“चल कुछ लेकर आया जाए।” ये कहते हुए संगीता की नजर उस पर पड़ी।
“मजनूं बैठा है तेरी बगल में।” कुछ जोर से संगीता ने कहा।
“क्या कह रही है तू?” मैंने आँखें तरेरी।
“तुम यहाँ कैसे?” संगीता ने उससे पूछा और मैंने मुस्कान बिखेरी।
“जैसे तुम दोनों यहाँ, सिनेमा देखने।” उसने भी उसी तरह मुस्कान बिखेरते हुए जवाब दिया।
“ये फिल्म तो हमारी शर्मीलु की फेवरेट है, इसीलिए हम दोनों आ गए।” संगीता ने कहा।
“शर्मीलु!” उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा।
उसकी नजरों में जाने कौन सी तपिश थी कि मेरी हया भरी नजरें झुकने को मजबूर हो गईं। उसके साथ होने का आनंद और उसकी ऑंखों में छिपी सारी भावनाऍं मेरे दिल को छू गईं।
“वाह.. वाह.. मम्मी.. क्या बात कही।” सौम्या खिलखिला उठी और सौम्या की खिलखिलाहट को देखकर सुधीर के चेहरे पर एक मृदु आ गई।
“क्या हुआ.. क्या कह दिया मैंने!” वर्तिका जैसे निंद्रा से जगी थी।
साहब की संगति का असर दिख रहा है आप पर। इस तरह तो साहब बोला करते हैं।” उसकी हेल्पर माया भी चुटकी ले रही थी।
“पर हुआ क्या, मैंने ऐसा क्या कह दिया?” वर्तिका के चेहरे पर ऊहापोह की स्थिति झलकने लगी थी।
“हम नहीं, ये पापा बताएंगे, वो भी उनके ही अंदाज में।” सौम्या सुधीर का हाथ पकड़ उठाते हुए कहती है।
“नहीं नहीं, बीती बातों में मुझे मत उलझाओ।” सौम्या की माॅंग पर सुधीर के चेहरे से भी एक उलझन झांकने लगी थी।
“आप ही तो कहते हैं, जो बीत गई, वो बात गई। हमलोग तो सिर्फ कहानी का आनंद ले रहे हैं पापा। पापा मेरी खातिर प्लीज।” सौम्या ऑंखों में दुलार भरे हुए सुधीर की ओर देखती हुई कहती है।
“उसकी नजरों में जाने कौन सी तपिश थी”.. वर्तिका के सामने घुटनों के बल बैठ वर्तिका का हाथ अपने हाथों में लेते हुए सुधीर इक अदा से कहते हैं।
“हया भरी नजरें मेरी झुकने को मजबूर थी।” दूसरे हाथ से वर्तिका का चेहरा उठाकर और अपनी आँखों में प्यार का समंदर लहराते हुए सुधीर वर्तिका की आँखों में झाँकते हुए कहते हैं।
सुधीर की आँखों में देखते हुए वर्तिका का चेहरा गुलाब सरीखा सुर्ख गुलाबी हो उठता है और वो सुधीर की आँखों को ढ़ँकते हुए अपनी हथेली रख देती है और सौम्या देर ना करते हुए अतिशीघ्रता से अपने मोबाइल से मम्मी पापा की फोटो क्लिक कर लेती है।
“अब आगे की कहानी सुन लें पापा, आपसे केवल अभिनय करने कहा गया था।” सुधीर बेटी की बात सुन हड़बड़ा कर वर्तिका का हाथ छोड़ देते हैं।
“आप दोनों की केमिस्ट्री मस्त है माॅम डैड।” सुधीर के गले से झूलती हुई सौम्या कहती है।
“ये बोलने का कौन सा तरीका है सौम्या, आजकल के बच्चे भी ना।” वर्तिका, सौम्या को उसके कथन पर टोकती हुई कहती है।
“लाओ दीदी, तुम्हारे कान के पीछे काला टीका लगा दूँ। साहब और तुम्हारी जुगलबंदी हमेशा ऐसी ही रहे।” कहती हुई माया अपने आँखों में भरे काजल को अपनी ऊँगली में लेकर वर्तिका के कान के पीछे लगा देती है।
माया के इस प्यार पर वर्तिका की आँखें लबालब भर आईं थी, “सच में माया तुम कितना ख्याल रखती हो।”
“आप भी तो दीदी मुझे, मेरे परिवार की झोली अपने मान और प्यार से कभी खाली नहीं होने देती। कौन कामवाली को इतनी इज्जत देता है।” माया भी भावुक हो उठी।
“हो गया इन दोनों का प्रेमालाप शुरु।” सौम्या आँखें नचाती हुई कहती है।
“तेरी संगीता मौसी तेरी मम्मी को ऐसे ही शर्मीलु थोड़े ना कहती है।” सुधीर वर्तिका को चिढ़ाने के अंदाज में कहते हैं।
“माया देवी.. अगर आपकी इजाजत हो तो शर्मीलु देवी से आगे की कहानी सुन लिया जाए”..
