आज दुर्गा पूजा है ,बंगाल के हर घर मे यह दिन विशेष महत्व रखता है ,,,हमारी कहानी की मुख्य किरदार प्रियंवदा जी भी माँ दुर्गा की अनन्य भक्त है । तो वे भी आज के दिन अपनी बहू रितुपर्णा के साथ अपनी अराध्य मां दुर्गा को पुष्प अर्पित करने जा रही हैं । प्रियंवदा जी ने मां दुर्गा से मन्नत मांगी थी कि जब रितुपर्णा को गर्भ रह जायेगा तब वे सपरिवार उन्हें पुष्प अर्पित करने जरूर आएंगी । इधर पूरे रास्ते भर कार के शीशे से बाहर झांकती बहू रितुपर्णा अपने ही विचारों में खोई हुई थी ,,, जाने क्यों आज उसका मन किसी बात को लेकर आशंकित था ।
प्रियंवदा जी की गिनती गाँव के सबसे अमीर लोगों मे होती थी । कुछ वर्षों पूर्व वे रितुपर्णा को कालीघाट के एक छोटे से कस्बे से अपने बेटे से ब्याह कर लाई थी , रितुपर्णा बहुत सुन्दर व आकर्षक व्यक्तित्व की थी , हर कोई उससे मिलते ही उसके गुणों के वशीभूत हो जाता था, प्रथम दृष्टया ही प्रियंवदा जी उसकी खूबसूरती पर मंत्रमुग्ध हो गई थी और इसीलिए उन्होने उसका विवाह अपने बेटे देवेन से करवा दिया था ।
बीते चार वर्षो मे प्रियंवदा जी की केवल एक ही ख्वाहिश रही थी , कि वे जल्द से जल्द अपने पोते का मुंह देख लें । रितुपर्णा अपनी सास के मुंह से पोता शब्द सुनते ही घबरा जाया करती । वैसे तो उसे अपनी सास से कोई तकलीफ ना थी , परंतु उनकी पोते की चाह से रितुपर्णा चिंतित रहने लगी थी । प्रियंवदा जी के कई मन्नते मांगने के बाद इतने सालों के बाद रितुपर्णा की गोद भरने जा रही थी । रितुपर्णा अपने पति देवेंन के साथ अपनी आने वाली संतान को लेकर बहुत खुश थी , परंतु कभी-कभी उसे यह भय सताने लगता की अगर उसने लड़की को जन्म दिया तो उसकी सास उस बच्ची के साथ कैसा व्यवहार करेगी ।
यह सब सोच विचार करते – करते रितुपर्णा की गाड़ी मन्दिर के सामने आ कर रुक गई । वह सपरिवार दुर्गा मंदिर के अन्दर पहुंच गई । मंदिर के प्रांगण में ही रितुपर्णा का पाँव फिसला और वह पेट के बल वही गिर पड़ी,,,गिरते ही उसे वहाँ प्रसव पीड़ा शुरू हो गई । प्रियंवदा जी और देवन ने रितुपर्णा को सम्भाला और जल्द ही उसे लेकर अस्पताल पहुंच गये । उनकी डॉक्टर ने इमरजेंसी में रितुपर्ना का सिजेरियन करने के लिए कहा और भविष्य में उसके दुबारा माँ बनने की संभावना पर भी आशंका जता दी ।
प्रियंवदा जी इस दुख से उबरी भी ना थी कि नर्स ने उन्हें एक नन्ही सी बच्ची के जन्म की बधाई दी । बेटी का जन्म सुनकर प्रियंवदा जी की बरसों पुरानी पोते की आस टूट गई ,, वह इस बात से इतनी दुखी हुई कि रितुपर्णा और बच्ची से बिना मिले ही घर वापस लौट आई ।
घर आकर देवेन प्रियंवदा जी को समझाते हुए बोला ,” मां देखो दुर्गा पूजा वाले दिन हमारे घर बेटी ने जन्म लिया है, यह साक्षात दुर्गा स्वरूपिनी है,आप दुर्गा माँ की भक्त हो फ़िर भी ऐसी बातों का विचार क्यों करती हो ? ” । परंन्तू प्रियंवदा जी पर देवेन के शब्दो का कुछ असर ना हुआ । उनके मन से यह बात निकालना बहुत मुश्किल हो गया था उन्हें तो इस बात का गम लग गया था कि अब रितुपर्णा दोबारा कभी मां नहीं बन पाएगी और ना ही वे खुद कभी अपने पोते का मुंह देख पाएंगी ।
रितुपर्णा अपनी सास के इस व्यवहार से दुखी थी ,,,परंतु उसे माँ दुर्गा पर पूरा विश्वास था कि एक दिन मां जरूर उसकी सास के विचार बदल देंगी ।
रितुपर्णा और देवेन ने अपनी बेटी का बहुत प्यार से स्वागत किया और उसका नाम बरनाली रखा । बरनाली अपने नाम को सार्थक करती एक प्यारी बच्ची थी ,उसका व्यवहार और बच्चों से कुछ अलग सा था । सात रंगों के समान सातों गुणों से युक्त थी बरनाली ।उसके मन में दया ,करुणा , प्रेम और स्नेह सभी गुण भरे हुए थे । दीन दुखियों का दुख – दर्द देखकर उसका हृदय बहुत विचलित हो जाता था ।
बरनाली अपनी दादी को बहुत प्यार करती परंतु जाने क्यों प्रियंवदा जी अपने मन से पोता ना होने का दुख नही निकाल पायी थी । वह उसे कभी दादी का प्यार दे ही नहीं पाई । रितुपर्णा भी अपनी सास की यह कठोरता कम ना कर पाई थी ।
