मैं खुद को आइने में देखकर पहचान नहीं रही थी।
अब मुझे चिंता हो गई कि अगर उसने भी मुझे नहीं पहचाना तो, ये सोचते ही मैं रुआँसी हो गई। मुझे ऐसे देखकर माँ ने पूछ ही लिया, “क्या बात है बेटे.. तुम्हारा चेहरा क्यूँ मुरझा गया? बालों का बनावट बदल दूँ क्या?” माँ को लगा शायद मैं अपने पहनावे को लेकर खुश नहीं हूँ।
“नहीं माँ, मैं तो सोच रही हूँ, अगर किसी ने भी मुझे नहीं पहचाना तो। मैं तो किसी शादी विवाह में भी इतने तामझाम नहीं करती।”
“तो क्या घर चली आना। सुन्दर दिखना भी मुसीबत ही हो गया मेरी बेटी के लिए।” माँ ने हँसते हुए कहा।
इसमें हँसने वाली क्या बात है.. मैंने कोई चुटकुला सुनाया क्या?” मैं गुस्सा हो गई थी।
“तेरी बातें चुटकुले से कम तो नहीं हैं। चिंता मत कर, सब पहचान जाएँगे।”
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साढ़े नौ हो गए थे, तभी पापा की आवाज़ आती है.. “देर हो जाओगी बेटा।”
मैं जल्दी जल्दी कमरे से बाहर आती हूँ। पापा और मेरे भाई बहन सब मुझे ऐसे देख रहे थे मानो कभी देखा ही नहीं हो।
“मैं अच्छी नहीं लग रही हूँ क्या?”
“दीदी बहुत सुन्दर लग रही हो। सब देखते रह जाएँगे।” मेरे भाई ने कहा।
मैं फिर भी सकुचाई सी थी। मुझे आदत ही नहीं थी इन सब चीजों की। ज़िन्दगी के रंग और सौंदर्य बाहर की सकुचाहट के परे होते हैं। मैंने उस अनुभव से जाना कि जब हम अपनी सकुचाहट को तोड़कर नए दृष्टिकोण अपनाते हैं, तो ज़िन्दगी की सारी सीमाएँ एक साथ टूट जाती हैं। मुझे नजर ना लग जाये इसलिए माँ ने स्नेह और सुरक्षा का आभास कराते हुए, जल्दी से मेरे कान के पीछे काले रंग के टीका सजा दिया।
मैं साड़ी को नीचे से पकड़े हड़बड़ाती हुई गाड़ी में पापा के बगल में बैठ गई। पापा ने जैसे ही गाड़ी का स्टीयरिंग घुमाया, इंद्रदेव ने भी अपना मोटर घुमा दिया और, “ये क्या बारिश होने लगी.. आज ही सब हो लो।” मैं मन ही मन गाड़ी में बैठी इंद्र देव पर गुस्सा होने लगी, लेकिन मेरे क्रोधाग्नि में इतनी शक्ति तो थी नहीं कि इंद्र देव सहम जाते , सो झमाझम बारिश होती रही।
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घर से पंद्रह मिनट की दूरी पर ही तो स्कूल था। अन्य दिन मैं साइकिल से स्कूल जाती थी।
आज साड़ी में थी तो… मत पूछो.. तब साड़ी सम्भालना कितना मुश्किल था मेरे लिए।
मैं पूरे रास्ते प्रार्थना करती रही कि भगवान जी बारिश रुकवा दो। कितनी सारी मन्नतें उस समय मैंने माॅंग ली थी, बारिश रुक जाएगी तो ये करूॅंगी, वो करूॅंगी। लेकिन भगवान जी को भला किसी चीज की कमी है, जो मेरे द्वारा दिए गए लालच में आते। मैं ऑंखें बंद कर प्रार्थना करती रही और बरसात होती रही।
“स्कूल आ गया बेटा”, गाड़ी रोकते हुए पापा ने कहा। मैं एक ऑंख खोलकर बारिश का जायजा ले रही थी। आसमान से बूॅंदों की बारिश तो नहीं रुकी, पर भगवान जी ने इतनी जादूगरी किया कि अब वह बूॅंदें नए रंगों की कहानी सुनाने लगी, अब वो बारिश फुहारों में तब्दील हो गईं थी। मेरे आसपास की प्रकृति में एक रोमांटिक महौल बन गया था। बूॅंदों ने मेरे चेहरे को छूकर एक मीठा सा स्पर्श किया, जैसे कि प्रेम भरी मुस्कान में सभी दुःखों को भुला दिया जाए। हर बूॅंद मेरी साथी बन गई, मेरी राहों में रंगत बिखेरती हुई, जैसे कि किसी कलाकार ने एक चित्र को जीवंत कर दिया हो। इस रोमांटिक सी बारिश में, वे बूॅंदें मेरे हृदय की धड़कनों की गति बढ़ा रही थीं, मानो कोई सुंदर सागर मेरे अंदर की भावनाऍं उफान पर हो।
