बारिश का इश्क (भाग – 6) – आरती झा आद्या: Moral stories in hindi

“आज का प्रोग्राम सबके सहयोग से काफी अच्छा रहा। आज का मौसम भी अजीब रहा। मौसम ने आज कई रूपों में अपनी सुंदरता प्रदर्शित की है। कभी बारिश की फुहारों ने मिट्टी की सुगंध से हमें नहला दिया। कभी आसमान में बिखरी हुई बौछार ने सूरज की किरणों के साथ ऑंख मिचौली खेलती सी लगी और फिर वही सूरज की किरणें अपनी जीत दर्ज कराती सभी दिशाओं में चमकने लगी। आज के दिवस ने हमें सुंदरता और शांति के मौसम का अहसास कराया। अब एक स्पेशल थैंक्स के साथ कार्यक्रम समाप्त किया जाता है।” 

“इस अद्भुत क्षण में”, उद्घोषक ने “उसका” नाम लेते हुए आगे कहता है, “उनकी समर्थन भरी जीवनशैली, उदार मार्गदर्शन और रचनात्मक योजनाओं ने हमें चारित्रिक उत्थान की ओर प्रेरित किया। उनके सोचने का तरीका, स्थायिता और सही समय पर सही निर्णय का क्षमता ने हमें एक नई दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है। इस खास मौके पर हम उनके आभारी हैं। उनके साथ का व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर हमारे जीवन में गहरा प्रभाव रहा है और हम उनके सतत समर्थन के लिए आभारी रहेंगे।” 

“बड़े काम का है तेरा “वो” तो।” सब कुछ सुनती हुई संगीता मंच की ओर देखती हुई धीरे से कहती है।

“ऑल द बेस्ट फॉर एग्जाम टू ऑल आर सीनियर्स … इसी के साथ प्रोग्राम खत्म किया जाता है। आप सभी सीनियर्स से विनती है कि पंक्ति में एक एक कर द्वार से निकलें।” संगीता आगे कुछ और कहती, उससे पहले माइक की आवाज हॉल में गूंज उठी।

“अब क्या प्लान किया है तेरे “उसने”।” संगीता खड़ी होती हुई फुसफुसा उस पर नजर गड़ाए हुए कहती है।

सभी ने धीरे-धीरे बाहर आना शुरू किया। हमलोग के बाहर निकलते ही हमें बुके के साथ विशेज कार्ड मिले। अभी भी बारिश की हल्की-हल्की फुहारें रुई के फाहों सी बरस रही थी। वे बूँदें रुई की तरह आगे बढ़ती हुई हमें भिगो रही थी, जिसका हमारे चेहरे को छुना भला भला लग रहा था। 

लेकिन अब बारिश की बूंदों के संग सबकी ऑंखें भी बरस रही थी। अब सभी जिंदगी की समर में कूदने जा रहे थे, कौन कहां होगा, सब कुछ अभी भविष्य की कोख में ही था। बरसों की दोस्ती एक नए अर्थ और उत्साह से भरे यात्रा का आगाज कर रही रही और सभी के लिए एक नई यात्रा की शुरुआत का दरवाजा खोल रही थी।

भरी भरी ऑंखों और भारी हो गए माहौल के बीच हमने बाहर देखा तो मेरे और संगीता के पापा हमें लेने आ चुके थे। सभी एक दूसरे से विदा लेकर अपने अपने घर की ओर रवाना होने लगे। मैं संगीता से बातें करते हुए अपनी गाड़ी के पास जाकर खड़ी हो गई।

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“आज यही खड़े रहकर बातें करने का इरादा है क्या या घर भी चलें।” हमारे निकट आते ही पापा हमारी ओर बढ़ते हुए कहते हैं।

“हाँ भाई.. अब चला जाए। जब भी मन हो तुम दोनों एक दूसरे से मिल आना।” संगीता के पापा भी मेरे पापा को स्वीकृति देते हुए कहते हैं।

पापा की बात सुनकर मुझे बैचैनी होने लगी। मैं उसे एक नजर देखे बिना आगे बढ़ने में कठिनाई महसूस कर रही थी। मेरा दिल जोर से धड़क रहा था और चेहरा बेहद गरम सा हो रहा था। उसे देखे बिना कैसे बढ़ूं, यह सोचकर मेरे ख्यालात में एक अजीब सी उथल-पुथल आ गई थी। इस बैचैनी ने मेरी राह में एक  तनाव डाल दिया है। कैसे जाऊॅं, कैसे आगे बढ़ूं, यह सब मेरे लिए एक नया चुनौतीपूर्ण बना हुआ था।

संगीता भी मेरे मनोभाव को समझ रही थी। लेकिन वो भी क्या कर सकती थी!

