बात करने के खिलाफ रहता था। बाजार अगर जाती तो दस सवाल पूछता कि किस के साथ गई हो? क्यों देर लगी? आदि आदि।
लेकिन सुधीर ऐसी बातों को, बेवजह के शक को अपने दिलोदिमाग मे इस कदर जमा कर लेगा कि पति-पत्नी के आपसी सम्बंध शक की ज्वाला में झुलसने लगेंगे, ऐसा राधिका ने सपने में भी नहीं सोचा था। माना सुधीर गुस्से वाला और अति शीघ्र क्रोधित हो जाता था पर वो स़ंदेह करेगा अपनी ही संतान के लिए राधिका पर।
ये राधिका को गवारा नहीं हुआ और आज उसने अपनी आवाज उठाई कि वो डीएनए टेस्ट नहीं करवाएगी।
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सुधीर ने जोर से कहा कि अगर वो डरती नहीं है तो टेस्ट करवाए। क्या किसी और का बच्चा है जो इतना भय है?
राधिका ने जबाब दिया,”सुधीर , शादी के तीन साल हो गए हैं। इन तीन सालों में तुमने अपना हमेशा गुस्सैल रूप ही दिखाया है। पत्नी तुम्हारे हिसाब से पैरों की जूती है जब चाहे जैसे चाहे व्यवहार करो। पता है तुम्हें कि मेरा मायके का सहारा नहीं है तो तुम मनमानी करते गए।पहले बच्चे को भी मैंने खो दिया क्योंकि मैं अपना ध्यान नहीं रख पाई। मैं भी ये सोचकर सहती गई कि कभी तो मेरी कद्र महसूस करोगे तुम। पर नहीं शायद मैं गलत थी। मुझे तुम्हें और मम्मी जी को बहुत पहले अपने ऊपर ज़ुल्म करने से रोक देना चाहिए था। तुमने जब पहली बार हाथ उठाया तब ही और मम्मी जी ने एक औरत हो कर भी मेरे चरित्र पर पहली बार तुम्हारे कान भरे थे जब मेरा ममेरा भाई अचानक घर आ गया था, तब ही। क्या-क्या गिनाऊँ मै..!
लेकिन आज तुमने सारी सीमाएं तोड़ दी हैं। तुमने मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाई है, मेरी अस्मिता का मज़ाक बना कर रख दिया है। मेरे चरित्र पर शक किया है तुमने और ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती हूँ। मैं जा रही हूँ।”
सुधीर ने ताना मारते हुए कहा,”दो दिन में तुम्हारे भैया भाभी तुम्हें घर से बाहर का रास्ता दिखा देंगे। फिर मत आना यहाँ रोते हुए।'”
“बस अब और नहीं! मैं पढ़ीलिखी हूँ। नौकरी करके अपना और होने वाले बच्चे को पाल लूंगी पर ऐसी गिरी हुई मानसिकता वाले व्यक्ति के साथ नहीं रह सकती हूँ मैं अब। तुम्हारे पास तलाक के कागज भिजवा दूंगी। चिंता न करो, तुम्हारे पास नहीं आऊँगी।”कह अपने सर्टिफिकेट और कपड़े लेकर राधिका निकलने लगी।
अब सुधीर को लगा कि बात ज्यादा बढ़ गई है तो कहने लगा ,” मान जाओ जरा रुक भी जाओ।”
पर वो नहीं रुकी। जानती थी कि सुधीर अपनी आदतों से बाज नहीं आने वाला। कल कुछ और वजह मिल जाएगी शक करने की। जहाँ आपसी विश्वास नहीं हो वहाँ कब तक वो रिश्ते निभाने के लिए झुकती रहेगी। अब अपना फैसला नहीं बदलेगी।
सब बातें याद कर राधिका का सिर फटने लगा। मानसी दीदी को मोबाइल मिलाकर सब बताया राधिका ने।
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सभी बातें सुन कर दीदी ने एक ही बात कही, “तुम ने पहले ही आ जाना था। इतना क्यों सहा? चलो, जब जागो, तभी सवेरा। तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो , अपने को अकेला नहीं समझो। नौकरी,रहने खाने,सबका प्रबंध हो जाएगा। मैं और तुम्हारे जीजाजी तुम्हारे साथ हैं।”
राधिका ने भरे गले से उनको धन्यवाद किया।
दीदी बोली,” मैं स्टेशन पहुँच रही हूँ स्टेशन तुम्हें लेने।”
राधिका आँखें मूंदकर बैठी है। ट्रेन उसकी मंजिल की ओर बढ़ती चली जा रही है।
लेखिका की कलम से
दोस्तों, राधिका ने भरपूर कोशिश की अपनी शादी को बचाने की। लेकिन जब बात चरित्र पर आ गई तो समझौता नहीं किया। अगर वो घुट घुट कर सब सहती तो भी क्या गारंटी है कि सुधीर दोबारा संदेह नहीं करता। मेरी समझ में राधिका का निर्णय बिल्कुल उचित है, आपका क्या कहना है?आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा। आप कमेंट सेक्शन में अपनी राय जरूर साझा करें। यदि आपको मेरी यह कहानी पसंद आई है तो कृपया लाइक शेयर एवं कमेंट अवश्य कीजिए।
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प्रियंका सक्सेना
( मौलिक व स्वरचित)
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