सौम्या का नाटकीय अंदाज देख उसके सिर पर चपत लगाती हुई वर्तिका कहती है, “बिल्कुल संगीता ही है ये।”
“अब आगे मम्मी”.. सौम्या वर्तिका की गोद में सिर रख कर नीचे ही बैठ गई।
सौम्या की बात रखती हुई वर्तिका आगे कहना प्रारंभ करती है, “तुम दोनों के खाने के लिए कुछ ले आता हूँ। सॉफ्ट ड्रिंक भी लेता आऊँगा।” कहकर दूसरी ओर से वो निकल कर दरवाजे की ओर बढ़ा।
“संगीता तू क्यूँ बैठी.. जा ना.. हमारे लिए वो क्यूँ ले।” मैंने संगीता को टिहुका दिया।
“सॉरी सॉरी, मैंने सोचा सिनेमा खत्म होने के बाद हिसाब कर दूँगी।” कहकर संगीता फुर्ती से उसके पीछे भागी।
आज ही मुझे ऐसे अजीबोगरीब कपड़े डाल कर आना था। काश मैंने कपड़े बदल लिए होते। हे भगवान क्या सोच रहा होगा वो कैसी झल्ली है। घर वाले चप्पल डाले ही आ गई। मम्मी को भी आज ही बालों में तेल चुपड़ कर दो चोटी बनाने की सूझी थी। अब कभी दो चोटी नहीं बनाऊँगी। हूं.. बाल खराब हो जाएंगे.. यहाँ तो मेरी इमेज ही गुड़ गोबर होने जा रही है। क्या करूँ मैं… उन दोनों की प्रतीक्षा करती हुई बैठे बैठे मैं मन ही मन बेतरह कुढ़ रही थी।
***
“ये बहुत गलत किया तुम दोनों ने। मुझे कुछ लेने ही नहीं दिया, सारी चीजों का पेमैंट खुद ही किया। मेरे चीजों का हिसाब करके पैसे ले लो।” सिनेमा खत्म होने के बाद बाहर उसकी बाइक के पास खड़े बातें करते अपना वाॅलेट निकालता हुआ वो बहुत भोला भाला सा पर नाराज दिख रहा था।
“तुम गलत समझ रहे हो। हम दोनों भी साथ रहते हुए अपना अपना खर्च करते हैं। अभी हममें से किसी की अपनी कमाई नहीं है, इसलिए सोच समझ कर ही खर्च करेंगे ना।” उसका हाथ पकड़ते हुए संगीता ने कहा।
“अभी हमारे पास अफरात में पैसे नहीं होते हैं। एक सीमा में ही हमें खर्च करना है तो किसी पर बोझ ना पड़े, इतना ही औचित्य होता है हमारा।” संगीता ने उसे समझाया।
“बाई द वे कांग्रचुलेसंन्श, यूँ ही सफलता की सीढियाँ चढ़ो।” संगीता उसे बधाई देती हुई बोली।
“तुम्हारी सहेली को ऋषि कपूर ने कुछ ना बोलने वाला मंत्र फुँक दिया है क्या?” उसने मुझे गहरी नजरों से देखते हुए कहा।
“कांग्रचुलेसंन्श”… मैंने नजरों को झुकाते हुए कहा था और संगीता जोर जोर से हँसने लगी थी।
“कांग्रचुलेसंन्श तभी कबूल होगा, जब तुम दोनों मेरे साथ चलकर कोल्ड कॉफी विथ आइसक्रीम लोगी।” कशिश के सामने नया नया खुला कैफे दिखाकर उसने कहा।