स्कूल गेट से बिल्डिंग तक पैदल जाना होता और साड़ी में होने के कारण मुझे लग रहा था.. मैं जरूर गिर जाऊँगी।
मेरी तो हिम्मत नहीं हो रही थी कि स्कूल के अंदर जाऊँ। पापा ने कहा, “बेटा स्कूल आ गया… उतरो.. यहाँ बैठे बैठे समारोह समाप्त हो जाएगा।” मैं इधर उधर देखने लगी, शायद मेरी कोई सहेली मिल जाए। संयोग से मेरी बेस्ट फ्रेंड संगीता भी अपनी गाड़ी से उतर रही थी… उसे देख मेरी जान में जान आई।
उसने शरारा डाला हुआ था। पहले हमारी शरारा डालने की ही बात हुई थी। मैं अपनी खुशी में उसे बताना भूल गई कि मैं साड़ी डालूँगी, उसे शरारा में देखा तब मुझे याद आया। मैंने दाँतों तले अपनी जीभ दबाई.. “हे भगवान.. अब क्या करुँ मैं.. स्कूल के अंतिम दिन अपनी दोस्त को नाराज करुँगी मैं।”
उसके नजदीक आते ही मैं भी गाड़ी से उतरी.. वो चिहूँकी… ओ माइ गॉड .. कितनी सुन्दर लग रही है तू। एकदम मिस वर्ल्ड… उसकी आदत थी खुश होने पर कुछ ज्यादा ही प्रशंसात्मक हो जाती थी और मैं खुश कि उसका ध्यान शरारा वाली बात पर नहीं गया।
मेरे और उसके पापा बातें करने लगे और हम दोनों स्कूल की ओर चल पड़े… बारिश भी रुक ही गई थी।
स्कूल गेट से जैसे ही हम दोनों अंदर आये..
संगीता मुझसे टेढ़ी नजर से देखती हुई कहती है, “ये मत समझना कि मैं शरारा भूल गई हूँ। तू बला की खूबसूरत लग रही है इसीलिए नाराज होने की इच्छा नहीं हो रही है।”
“मेरी प्यारी सखी जो हो।” मैं खिलखिला पड़ी थी।
“लेकिन तुझे साड़ी की कैसे सूझी और सूझी भी तो मुझे भी बोल देती।” संगीता प्रेम से मेरी ओर देखती हुई पूछती है।
“नहीं वो.. ऐसे ही”.. बोल कर मैं बात टालना चाह ही रही थी कि मैंने देखा, वो हॉल के बाहर पीले कुर्ते पाजामे में खड़ा था।
उस परिधान में उसकी शख्सियत निखर गई थी, उसका वस्त्र सटीकता से बुना गया था, हर रेखा और रंग में मिठास ही मिठास था। उसकी शानदार परिधान ने मेरी नजरों को बाँधे रखा, जैसे कि कोई चित्र से बाहर आकर खड़ा हो गया हो। उसकी शख्सियत ने ऐसा जादू किया कि मेरी नजर उस पर से हट ही नहीं रही थी।
वो मुझे एक नजर देखकर किसी से बातें करने लगा। जैसे ही मैं उसके बगल से गुजरी, आवाज करती हुई झमाझम बारिश फिर से शुरू हो गई। बूॅंदें गिरने लगीं, मेरे चेहरे पर मुस्कान खिल गई और यह झमाझम बारिश जैसे कि स्वर्ग से आई हो, हमारे बीच में एक अद्वितीय महौल बनाती हुई। उस समय वहाँ हर बूॅंद एक किस्सा सी थी, हर बूॅंद में एक अद्भुत संगीत बसा था, जो हमारी दुनिया को रंगीन बना रही थी। उस समय लगा जैसे इंद्र देवता भी हमें खुश होकर आशीर्वाद दे रहे हो।
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संगीता उसे देखती हुई मुझे कोहनी मारती हुई कहती है, “ओह हो, तो पीली साड़ी के पहनने के पीछे ये वज़ह थी। तुझे कैसे पता चला कि वो पीला कुर्ता डालेगा.. जासूस छोड़ रखा है क्या तूने।”
“चुप कर.. कुछ भी बोलती है।” मैं अपने हाथ को सहलाती हुई कहती हूं।
“मुझसे तो कुछ नहीं छुपा है डार्लिंग वर्तिका।” संगीता मुझे छेड़ती जा रही थी और हम बातें करते करते हाॅल में प्रवेश कर ही रहे थे कि मेरे कानों में फुसफुसाने की आवाज़ आई, “बहुत सुन्दर लग रही हो।”
