रात के 9: 30 बज रहे थे।झमाझम बारिश हो रही थी। सुरेंद्र को साइकिल चलाने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी, फिर भी वह पैडल मारे जा रहा था और उसके पीछे उसकी पत्नी राधा बैठी थी। सुरेंद्र को मस्ती सूझी और वह गाना गाने लगा “- आज रपट जाएं तो हमें ना उठइयो…..”
वह मस्ती में ब्रेक लगाकर साइकिल रोकने ही वाला था पर उसकी पत्नी ने उसकी पीठ पर नकली मुक्कियां मारते हुए आगे चलने का इशारा किया। हंसते हुए सुरेंद्र ने फिर पैडल मारना शुरू कर दिया और घर की तरफ साइकिल बढ़ाने लगा।
सुरेंद्र की एक छोटी मोटी साइकिल मरम्मत की दुकान थी। छोटा शहर था। साइकिल पर चलने वाले काफी लोग थे, तो गाहे-बगाहे साइकिल मरम्मत की आवश्यकता तो पड़ती ही थी। इसलिए उसकी दुकान ठीक ठाक ही चल जाती थी।
उसकी पत्नी राधा पास के ही ऑफिसर्स कॉलोनी में खाना पकाने का काम करती थी। तीन बच्चे थे। थोड़ी आर्थिक तंगी तो थी पर किसी प्रकार से मिलाजुला कर काम चल जाता था। दोनों साथ ही आना-जाना करते थे।रोज रात को दुकान बंद करने के बाद वह कॉलोनी से राधा को ले लेता था और फिर साइकिल से दोनों घर आ जाते थे।
उसका घर शहर के बाहरी छोर तक पड़ता था। उसके घर के पास ही एक छोटा सा बस पड़ाव था, जिसके कारण वहां थोड़ी चहल-पहल बनी रहती थी।
बारिश अब तेज होने लगी थी। वह दोनों बस पड़ाव तक पहुंच चुके था। रात 8:00 बजे के बाद वहां से कोई बस नहीं थी। अतः इसके बाद बस पड़ाव बिल्कुल खाली ही पड़ा रहता था। पर उस दिन बूंदों की रिमझिम के बीच उन दोनों को लगा कि बस पड़ाव पर कोई बैठा है। इतनी रात गए किसी के होने से आशंकित होकर राधा थोड़ा डर गई और उसने सुरेंद्र को कुहनी मारते हुए कहा “- रुको मत !…चलो चलो.. जल्दी घर चलो”
पर सुरेंद्र ने कहा “- नहीं एक बार देख तो ले कि कौन है….”और उसने साइकिल ठीक बस पड़ाव के पास रोक दी। हल्की हल्की आवाज भी आ रही थी। ध्यान से सुनने पर लगा कि यह दबी दबी सिसकियों की आवाज थी। सुरेंद्र ने जेब से छोटी टॉर्च निकालकर उस तरफ जलाया तो देखा कि एक बहुत ही वृद्ध महिला बस पड़ाव की छोटी सी छत के नीचे आधी भीगी हुई बैठी थी
और हल्के हल्के सिसक रही थी। सुरेंद्र और राधा दोनों अचंभित हो गए कि इतनी रात गए बस पड़ाव पर यह अकेली वृद्ध महिला कौन हो सकती हैं। राधा,जो हृदय से काफी दयालु थी, आगे बढ़ी और वृद्ध महिला के कंधे पर हाथ रखकर आत्मीयता से पूछा
“- अम्मा, आप कौन हो और इतनी रात गए यहां क्या कर रही हो ? देखो आप रोओ मत….. हिम्मत रखो और हमें पूरी बात बताओ।
हमसे जो हो सकेगा हम आपकी मदद करने का प्रयास करेंगे।”……….. राधा का आत्मीयता भरा स्वर सुनकर वृद्ध महिला रो पड़ी
और फिर उसने बताया “- मैं पास के ही गांव में रहती हूं। मेरा बेटा दिल्ली में नौकरी करता है। गांव में मैं और मेरे पति दोनों रहते थे। हमारी एक छोटी सी जमीन थी और एक छोटा सा घर। पर अभी मेरे पति का कुछ ही दिनों पूर्व देहावसान हो गया।
इस अवसर पर मेरा बेटा भी दिल्ली से आया था। सब क्रिया कर्म होने के बाद बेटे ने मुझे समझाया कि अब मैं गांव में अकेली रह कर क्या करूंगी, मैं भी उसके साथ दिल्ली चलूं। वहां वह मेरा अच्छे से ध्यान रख पाएगा। और गांव की जितनी भी जमीन और जो हमारा घर था
, उन सब को उसने मेरे हस्ताक्षर लेकर बेच दिया। आज मैं अपने बेटे के साथ दिल्ली जा रही थी। यहां तक पहुंचने के बाद बेटे ने कहा “- अम्मा, थोड़ा उतरकर सुस्ता ले, ताजी हवा में सांस ले ले। तब तक मैं तेरे लिए थोड़ा पानी और नाश्ता लेकर आता हूं।
तू यहीं बैठी रहना। तब से जो वह गया तो वापस नहीं आया है। अब तो बस भी चली गई पता नहीं वह कहां चला गया।बेटे ने अपना पता भी मुझे कभी नहीं बताया। मुझे नहीं पता वह कहां गया और कहां रहता है। मैं बुढ़िया अब कहां जाऊं…” वृद्धा फूट-फूट कर रो पड़ी।
राधा ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा “- आप परेशान मत हो अम्मा! हम आप को अकेला छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। आपका बेटा आपको छोड़ कर कब गया?”……… वृद्धा ने परेशान स्वर में कहा “-वह तो दोपहर को ही चला गया। बहुत तेज धूप थी।
उसके पास छाता भी नहीं था। जाने कैसे गया होगा।” चिंता की लकीरें उसके चेहरे पर उभर आईं।
दोनों समझ गए कि वृद्धा के पुत्र ने उसके साथ विश्वासघात किया और उसे अकेला छोड़कर भाग चुका है। इतना होने पर भी जो पुत्र उसके साथ यूं विश्वासघात करके उसे अकेली छोड़ कर चला गया, उसके लिए भी उसकी इतनी ममता देखकर दोनो
उसकी ममता के आगे नतमस्तक हो गए। दोनों सोच में पड़ गए कि अब क्या किया जाए उन दोनों की भी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वृद्धा को अपने साथ रख सकें और उसे वहां अकेली निराधार छोड़ देने का भी मन नहीं मान रहा था।
राधा ने कुछ सोच कर सुझाव दिया “- क्यों ना हम इन्हें पास के वृद्धाश्रम तक पहुंचा दें।कम से कम इन्हें एक छत तो मिल जाएगी। और हां, तुम्हारी जेब में अगर कुछ पैसे पड़े हैं तो वह भी इन्हें दे दो, इनके कुछ काम आएंगे।”…..
इतना बोलते बोलते राधा की आंखें भर आई। सुरेंद्र ने सहमति जताते हुए उससे कहा “- तू यहां से पैदल घर चली जा । मैं अम्मा को वृद्धाश्रम छोड़ कर आता हूं । उसने स्नेह के साथ वृद्धा को साइकिल पर बैठाया और कहा “- चलो अम्मा तुम्हारे नए घर चलते हैं”……और भारी हृदय से वृद्धाश्रम की ओर साइकिल बढ़ा दी। बरसात की वो रात एक नई कहानी गढ़ गई।
#बरसात
निभा राजीव “निर्वी”
सिंदरी धनबाद झारखंड
स्वरचित और मौलिक रचना