उस समय छोटे छोटे कैफे हाऊस का प्रचलन शुरू ही हुआ था। हम तीनों कॉफी ले तीन कुर्सी वाले मेज पर बैठ गए। संगीता ने होशियारी दिखाते हुए हम दोनों को एक साथ बिठा दिया। मैं चुपचाप कॉफी घूँट घूँट कर पी रही थी। संगीता और वो इधर उधर की बातें कर रहे थे। पढ़ाई छोड़ सारी बातें हो रही थी और मैं सिर नीचे किए दोनों की बातों पर कान लगाए थी। कैफे की शोरगुल, कॉफी की महक, विंड चाइम्स की चहकती आवाज और हलचल उस समय को हमारे दिलों को यादगार बनाने में योगदान दे रहा था। यह एक ऐसा समय था जब हमारे बीच के रिश्ते और भी गहरे हो रहे थे।
“या खुदा तुम कितनी भी कोशिश कर लो, कुछ नहीं होने वाला।” संगीता ने अपने माथे पर हाथ लगाते हुए कहा।
“क्या नहीं होने वाला?” उसने संगीता को ऐसे अचानक बोलते देख पूछा और मैं समझ चुकी थी कि संगीता क्या कहना चाहती है।
“हमें बाजार जाना है, संगीता यही कह रही है।” कॉफी का अंतिम घूँट लेते हुए मैंने कहा।
“शुक्र है किसी ने कुछ तो कहा।” उसकी गहरी नजरों ने फिर से मुझे अपने जद्द में ले लिया और बिना उसकी ओर देखे ही उसकी तपिश से मैं अवश हो गई थी।
“चलें संगीता”.. मेरे मुँह से हड़बड़ाहट में निकला।
“हाँ.. हाँ चलते हैं.. तुम दोनों को कुछ बातें करनी हो तो मैं बाहर इंतजार करती हूँ।” संगीता अपना पर्स सम्भालती हुई कहती है।
“नहीं नहीं.. मैं भी चलूँगी।” संगीता से पहले अपना पर्स लेकर कुर्सी खिसका कर मैं खड़ी हो गई।
बाहर आकर उसने हमारे लिए रिक्शा बुलाया।
“तुम्हारी खूबसूरती और निखर गई है।” संगीता के बाद जैसे ही चढ़ने के लिए मैंने कदम बढ़ाए उसके लब मेरे कानों में सरगोशी कर उठे। मेरे कदम वही थम गए और मेरे गाल लज्जा से अनुरक्त हो गए।
“क्या हुआ बैठ ना।” संगीता जो इन सब से अनजान थी मेरी तरफ देखते हुए कहा।
“उसने” मेरी तरफ हाथ बढ़ाया, लेकिन मैं बिना हाथ थामे जल्दी से बैठ गई।
जाने से पहले हमारे कॉलेज आना, एक साथ लंच करेंगे।” संगीता ने मेरे दिल की बात उससे कह दी।
उसने भी मुस्कुरा कर संगीता का आमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया।
अगला भाग
बारिश का इश्क (भाग – 10 ) – आरती झा आद्या: Moral stories in hindi
आरती झा आद्या
दिल्ली
very nice story next part jaldi upload kijiye