संगीता अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गई। उससे पहले अक्टूबर में दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे आई थी। मैंने उसकी तर्ज़ पर सोचा अगर “वो” भी मुझे पसंद करता है तो मेरे गाड़ी में बैठने से पहले बाहर आ जाएगा। वर्तिका उस लम्हें को याद कर हॅंसती हुई सौम्या की ओर देखकर कहती है। वर्तिका अपने मन की विचारशीलता को उजागर करते हुए कहती है, “क्या उम्र होती है ये भी… मन क्या क्या सोचता है।”

और संयोग देखो, जैसे ही मैंने गाड़ी का दरवाजा खोला,  “वो” स्कूल गेट से बाहर आया। उसे देखकर लग रहा था जैसे दौड़ता हुआ आया हो और मुझे देखकर उसकी ऑंखों में चमक आ गई थी और मुझे यूॅं लगा जैसे मेरे जान में जान आई हो।

मेरी तो आँखों में खुशी के आँसू आ गए थे और दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के बारे में सोच कर हँसी आ गई थी।

“मैंने संगीता की ओर देखा। वो भी मेरी खुशी समझ रही थी। मैं गाड़ी में बैठ गई और अपने अपने घर की ओर चल पड़े। अब हम सब परीक्षा की तैयारी में जोर शोर से लग गए।” कहकर वर्तिका विराम लेती है।

“ओह हो मम्मी, पॉज मत लीजिए ना, आगे क्या हुआ? फिर उनसे कब मिली आप?” सौम्या जो कि वर्तिका की कहानी सुनती खोई हुई थी, वर्तिका के चुप होते ही झुंझला उठी।

“बहुत हुआ अब.. ये गाना क्यूँ पसंद है मुझे.. बता तो दिया… अब आगे कुछ नहीं। समय देख रात के आठ बज गए हैं।” वर्तिका दीवार घड़ी की ओर देखती हुई कहती है।

सौम्या ठुनकते हुए कहती है, “मुझे आगे का भी जानना है। ये बता दीजिए आप दोनों की मुलाकात फिर हुई कि नहीं।” 

हुई थी, हुई थी, परीक्षा हाॅल में हुई थी। “वो” परीक्षा वाले दिन मुझे आल द बेस्ट बोलने मेरे रूम में जरूर आता था।” वर्तिका बातों को समेटने की कोशिश करती हुई कहती है।

“फिर तो आगे सुनाओ ना माँ।” सौम्या वर्तिका का दोनों हाथ पकड़ती हुई कहती है।

“हाँ दीदी.. आगे बताओ ना क्या हुआ।” माया भी आगे जानने हेतु उत्सुक थी।

“घर नहीं जाना क्या आज तुझे।” वर्तिका माया को अभी तक यहां देख आश्चर्य से कहती है।

“मैं आज तो रुक रही हूँ दीदी। मैंने घर पर बता दिया है।” माया वर्तिका से बताती है।

“सुधीर आप कुछ बोलिए ना दोनों को।” वर्तिका सुधीर की ओर देखती हुई कहती है।

सुधीर भी जो वर्तिका को गहरी नजर से देख रहे थे, कहते हैं, “सुनाओ ना वर्तिका, मैं भी पूरी कहानी सुनना चाहता हूँ।”

“क्या सुधीर आप भी.. ठीक है.. डिनर मँगवा लो आज बाहर से ही… माया भी फ्री रहेगी।” सुधीर की नजरों की जिज्ञासा देख वर्तिका कहती है।

“मैं बना लूँगी दीदी।” माया उठती हुई कहती है।

“रहने दे ना, एक दिन आराम से बैठ। कल से तो फिर से सारे काम हम दोनों को ही करने हैं।” वर्तिका माया को बैठने का इशारा करती हुई कहती है।

सौम्या दोनों के वार्तालाप के मध्य व्यग्र होती हुई कहती है, “अब सुनाओ ना माँ।” 

हमारे पेपर्स शुरू हो गए। “वो” मेरे कमरे में आकर ऑल द बेस्ट बोल जाता। मैं भी प्रत्युत्तर में बोलती। हमारे पेपर्स खत्म हो गए। मैं और संगीता एक ही गाड़ी से आते थे एग्जाम देने। अब पापा नहीं आते थे.. ड्राइवर के साथ आती थी हम दोनों… अंतिम पेपर के दिन पहली बार मेरी “उससे” बात हुई.. पहल “उसने” ही किया। वर्तिका के चेहरे पर यह बताते हुए कई रंग आ जा रहे थे।

