हरिया, अपनी जोरु के साथ, कन्धे पर अपनी इकलौती बेटी को बिठाये लम्बे डग भरता चला जा रहा था।
अगर आज छोटे मालिक चले गये तो “””
बडे मालिक से नजरे कैसे मिला पायेगा,छोटे मालिक के बडे एहसान है उसपर,,,, इस साल तो टिडिड्यो ने पूरी फसल चौपट कर दी,थी भला हो छोटे मलिक का जो समय रहते ही फसलो मे आग लगवा दी थी।
जिससे आस पास के किसानो को दुर्भिक्ष नही देखना पडा””””
हवेली दूर से ही नजर आ रही थी।हरिया ने अपनी टूटी फूटी चप्पल उतार ली,और साथ मे लायी हुई ,थैली मे डाल ली,आगे का रास्ता उसे नंगे पैरो ही तय करना था।
अब तक हरिया ने,अपनी बेटी रधिया को नीचे उतार दिया था।
रधिया पक्की सडक को अचम्भे से देख रही थी ,,,,,,,
धूप से सडक अभी भी गरम थी।रधिया के पैर झुलस रहे थे।
रधिया की माँ ,से वेदना न देखी गई,लपक कर उसने बिटिया को गोदी मे उठा लिया””””””
और लम्बे डग भरते हुऐ ,हवेली की ओर चल पडी””””””
बडे मलिक सामने ही बैठे दिखाई दिये,हरिया का मन सिहर गया।
हरिया की नजरे छोटे मालिक को ढूढँने लगी””””””
अरे ,आओ भाई हरिया ,किसे ढूँढ रहे हो,
हरिया,,, अचकचा गया,उसे लगा जैसे बडे मालिक ने उसकी चोरी पकड ली हो”””””
हरिया , बडे मालिक के पैरो पर गिर पडा,पाय लागू मालिक,
हा हा ठीक है ।बडे मालिक तल्खी से बोले”””””
मेहरारू और बिटिया भी साथ मे लाये हो”””””
अब तक कोने मे खडी हरिया की जोरू ,रधिया को सीने से चिपका कर और भी सहम गई,,,,,,
और बताओ हवेली का रास्ता कैसे भूल गये,,,बडे मालिक की आवाज मे गरजना थी।
हारिया की आवाज हलक मे फँस गई,वो डरते डरते बोला,
मालिक’वो जमीन के “””””
पैसे लाये हो’इस बार मुनीम बीच मे ही बोल पडा,,,,,
छोटे मालिक ने बुलाया था।
छोटे मालिक के हिसाब से चलेगे तो कुछ दिन मे ही हम भी ऐसे भीख माँगते नजर आऐगे””” बडे मालिक दहाडे””””
हार्न की आवाज के साथ सबकी नजरे उधर गेट की ओर उठ गई,,,,,
छोटे मालिक, अपनी पत्नी के साथ ,उनकी ओर ही आ रहे
थे”””””””
हरिया के चेहरे पर उम्मीद की लाली छा गई,”””””
छोटे मालिक ने ,आते ही बडे मालिक के पैर छुऐ,”””””
और खुशखबरी वाला कागज उनकी ओर बढा दिया,बडे मालिक ने मुस्कुराते हुऐ,छोटी मालकिन की ओर देखा।
छोटी मालकिन का चेहरा ,शर्म से लाल हो गया।
वो अपनी बडी बडी आँखो से जमीन को निहारे जा रही थी।
ममतृत्व से उनका मुखडा खिल गया था।
अरे हरिया सही समय पर आये तुम ,आज बहुत बडी खुशी का दिन है।और छोटे मालिक ने हरिया के जमीन के कागज हरिया को सौप दिये””””””
हरिया उनके पैरो मे गिर पडा,मालिक, ये अहसान जीवन देकर भी न चुका पाऊँगा,इसमे ऐहसान कैसा’ जमीन तुम्हारी थी।तुम्है वापस दे दी,रही ऐहसान की बात तो उतारने का मौका भी है।हरिया टुकुर टुकुर उनकी ओर देखने लगा,”””””
प्रभा जी के पास .अपनी जोरु को कुछ दिन के लिऐ छोड दो,घर मे कोई और है नही,प्रभा जी को कुछ मदद मिल जायेगी,और हम भी बेफिक्र हो जाऐगे,,,,,,