बरनाली बचपन से ही दीन दुखियों की सेवा करने के लिये डॉक्टर बनना चाहती थी। इसलिये आगे की पढ़ाई लिखाई के लिए उसके पिता ने उसे लंदन भेजने का फैसला लिया । लंदन मे बरनाली पढ़ लिख कर डॉक्टर बन गई थी ।आज कई वर्षों बाद वह डॉक्टर बनने के बाद अपने गांव वापस आ रही थी ।
वापस लौटकर बरनाली ने गांव में गरीबों के लिए एक छोटा सा चिकित्सालय खोलने का विचार अपने माँ बाबा के आगे रखा । देवेन और रितुपर्णा बरनाली के इस फैसले से से बहुत खुश हुए और उन्होंने उसके लिए गाँव मे एक छोटा सा चिकित्सालय खुलवा दिया । प्रियंवदा को भी यह सब अच्छा लगता परंतु जाने क्यों बरनाली की तारीफ करने से वह अपने आप को रोक देती ।
बरनाली गरीब व जरुरतमंद लोगों का फ्री में इलाज किया करती । चिकित्सीय दृष्टि से वहाँ के हालात सुधरने लगे थे। उनके इस कल्याणकारी कार्य के चलते बरनाली और उसके परिवार का इज्जत – मान बहुत बढ़ गया था । धीरे- धीरे परिवार के लोगों की पहचान अब डॉक्टर बरनाली के नाम से होने लगी थी ।
एक बार प्रियंवदा जी देवेन और रितुपर्णा के साथ कोलकाता काली मां के दर्शन को गई। कुछ काम के सिलसिले में देवेन रितुपर्णा को लेकर वहीं रह गया और प्रियंवदा जी को उन्होने अपने ड्राईवर के साथ घर वापस भेज दिया ।
प्रियंवदा जी के वापस लौटते समय मौसम खराब हो गया तथा मूसलाधार बारिश होने लगी ,,,,इसी बीच उनकी गाड़ी एक बड़े पेड़ से जा टकराई । एक्सीडेंट के कुछ घंटे बाद कोई गुजरते राहगीर ने उन्हें पहचान लिया । और कुछ लोगो की मदद से वह प्रियंवदा जी को गांव के चिकित्सालय में ले आया और उन्हें वहाँ भर्ती करा दिया ।
अस्पताल लाने में देरी हो जाने की वजह से प्रियंवदा जी का बहुत खून बह गया था और उनकी हालत बहुत नाजुक बनी हुई थी । बरनाली अपनी दादी को इस हालत मे देख कर बहुत परेशान हो गई उसने तुरंत अपने माता-पिता को फोन कर सारी बात बता दी ।
उस समय चिकित्सालय मे खून उपलब्ध नही था तो तुरंत बरनाली ने अपना खून जांच करवाया ,, दादी का दिल तो पोती से कभी ना मिल पाया था,,, परन्तु भगवान की कृपा से उनका खून तो पोती के खून से मिल ही गया था ।
बरनाली ने अपना खून चढ़ाकर दादी को जीवनदान दिया । सुबह तक देवन और रितुपर्णा कोलकाता से वापस लौट चुके थे । देर रात तक प्रियंवदा जी को भी होश आ चुका था , वे अब पूरी तरह खतरे से बाहर थी ,,,उन्होंने नर्स से कहकर बरनाली, देवेन और रितुपर्णा को बुलवाया । प्रियंवदा जी बड़े स्नेह से बरनाली को देख कर बोली ,” मै दुर्गा माँ की अनन्य भक्ति करके भी उनका यह बेटी स्वरूप ना देख पाई,,,,किस कदर पोते के मोह में अन्धी हो है थी मै ,,,माँ दुर्गा मुझे कभी माफ ना कर पायेंगी ।
बरनाली ने दादी के होंठों पर उंगली रख कर उन्हे चुप कर दिया था ,,,, ।
प्रियंवदा जी की आँखों से लगातार आन्सू बह रहे थे बरनाली का हाथ अपने हाथों मे लेकर वे बोली, ” बच्चों की रगो में तो दादा- दादी का खून दौड़ता ही है ,,,परंतु मै एक ऐसी खुशकिस्मत दादी हूं , जिसकी रगो में उसकी पोती का खून दौड़ रहा है । ” यह कहकर उन्होने बरनाली को अपने गले से लगा लिया । देवेन और रितुपर्णा की आंखों में भी खुशी के आंसू आ गए ।
प्रियंवदा जी ने अपनी प्यारी पोती बरनाली के छोटे से चिकित्सालय को एक भव्य रूप देने के लिए अपनी सारी जमापूँजी और जमीन का एक बड़ा टुकडा दे दिया । आज फ़िर से दुर्गा पूजा का पवित्र दिन आया है ,गाँव मे एक बड़े से अस्पताल का शिलान्यास का दिन है ,,,। प्रियंवदा जी हाथ मे माईक थामे अपनी पोती के लिये सबसे कहती है ,,,,” बेटियाँ तो साक्षात दुर्गा का स्वरूप हैं ,बेटियांं ही परिवार की रोनक है , बेटी पैदा होने पर खुशियाँ मनानी चाहिये ना की दुख । हर परिवार मे बेटी का सम्मान किया जाना चाहिये,,,, मैने भले ही यह समझने मे बहुत देरी कर दी,,, परंतु आप ये गलती कभी मत करना क्योकि बेटियां भी हमारा स्वाभिमान हैं ” ।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः
बेटियों के प्रति दादी के यह शब्द सुन कर बरनाली खुशी से चहक रही है ।
#बेटियां-हमारा-स्वाभिमान
पूजा मनोज अग्रवाल