हमारे पेपर्स शुरू होते ही, “वो” मेरे कमरे में आकर ऑल द बेस्ट बोल देता। मैंने भी प्रत्युत्तर में उत्तर देती। मैं और संगीता परीक्षा देने एक ही गाड़ी से आते थे। अंतिम पेपर के दिन पहली बार मेरी “उससे” बात हुई, और “उसने” ही इस नए अनुभव की शुरुआत की थी। वर्तिका के चेहरे पर आने वाले विभिन्न रंग उसके आनंद और हैरानी को बता कर रहे थे, जो इस नए मोड़ पर उसके जीवन को रूपांतरित कर रहे थे। इस समय भी अतीत की परछाईं को याद कर बताते हुए उनका मन आनंदित और उत्साहित महसूस कर रहा था।

उसने हम दोनों से पूछा, “आगे क्या करने का इरादा है।”

संगीता उसकी बात पर हँसती हुई कहती है, “फिलहाल रेस्ट… उसके बाद कुछ और सोचा जाएगा।”

और मुझसे तो तत्काल कुछ बोला ही नहीं गया।

उसने फिर से सवाल दुहराया, “तुम्हारी सहेली तो रेस्ट करने वाली है। तुमने नहीं बताया क्या इरादा है?” अब वो पूरी तरह से मेरी ओर मुखातिब था।

मैंने धीरे से कहा, “मुझे रसायन विज्ञान की व्याख्याता बनना है। इसीलिए किसी अच्छे महाविद्यालय से पहले रसायन विज्ञान में स्नातक करुँगी। फिर पोस्ट ग्रेजुएशन, साथ साथ नेट की तैयारी भी करुँगी।”

 

“वो” सुनकर खुश हो गया।

अब संगीता ने उससे पूछा, “महोदय, आप आगे क्या करने वाले हैं। हमारा इंटरव्यू ही लेते रहेंगे या आगे अपने लिए भी कुछ सोचा है आपने।”

संगीता के सवाल पर उसने मुझे देखते हुए कहा, “जी महोदया… मैं इंजीनियरिंग की तैयारी करने वाला हूँ। फिर आगे और देखेंगे क्या क्या हो सकता है?” 

“देटस ग्रेट” संगीता खुशी का इजहार करती हुई कहती है।

अब कुछ दिन हमारे मस्ती भरे थे। मस्ती के साथ साथ हमलोग परिणाम की प्रतीक्षा में लगे थे। आखिर उसी पर हम सभी के भविष्य का निर्णय होने वाला था।

नियत समय पर परिणाम आया। “उसने” स्कूल में टॉप किया था। मैंने और संगीता ने टॉप टेन में अपना स्थान बनाया था। सभी बहुत खुश थे, हमारे सारे बैचमेट्स अच्छे नंबरों से पास हुए थे। मेरा और संगीता दोनों का एडमिशन अच्छे कॉलेज में हो गया। फर्क इतना था कि संगीता ने अपने ख्वाब सिविल सर्विस के लिए कला संकाय लिया। लेकिन हमारी दोस्ती जस की तस रही। हमने साथी बनकर एक दूसरे की सफलता का आनंद लेते रहे।

“उसने” भी इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए कोचिंग जॉइन कर लिया था।

समय निर्बाध गति से सरकता जा रहा था। हम सब अपने अपने लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित थे। मैं और संगीता स्नातक के द्वितीय सत्र में आ गई थी। संगीता को खबर मिली थी कि “उसने” आईआईटी क्वालिफाई कर लिया है और संगीता उसी समय सुबह के दस बजे होंगे मेरे घर ये खुशखबरी देने आ धमकी।

“तुझे कैसे पता चला.. किसने बताया”.. संगीता के द्वारा खबर दिए जाने पर मैंने बहुत ही शांत भाव से पूछा था। 

“ओए होए.. धड़कनें तो बेकाबू हुई जा रही हैं तुम्हारी”.. मेरे दिल पर हाथ नाटकीय ढ़ंग से हाथ रखते हुए संगीता ने कहा। 

“ऐसा कुछ नहीं है.. तेरा दिमाग खराब है”.. मैंने उसकी इस हरकत पर बिगड़ते हुए और नजर चुराते हुए कहा। 

“अच्छा जी.. मेरी ही बिल्ली और मुझसे ही म्याऊँ”… मेरी आँखों में झाँकती हुई संगीता ठहाका लगाती हुई कहती है।

क्रमश:

आरती झा आद्या

दिल्ली

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