बडे मालिक और मुनीमजी कुछ न बोले,,,,,
प्रभा जी, बच्ची भूखी होगी,इन दोनो को अन्दर ले जाओ’
हरिया.कृतज्ञाता से छोटे मालिक को देखता रहा””””
कजरी ने पहली बार हवेली मे पैर रखा था।
रधिया की ऊँगली पकडे,धीरे कदमो से मालकिन के पीछे चल रही थी।
देखते देखते महीनो निकल गये,बच्चे की किलकरियो से हवेली का सूनापन खत्म हो गया।
आज कजरी का बदन बुखार से तप रहा था।वो हवेली न जा सकी थी।
रधिया का भूख से बुरा हाल था।जैसै तैसे कुछ रोटीयाँ बनाई हरिया ने,
रधिया ने जिद पकड ली,की रोटी ,हवेली वाले आचार से खायेगी,बेटी की जिद से हार गया,हरिया।
हारिया ने सोचा की कुछ मदद भी कर देगा,और आचार भी माँग लेगा,मालकिन बहुत अच्छी है,मना नही करेगी,,
हरिया सोचते सोचते हवेली कब पहुँच गया, पता ही न चला,
अरे हरिया.अच्छा हुआ तुम आ गये,अच्छा कजरी की तबियत कैसी है।
अभी ताप तेज है,मालकिन, कल शहर जाकर बता आना,
हरिया का मन हुआ आचार माँग ले पर हिम्मत न हुई,,,,,
सारा काम खत्म हो गया!
पर बेटी का चेहरा घूमता रहा ,हरिया की आँखो मे,बापू आचार लाना,
अरे हरिया ,तुम अभी गये नही,,,मालकिन एक बात,,हरिया की जुबान तालु मे चिपक गई,
हरिया ,जाने से पहले ,आचार की बरनी नीचे ले आना,धूप मे रखी थी कजरी ने,मौसम भी ठीक नही है ,खराब हो जायेगा,,
हरिया की आँखो मे चमक तैर गई,वो छत पर पहुँच गया।
उसने बरनी खोली,आचार की खूश्बू सब ओर फैल गई,
उसने कद्दू के दो चार पत्ते तोड लिऐ,जिस की बेल छत पर चढ आयी थी।
थोडा सा आचार निकाल पत्ते मे बाँधकर ,आगोछे मे लपेट लिया।तभी किसी की पदचाप सुनाई दी’
हरिया डर गया,कही उसकी चोरी न पकडी जाऐ,झट से उसने अगोछा,घर के पीछे फेक दिया।
फिर झाँककर देखा वहा कोई नही था।हरिया फिर वापस आया।उसने पोटली देखने की कोशिश की,वो पसीना पसीना हो गया।
आचार की पोटली,दीवार मे उग आयी झडियो मे फँसकर लटक रही थी।और उसे मुहँ चिढा रही थी।
हरिया सन्न रह गया,अब वो क्या करे,बहुत कोशिश की पर वो पोटली न निकाल पाया।
सुबह वो पकडा जायेगा’उसके मन मे बुरे बुरे ख्याल आने लगे,छोटे मालिक क्या सोचेगे,धिक्कार है उसे,वो आत्मग्लनि से भर उठा ,उसे उसका जीवन निरार्थक लगा””
वो कपडे सूखाने की रस्सी खोलने लगा””””
और कुछ ही देर मे हरिया का शरीर हवा मे तडपकर झूल रहा था।हरिया ने फाॅसी लगा ली,
सुबह सबकी नजरे हरिया के बेजान जिस्म को हवा मे लटकते देख रही थी।पर कोई न जान पाया की हरिया ने ऐसा क्यू किया।
हरिया का शरीर उसकी जमीन की मिट्टी मे एक हो गया था।
पर वो पोटली अभी भी मुहँ चिढा रही थी।
कई ऋतुऐ बीत गई,अब वो पोटली भी जर्जर हो गई,और फिर एक दिन हवा के थपेडो ने ,उसे भी जमीदोंज कर दिया।
समाप्त
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रीमा महेन्द्र ठाकुर(कृष्णाचंद्र)
रानापुर ,झाबुआ,मध्यप्रदेश”