बरगद की छाँव – नीरजा कृष्णा

एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में ऊँची पोस्ट पर कार्यरत शशांक बहुत व्यस्त चल रहे हैं। उनके यहाँ हैडऑफिस से अमेरिकी डेलीगेशन आया हुआ है। वो मिस्टर ब्राउन और उनकी पत्नी  के लिए रात का डिनर किसी बढ़िया पांचसितारा होटल में प्लान कर रहे थे …तभी उनके सहयोगी सुधाकरजी सुझा बैठे,”सुनो, ये लोग होटलों में तो रोज ही खाते पीते है। क्यों न हमलोग इन दोनों को अपने घर के खाने का मज़ा दिलाएँ?”

एक नज़र में ही उनको सुझाव बढ़िया तो लगा पर उनके घर में नॉनवैज और ड्रिंक्स पर पूरी पाबंदी थी। वो हिचकते हुए कुछ बोलने को थे पर सुधाकर जी बीच में ही टोकते हुए कहने लगे,”चिंता मत करो, ड्रिंक्स वगैरह कोई जरूरी नहीं है। मैडम इंडियन करी की दीवानी हैं।आज का विशुद्ध मारवाड़ी भोजन तुम्हारे घर पर और कल मेरे घर प्योर पंजाबी फूड का डिनर पक्का।”

शाम को सब उनके घर पर एकत्रित हुए। मीता ने  रसीले स्पंजी रसगुल्लों के साथ घर का बना बेल का शरबत पेश किया। वो इनके अनोखे स्वाद पर रीझ गए। मैडम ब्राउन पूछ बैठी,”ये रसगुल्ले कैसे बनते हैं?”



शशांक बहुत गर्व से बोले,”मेरी माँ ने बनाए हैं। ये उन्होंने आपलोगों के लिए विशेषरूप से बनाए हैं”

तब तक उनके बाबूजी वहाँ आ गए और पीछे पीछे गर्मागर्म समोसों की ट्रे लिए माता जी भी आ गई। जैसे ही उनका परिचय कराया गया, मिस्टर ब्राउन पूछ बैठे,” आपके माता पिता कितने ग्रेसफुल हैं। आजकल आपके पास आए हुए हैं?”

इस बार मीता बहुत गर्व  से बोली,”नहीं सर! माँ बाबूजी यहीं एकसाथ रहते हैं।”

 गरम समोसे ने शायद उनका मुँह जला दिया था, जल्दी से पानी घोंटते हुए कण्ठ से निकला,”रियली? पर अब तुम लोग इंडिपेंडेंट हो, अभी तक पेरेंट्स के साथ?”

उनका आश्चर्य खत्म ही नहीं हो रहा था…मैडम ब्राउन की तो आँखें फैली की फैली रह गई थीं,”बट हाउ डू यू मैनेज? मेरा मतलब है..विचारों के टकराव होते होंगें। तुमलोग कैसे सहते हो ये सब?”

इस बार भी उत्तर मीता ने ही दिया,”हमारा घर बरगद का पेड़ है, बाबूजी उसकी जड़ हैं और माँ  उसकी घनी छाँह हैं। सर आपलोग बिना माँबाप के कैसे रह लेते हैं?”

सब निरुत्तर होकर बगलें झांकने लगे थे।

नीरजा कृष्णा

पटना

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