आवाज पर जैसे ही मैं घूमी.. फिर कोई नहीं… सपना और सच के मकड़जाल में फँसने से पहले ही मैंने देखा… वो मेरे आगे जा रहा था और मंच के पास जाकर कुछ इंस्ट्रक्शन देने लगा। “ये सच था”.. सोच कर मुझे शरम आने लगी।
“यार सजावट देख.. सो ब्यूटीफुल ना।” गनीमत था कि संगीता ने उसे फुसफुसाते और मुझे खुद में ही सिमटी शर्माते हुए नहीं देखा।
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जब हमने हॉल के चारों ओर नजर दौड़ाया तो उस सजावट ने मन को मोह लिया, हम दोनों ही मुग्ध होकर सजावट को देख रहे थे।
सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला था जूनियर्स का दिल के आकार के बैलून्स के बीच में हम सारे सीनियर्स का कॉलाज लगाना और हर पिक्चर्स पर लाइटिंग इस तरह की गई थी कि उस कॉलाज में हम सभी बैचमैट के चेहरे चमकते दिखे। वे सिर्फ बैलून्स नहीं थे, वो सिर्फ कॉलाज नहीं थे, वो थी हमारी यादों की रंगीनी और हर बैलून के साथ हमारी दोस्ती की कहानी को सुंदरता से सजाया गया था।
“अरे यार इतना धांसू आइडिया किसका था। किसी ने भी हम सारे बैचमैट के पिक्चर्स तो माँगे नहीं थे!” संगीता की ऑंखों में आ गई चमक बता रही थी कि संगीता उस आइडिया पर फिदा थी। नजदीक जाकर देखा तो हमारी बारहवीं की पिकनिक की तस्वीरें चस्पां थी।
“ये हमारी पिकनिक की तस्वीरें हैं.. जो उसने”… कहकर मैं चुप हो गई।
“जी.. बिल्कुल वर्तिका जी.. आपके “उनके” द्वारा सबके इंडीविजुअल क्लिक किए गए पिक्चर्स हैं ये।” संगीता को मुझे फिर से तंग करने का अवसर मिल गया।
“फिर तू शुरू हो गई”…. मैं गुस्सा होती हुई कहती हूं।
“तो नाम लेकर बोल ना.. उनके.. उसने लगाए रखती है। नाम लेने में इतनी भी क्या शर्म।” संगीता कमर पर दोनों हाथ रखे मुझे घूरती हुई कहती है। उसके चेहरे पर नाराजगी और हँसी दोनों का मिश्रण था।
“चल बैठते हैं हम लोग”…उसका ध्यान मुझ पर से हटाने के लिए मैंने कहा।” हम लोग अपने सेक्शन के लिए तय की गई पंक्ति में जाकर बैठ गईं। हम सभी एकत्र होकर, समूह की भावना के साथ, उस क्षण की प्रतीक्षा करने लगे, जिसमें सरप्राइज़ कार्यक्रम आयोजित होने वाले थे। हर किसी की मुस्कराहट में दोस्ती की एक कहानी थी और हम सभी एक-दूसरे के साथ सफलता के इस सफर का आनंद ले रहे थे।
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सभी बैचमेट्स, जूनियर्स, टीचर्स और प्रिन्सिपल सर सभी हाजिर थे और आगामी कार्यक्रम का इंतजार कर रहे थे। जूनियर्स ने स्वागत गीत और नृत्य के माध्यम से हमें ऊर्जा से भर दिया और फिर वहाॅं हर रूप में कला का जश्न शुरू हुआ।
फिर, हर तरह के कला-संगीत कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। नृत्य, नाटक और भाषणों के माध्यम से हमने सभी अनुपम प्रतिभाओं को देखा। हमारे बैच के कुछ छात्रों ने भी गीतमाला, मिमिक्री और नृत्य से अपनी कलाओं का प्रदर्शन किया। आज का दिन ऐसा था कि हर रूप में प्रतिभा की बारिश हो रही थी।
लंच का समय आया और जूनियर्स ने टीचर्स और हम सभी बैचमेट्स को लंच के लिए आमंत्रित किया। हम ने एक साथ बैठकर खाना खाते हुए विभिन्न कलाओं की बातें करते हुए अपना खुशी-भरा समय बिताया। स्नैक्स का आंतरिक और लंच का बाह्यिक आयोजन ने इस महोत्सव को और भी रंगीन बना दिया।
अगला भाग
बारिश का इश्क (भाग – 4) – आरती झा आद्या: Moral stories in hindi
आरती झा आद्या
दिल्ली